Gahnai Lok Gatha गहनई लोक गाथा

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Gahnai Lok Gatha गहनई लोक गाथा

गहनई लोक गाथा  Gahnai Lok Gatha  गोचारण के लिए जाते समय या गोचारण के बाद लौटते समय अहीरों द्वारा गाया जाता है । अहीरों के समूह अपने-अपने खिरकों से गायें लाकर कालिंजर जाते हैं और चार माह तक गायें चराकर लौटते हैं, जिसे ‘चारमास’ कहा जाता है । गोचारण की यह कथा मूलत: गाय चराने से सम्बन्धित है, पर कृष्ण गोरक्षक, गोपाल होने से गोचारण के नायक हो गये हैं । इस प्रकार यहाँ का गोचारण काव्य कृष्ण की लीलाओं से जुड़कर केवल अहीरों का ही नहीं, वरन् सभी भारतीयों का लोकप्रिय बन गया है।

जब ठाढ़े  तो ब्वाले कन्हैया सुन सैंथी ब्वाल
हाँकी गाय बिरिछ का, सीधा करी तैयार ॥ 1 ॥

ठाढ़ी किसान की गोहूँधरी, कनकौ धरी पुरान
कि ना चार तै बिलिम जा, नवा सीध कै देउँ ॥ 2 ॥

जब रेंग  चली ती सैंथी, गोहूँ  हलावै गाय
बीच मा मिली बहुरिया , बिहाँसि कै पूँछी बात ॥ 3 ॥

धौं तोरे घर छ्यादन मूड़न , धौं रटा  काट कल्यान ?
न मोरे घर छ्यादन मूड़न, न रटा काट कल्यान ॥ 4 ॥

बीरन चला चराऊँ, महँ गौहनवै जाँव ॥ 5 ॥

ठाढ़े ब्वालै ग्वालिन, कि स्वामी मोरि ओनास 
लै चलते मोहि स्वामी, मोही छाँड़  न जाव ॥ 6 ॥

ठाढ़े ब्वाले कन्हैया, कि सुन ‘ले ग्वालिन बाल
पूजौ माय पिपरी , कै भैरमा  हवै मुखाग  ॥। 7 ।।

थाली कै आखत , लै गड़आ  गगनीर
मूढ़े  ते नहुआ , बहि बहियन  तक जाय ॥ 8॥

ठाढ़े कंत बहोर दे स्वामी बा जस मनिहउँ  त्वार ॥ 9 ॥

ठाढ़े ब्वाले पिपरी के भैरमा, ग्वालिन सुन ले ब्वाल
यहू  जलम मैं उ पाथर, बहू  जलम होउँ च्वार  ॥ 10 ॥

भूखी गाय बहोरउँ मोर सातो जलम नसान
छाती मारै गुटका , उलटी खाय पछार ॥ 11 ॥

ब्याड़ै जाव  गाय नचनिया देउतन दीन्ही ज्वाब
रेंग चली है ग्वानिन , जेहि चलत दयार ॥ 12  ॥

 बीच मा मिला कन्हैया, बिहँसि कै पूछी बात
तें गई पिपरीतरे के भैरमा, का पाये बरदान
ठाढ़े वाले कन्हैया कि सुन ले ग्वालिन ब्वाल ॥ 13 ॥

पूजी गाय नचनिया जौन चुरवन कै जाय
थारी कै आखत, लै गड़आ गगनीर ॥ 14 ॥

पदुमहरे  ननदोइया, कोन मोरे स्वामी कै गाय
रात कैदीन्हेस सानी , दिन के उलेड़े पान ॥ 15 ॥

स्याल्हेन केर बहुरिया, काहे का हमका बोलिवास
रात कै दीन्हेस सानी, दिल कै उलेड़े पान ॥16 ॥

पदुमहरे ननदोइया, चीन्हौं न स्वामी कै गाय
या कइ त बइठ आरती, बा कइत गाय सुलतान
माझा॰ माँ बइठ नचनिया, वहाँ तोरे स्वामी कै गाय ॥ 17 ॥

मूड़ ते हुआ बहि बहियन तक जाय
रूठे कंत बहोर दे नचनी, बा जस मनिहउँ त्वार ॥ 18 ॥

ठाढ़े ब्वा सतजुग केर नचनिया, सरमुख गाय बतान
रकत पियासो हों मैं नचनी, झारिन का नरियाँव  ॥ 19 ॥

