Shyam Sundar ‘Jhandilal’ Dwivedi पं.श्री श्याम सुन्दर ‘झण्डीलाल’ द्विवेदी

Pandit Shyam Sundar Jhandilal Dwivedi पं.श्री श्याम सुन्दर ‘झण्डीलाल' द्विवेदी

पखावज वादक पं. श्री श्याम सुन्दर “झण्डीलाल’ द्विवेदी Shyam Sundar ‘Jhandilal’ Dwivedi का जन्म बुन्देलखण्ड के ग्राम पलटा जिला छतरपुर, म. प्र. में 1अक्टूबर सन् 1909 ई० को कान्यकुब्ज ब्राहमण परिवार में पं. श्री रामकुमार द्विवेदी के घर हुआ था। शिशु श्याम सुन्दर के माता पिता का स्वर्गवास कुछ ही महीनों में हो गया, इनका लालन पालन लाड़ली दाई व चाचा श्री रामेश्वर दास महंत जी ने किया।

इसी समय पड़ोस में एक शुक्ल परिवार की मां ने एक अपने पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम “झण्डीलाल” था, आग्रह करने पर उस मां ने श्याम सुन्दर को भी कुछ दिनों तक अपना स्तन पान कराया, लोग-बाग श्याम सुन्दर को भी “झण्डीलाल” कहने लगे। इनको बचपन से ही संगीत वादन पर कुदरती लगाव था। इनके चाचा श्री महंत जी जो नाटक, रामलीला मंडल के संचालक व अच्छे गायक थे, उन्होंने आपको प्रथम तबला वादन की तालीम दिलवाई।

तबले का अभ्यास चलता रहा। नाटक, रामलीला में वादन करने का भरपूर अवसर मिलता रहा, लोग प्रशंसा व सम्मान करने लगे। कुछ दिनों बाद श्री जानकी कुंड चित्रकूट धाम में आपने बाबा राम हर्षदास मृदंगाचार्य का मृदंग वादन सुना, सुन कर गंभीर गर्जना से प्रभावित होकर मृदंग सीखने का दृढ़ संकल्प लिया।

पखावज की प्रारम्भिक शिक्षा उस्ताद श्री महादेव सिंह जी पिपरहरी वालों से प्राप्त कर जिज्ञासु साधक श्याम सुन्दर द्विवेदी बांदा के नामी गिरामी कदऊ सिंह घराने के श्रेष्ठतम पखावजी पं.  श्री शंभू प्रसाद जी तिवारी के पास पहंचकर गँडावद्य शिष्य हो सविधि पखावज वादन की शिक्षा ग्रहण कर ताल लय के गढ तत्वों को समझा। पारंपरिक बंदिशें प्राप्त कर खूब रियाज किया। उनके साथ अनेक रियासतों में जाने का व गायकों के साथ संगति करने का अवसर मिला।

इसी बीच बैदेही वाटिका श्री रामजानकी मंदिर, चन्दवारा, बांदा के संस्थापक व श्री महंत स्वामी श्री मधुसूदनाचार्य “मधुप अली” जी महाराज जो धुवपद धमार के अच्छे गायक थे। उनको अपना मृदंग वादन सुना कर आशीर्वाद प्राप्त किया और उनके सुझाव पर अयोध्या जी जाकर कुदऊ सिंह घराने के हस्त सिद्ध मृदंग महर्षि बाबा रामदास जी का सानिद्ध प्राप्त कर उनकी सेवा करते हुये उनसे पखावज की पर्याप्त बंदिशें व हस्तलिखित पाण्डुलिपियां प्राप्त किया, जो आज भी इनके पुत्र मृदंग मार्तण्ड पं.  अवधेश द्विवेदी के पास सुरक्षित है।

उन दिनों इटावा के श्री कल्लू उस्ताद बाबा जी के पास रहा करते थे वे भी आपके कार्य में साधक बने। पं0 झण्डी लाल द्विवेदी जिन संगीत दंगलों में जाते वहां अपनी कला का झण्डा गाड़ कर ही आते अतः उनका उप नाम श्री “झण्डीलाल द्विवेदी जन-जन में विख्यात हो गया। आपने अपने समय के अनेक घरानेदार धुवपद गायकों व वीणा वादकों के साथ सफल संगति कर यश कीर्ति अर्जित किया।

