Rani Bahu रानी बहू

Photo of author

By admin

कछू नई। मायके की चरचा होन लगी सो अपने करम पै हमाए अँसुआ आ गए। ऐसी अभागन हैं हम कै न बाप, न मताई, न एकड़ भैया-बैन।” Rani Bahu ने आँचर में अपनी तरइयाँ पोंछी।

उन्ने सलीके से अपनी-अपनी खेप कुंडी पै बैठारी और घरन खाँ चल परीं। गाँव में मीठे पानी की कुइया, कुल्ल वायरी हती सो गाँव की सब जनी संगै मिलकें पानी भरवे आओ करत्तीं। घर सें कुइया लो, और कुइया से घर लो, आउत-जात में उनकी आपुस में घर गिरस्ती को पूरी दरबार हो जात्तो।

कौन की सास ने बहू खाँ बिल्ला मारो, कौन की बहू ने ससुर से मौं लगा के, नरक में जावे का काम करो, कीके घरे नई धुतिया आई, कीके घरे कढ़ी बनी, कौन के आदमी ने खातन में टाठी फेंक दई, सबरो दरबार गैलई में हो जात्तौ, और फैसला भी गैलई में। घरै जाकें फिर ओई ब्यारी-मथानी।

आज जब वे खेप धर के चलीं सो सब के मायकें की चरचा चल परी। कमलपुर बारी आजई अपने मायके से लौटती, सो ऊहे सुनाकें कचनपुर बारी ने कही-“भइया होवें तो कमलपुर बारी जिज्जी के भइयन से होवें।” “हओ, देखौ, पैलाँ साउन में हो आई तीं और अबै खिचरहाई पै हो आई । मनख कहत कै बाप-मताई लो मायको होत। पै कमलपुर बारी जिज्जी के भइयन ने बाप-मताई से जादा निभाई।” मोहनपुर बारी ने बात में बात मिलाई।

“हम काये खों हाँत काटिये जिज्जी, हमाये भइया तौ हातन में लये रहत। अबै जब विदा करत तो चलाए-दुसरते कैसी पठोनी देत।”
“तुम भागन वारी हौ जिज्जी जौन ऐसे बीरन मिले। एक हमाए हैं कै चार-चार साल खबर नई लेत, मन, मायके की देरी देखवे तरस जात।”

“सब के भइयन की एई दसा है। बुला लऔ तो ठीक, नइतौ लुगाइन के सामू बैनन की खबर कहाँ रहत भइयन खाँ।” इंटवा वारी ने अपने मन की खिच्च निकारी। आज के दरवार में, अबै लौ रानी बहू चिमानी रहीती सो कमलपुर वारी ने ऊसे पूँछ लई-“काये देवरानी तुम आज कछू नई बोलीं। घर में काऊ से लड़ाई हो गई का?”
“नई जिज्जी, तुम तौ जानती हौ, हमाए घरै कभऊँ बत-बढ़याव नई होत।” “फिर का बात हो गई?”

“कछू नई। मायके की चरचा होन लगी सो अपने करम पै हमाए अँसुआ आ गए। ऐसी अभागन हैं हम कै न बाप, न मताई, न एकड़ भैया-बैन।” रानी बहू ने आँचर में अपनी तरइयाँ पोंछी। सब खां पता हतो कै रानी बहू के बाप-मताई पाँच साल पैलाँ के ‘मरा’ में न रहेते। सो वे सब तनक दार के लाने चिमा गईं।
“तौ अब तुमाए मायके तरफ से कोऊ न कहाओ।” कंचनपुर वारी ने पूछी।

हैं तो पै सब ककयावते हैं। अकेलें सगे तो पूछत नइयाँ तो फिर उनकी आसा को करै। लै-दें के एक कनवा मम्मा है जो कभऊँ भूलो-भटको आन परै, तो कहो हम चीन्ह लो न पाइए। बाई बताओं करत्ती, पैलाँ देवलापुर में रहत रहे अब चाय जहाँ रहत होंय। दसन साल से पतौ नइयाँ, हमतौ तनक से हते तब देखो तौ।”

दरवार करत-करत गाँव आ गऔ सो सब जनी अपने-अपने घरन खाँ चलीं गईं। उन्ने जौ न देखो कै उनके पाछू-पाछू एक आदमी घोड़ा पै चढ़ो मसकई के उनकी बातें सुनत चलो आ रहो तो। ऊ गाँव के गेवई ठाड़ों हो गऔ फिर लुकत-लुकत रानी बहू खाँ पछया लऔ। रानी बहू अपनी सुद में मगन अपने घर में घुस गई। ऊ आदमी ने रानी बहू खाँ घर में घुसत देखो और आँगे निकर गऔ।

दिन डूब गौ तौ रानी बहू ने दिया डब्बी करी और ब्यारी-मथानी में लग गई, तौलों घर के मनख हार-खेत मैं लौट के ढोर-डंगर के उसार में लग गए। अपने काम सें फुरसत होकें वे ब्यारी खां बैठतई जात ते के काउने द्वारे से टेर लगाई। “भनेजन बाई! भनेजन बाई!! किवारे खोलो।”

भनेजन बाई को बोल सुन के रानी बहू हुलस गई-“लगत हमाए मम्मा आ गए।” रानी बहू ने जा के किवारे खोले और द्वारे में ठाँड़े कनवाँ से लिपट गई। “काये मम्मा ऐसौ सोई करो जात । बाप-मताई गए सो तुमने सोई तल्ला छोड़ दई। इतनी जल्दी काए आ गए, जब हम मर जाते तब आवते।” रानी बहू रोउत-रोउत सिसकन लगी।

“अब तो आ गए, अब जे अँसुआ न बहाव।” कनवाँ ने हँस के रानी बहू की । पीठ पै हात फेरो। तौलों घर के सब जनें आ गए। मिला भैंटी भई । तब रानी बहू के ससुर ने कही-“चलो समधी संगे भोजन हो जावें।”

“अरे….राम….! राम….!! भनेजन के घर कौ दाना-पानी खा के हमें नरक में नई जाने” कनवाँ ने हाँत जोर दए। “रात भर को काम है। घर में भागवत की कथा होनें सो अपुन खाँ न्योतौ दैवे और भनेजन बाई खाँ लिबावे आए है। घर में भौत काम है सो तड़के की त्यारी कर दई जाती तो नौनी रहतौ।”

सबने भौत कहीं अकेले कनवाँ ने न कछू खाओ न पियो। लेव, रानी बहू के मम्मा लुवावे आ गए। भागवत होने सो सब नाते रिश्तेदार जुर हैं। रानी बहू की सास ने उन्ना-लत्ता, जेवर-गाने से पेटी सजा दई और होत भुसारे घोड़ा पे बैठ के हुलसत-पुलकत रानी बहू अपने कनवाँ मम्मा संगै चल परी। अबै गाँव से दोई चार कोस गए हैं के अंजन के पेड़ से खंजन के बोल सुनाने…
अंजन रुख पै खंजन चिरई
डोले रुख तो बोले चिरई
रानी बहू….! चोर के मौं जात है।

‘रानी बहू….! चोर के मौं….!’ हे! राम…रानी बहू के मन में सनाका सो छा गऔ, प्रान सूक गए, मौं पै स्याही सी पत गई। कैसउ जैसउ हिम्मत बाँध के बोली-“मम्मा….! जा चिरइया कैसी बोलत?”

“अरे, जे बन के चिरई चरेरू आयें, बोलतई रहत। इतनी बड़ी हो गईं तुमाई डरावे की आदत न गई। कनवाँ ने घोड़ा पै तनक और ऐड़ लगाई सो घोड़ा दौड़न लगो। रानी बहू को धीरज लौटो, साँसी तो कहत मम्मा हम हल्केई से डरपोक हते। पतौ न होती तो कैसे कहते। अकेलें अबे दोई चार कोस और चले हैं के खंजन के बोल फिर सुनाने…
एक वन नाकी, दो वन नाकी
रानी बहू चली चार कोस।
फिर हमखां दइयो न दोष,
तुम चोर के मुँह जाती हौ॥

रानी बहू के माथे पै पसीना छलक आऔ। ओंठन पै पपरी सी जम गई। अपने ओंठन पै जीब फेरके कछू केहवे के लाने हिम्मत बाँधी। अकेले कनवाँ ने बीचई में रोक दऔ। “तुमसें कै दई भनेजन बाई, जे चिरइयाँ चरेऊ कहाउत, बोलतई रहत। इनकी बातन में न आओ। अरे, हम तुमे चोर….अबै कनवाँ की बात पूरी न हो पाई ती के खंजन फिर चिचयानी!
अंजन रूख पे खंजन चिरई
डोले रूख तौ बोलै चिरई।
रानी बहू….हू….हू…हू…!