छाती मारै गुटका उल्टी खाय पछार
ब्याढ़े जाव नचनिया, टाटक दीन्ह जवाब ॥ 20 ॥

रूँग चली ग्वालिन, जेही जात द्यार न लाग,
बीच मा मिला कन्हैया बिहँसि कै पूछी बात ॥ 21 ॥

ठाढ़े वाले कन्हैया, कि सुन ले ग्वालिन ब्वाल पूजौ
बेल  गुमान , जोगाइन  मा साँड़ ॥ 22 ॥

थारी कै आखत, ले गड़आ गगनीर
मुड़े ते नहुआवै, बहि एड्रियन तक जाय ॥ 23 ॥

 रूठे कंत बहौरे, बड़ जस मनिहउँ त्वार ॥ 24 ॥

ठाढ़े ब्वाले बेल  गुमाना, किसुन ले ग्वालिन ब्वाल
पिया तोर जूझे  झारिन ” मा, गौरा कहौ संदेश  ॥ 25 ॥

छाती मारै गुटका, उलटी खाय पछार
ब्याढ़े जाय गुमाना, जो टाटक दीन्ह जवाब ॥ 26 ॥

ठाढ़े ब्वालै ग्वालिन, कि सुन ले स्वामी ब्वाल
चार महीना आसों, गौरा माँ रहतेउँ छाय ॥ 27 ॥

ठाढ़ें ब्वालै रानी, कि सुन ले बरेदी का
आसों का चउमास गार दे, गौरा के देऊँ पार ॥ 28 ॥

ठाढ़े ब्वाले रानी, कि सुन ले बरेदी ब्वाल
टूटै बारी  तोरी, कि मोरी गाईं  करस लिल्लाम  ॥ 29 ॥

ठाढ़े ब्वालै ग्वालिन, कि सुन ले स्वामी ब्वाल
आज कैं रैन मोरे पलंग मा सोय जा, मोर जियरा जाय जुड़ाय
सौ  सोने के हो जा ग्वालिन, सो सोने का घर त्वार ॥ 30 ॥

पलँग पाँव न दइहों, मोर भूखी नाचनी गाय
ठाढ़े ब्वाले रानी, कि सुन ले स्वामी ब्वाल ॥ 31 ॥

करतेऊँ अहिर गोररहा , तोर है दूबर गाय
आगे करे दोहनिया , पाछे में माँग बियारी खाय ॥ 32 ॥

करती अहिर गोइरहा , माँग बियारी खाय
नाँही किए कन्हैया तै पलकन पान झुराय ॥ 33 ॥

ठाढ़े ब्वालै रानी कि सुन ले स्वामी ब्वाल
लै चलते तैं स्वामी मोहिं छाँड न जाव ॥ 34 ॥

लै चलतेउँ ग्वालिन तोहिं छाँड़ न जाय
माँगे गाय लेवाई , तैं  लट ब्याहर होसाय ॥ 35 ॥

दे पहरौँ मंखी कपड़ा कसौं ढाल तरवार
माँगै गाय कनाइ मोहरा थामेंह म्वाट ॥ 36 ॥

धैँ चलतेउँ ग्वालिन मोंहि छाँड़ न जाय
जनहाँ 78 गाय नचनिया, लगै पथरहा पाव ॥ 37 ॥

होई मनसवा रोगी, होई मेहरिया बाँझ
लै चलते तैं स्वामी, मोहि छाँड़ न जाव॥ 38 ॥

बने रह्यो तुम रोगी, बनी रहिहऊँ मैं बाँझ
लै चलतेउँ ग्वालिन, तोहिं छाँड़ न जाय ॥ 39 ॥

ओनाय 80 कै बरसै बादर, तो मैं बदना धर लेउँ छिपाय
लै चलते तैं स्वामी, मोहिं छाँड़ न जाव ॥ 40 ॥

अटके  गाय चरइहौं, थके मा दबिहौं पाँव
लै चलतेऊँ ग्वालिन तोहिं छाँड़ न जाय ॥ 41 ॥

सी ब्वा करै कि मेही चरावै गाय
लै चलतेऊँ ग्वालिन, तोहिं छाँड़ न जाय ॥ 42 ॥

मरै बोलिहन  का, जो हमका बोलियाँय  पूत
गाय छेरी भैंस धन अहिरन बयार ॥ 43 ॥

लै चलतेउँ ग्वालिन, तोहिं छाँड़ न जाय
तोरी बेंदिया के मारा मोर गाय न बोरी घूँट ॥ 44 ॥

