अंग्रेजी राजसत्ता स्थापित होने के समय राजा रनजीत सिंह मे अँगरेजों से संधि करना चाहा। इससे 6 शर्तों का एक इकरारनामा अंग्रेजों को लिख दिया परंतु वि० सं० 1669 तक कुछ भी नही हुआ। अंत मे वि० सं० 1874 (27-11 -1817) में Samthar – Angrejo Se Sandhi हो गई ।
वि० सं० 1790 में, दतिया के राजा इंद्रजीत के समय, गद्दी के लिये झगड़ा हुआ था। उस सम्य नन्हेशाह गूजर ने इंद्रजीत की बहुत सहायता की थी। इसके उपल्क्ष में इसके पुत्र मदनसिंह को समथर के किले की किलेदारी और राजधर की पदवी दी गई । इसके बाद इसके पुत्र देवीसिंह को 5 गाँवों की जागीर भी दी गई। इस समय मराठों की लड़ाईयां शुरू हो गई थी । इससे समथर का किलेदार स्वतंत्र बन बैठा ।
राजा रनजीत सिंह वि० सं० 1884 (11-7-1827) में स्वर्ग सिधारे । पर न तो इनके ही पुत्र था और न इनके दोनों भाई पहाड़ सिंह और विजय सिंह के ही लड़के हुए थे। इससे महाराज रनजीत सिंह के मरने पर इनके चचेरे भाई हिंदूपत को गाड़ी सौंपी गई । हिंदुपत समथर राजा हुए। पर बाद मे इनका भी दिमाग खराब हो गया था। इससे इनकी रानी ही राज्य- प्रबंध करती रही । इनके चतुर सिंह और अर्जुन सिंह नाम के दो लड़के हुए ।