कनवाँ ने अपने जेब से पिस्तौल निकारी और जौन पेड़े में खंजन बोल रही ती आई कौं साध के गोली दाग दई । सबरे जंगल में गोली की धाँय-धाँय सन्ना गई। गोली खंजन के माथे पै बैठी ती। खंजन तरफरा के खालें गिरी, गिरतई ऊके प्रान पखेरु उड़ गये। अब रानी बहू खां विश्वास हो गऔ जौ ऊको मम्मा नोहीं। रानी बहू धोका खा गई। बन की चिरइयाँ लबरी नईं बोलतीं। ऊने कनवाँ ने कही-“ऐ ….ऽ! क्वॉव तुम….? रोकौ घोड़ा।

तुम हमाए मम्मा नोहीं। रोकियो घोड़ा।” अकेलें कनवाँ में घोड़ा रोकवे की जगा तनक और एड़ लगा दई सो घोड़ा हवा से बातें करन लगो। चारऊँ तरफ साँय-साँय करत वियावान-जंगल बीच में बदमाश के हाँतन में फँसी रानी बहू। अपनी ताकत भर चिल्लानी-“अरे! कोउ है! दौरियौ, बचाइयौ हमें ई बदमाश ने हमें लूट लऔ! अरे! कोऊ दौड़ो रे! कोऊ बचाव रे!” रानी बहू के बोल पूरे वियावान में गूंज गए। अकेले को दौरतो? को बचावतौ? कोउ होती तौ दौड़तो-बचावतो।

बदमाश ने कही-“अपने प्रान प्यारे हौंय तौ चुप्प बैठी रही। नई तौ हमने एक तुमाए सोई दाग दई। इतई सड़ जै हो। सात जनम तक पता न लगहे काउ खाँ।”

विचारी रानी बहू ने डरन के मारें चिल्लाबो बन्द कर दी। जाल में फँसी हिन्नी सी नहें महें देखन लगी। स्यात जे बनके चिरइया-चरेरू हमें बचा लेवें। फिर ऊने अपने जीवे की आसा छोड़ दई। घंटा एक जंगलई-जंगल चलकें कनवाँ ठग, अपने ठिकाने पै पोंचो। ऊने रानी बहू खाँ घोड़ा से उतारो और कही-“देखौ, अगर तुमने कछू बदमाशी करी और इतै सें भगवे की कोशिस करी तौ हम तुमाए दोई हात-पाँव काट डारवी। और हमाए मन से चलहौ तो रानी बन के राज करहौ।” बदमाश ने द्वारो खोलो और रानी बहू खाँ भीतर लिवा गओ।

“हे! राम….! अब तुमई रखवारे हौ।” रानी बहू ने मनई मन में कही और कडू सोचन लगी। उये चिमानी देख के बदमाश ने फिर कही-“का सोच रहीं? हमने कै दई तुम इतै में जिन्दा नईं निकर सकतीं।”

“बौ तो हमाई समझ में आ गई। अकेलें इतै गुजर कैसे हुहै?” “काये इतै काये की कमी है?” “न घिनोंची पै गगरी, न उसारे में चकिया, न चौकी, न बिल्ला। कहत काए . की कमी है।” “जे चीजें तो हम अवई लै आवी घंटा भर में।” बदमाश ने कही तो रानी बहू बोली-“तनक सुत्ता लेव फिर चले जइयौ।”

बदमाश खाँ लगो के रानी बहू इतै से भग नई सकत। ऊनी कही-“हम अबई जा रहे। अकेलें हम तुमाए हात पाँव बाँध के जैवी।”

“जैसी तुमाई मरजी?” रानी बहू ने खुशी-खुशी हात पाँव बँधवा लए। बदमाश ने बायरे में तारौ लगाओ और गिरस्ती को सामान लैवे चल परो। “अब?”