आप तबला वादन में भी पारंगत थे। विज्ञ ख्याल गायकों की संगति का भी इन्हें अवसर मिला। रायगढ़ महाराजा चक्रधर सिंह के दरबार में आपने अनेक तबला पखावज वादकों के साथ जुगलबंदी व गायकों के साथ संगति किया। महाराजा सामंत सिंह जू देव विजावर नरेश द्वारा आपको मृदंगाचार्य की उपाधि से सम्मानित किया गया था।

पन्ना, टीकमगढ़, दतिया, चरखारी, अजयगढ़, गौरिहार, छतरपुर आदि रियासतों से भी मृदंग केशरी, हस्त सिद्ध पखावजी, पखावज के प्रकाण्ड पंडित, आदि अनेक मान-सम्मान उपाधियां प्राप्त हुई थी। रजवाड़े समाप्त होने पर देश के अनेक संगीत सम्मेलनों में आप अपनी धर्म सम्राट पूज्य स्वामी श्री कर पात्री जी महाराज, संत शिरोमणि गुरूदेव श्री स्वामी परशुराम जी महाराज का आशीर्वाद प्राप्त कर दुर्लभ वाद्य मृदंग का प्रचार-प्रसार करते रहे।

स्वाभिमानी स्वभाव होने के कारण आपने कहीं नौकरी करना नहीं स्वीकार किया। आपने अपने संगति व सोलो वादन के कार्यक्रम आकाशवाणी इलाहाबाद, लखनऊ, छतरपुर, भोप समय-समय पर प्रसारित होते रहते हैं। उ. प्र.  संगीत नाटक अकादमी लखनऊ में आपकी विशेष रिकॉर्डिग सुरक्षित है।

आपकी वादन शैली में बोलों का सुन्दर निकास तैयारी के साथ हाथ में सफाई, संगति में निपुणता, स्पष्ट पढंत सोलो वादन में विभिन्न लयकारियों का प्रदर्शन, पारंपरिक परनो, स्तुतियों, छंदों के शब्द बोलों को पखावज पर अक्षरशः निकालकर कर देना आपके हस्त लाघव का जीवंत उदाहरण था।

अनेक संगीत ग्रंथों में आपका जीवन वृत्त अंकित है। पं. कुदऊ सिंह घराने के प्रतिनिधि पखावजी पं. झण्डीलाल द्विवेदी की कीर्ति गाथा जन-जन की जुबान पर है। विद्यादान देकर आपने अनेक शिष्य तैयार किये जिनमें प्रमुख पं. गोरेलाल शुक्ल, पं. लल्लूरामजी शुक्ल, श्री बाबूलाल शुक्ल, श्री रवीशंकर द्विवेदी, राजेन्द्र कुमार द्विवेदी, हल्के मास्टर, बद्री प्रसाद शर्मा व इनके सुपुत्र पं. अवधेश कुमार द्विवेदी हैं जो आपकी पंरपरा को यथावत कायम किये है।

पं. झण्डीलाल द्विवेदी मृदंगाचार्य का पूरा जीवन पखावज की अराधना-साधना के लिये समर्पित रहा। 82 वर्ष की आयु में 15 सितम्बर सन् 1992 ई० को भौतिक शरीर त्याग कर गंधर्व लोक की यात्रा की। आपकी स्मृति में प्रतिवर्ष 1 अक्टूबर को सुश्याम जयंती संगीत समारोह चित्रकूटधाम में आयोजित होता है। जिसमें देश के प्रख्यात पखावज वादक या धुवपद गायक अपनी कला प्रस्तुति दे, आचार्य श्री को भावांजलि अर्पित करते हैं।

ऊँ नाद ब्रह्मणे नमः परभण्डीलाल अिदीदंगाचाच पलटा शरपुर म.9. बुन्देलखण्ड

admin

Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *