महान प्रतिभावान, प्रसिद्ध शिक्षाविद, सैद्धांतिक पत्रकार और साहित्यकार श्रद्धेय श्री राधारमण शांडिल्य जी Radharaman Shandilya का जन्म जनपद जालौन के कोटरा ग्राम में 10 अक्टूबर 1934 को एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार में हुआ था। आप बचपन से ही सहज,सरल , जीवनमूल्यों के पोषक और कर्तव्यनिष्ठ रहे। आपका मानना था कि जीवन सुंदर ही नहीं संघर्ष भी है ।
प्रख्यात शिक्षाविद् एवं समर्पित पत्रकार कीर्तिशेष पण्डित राधारमण शाण्डिल्य
जीवन में आपदाओं से भागना नहीं चाहिए उनसे भिड़ना चाहिए । उनसे लोहा लेना चाहिए इससे आदमी खरा होता है तब कर कुंदन जैसा और पिघलकर फौलाद जैसा निकलता है। यहाँ यह बात श्रद्धेय राधारमण शांडिल्य जी के जीवन पर सौ फीसदी सिद्ध होती है। आपने अपना संपूर्ण जीवन साधनामय व्यतीत किया। आपने पत्रकारिता के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर अपनी विशिष्ट पहचान बनाई और जालौन सहित समूचे बुंदेलखंड को गौरवान्वित करने का श्रेय भी आपके हिस्से में जाता है ।
पत्रकारिता के विषय में शाण्डिल्य जी का कहना था , “आजादी के बाद से पत्रकारिता और पत्रकार दोनों की चारित्रिक विशेषताओं में अभूतपूर्व बदलाव देखने को मिलता है। आजादी के बाद पत्रकारिता को व्यवसाय के तौर पर एक मुनाफे के धंधे के रूप में देखा और अपनाया जाने लगा। जिसके बाद पत्रकरिता ने कब मिशन से कमीशन तक का सफर तय कर लिया उसे खुद ही पता नहीं चला।
आज पत्रकारिता में राष्ट्रवाद एवं देशभक्ति को संदेह की दृष्टि देखने और प्रस्तुत किए जाने का चलन चरम पर है। आज पत्रकारिता में निष्पक्ष, देशभक्त और राष्ट्रवादी पत्रकारों का नितांत अभाव सा हो गया है। पत्रकारिता और पत्रकार अपने लाभ के लिए देश विरोधी खबरें और बातें भी फैलाने से गुरेज नहीं करते। आज ज़्यादातर पत्रकार आजादी के पहले की मिशन पत्रकारिता से इतर स्वहित और स्वार्थ की पत्रकारिता करना ज्यादा पसंद करते हैं। ऐसे पत्रकारों की फेहरिस्त काफी लंबी चौड़ी है।
श्री राधारमण शांडिल्य जी अक्सर पत्रकारिता के वर्तमान स्वरूप को लेकर चिंतित थे। शाण्डिल्य जी बताया करते थे कि मुझे याद है आजादी के समय का वह दौर जब मैं “विश्वामित्र ” दैनिक समाचार- पत्र ” से जुड़ा था तब वह दौर आजादी के पहले के निष्ठावान पत्रकार सीमित संसाधनों में जीवन यापन करते हुए देश सेवा में अपना जीवन समर्पित कर देते थे।
आज की पत्रकारिता और पत्रकार का स्वरूप यकीनन ही भारतीय पत्रकारिता के आरंभ की राष्ट्रवादी और देशहित की पत्रकारिता से भिन्न और निम्न हो गई है।” जब मैं साहित्य और पत्रकारिता का विद्यार्थी होने के नाते महान शिक्षाविद् कीर्तिशेष पण्डित राधारमण शाण्डिल्य के व्यक्तित्व को समग्रतः से देखता हूँ तो का जीवन शीशे-जैसा साफ पारदर्शी दिखाई देता है। जिसमें धूल,जख्म तक के धब्बे साफ देखे जा सकते हैं।
आपके जीवन सृजन में कहीं शुष्क हवाओं की सरसराहट है,तो कहीं झंझावातों की संघर्ष ध्वनि है, कहीं कंटीले रास्तों,जंगली- कटीली – झाड़ियों – झुरमुटों की चुभन है , तो कहीं पानी में लुढ़कते पत्थरों का दर्द है , तो कहीं उनके मन मस्तिष्क में से फूटतीं क्रांति की चिंगारियां हैं, तो कहीं रोमान रस का सावन रिमझिम आया है जो लोकमंगलकारी है। सत् चित् आनंद को समर्पित है।
