Savni सावनी बुन्देली परंपरा

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By admin

बुंदेलखंड का लोक जीवन प्रकृति से सामंजस्य की अदभुत जीवन शैली है।  यहां की परंपरायें, यहाँ के त्यौहार, प्रकृति और लोक रंजन से जुड़े हुए हैं ।  बुन्देलखण्ड में सावन की कई परम्परायें और त्योहार हैं  उनमे से एक है Savni सावनी जो जनमानस के प्रकृति प्रेम और आपसी समन्वय और सामाजिक समरसता को दरसाते हैं ।  

वर्षा ऋतु में हर तरफ हरियाली ही हरियाली नजर आती है तब बुंदेलखंड के घर- घर में ऊँचे वृक्ष की डाल पर झूले डाले जाते हैं  इन  झूलों पर झूलती बालाएं नवयौवनाएं देखने को मिलती हैं  सावन का महीना बुंदेलखंड में  हर्ष -उल्लास का महीना माना जाता है ।  बालिकाएँ, महिलायें  मेहँदी के पेड़ से मेहँदी तोड़ कर लाती थीं, उसे पीसतीं हैं और समूह में बैठ कर लगाती हैं जो एक उत्सव की तरह होता है । लोक मान्यता है  कि जिस कन्या के हाथ में जितनी गहरी मेहँदी रचेगी उसे उतना ही सुन्दर वर मिलेगा।  

सावनी परम्परा
वहीं सावन के माहीने की एक परंपरा है सावनी बुन्देलखण्ड के लोक जीवन में सावनी का बड़ा महत्व है यह प्रथा लगभग 800 वर्ष पुरानी है । इस परंपरा के अनुसार इस वर्ष जिन लड़कियों का विवाह हुआ है वे सावन माह की शुरुआत में अपने मायके आ जाती है।

रक्षा बंधन का पर्व करीब आते ही वर पक्ष के लोग अपनी सामर्थ के अनुसार सोने-चांदी एवं रेशम की  राखियां, बच्चों के लिए कपड़े, पारंपरिक मिठाई के रूप में शक्कर से बनी खड़पुरी, तरह -तरह के खिलौने -जिनमें पुतरा (गुड्डा) , पुतरिया ( गुड़िया), चकरी, भौंरा ( लट्टू) , बांसुरी (अलगोजा), पपीरी ( सीटी ) लकड़ी के बनी छड़ी जिसे सौंटा और रंगऊआ भी कहते हैं और हास -परिहास के लिए चिक्क बब्बा विशेष तौर पर भेजे जाते हैं।  साथ ही श्रृंगार की सामग्री भी होती है ।  

सावनी में आए हुए खिलौने एवं अन्य सामग्री को घर के आंगन में चारपाई , पलंग या तखत  पर सजा कर रख दिया जाता है जिसे देखने के लिए मोहल्ले एवं गाँव के लोगों को बुलाया जाता है  इन लोगों द्वारा यह आकलन भी किया जाता है कि ससुराल पक्ष से किस स्तर की Savni  सावनी आई है ताकि उसी के अनुसार वर पक्ष की विदाई की जा सके ।

हंसी -ठिठोली और रिश्तो की प्रगाढ़ता
बुंदेलखंड में परंपराओं के साथ हंसी खुशी के बहाने भी ढूंढ लिए जाते हैं।  सावनी के खिलौनों में  चिक्क बब्बा  का अपना अलग स्थान है, अलग महत्ता चिक्क बब्बा को डब्बा का बब्बा भी कहते हैं।  यह चौकोर पतली लकड़ी से बना होता है और इसके बीचों -बीच मोटे स्प्रिंग का लाल, पीला, चौंगा पहनाकर ऊपरी हिस्से पर चेहरा, सफेद दाढ़ी लगाकर और अंदर सीटी लगा कर  ऊपर से चौकोर तख्ती के ढक्कन से बंद कर दिया जाता है और जब उसे खोलते हैं तब चिक्क की आवाज के साथ बब्बा तेजी से ऊपर आ जाता है  यह बब्बा समधी का प्रतीक माना जाता  है जिसे समधन के लिए भेजा जाता है।

प्रेम-सौहार्द और सामाजिक समरसता
सावनी के साथ मे ससुराल पक्ष से भेजी गई राखी को बहन अपने भाइयों की कलाई में बांध कर मिठाई खड़पुरी खिलाती है । सावनी लेकर आए हुए व्यक्तियों की जमकर खातिरदारी की जाती है। यह खातिरदारी कहीं-कहीं 2 दिन, 3 दिन और कहीं कहीं एक सप्ताह तक होती है और उसके बाद मेहमानों को विदा किया जाता है।  

दरअसल, यह परंपरा एक तरह के दोनों पक्षों में प्रेम -स्नेह , घनिष्ठता के साथ सामाजिक समरसता व पारिवारिक ताने-बाने को मजबूती प्रदान करने के लिए है ।  इस परंपरा के अनुसार वर-वधू दोनों पक्षों के बीच  न सिर्फ आपसी प्रेम-सौहार्द  बढ़ता है बल्कि इस परंपरा से यह ज्ञात होता है वर पक्ष का, वधू पक्ष से केवल लेने मात्र का नहीं बल्कि देने का भी रिश्ता है ।

 बुंदेलखण्ड के लोक जीवन में रिश्तों की बहुत होती है  जब कोई नई दुल्हन घर में आती तो उसे बेटी की तरह ही प्यार दिया जाता है। उसका शादी के बाद पहला रक्षाबंधन आने पर ससुराल वाले बहू के मायके में राखी के साथ सावनी भेजते है। सावन के महीने में मायके में सावनी आती है और भादौं के महीने में मायके बाले उसका नेंग दुगना करके मोराई छट के रूप  में भेजते है।

सावनी का उद्भव
ऐसा कहा जाता है कि महोबा के राजा परमाल ने अपने पुत्र की ससुराल में सावन के महीने में खिलौने, कपडे़, राखियाँ, मिठाई और उपहार भेजे थे तभी से सावनी की परम्परा बुंदेलखंड में शुरु हो गई थी।

मनोवैज्ञानिक आधार
आज के दौर में अगर देखा जाए तो गर्भवती महिलाओं को के कमरे में सुंदर बच्चों के फोटोग्राफ एवं खिलौने रखने के लिए कहा जाता है ताकि उसके मन में सकारात्मक विचार आए  यही इसके पीछे का मनोविज्ञान है। हमारे शोधकर्ता, हमारे पूर्वज ऋषि-मुनियों ने अनेक प्रयोग करके कुछ ऐसी परंपराएं निर्धारित की ताकि सामाजिक जीवन में उनका सकारात्मक प्रभाव पड़े और उनका जीवन सुखमय बना रहे ।

वर्ष में अधिकतर शादियां देव उठने के बाद यानी की दीपावली के बाद शुरू हो जाती हैं कुछ सर्दियों में कुछ गर्मियों में।  पौराणिक काल को देखते हुए उस वर्ष हुई  शादियों मैं ज्यादातर युवतियां गर्भवती हो जाती थीं । और यही सब जानकर वर पक्ष के लोग फल, मिठाई, खिलौने आदि लेकर कन्या पक्ष के घर में सावन के महीने में आते हैं। भेंट में यह खिलौने लाना एक मनोवैज्ञानिक कारण है ।

बुन्देलखण्ड के वैवाहिक लोकाचार 

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