लै चलते तैं स्वामी, मोहिं छाँड़ न जाव
तोरे पानी की ब्यारा, बेंदिया धरौं उतार ॥ 45 ॥

लै चलतेउँ ग्वालिन, तोहि छाँड़ न जाय
तोरी जेहर के मारा, मोरी गाय चढ़े न घाट | 46 ॥

लै चलते स्वामी, मोहि छाँड़ न जाव
तोरे गायन की ब्यारा, जेहर दै मारों अठकउरा  ह्वै जाय
फिर कै बहुरौं एक जे एक, बछवा के ब्याँच माँ जेहर लेहूँ बनवाय ॥ 47 ॥

ठाढ़े ब्वाले कन्हैया कि सुन ले बरेदी ब्वाल
जेहिकर बाँगर  दूसर, सोचले हमारे साथ ॥ 48 ॥

जेहेई छोल  खबइहौं आंदी काँदी  देऊँ कुँआ का पान
तोरे साथ बहादुर, को छाँड़े घर ब्याही नार ॥ 49 ॥

तैं छो खबैहै आँदी-काँदी, दइहै कुआँ का पान
मैं केहि छोल खबैहों आँदी-काँदी, मोरे बढ़ेगा गोरूवार  ॥ 50 ॥

जेतिन पात पतारे  उतनी अहिर के गाय
अगहर पावै पानी, पछहर काँदौ  खाय ॥ 51 ।।

सीसी दीन बहादुर, नाचन ताड़े ” कान
डगरी गाय नचनिया, मन नें मानै ब्वार ॥ 52 ॥

दहिने छाँठ दे ‘बाँदा’, बायें गाँव गुर्याह
परसौड़ा सुभ गाँव से गाइन का डहराव’
बीचों बीच निकर चल बेटा सेहुड़ा के ओजियास  ॥ 53 ॥

ठाढ़े ब्वालै कन्हैया, कि सुन ले नचनी गाय
कुर्मिन जात किसानिन खातन संघै दिखाहिं
अइत खेत नचनी, कतहूँ न पाबै पान ॥54॥

ठाढ़े ब्वालै कन्हैया, कि सुन ले नचनी ब्वाल
हिरके मा बछवा ले मूँद कै पनहौं जाव ॥ 55 ॥

कउनौ खाबै पात पतुलिया  कउनौ फुनगी लय चबाय
दादा केर नचनिया जरन सें लेय उखार ॥ 56 ॥

ठाढ़े ब्वालै बरइन” कि सुन ले बरेदी ब्वाल
कहाँ क्यार तैं अहिरा, कहाँ ना है घर वार ॥ 57 ॥

बछिया घर कै कि, बेड़लाई गाय गोरुवार
दे गाई, बेरी तरे नेवारैं  घाम
पियन दे बछेरुअन दूध और हमहूँ खेली मिल पंसार || 58 ||

सूरत का बरेदी, ढूँढ़े न पइहै संसार ॥ 59 ॥

ठाढ़े ब्वा बरेदी कि सुन ले बरइन ब्वाल
तोरी सूरत  की मैं, दै दीन्हेऊँ परइयन दान ॥ 60 ॥

माँगै बरइन उसरीटे  पान 106

बड़े मियाँ की ड्योढ़ी, दै- दै मारै मूँड़
आवा अहिर परदेसी, पानी लीन्हेस म्वार ॥ 61 ।।

ठाढ़े ब्वाले बड़े मियाँ तब किसना अहिर चलै समटाय
दो अहिरा एक मेहर  लेवाये, साथ लये एक लख गाय ॥ 62 ॥

दउरत आवै लेवैया , तउलत आवै डाँड़
भागे अहिर न बाँचे, ओहिकै जेयत जाय न गाय ॥ 63 ॥

ठाढ़े ब्वा कन्हैया, कि सुन ले पदमें  ब्वाल
या धौं केहि रैं का, आवा धार  सजाय ॥ 64 ॥

ठाढ़े ब्वालै पदमें, कि सुन ले कन्हैया ब्वाल
पानी लीन्हेबरइन का, आवा धार सजाय ॥ 65 ॥

ठाढ़े ब्वालै बरेदी, कि सुन ले नाचनी ब्वाल
भाग जा नचनिया, मोर मीच आई नजकाय ॥ 66 ॥

भये बरस सतजुग का गाय बरेदी मुँह जोर बतान
मोरी काँखमा लगि है, हो तात बाँहन जाय
फूल कै बादर होगा, बरेदी कि दगलै  अंग समाय ॥ 67 ॥