रानी बहू ने अपने हात-पाँव देखे। इतनई मौका है बचवे को नई तौ फिर गई काम से। चाहे जैसे छूटवे की कोशिस करो रानी बहू। ऊके मन ने कही। रानी बहू हिम्मत बाँध के लुड़कत-सरकत ओई कोठा के कुनवाँ में डरे हँसिया लौ पोंची और उपाय करके अपने हाँतन में बँधना हँसिया पै घिसन लगी। हाँतन से खून झिरप आओ। अकेलें तनकई देर में हाँतन की सुतरी कट गई। ऊके हाँत खुल गए।

रानी बहू ने जल्दी-जल्दी अपने पावन के बँधना काटे और जैसें पैलें से सब सोचो विचारो होए। अपने उन्ना उतार के जेवरन के संगै एक पुटरिया बनाई खुटिया पै टॅगी ठग की पुलिस वारी ड्रेस पैरी। हेट लगाओ। ऊहे पेटी में डरी नकली दाढ़ी-मँछे मिल गई। बे अपने मौपे लगाई। एक रस्सी लई और आनन-फानन खपरैल पै चढ़ गई।

रस्सी उरिया से बाँध के रानी बहू अपनी पुटरिया सँभारे ओई पै लटक गई। धीरे-धीरे सरक के खाले तक पोंच गई। अब रानी बहू घर से बाहर हती। पे अब का करै । एक तरफ ऊँचो पहार। दूसरी तरफ घनों जंगल कहाँ जाय । पै ई बदमाश के हाँतन अपनी इज्जत खराब कराबे में अच्छो है के प्रान चले जाँय। कछू न कछू तो करनई परहै।

रानी बहू ने एक नजर सामू बँधे घोड़ा पै डारी और मन पक्को करके घोड़ा पै बैठ गई। ऐड़ लगाई। घोड़ा हवा से बातें करन लगो। जौन गैल बदमाश ऊहे * ल्याओतौ ओई गैल पै रानी बहू ने घोड़ा दौड़ा दऔ। अबै रानी बहू तनकई दूर गई

हूहै के सामू से कँधा पे चकिया धरै, हाँत में गगरी लये बदमाश आउत दिखानो, रानी बहू धक्क सें रै गई। फिर ऊके मन में कही अब डरावे कौ काम नइयाँ । डरानी के गईं। बस ऊने हिम्मत बाँध लई और ऐन ओई बदमाश के सामू जाके घोड़ा अड़ा दऔ। फिर मूंछन पै हाँत फेरो और कड़क के बोली कम्मर में हम फेंटा बाँधे अरू खोंसें तलवार। चोरन की हम खोज में निकरे हम यहाँ के थानेदार। तें क्वाय?

चोर को जी कित्ती होत? ऊने सामू वरदी में एक थानेदार खाँ देखो सो थर-थर कँपन लगो। सिट्टी-पिट्टी भुला गई। क्वाहै, जो देखवे को होस न रहो के जौ घोड़ा तो ओई को आय। और जे दाढ़ी-मूंछे ओई की आँय। हाँत जोर के बोलो-“मालक मैं तो सीदो सादो किसान आँव। इतई मोरी छोटी सी मड़इया है। मोरी जान बक्सी जाय। आपई देख लेव । घर गिरस्ती को सामान लेके जा रहो।

रानी बहू कड़क के बोलीं-“अच्छा जा! कोई बदमाश आसपास हो तो थाने में रपट करना।” “हओ मालक।” चोर जल्दी से आगे बढ़ गओ। इतै रानी बहू ने घोड़ा खाँ फिर से ऐड़ लगाई, घोड़ा हवा हो गऔ। जब बदमाश ठिकाने पै पौंचों तो उहे असलियत पता चली, ऊने करम ठोको- “आज चोर के घर चोरी हो गई।” उतै रानी बहू घरै न जाकें सीधी थाने पोंची। थानेदार खां सवरी हाल सुना के खुद दविश दिबा के बदमाश के ठोकने तक लिखा गई। वो भगवे की सोचई रहो तो कै पकड़ो गओ।

भ्याने भएँ थानेदार साहब रानी बहू खाँ लिवा के ऊके घरै पोंचे। उते सब खाँ रानी बहू की हुशयारी की बातें बताई। और कही के हम सरकार से रानी बह खां इनाम दिवावे के लाने सिफारिस करवी। रानी बहू के घर वारन ने कहीं ऐसी बहुयें होंय तौ चोर बदमाशन को ठिकानी न लगे।

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

Leave a Comment

error: Content is protected !!