Rajput Kalin Chitrakala राजपूत कालीन चित्रकला

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Rajput Period painting

चित्रकला का सम्बन्ध मानव के भावनात्मक दैनिक जीवन से है। मनुष्य ने विभिन्न प्रकार के सुन्दर चित्र बनाकर अपनी भावनाओं और हर्ष को व्यक्त किया है। गुप्तकाल में चित्रकला की असाधारण प्रगति और उन्नति हुई। उसके पश्चात् Rajput Kalin Chitrkala के  प्रारम्भ में अजन्ता और बाघ के कतिपय भित्तिचित्र बनाये गये। इस युग की चित्रकला में मानव स्वभावों के चित्रण में नुकीलापन और तीखापन आ गया था।

क्षेत्रीय प्रवृत्ति का भी प्रभाव पड़ा। मालवा, गुजरात और राजस्थान में चित्रकला की विशिष्ट परम्पराएँ प्रारम्भ हुई। फलतः चित्रकला की विविध शैलियों का विकास हुआ है। विशेषकर राजपूत युग उत्तरार्ध में और मुगलकाल में ये शैलियां अत्यधिक विकशित हुई। इन शैलियों में राजपूत शैली और गुजरात या जैन शैली और मालवा शैली थी। आगे चलकर राजपूत शैली में राजस्थानी, कश्मीरी और कांगड़ा शैली का विकास हुआ।

गुजरात शैली में जैन मतावलम्बियों के जीवन और धर्म से सम्बन्धित चित्र हैं। राजपूत और मालवा शैली में हिन्दू धर्मशास्त्रों में वर्णित कथानकों व घटनाओं के दृश्य, रासलीला, राग-रागिनी, नायक-नायिका भेद सम्बन्धी विषय तथ जन-जीवन के दृश्य चित्रित हैं। सजावट के लिए पत्रावली पुष्पावली और पशु-पक्षियों के चित्र भी अंकित किये जाते थे।

राजपूतकालीन संस्कृति अनेक युगों एवं विशेषता से परिपूर्ण थी। इस काल में सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई। राजपूत राजाओं ने शासन व्यवस्था के क्षेत्र में अनुकरणीय उदाहरण पेश की।

उन्होंने शिक्षा एवं साहित्य की प्रगति में भी विशेष रूचि ली और राजकीय संरक्षण प्रदान की इस काल में अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखे गये जो कि एक अनमोल धरोहर के समान है। राजपूत काल में सर्वाधिक प्रगति कला और स्थापत्य कला के क्षेत्र में हुई। इनमें मंदिर निर्माण कला विशेष रूप से उल्लेखनीय है। वास्तव में राजपूत काल भारतीय कला एवं संस्कृति का पुनरूत्थान काल था।

According to the National Education Policy 2020, it is very useful for the Masters of Hindi (M.A. Hindi) course and research students of Bundelkhand University Jhansi’s university campus and affiliated colleges.

बौद्ध धर्म के सिद्धांत 

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