Kyolari Gaon सुरीलों का गाँव -क्योलारी

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एक ऐसा अनोखा और अदभुत गाँव है Kyolari Gaon, जिसे कैलाशनगर के नाम से भी जानते हैं। उत्तर-प्रदेश के जनपद जालौन मुख्यालय उरई से पैंतीस किलोमीटर की दूरी पर बसा है लगभग आठ हजार की आबादी वाला यह गाँव । यों तो सीधे तहसील केन्द्र कोंच से सड़क मार्ग से सीधा जुड़ा है क्योलारी। पर सड़क नाम जैसा कोई मुक्कमल रास्ता नहीं है। फिर भी गाँव में जाने -आने के लिए बसें हैं, टैक्सी-रिक्शा हैं वगैरह-वगैरह । गाँव तक पहुँचने में आप पसीने-पसीने हो जाएँगे, मात्र चौदह किलोमीटर की दूरी आपका घण्टा- डेढ घण्टा वक्त खा जायेगी ।

style="text-align: justify;">साँझी विरासत और सामजिक समरसता का एक उदाहरण

आम कहावत है कि वक्त के साथ – साथ जमाना बदल जाता है, लोग बदल जाते हैं और बदलने लगते हैं इतिहास-भूगोल। मगर कुछ अपवाद भी होते हैं जिन्हें वक्त की मार भी नहीं बदल पाती। यों कह लें कुछ दरख्त ऐसे होते हैं जो प्रचंड ऑधियों में भी तने खड़े रहते हैं अपने पाँवों पर। शायद, उनकी परवरिश कुछ खास होती है। संस्कारों का खाद-पानी उन्हें हर बला से बचाये रखता है। फिर चाहे वो पेड़ हो या गाँव।

दक्षिण से उत्तर दिशा के दाँयी ओर बसा यह गाँव बीस-पच्चीस साल पहले घने बागों के कुहरे में ऐसे छपा रहता था जैसे गहरे बादलों के बीच चाँद आँख मिचौली कर रहा हो… आम-अमरूद के बड़े-बड़े बाग थे जिनमें दिन में भी अँधेरा मालूम पड़ता था । कैंथा,जामुन के बड़े – बड़े दरख्त थे।करौदा नीबू और ऑवला के फल गुच्छे के गुच्छे लटके रहते थे। हर मौसम में बाग गुलजार रहते ।

चौतरफ़ा खुशबू के बादल उड़ते रहते हरदम। मौसमी फलों की भरमार थी। आम-अमरूद, बेर,जामुन तो भरपुर थे। आँवला, नीबू, करौंदा खूब पके पकाये होते थे। मानो फल मण्डी गाँव का हर बाग बगीचा था। चाहे वो पालीवाल का बड़ा बगैचा हो या बुधौलिया का बाग। दोनों तालाब के इस ओर उस ओर बसे थे….यहीं से बागों की कतारें बनी थीं हर तरफ इधर-उधर बागों की एक लम्बी चंद्राकार श्रंखला गाँव के चारों ओर फैली थी। जिन्हें वक्त के धारदार कुल्हाड़े निगलते गये।

मै समय हूं…. मै रामशंकर भारती हूं …..
मैं क्योलारी गाँव में जन्मा। इसी गाँव की सौंधी माटी ने मेरे पैरों में ताकत बख्शी।विकट विपत्तियों से पंजा लड़ाते मैंने गाँव को करीब से देखा ।शक्ति और प्रेरणा की साकार तस्वीरें देखीं । संवेदना का संसार देखा है । लोकरस का अथाह सागर देखा है ।लोक जीवन के अमृत को जी भर छका है। हरयारों के फागों के महकते रंगों में सरावोर हुआ हूँ .. दिवारी के ढोल की रिदम के संग-संग दिवारी खेली है..यानि घण्टियाँ और जंग्गे कमर में बाँध कर दिवारीनाच नाचा हूँ चकरी की तरह ,लकड़ी लडायी है।

