Sindhu Ghati Sabhyta सिंधु घाटी सभ्यता

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Indus Valley Civilization

भारत के  अतीत की सबसे पहली तसवीर उस Sindhu Ghati Sabhyta में मिलती है, जिसके  अवशेष सिंध  में मोहनजोदड़ो और पश्चिमी पंजाब में हड़प्पा में मिले हैं। इन खुदाइयों ने प्राचीन इतिहास की समझ में क्रांति ला दी है।मोहनजोदड़ो और हड़प्पा एक दूसरे से काफी दूरी पर हैं। दोनों स्थानों पर इन खंडहरों की खोज मात्रा एक संयोग थी। इस बात में संदेह नहीं कि इन दोनों के  बीच भी ऐसे ही बहुत से और नगर एवं अवशेष दबे पड़े होंगे जिन्हें प्राचीन मनुष्य ने बसाया होगा।

यह Sindhu Ghati Sabhyta विशेष रूप से उत्तर भारत में दूर-दूर तक फैली थी। इस सभ्यता के  अवशेष इतनी दूर-दूर जगहों पर मिले हैं जैसे पश्चिम में काठियावाड़ में और पंजाब के  अंबाला जिले में। यह विश्वास किया जाता है कि यह सभ्यता गंगा की घाटी तक पैफली थी। इसलिए यह केवल सिंधु  घाटी सभ्यता भर नहीं उससे बहुत अध्कि है।

Sindhu Ghati Sabhyta ने फारस, मेसोपोटामिया और मिस्र की सभ्यताओं से संबंध स्थापित किया और व्यापार किया। यह सभ्यता उनकी तुलना में बेहतर थी। यह एक ऐसी नागर सभ्यता थी जिसमें व्यापारी वर्ग धनाढ्य था और उसकी भूमिका महत्त्वपूर्ण थी। सड़कों पर दुकानों की कतारें थीं और दुकानें संभवतः छोटी थीं।

सिंधु  घाटी सभ्यता के  ये लोग कौन थे और कहाँ से आए थे इसका हमें अब भी पता नहीं है। यह संभावना भी है कि इनकी संस्कृति इसी देश की संस्कृति थी। उसकी जड़ें और शाखाएँ दक्षिण भारत में भी मिल सकती हैं। कुछ विद्वानों को इन लोगों और दक्षिण भारत की द्रविड़ जातियों एवं संस्कृति के बीच अनिवार्य समानता दिखाई पड़ती है। यदि प्राचीन समय में कुछ लोग भारत में आए भी थे तो यह घटना मोहनजोदड़ो के  समय से कई हजार  वर्ष पहले घटी होगी। व्यावहारिक दृष्टि से हम उन्हें भारत के  ही निवासी मान सकते हैं।

सिंधु घाटी की सभ्यता के  बारे में वुफछ लोगों का कहना है कि उसका अंत अकस्मात किसी ऐसी दुर्घटना से हो गया, जिसकी कोई व्याख्या नहीं मिलती। सिंधु नदी अपनी भयंकर बाढ़ों के लिए प्रसिद्ध  है जो नगरों और गाँवों को बहा ले जाती है। यह भी संभव है कि मौसम के परिवर्तन से धीरे-धीरे  जमीन  सूखती गई हो और खेतों पर रेगिस्तान छा गया हो। मोहनजोदड़ो के  खंडहर अपने आप में इस बात का प्रमाण हैं कि बालू की तह पर तह जमती गई, जिससे शहर की जमीन  की सतह ऊँची उठती गई और नगरवासियों को मजबूर होकर पुरानी नीवों पर ऊँचाई पर मकान बनाने पड़े।

खुदाई में निकले वुफछ मकान दो या तीन मंजिले जान पड़ते हैं। वे इस बात का सबूत हैं कि सतह के  ऊँचे उठने के  कारण समय-समय पर उनकी दीवारें भी ऊँची उठाई गई हैं। इसलिए यह मुमकिन है कि मौसमी परिवर्तनों ने उन इलाकों के  निवासियों और उनके  रहन-सहन की प्रकृति को प्रभावित किया हो। लेकिन मौसम के  परिवर्तनों का प्रभाव दूर-दूर तक पैफली इस नागर सभ्यता के अपेक्षाकृत छोटे से हिस्से पर पड़ा होगा। यह सभ्यता गंगा घाटी तक या संभवतः उससे भी दूर तक फैली  थी ।

सामाजिक स्थिति Social Status
पुरातात्विक स्त्रोंतों से सिन्धु सभ्यता कालीन सामाजिक स्थिति पर प्रकाश पड़ता हैं। सिन्धु सभ्यता के पुरास्थलों के उत्खनन से उच्च नगरीय सामाजिक जीवन शैली का ज्ञान होता है। ऐसा प्रतीत होता है कि, सिन्धु सभ्यता के लोगों की तत्कालीन सामाजिक स्थिति अत्यन्त उच्च होने के कारण उनके मध्य कोई सामाजिक असमानता नही रही होगी।

सामाजिक संगठन Social Organization
सिन्धु सभ्यता कालीन समाज की सामाजिक इकाई ‘परिवार’ ही रही होगी। उत्खनन से प्राप्त भवन के अवशेषों से पता चलता है कि, परिवार अलग – अलग निवास करते थे। सामाजिक जीवन आर्थिक रूप से संमृद्ध, सुख – सुविधा युक्त था। लोग शान्ति प्रिय थे।

नारी की मूर्तियाँ बहुसंख्या में प्राप्त होने के कारण इतिहासकारों ने इसे मातृ प्रधान समाज माना हैं। व्यवसाय के आधार पर विद्वानों ने सिन्धु सभ्यता कालीन समाज समाज को चार भागों में बांटा है – विद्वान वर्ग, योद्धा एवं प्रशासनिक अधिकारी वर्ग, व्यवसायी तथा श्रमजीवी वर्ग। सिन्धु सभ्यता के दुर्ग क्षेत्र में प्रमुखतः महत्वपूर्ण संस्थान, प्रशासनिक कार्यालय आदि होने के कारण प्रशासनिक प्रमुख, प्रशासनिक अधिकारी, रक्षा एवं प्रमुख सैन्य अधिकारी, पुरोहित वर्ग (प्रशासनिक सलाहाकार) का निवास करते थे।

आवासीय क्षेत्र में बहु संख्यक सामान्य जन, कामगार वर्ग, शिल्पकार, व्यापारिक वर्ग निवास करता था। किन्तु निवास की यह असमानता सामाजिक नहीं थी, बल्कि यह प्रशासनिक और सुरक्षात्मक व्यवस्था रही होगी। सिन्धु सभ्यता के उत्खनन से प्राप्त मकानों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि, आज की तरह लोगों के आर्थिक जीवन में अधिक अंतर नहीं था।

स्त्रियों की स्थिति Women’s Status
सैन्धव सभ्यता Indus Civilization में स्त्रियों की प्रधान स्थिति का ज्ञान हम पुरातात्विक साक्ष्यों से पाते हैं। सैन्धव-स्थलों से मिट्टी एवं धातुओं की स्त्री प्रतीमाएँ बड़ी संख्या में प्राप्त हुई है। विद्वानों ने इसी आधार पर सैन्धव समाज को ‘‘मातृ प्रधान’’ समाज माना है। इस संस्कृति की स्त्रियाँ अनेक प्रकार के आभूषणों एवं प्रसाधन सामग्री का प्रचुरता से उपयोग करती थी।

तत्कालीन स्त्रियाँ दर्पण, कंघी, काजल, सुरमा, सिंदूर, बालो की पिन, इत्र, पावडर तथा लिपिस्टिक का प्रयोग करती थी। जॉन मार्शल एवं मार्टीमर व्हीलर का मत है कि सैन्धव सभ्यता के देव-परिवार में मातृदेवी का स्थान सर्वश्रेष्ठ था। मोहनजोदड़ो से प्राप्त 14 सेमी लम्बी नर्तकी की कांस्य-मूर्ति विश्व-विख्यात है। यह विलक्षण नर्तकी प्रतिमा नृत्य, शिल्प रुप और अलंकरण सज्जा की दृष्टि से अत्यन्त मनमोहक है। सैन्धव-सभ्यता में नर्तकियों एवं देवदासियों का भी प्रमुख स्थान रहा होगा। अतः पुरातात्विक साक्ष्यों से स्पष्ट है कि सैन्धव-संस्कृति में स्त्रियों की प्रधान स्थिति रही होगी।

