Kachhu To Karnei Parhe कछू तो करनेई परहे- बुन्देली लोक कथा 

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पूतगुलाखरी ने गैल में का देखो के एक आदमी बिल्कुल पागलई सो फिर रओ है ओर चिल्यात जा रओ  हतो के ‘कछू तौ करनेई परहे’ Kachhu To Karnei Parhe सो वो पिछलो ओंर आनकें बब्बा सें कई के आज मैंने ऐसी-ऐसो देखो है।पटेल बब्बा ने कई के बेटा तुमें हम येको जुवाप रात खों देंहें।

पटेल बब्बा ने बात शुरू करी – भैया एक बड़ो वेपारी हतो ऊ जिहाज पै बेपार करवे जाततो । एक बेर की बात है कै जब वो जिहाज में जाकें बैठोई है कै का देखत है के एक दूसरो बेपारी ओई जिहाज में ऊके जरों आनकें बैठगव संगे ऊकी लोगजनी हती वा तो भैया देखवे में बड़ी नीकी लगत हती। अब जे तो रडुवा भैया हते सो जैसई इनकी निघा ओ बाई पै परी सो इनको चित्त वे चित्त होन लगे।

सोची कै कछु दिनां ई जिहाज में ईखों देखकेंई मन खां समजाउत रेहें । धीरे-धीरे इनने उनोरों सें चीन-चिनार निकारी। वे दोई आदमी एक दूसरे खों खूब चाहतते । जे बेर-बेर ओ बाई की तरपैं देखें वा अपने मन में सोचें के जो सियात हमें चाहन लगो होय सो वे ईकी तरप देखकें तनक हँस देवें । सो इनोंरों में सेनाकानी होन लगी। वा तो बई बात भई के आगी अर पूरा जरों हुइये तो फिर आग तो लगे बिना रेई नई सके, सो आगी लगई गई। वे तीनई एक संगे रोटी-पानी खावें और संगई संगे वेपार करन लगे। जब जादा देरदार दिखानी सो एक दिनां वा लुगाई ईसें केन लगी के अपन कहूं भग चलिये।

जे बोले के भगवो तो सरल है मनों तुमाये संगे तुमाव जो होलरो (खसम) है ओको का हुइये जो तुमें तो छोड़ई नई सके । वा केत है के तुम ओकी फिकर ने करो हम सब ठीक कर लेंहें। इनने कई के हमें का चलो हम तो तुमाये घरवारे सें आ डरात हैं जब तुमने केदई के तुम समार लेहो सो हम तुमाये संगे चलवे तैयार हैं । लुगाई खों एसो भूत सवार भव के ओने रात खों अपने आदमी की सोउत में घींच काट लई ओर फिर जोर-जोर से चिल्यान लगी के दोरो रे कौनऊ ने मोरे आदमी की घींच काट डारी है ।

जिहाज के आदमी दोरे उनने देखो सो धक्कसें रे गये । मनो कोऊ ने जान पाव के ईखों कोंनने कतर दब है । ई रडुवा भैया खों सोई भौत सोस भव ओखों का पता हती के इनई रड़ो ने आय जो करो है वो तो जोई जानत रख कै कोनऊ बदमास ने डब्बल धेलों के लोब में ऊखों मारो है। ओको किरिया करम भव, दो-तीन दिनों में जब जो ओ लुगाई के जरों पौंचो तो बा भौत खुश हती केन लगी के चलो अब तो कछु अट्टस नैंया ।

जो बोलो के अरकऊ अपन अबई चलत हैं तो दूसरे आदमी जई जान जेंहें के हमनेई आय तुमाये आदमी खों मारो है सो कछू दिनां और ठेरो। मनो वा तो केन लगी तुम कायखों डरात हो ऊखों तो मेंनेई आय पोंल दब तो अरकऊँवो रेतो तो अपनों काम ने बनतो सो अब तो अपन भग चलिये ।

ओ लुगाई को बतकाव सुनकें ईखों बड़ो अचंबो भव, जो सोचन लगो कै ई रांड़ ने जब अपने सगे खांमद खों माड़ारो है जो के ईखों कित्तो चाहत हतो । अरे हमाई तो दो दिनां की चिनार है। ये दारी खों आंगे कौनऊ और मिल गव तो जा मोरी गत कर देहे । जो परदेसी कछु तै नई कर पारओ कै वो का करे। सो वो बेर-बेर कैत है कै ‘कछु तो करनेई परहै’।

कुछ तो करना पड़ेगा- भावार्थ 

किसी नगर में एक बड़ा व्यापारी था । वह अपना व्यापार करने जहाज पर जाता था। एक बार वह जहाज में बैठकर जा रहा था तो उसे एक अन्य व्यापारी अपनी पत्नी के साथ मिल जाता है। वह इस जोड़े के साथ जहाज में बैठ गया । इसने कनखियों से देखा तो व्यापारी की पत्नी बड़ी सुन्दर थी। थोड़ी देर में उनकी खासी पहचान हो गई ।

इस व्यापारी की पत्नी नहीं थी, इसलिए वह उस स्त्री को बार-बार देख रहा था। इस स्त्री ने सोचा कि ये शायद मुझे पसंद करता है तो इन दोनों में पहले इशारे बाजी शुरू हुई। कुछ दिन साथ रहे तो फिर इनके संबंध बढ़ते ही गये। एक समय ऐसा भी आया, जब उनकी खुलकर बातें होने लगीं । उसका पति इससे बेखबर था। व्यापारी की पत्नी तो बड़ी अधीर रहती ।

उसने एक दिन इससे कहा कि चलो हम दोनों कहीं भाग चलें । क्योंकि मेरे पति के रहते हमारा मिलना संभव नहीं है ? इस व्यापारी ने सोचकर कहा कि जाने को तो चले जायें, लेकिन तुम्हारा पति रोड़ा बनेगा ? स्त्री बोली कि आप चिन्ता न करें, मैं सब ठीक कर दूँगी। इश्क का भूत उस स्त्री पर ऐसा सवार हुआ कि उसने एक रात अपने पति का ही कत्ल कर दिया! कत्ल करके वह चिल्लाने लगी कि किसी ने मेरे पति को मार डाला । जहाज के यात्री वहाँ पहुँचे, लेकिन किसी को कत्ल की भनक नहीं पड़ी ।

यह व्यापारी भी बड़ा दुखी था कि किसी ने पैसों की खातिर उसे मार डाला। तीन दिन पश्चात् जब यह उस व्यापारी की पत्नी के पास गया तो वह बड़ी प्रसन्न थी । उसने व्यापारी से कहा कि अच्छा ही हुआ अब हम स्वतंत्र हैं, जब चाहें जहाँ चाहें रह सकते हैं । उसने यह भी बतला दिया कि मैंने ही उसे मारा है। अब जल्दी हम अपने घर चलेंगे।

यह व्यापारी अपने मन में सोचने लगा कि जब यह स्त्री अपने ब्याहता पति की नहीं हुई तो फिर मेरी क्या होगी ? अरे ! इसका पति इसे कितना चाहता था और उसका इस धोखेबाज ने यह सिला दिया । उसके सामने दुविधा थी कि उस स्त्री के साथ रहे या फिर उससे पीछा छुड़ाये। यह सोचकर वह बार-बार कहता है कि ‘कुछ तो करना पड़ेगा’ ।

डॉ ओमप्रकाश चौबे का जीवन परिचय 

 

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