राधेकिसुन और बघेले बब्बा के हिंचुकी भरते, साँस खींचते चौबोला सुने हैं..” हो…हो…हो राम नगरिया राम की, जाको नौनौ देस….” महीने की हर सुदी चौथ को कारसदेव के थान पर ढाँक बजती देखी है..डिग डिग सुनी है। गोटें गबते देखी हैं, ग्यासी भगत पर कारसदेव महाराज की सवारी आते देखी है, मन्नतें माँगते लोग-बाग देखे हैं और देखा है भोले -भाला विश्वासी मन। अडिग, अटल किसी पहाड़ की तरह। यह जो लोक विश्वास है, आस्था है भरोसा है, यही लोक की अकूत संपदा है। यही लोक संस्कृति है जिस में न नुकुर की रत्ती भर जगह नहीं है ।

इसी विश्वास से लोक देवताओं की पूजा-पाठ की एक समृद्ध परंपरा है जिसमें कभी हरदौल पूजे जाते हैं तो कभी देवबाबा,मेहराम बाबा,ठाकुर बाबा और मेहतर बाबा की मान-मनुअल की जाती है ,मैड़े पर बीजासेन का खप्पर भरा जाता है…गाँव को हर अला-बला से बचाने के लिए सभी की घाट पर पूजा करने आते हैं घटोई बाबा की। बे सबकी हरी करते हैं दुःख हरते हैं ….क्या गरीब-गुरबा और क्या अमीर -उमरा।

सभी यहाँ सर नवाते हैं। गाँव की ये जो बहुरंगी-बहुवर्णी जीती जागती तस्वीरें और वेशकीमती विरासतें है ये सभी ही अनमोल हैं। इनका कोई मोल नहीं । कोई दाम नहीं। बस सभी इनको जी भरकर जीते हैं, प्राणों में संजोये रहते हैं। यह जो जीवन संजीवनी है आज भी मेरी साँसों में कस्तूरी की तरह महकती है, जहन में महफूज़ है, दिल में तरोताजा है। इसी सौंदर्यपूरित अनुभूति संपदा को मैं विस्तारित कर रहा हूँ … पोर-पोर जी रहा हूँ अनवरत…..

हां मै समय हूं…. मै क्योलारी गांव हूं ….!!!

दिखाता हूं  वो गाँव जिसके चारों दिशाओं में भगवान शिव के चबूतरे स्थापित हैं। आप पूर्व दिशा में प्रवेश करें तो वहाँ दाऊ साहब के बाग के सिरे पर बड़े हनुमान मंदिर के साथ ही शिवजी विराजमान हैं..यहीं भक्तों और सेवादारों में शामिल हैं मुल्ला वशारत खान..जो पक्के नमाजी हैं…और सच्चे मुसलमान इस्लाम को पूरी तरह से जीते हैं…कुरान व हदीस को उनसे बेहतर समझने वाले कम ही मिलेंगे।

इस्लामपरस्त होने का नूर उनके चेहरे पर चमकता है। ईश्वर और अल्लाह उनकी नज़र में एक है। सब मालिक के बन्दे हैं, सब में एक ही नूर समाया है। यही करणों से उनकी अपनी एक खास पहचान है। वो मस्जिद से कौमी एकता की तकरीरें करते हैं तो मंदिर जाने में उन्हें कोई गुरेज नहीं। भागवत हो या भण्डारा सभी में बड़-चड़ कर भागीदारी, जहाँ कम वहाँ हम.. का भाव लेकर आज भी वह अपने उसूलों पर कायम हैं। इंसानियत और इस्लाम को जीते हुए …।

मै समय हूं…. मै क्योलारी गांव हूं ….!!!

उत्तर दिशा में हल्के महाते और गुसाईं महाराज के बाग हैं जिनमें शिव मंदिर हैं, पश्चिम में रामदास कुशवाहा जी के बाग में तथा तथा दक्षिण में बड़े स्कूल के पास व बच्चीलाल राठौर के बाग में शंकरजी बिराजमान हैं। इन शंकरजी के चबूतरों का सौ साल से भी पुराना इतिहास है।शायद इसीलिए क्योलारी का दूसरा नाम कैलाशनगर रखा होगा…..। गाँव की चारों दिशाएँ शिवत्व से भरी रहीं हैं।

