Pradeep Kumar Pandey प्रदीप कुमार पाण्डेय

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By admin

किसी भी देश – प्रदेश की लोक संस्कृति उसकी पहचान होती है। प्रत्येक लोक संस्कृति जरबेरी के पेड जैसी होती है ऊपर से छोटी सी झाड़ी दिखाई देती है लेकिन उसकी जड़ें अनंत गहराई तक जाती है। Pradeep Kumar Pandey जी को जरबेरी का पर्याय कहना सर्वथा उचित होगा।

रामलीला के सिद्धहस्त अभिनेता श्री प्रदीप कुमार पाण्डेय ने अपने दादा जी से रामलीला मंचन के क्षेत्र में आने की प्रेरणा ली। आपके दादा जी कीर्तिशेष महावीर प्रसाद अग्निहोत्री जी उस जमाने के बुंदेलखण्ड के प्रख्यात नाटककार थे। उन्होंने बुंदेली संस्कृति को ध्यान में रखते  श्रीरामलीला मंचन हेतु रामायण लिखी। आपकी आल्हा की शैली में लिखी  रामलीला का मंचन बुंदेलखंड क्षेत्र में होता था।

भारतीय संस्कृति को रामायण संस्कृति कहा जाता है । रामायण संस्कृति का अर्थ है अपने जीवन में मानबिंदुओं  जीवनमूल्योंपरंपराओं व उत्सव – त्योहारों की रक्षा करना, उनका समवर्धन करते हुए अपना जीवन यापन करना और इसी के साथ साथ नैतिक विधि से अपने दायित्वों की पूर्ति भी रामायण संस्कृति का एक अनिवार्य  अंग है। हमारा देश राम का देश है । राम के चरित्र को आत्मसात करते हुए अपने कार्यों से समाज जीवन को नई दिशा देना ।

संभवतः यही भारतीय जीवन मूल्यों की उज्ज्वल परिकल्पना है। इसी ताने-बाने से हमारे समाज का अस्तित्व बुना हुआ है।  रामायण, महाभारत, गीता और अन्य धार्मिक ग्रंथ केवल और केवल एक ही शिक्षा देते हैं कि हमें अपने जीवनमूल्यों की रक्षा करने के लिए अपने व्यक्तिगत चरित्र , कार्य और व्यवहार को शुद्ध प्रमाणित करना है। ऐसी परंपराओं और मान्यताओं के लिए समर्पित एक ऐसे ही सरल व्यक्तित्व का नाम है प्रदीप कुमार पाण्डेय जो रामायणी संस्कृति के संवर्द्धन में निरंतर प्रयासरत हैं।

रामलीला के सिद्धहस्त अभिनेता श्री प्रदीप कुमार पाण्डेय ने अपने दादा जी से रामलीला मंचन के क्षेत्र में आने की प्रेरणा ली। आपके दादा जी कीर्तिशेष महावीर प्रसाद अग्निहोत्री जी उस जमाने के बुंदेलखण्ड के प्रख्यात नाटककार थे। उन्होंने बुंदेली संस्कृति को ध्यान में रखते  श्रीरामलीला मंचन हेतु रामायण लिखी। आपकी आल्हा की शैली में लिखी  रामलीला का मंचन बुंदेलखंड क्षेत्र में होता था।

प्रदीप कुमार पाण्डेय ने 1975 के दौर में  सीपरी बाजार झाँसी की रामलीला में अपने अभिनय की शुरुआत भगवान राम के आदर्श चरित्र से की। वहीं आपने अपनी अभिनयात्मक क्षमताओं का विस्तार करते हुए श्री सीता जी व श्री लक्ष्मण जी के आदर्श चरित्रों का अभिनेता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। अपनी दो दशकीय रामलीला अभिनय की यात्रा में आपने श्रीराम चरित्र को अपने जीवन में उतारते हुए भारतीय रेल विभाग में अपनी सेवाएं दीं।

लोको पायलट की सेवानिवृत्त के पश्चात आप अपना पूरा समय सांस्कृतिक गतिविधियों को सुचारू रूप से संचालित करने में लगातार दे रहे हैं। देश की अनेक सांस्कृतिक संस्थाओं से आपकी संबद्धता है।इसी के साथ वंचित व अभावग्रस्त समाज के बच्चों की शिक्षा के लिए अपने व्यक्तिगत प्रयासों से सहायता करते रहते हैं।

आपका मानना है कि अधिक कहने से अच्छा है कुछ ठोस कार्य किया जाए। हमारे कार्य का मूल्यांकन समाज करे या न करे समय जरूर करता है। दृढ़ आस्थावान प्रदीप कुमार पाण्डेय जी इसी अभिधारणा को लेकर सामाजिक व सांस्कृतिक दायित्वों की पूर्ति में प्रसन्नचित होकर सक्रिय हैं।

संक्षिप्त परिचय
नाम – प्रदीप कुमार पाण्डेय
पिता – कीर्तिशेष श्री राजनारायण पाण्डेय
माता – कीर्तिशेष श्रीमती राजेश्वरी
जन्म –2 मई 1963
Facbook Link

रंग यात्रा
अभिनयकाल – लगभग 20 वर्ष।
श्रीरामलीला व अन्य नाट्य मंच।

विशेष योग्यदान
बुंदेली शैली की रामलीला (आल्हा गायन की तर्ज ) के प्रचार – प्रसार में योगदान।

संबद्धताएँ
देश की अंतरराष्ट्रीय साहित्य व कला की संस्था संस्कार भारती , सीपरी बाजार इकाई के पूर्वअध्यक्ष।
वर्तमान में संस्कार भारती जिला झाँसी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष।
‘बुंदेलखण्ड साहित्य अकादमी ‘ के महासचिव।
नवांकुर साहित्य एवं कला परिषद के संरक्षक।
भाजपा के सामाजिक क्षेत्र के विभाग।
“सहयोग आपदीय राहत एवं सहायता ” प्रकल्प के विभाग संयोजक।
स्काउट दल से विशेष संबद्धता।
निर्बल व अभावग्रस्त समाज के बच्चों की शिक्षा में   विशिष्ट सहयोग।
बुंदेलखण्ड की लोकसंस्कृति के संरक्षण व संवर्धन में सक्रिय भूमिका।
अभावग्रस्त साहित्यकारों,  कलाकारों व रंगकर्मियों के पुनरुत्थान के कार्यों में अग्रणी।
झाँसी मण्डल पर शासन द्वारा बनायी गयी बुंदेलखण्ड साहित्य व संस्कृति समिति के सदस्य के रूप में सांस्कृतिक गतिविधियों के संचालन में सहयोगी
अनेक सामाजिक संगठनों में भागीदारी ।
बुंदेलखण्ड का प्राचीन साहित्य संकलन व अन्वेषण
आध्यात्मिक क्षेत्र के विश्व प्रसिद्ध संगठन।
“गायत्री परिवार ” से आजीवन संबद्धता ।

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

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