भोजन Food
सिन्धु सभ्यता के निवासी शाकाहारी एवं माँसाहारी दोनों ही प्रकार का भोजन ग्रहण करते थे। सिन्धु सभ्यता के निवासियों का मुख्य आहार गेहूँ था। सिन्धु सभ्यता के निवासी जौ, चावल, फल, तरबूज, दूध – दही तथा बकरी, सुअर, गाय, बतख, घड़ियाल, मुर्गा आदि का सेवन करते थे। सिन्धु सभ्यता के निवासी अनाज का संग्रहण करते थे। साथ ही, राजकीय अनाज संग्रहालय भी उत्खनन से प्राप्त है। उत्खनन से अनाज को कूटने वाली ओखलियाँ एवं पीसने के लिए सिल लोड़े मिले है।

वस्त्राभूषण Clothing Ornaments
पुरातात्विक सामग्री के आधार पर स्पष्ट होता है कि, सिन्धु – निवासी साधारणतया सूती वस्त्र पहनने थे। मोहनजोदड़ों से सूती धागे के साक्ष्य मिले है। वे ऊनी वस्त्रों का भी प्रयोग करते थे। सिन्धु सभ्यता के उत्खनन से कपड़े सिलने की सुईयाँ मिली है। कतिपय मूर्तियों के अंकन के आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि, सिन्धु सभ्यता के निवासी शरीर पर दो कपड़े धारण किए जाते थे।

प्रथम, एक आधुनिक शाल के समान कपड़ा होता था, जिसे बाएं कंधे के ऊपर तथा दाहिनी भुजा के नीचे से निकालकर पहनते थे। दूसरा, वस्त्र जो शरीर पर नीचे पहना जाता था, आधुनिक धोती के समान होता था। स्त्रियों एवं पुरूषों के वस्त्रों में अधिक अन्तर नहीं होता था। स्त्री – पुरूष दोनों रंग बिरंगे वस्त्रों का प्रयोग करते थे। मोहनजोदड़ों से खण्डित अवस्था में प्राप्त एक मूर्ति में पुरूष नक्काशीदार अलंकृत शाल ओड़े हुए है। स्त्री – पुरूष दोनों नुकीली टोपी पहनते थे।

सिन्धु सभ्यता के सभी वर्गों के स्त्री – पुरूष आभूषण पहने थे। पुरूष और स्त्री दोनों ही कण्ठहार, केश बंध, बाजु बंध, अंगूठी, कुण्डल, आदि पहनते थे, जबकि स्त्री – चूड़ियां, कर्णफूल, कमरबंद, नूपूर, नाक की कील आदि पहनती थी। उच्च वर्ग सोने, चांदी, हाथी – दांत, हीरों (मूल्यवान पत्थर) तथा निर्धन व्यक्ति तांबे, मिट्टी, सीप आदि के आभूषण पहनते थे। स्वर्ण आभूषणों के बारे में जॉन मार्शल कहते है कि, ‘‘ऐसा प्रतीत होता है कि, ये आधुनिक लंदन के किसी सर्राफ की दुकान से आए है न कि 5000 वर्ष पूर्व किसी प्रागैतिहासिक घर से।