बड़े मियाँ का सूथना  कि लैगे गाय चुराय
त्वार हमार है दाना का खाना, नाचन भूख पयार
छाँड़ दे मैदाने माँ, को केहि डारै मार ॥ 68 ॥

सीसी दीन बरेदी, तनै दुलारी गाय
डहर गाय नाचनी, जँह मन मानैं त्वार ॥ 69 ॥

भये बरस सतजुग का, गाय बरेदी मुँह जोर बतान
बड़े अवध झालिन का, बीचै राखे बिलमाय ॥ 70 ।।

मोरे हाड़न का कइले कोरवा,  माजर  के कइले मयार
स्याल्हेन  केर कन्हैया, सोय ले पाँव पसार ॥ 71 ॥

ठाढ़े ब्वालै बरेदी, कि सुन ले नाचनी गाय
गाय हड़बर तोर बाँध कै चरइहौं बरदाडीह के थान ॥ 72 ॥

ठाढ़े ब्वालै बहुरिया कि सुन ले नाचनी ब्वाल
चार महीना के खातिर, मँगनी देहु बरेदी आन ॥ 73 ॥

ठाढ़े ब्वालै नाचनी कि सुन ले बहुरिया ब्वाल
बाँध रहे इन्द्रासन, सोने केर जरान ॥ 74 ॥

पिया त्वार घाटी लिहे, तैं लम्बा लीन्ह डहराव 
पिया तोर जूझै झारिन माँ, गौरा कहो संदेस ॥ 75 ॥

जो चातिन माँ मारै गुटका रे, ग्वालिन उलटी खाय पछार ॥76॥

ठाढ़े ब्वा कन्हैया, कि सुन ले पदमिन ब्वाल
हरक दे गाय बिलुहरिया, बाँगर 126 चाहु न खाय ॥ 77 ॥

मैं आऊँ तब तक, घरै नार समझाय
दै दे आपन लाटी, दै दी भैरमी गाय ॥ 78 ॥

हरकौं गाय बिलुहरिया, बाँगर चाहु न खाय
तैं का गाय चरैहै, जो तिरियन केर गुलाम ॥ 79 ॥

रेंग चला है कन्हैया, जेही चलत न लागै दयार
हलकै मारै कन्हैया, ब्याड़ा खुलगे गुर केंवार ॥ 80 ॥

पाठा परे बहुरिया, लोहे के लगुर मार ॥ 81 ॥

धौं तोहि कीन्हे हँसी मसखरी, कि धौं कीन्ह उपाव
स्याल्हेन के बहुरिया, कहे तजै अन्न और पान ॥ 82 ॥

 न कोई कीन्ही हँसी मसखरी, नहीं कीन्हीं तैं तुतकार
तुमका सुनौ चराऊँ कि तजों अन्न औ पान ॥ 83 ॥

उठे बहुरिया मुख ध्वाबै कि तत्खन म्यालै पान
महुली केर मुखरी, लै-लै करै बखान ॥ 84 ॥

फूल कै बहुरिया बादर होइगै, दगलै अंग समाय
मोरे पिता का स्वामी, लउट आबै गाय के साथ ॥ 85 ॥

लबरन केरी बिटिया, लबरन केर बतास
नहिं राखौं गाय झारिन का, नहिं राखौं गाय बहोर ॥ 86 ॥

खास पान तैं बिहँसेस, न खुलि चलाइस पीक
चूकेस न कउनौ निपान के साथै, नहिं डूबै तीन साख के नाम ॥ 87॥

ठाढ़े वाले बहुरिया कि सुन ले बरेदी ब्वाल
खाय के पान मैं बिहँसौ, खोरिन चलइहौं पीक ॥ 88 ॥

भोर लेऊँ पूत कुंजरिन का, ब्वारौं बारौं बाप का नाव
खाय के पान तैं बिहँसेस, खोरिन चलाइस पीक ॥ 89 ॥

भोरइ लेउ पूत कुंजरिन का, बूड़ै तोरे बाप का नाव
ठाढ़े ब्वालै बहुरिया कि सुन ले स्वामी ब्वाल ॥ 90 ।।

डंठन धूर लगें हैं गउरा माँ रइहौं लै नाम तुम्हार
जियरा भार लायेस न चराय लेउ गाय ॥ 91 ॥