शाण्डिल्य जी ने अपने सृजन में सदैव जीवन मूल्यों की रक्षा की और उनमें दिव्य अक्षय की अनुभूति और तन्मयता को संजोये रखा। उनके बहुआयामी व्यक्तित्व में लोकमंगल का अनूठा चरित्र समाया हुआ है। उनके सृजन के यथार्थ बोध को जाने समझे बिना उनके साहित्य को समझना , उनकी पत्रकारिता को समझना शायद संभव नहीं है ।
श्री राधारमण शांडिल्य जी के जीवन की विशद लोकमंगल यात्रा उनके परम उज्ज्वल व्यक्तित्व को उजागर करती है। अभावग्रस्त लोगों के सर्वांगीण उत्थान के लिए वे सदैव प्रयत्नशील रहे। एक पत्रकार के रूप में, शिक्षाविद् व साहित्यकार रूप में भी वे प्रथमतः सामाजिक कार्यों को प्राथमिकता देते रहे। वस्तुतः शांडिल्य जी अद्भुत खोज और प्रतिभा के ऐसे समकालीन शिखर पुरुष रहे हैं जो साहित्य और पत्रकारिता के तथाकथित मठाधीशों को धता बताते हुए युग चेतना बोध के प्रतीक बन गए हैं।
मैं उन सौभाग्यशाली में हूँ जिसे कीर्तिशेष राधारमण शांडिल्य जी का अनेक साहित्यिक संगोष्ठी – सम्मेलनों में आनंदगंधी सान्निध्य का पुण्य मिलता रहा है । शाण्डिल्य जी जीवन की दार्शनिकता के संदर्भ प्रायःकहा करते थे …।
जीवन आशा निराशा के बीच कर्म का जैसे खिला कमल है। स्वप्न मीठा लगता है पर मिट जाता है। सच कड़वा लगता है पर साथ देता है। स्वप्न का बल पल है और सत्य का कड़वापन कल्प है। जीवन में पल की भी सत्ता है इसलिए स्वप्न भी है। लेकिन जीवन का अस्तित्व तो कल्प में समाया है । इसलिए सत्य विराट् है,महान है। हमें सदैव सत्य आधारित जीवन को ही जीना है। यही मनुष्यता का आभूषण है…। “
उद्भट विद्वान, प्रखर वक्ता, साहित्यसेवी,शिक्षाविद् एवं प्रख्यात पत्रकार कीर्तिशेष पण्डित राधारमण शाण्डिल्य जी के विराट व्यक्तित्व से हमें शिक्षा लेते हुए उनके बताए हुए अधूरे कार्यों को पूर्ण करने को सतत प्रयत्नशील रहना हमारा अभीष्ट है।
जालौन उत्तर प्रदेश का एक अर्द्ध विकसित जनपद है। यह जनपद औद्योगिक दृष्टि से भले ही बहुत विकसित और साधन संपन्न न रहो लेकिन सांस्कृतिक दृष्टि से अपना विशेष मूल्य महत्त्व रखता है। राजनैतिक क्रांति के साथ ही वैचारिक क्रांति की सक्रिय भूमिका में जनपद जालौन का उल्लेखनीय योगदान है। इस की गोदी में अब तक कई शीर्ष साहित्यकार, कलाकार,शिक्षाविद और राजनेताओं का बचपन बीता है।
श्री राधारमण शांडिल्य जी इसी माटी में पले-बढ़े। उन्होंने अपने साहित्य, शिक्षा,पत्रकारिता एवं कला साधना से समाज – संस्कृति को सदैव एक नई दृष्टि दी है । पत्रकारिता के क्षेत्र में जनपद जालौन में राष्ट्रीय स्तर के अनेक पत्रकार पैदा हुए हैं। जिनमें ग्राम कोटरा निवासी “विश्वामित्र” तथा “एडवांस” के संपादक मूलचंद्र अग्रवाल ने कोलकाता (कलकत्ता) कलकत्ता से दैनिक विश्वामित्र का प्रकाशन किया। वहीं दैनिक जागरण समूह के संस्थापक जयचंद्र आर्य व पूर्ण चंद्र गुप्त कालपी के निवासी थे।
कल्पवृक्षी व्यक्तित्व के स्वामी कीर्तिशेष पण्डित राधारमण शाण्डिल्य जी की तृतीय पुण्यतिथि(1फरवरी ) पर उनके श्रीचरणों में विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।
आलेख – डा. रामशंकर भारती
(लोकसंस्कृतिकर्मी)