श्रृंगार प्रसाधन Cosmetics
सिन्धु सभ्यता के उच्च नगरीय सामाजिक जीवन में श्रृंगार प्रसाधनों का निश्चित रूप से बड़ा महत्व रहा होगा। हड़प्पा से काजल, श्रृंगारदान, मोहनजोदड़ों श्रृंगारदान, चन्हुदड़ों से लिपिस्टक तथा अंजनशालिका, नौसारो एवं मेहरगढ़ से स्त्रियों के सिन्दूर तथा अन्य सिन्धु सभ्यता के स्थलों के उत्खनन से प्राप्त सामग्री के आधार पर कहा जा सकता है कि, सिन्धु सभ्यता की स्त्रियाँ दर्पण, कंघी, काजल, सुरमा, लिपिस्टक, सिन्दूर, बालों की पिन, इत्र तथा पाउडर का प्रयोग करती थीं।

मिट्टी, हाथी – दांत तथा धातु के श्रृंगारदान भी उत्खनन से प्राप्त हुए है। उत्खनन से कांसे के दर्पण तथा हाथी – दांत के कंघे मिले है। दर्पण साधारणतया अण्डाकार होते थे। कांसे के बने हुए रेजर भी पुरूषों द्वारा प्रयोग में लाए जाने साक्ष्य मिले है। मोहनजोदड़ों से खण्डित अवस्था में प्राप्त एक मूर्ति में पुरूष के दाढ़ी एवं सिर के बालों को उत्कृष्ट केशसज्जा से सजाया गया है।

मनोरंजन के साधन Entertainment Tools
सिन्धु सभ्यता के स्थलों के उत्खनन से प्राप्त सामग्री के आधार पर कहा जा सकता है कि, सिन्धु सभ्यता के निवासी विविध प्रकार की खेल सामग्री का प्रयोग करते थे। सैन्धव सभ्यता से सर्वाधिक मृण्मूर्तियाँ खिलौनों के रूप में बनी पशु-पक्षियों की है। चन्हूदड़ों से काँसे की बैलगाड़ी, इक्कागाड़ी, पीतल की बतख मिली है। लोथल से ताँबे का कुत्ता , बैल, चिड़िया, खरगोश, मोहनजोदड़ों से भेड़, भैंसा, हड़प्पा से बैलगाड़ी आदि धातु मूर्तियां प्राप्त हुई हैं।

सैन्धव सभ्यता से धातु के खिलौने, पहिये युक्त खिलौना गाड़ियाँ, इक्के एवं सीटियाँ भी मिली है। मोहनजोदड़ों से प्राप्त नर्तकी की कांस्य प्रतिमा से संगीत – नृत्य का साक्ष्य मिलता है। इन सब उत्खनन से प्राप्त सामग्री के आधार पर कहा जा सकता है कि, सिन्धु सभ्यता के निवासी शिकार खेलने, गाने – बजाने, संगीत – नृत्य, जुएँ आदि से मनोरंजन करते होगे।

बच्चे मनोरंजन के लिए मिट्टी, लकड़ी, पत्थर एवं धातु के खिलौनों का प्रयोग करते होगे। सिन्धु सभ्यता के निवासी आवागमन के साधन के रूप में बैलगाड़ियों, इक्के गाडियों, नावों एवं जहाजों आदि को प्रयोग करते थे। बहुत संभव है कि, सिन्धु सभ्यता के निवासी बैलगाड़ियों एवं नावों की दौड़ की प्रतियोगिता मनोरंजन के साधन के रूप में करते हो।

अस्त्र – शस्त्र Weapons
कुठार, भाले, कटार, कुल्हाडी, ढेलवाँसे, छुरे आदि तीर – धनुष के नमूने कम मिले हैं। युद्ध के हथियार, जो सभी आक्रमणात्मक हैं, साधारणतः ताँबे और काँसे के बने हैं यद्यपि थोड़े से पत्थर के हथियार भी पाये गये हैं।

चिकित्सा एवं औषधियाँ Medical and Medicine
कालीबंगा और लोथल के साक्ष्यों से प्रगट होता है कि, सिन्धुवासी खोपड़ी (सिर) की शल्य चिकित्सा से भी परिचित थे। औषधियों के रूप में शिलाजीत, हिरण तथा बारहसिंघे की सींग तथा पीली हरताल, समुद्रफेन का प्रयोग किया जाता था।

सिंधु सभ्यता में विशाल अन्नभंडार 

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