रेंग चला है बरेदी जेही चलत न लागे द् यार  
ठाढ़े ब्वालै बरेदी कि सुन ले सैंथी ब्वाल
सीसी दीन्ह बरेदी, हनै बम्बली काम ॥ 92 ॥

भागत जाय नचनिया, कूदै झार बँगार
फफकत जाय बुटीवा, चरै झार चरतील
एक घाट चढ़िगे घटिवा, दूजी चढ़ी पहार
तबहीं नाहीं हौं अहीर बँगार ॥ 93 ॥

भये बरस सतजुग का गाय, बरेदी मुँह जोर बतान
धौं तोहि दिन मा नागर प्यारा, धौं बाँधों कीन्ह झपाट ॥ 94 ॥

न मोहिं दिन मा नागर प्यारा, ना बाँधौं कीन्ह झपाट
ऐसा समय पैदा होइगा, कि मसकत मोर छूट जइहैं प्रान ॥ 95 ॥

ठाढ़े वाले सैंथी कि सुन ले बरेदी ब्वाल
हरे पीरे काँकर उठायले, कि दुहले नचिनी क्यार दूध ॥ 96 ॥

कें मारेस कन्हैया, कि भुँवर गाय फिर जाय
लौट भँवर पहुँचा है बरदाडीह के थान ॥ 97॥

पढ़ ऐसा सकता आवा है कि मोर एकौ नाह बेसाह
ठाढ़े ब्वालै बरेदी, कि सुन ले देउता ब्वाल ॥ 98 ॥

केहि के स्नान है कच कोहिल, केहिकैं हैं कन्या बाल कुँवार ॥ 99 ॥

ठाढ़े ब्वा बरेदी कि सुन ले देउता ब्वाल
मोरे हैं स्नान कचकोहिल, सैंथी है सारद कर अवतार ॥ 100 ॥

चार महीना के खारित देउता, मोंहि मँगनी दे दे बाँझ बगार
असाढ़ चरायेस और सावन भादौं कार्तिक केर अमान ॥ 101 ॥

सुनौ बरेदी तैं झारिन से लइ जये गाय हँकाय
पहिल नाद मैं नादौं दूसर नाद हलाल
तीसर नकदी नाद मैं नादौँ कि कुतुहि जाय पाँच सौ गाय ॥ 102 ॥

ठाढ़े ब्वा बरेदी कि सुन ले देउता ब्वाल
ऐहि कर गर्मी से कहाँ शीतल  होय करेज ॥ 103 ॥

ठाढ़े ब्वालै देउता किसुन ले बरेदी ब्वाल
पानी पिऐ है शतरंग नदी माँ तौ सीतल  होय करेज ॥ 104 ॥

डाँडी को लोभी बानिया, मद का लोभी कलार
खरका लोभी कन्हैया, कि हाँकै न झारिन से दिनरात ॥ 105 ॥

ठाढ़े ब्वा बरेदी कि सुन ले पहने ब्वाल
न ऊटी देक्यौ अरका करका नहीं हार पतार ॥ 106 ॥

मैं लोहि से पूछौ पदमिन, कह गया चिकनान
न ऊठी देख्यौं द्वरका फरका, नहीं हार पतार
पानी पियाये शतरंग नदी माँ तेहि से गुदी गाय चिकनान ॥ 107 ॥

ठाढ़े ब्वा बरेदी, कि सुन ले सैंथी ब्वाल
काहे का अरैं इन घाटिन माँ, ई कौआ और काग ॥ 108 ॥

ठाढ़े ब्वा सैंथी कि सुन ले बरेदी ब्वाल
राजा गँग्यावल की घाटी माँ, चीका हलरे जहँ तोर मोर है माँद ॥ 109 ॥

सीसी दीन बरेदी, तनै दुलारी गाय
डगर दुलारी प्रेम से, जँह राजा गँग्यावल केर राज ॥ 110 ॥

ठाढ़े ब्वा राजा, कि सुन ले बरेदी ब्वाल
स्याल्हेन केर बरेदी कँह, लग तेहि देखाव ॥ 111॥

ठाढ़े ब्वालै बरेदी, कि सुन ले राजा ब्वाल
मोंहि गायन के पास से अधिक नाइ दिखा राय ॥ 112 ॥

गहनई लोक गाथा परिचय 

संकलन :
डॉ. भगवानदीन मिश्र अध्यक्ष भाषाविज्ञान विभाग सागर विश्वविद्यालय – परसौंड़ा जिला बाँदा, उत्तर प्रदेश के हैं ।