हां मै वो समय हूं…. मै क्योलारी गांव हूं ….!!!
जहां गाँव अगड़े, पिछडे, दलित और मुसलमानों का मानो एक बड़ा संयुक्त परिवार है। कोई भेदभाव नहीं, शोषण-उत्पीड़न नहीं.. सबकी अपनी-अपनी पौरी। सभी लम्बरदार, सभी हरकारे, सभी मस्त और व्यस्त। किसी की शह नहीं किसी की मात नहीं। न ठाकुर का कुँआ, न मुखिया का हैंण्डपम्प। मौहर्रम के ताजियों में क्या पण्डित, क्या ठाकुर, सातों जातों के लोग मातम मनाते हैं, जहाँ बली का ताजिया है तो उसी के साथ लला (पंडित ) का भी ताज़िया है, अहमद के ढोल के साथ परमाईं(हिन्दू) की नगडिया भी है।

और तो और गाँव के राजमंदिर की दीवार से सटे मुस्लिम परिवार जो पुश्तों से बसे हैं…कभी ऐसा नहीं हुआ कि किसीने कोई माँस का टुकड़ा या हड्डी मंदिर के आस-पास भी फेंकी हो जब नल नहीं थे, मंदिर के कुँआ से सभी नट मुसलमान तो पानी भरते ही थे…समाज के सबसे नीची पायदान में आने वाले मनोहरे व श्यामा बरार भी पानी भरते थे । न उनको कभी पुजारी महाराज ने रोका और न कभी पूज्य पंडित जी ने।

ये उस युग की बातें हैं जब छुआछूत चरम पर था। सामंती दौर था। जमींदारों की तूती बजती थी। मगर ये सभी बुराइयाँ गाँव से डरती थीं कोई छूत-अछूत नहीं ,हिंदू-मुस्लिम का झगडा नहीं …. उस्ताद मेंहदी हसन साहब रामलीला में आरती गाते थे….जेहि सुमरत सिद्ध होय……..और कभी नक्कारे पर त्रिताला की परनें बजाते तो कभी करनाट् पर सुंदर रघुवंश कुमार के गुण गाते….. रामदरबार की आरती उतारते ।

आज भले ही मेंहदी हसन मौजूद नहीं है मगर उनकी रवायतें और साझा विरासतें आज भी हँसती हैं कभी मंदिर के शिखर कलश से, तो कभी मस्जिद की ऊँची मीनारों से। हिन्दुओं की घनी बस्ती में मस्जिद आज भीआबाद है ।न किसी को अज़ान से तकलीफ है न नमाज से और न मंदिर की आरती से। होली की मस्ती हो या फिर ईद की पाकीज़गी सभी में सब शामिल जिंदगी के सभी रंजो-गम को ताक पर रख कर।

सुरीलों का गाँव … क्योलारी कल
संगीत सिर्फ एक कला मात्र नहीं है बलिक इसका स्थान ललित कलाओं में सर्वोपरि है।शायद इसी सत्य को स्थापित करने के लिए वैदिक परंपरा में सरस्वती माँ वीणावादिनी हैं, श्रीकृष्ण बाँसुरी वादक हैं, नृतक हैं, शिव डमरु बजाते हैं, नारद इकतारा पर नारायण-नारायण गाते हैं। यों तो ‘कल’धातु से कला शब्द की व्युत्पत्ति हुई है। जिसका अर्थ है सुंदरता से किसी कार्य को करना।सौंदर्यपूर्ण सृजन ही कला है। हमारी चौसठ कलाओं में संगीत सर्वोपरि है।

गायन, वादन,नृत्य की त्रिवेणी ही संगीत-सिंधु है।संगीत के स्वर जब सधते हैं तब मानव मन ही नहीं पशु-पक्षी भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहते। हमारे आचार्यों ने स्वर को वैखरीवाणी का अंग माना है। संगीतकार स्वर को ईश्वर मानकर साधना करता है। ऐसे ही स्वर-साधकों की जिंदगी केअनेक राग-रंग मेरे अपने गाँव क्योलारी की गलियों में बिखरे हुए हैं।

जिनमें ध्रुपद गायक उस्ताद मेंहदी हसन हैं, रामलीला व्यास मास्टर गंगादीन हैं, आकाशवाणी के गायक सरयूप्रसाद भारती हैं, ढोलकिया बाबू मास्टर और हरफनमौला कलाकार रामबिहारी पांचाल, निरंजन मंगल दादी, राधेश्याम रामायणी बद्रीप्रसाद श्रोत्रिय हैं। प्रेमनारायण तिवारी, प्रभुदयाल खेमरिया, हल्के नेता हैं।

लोकगायन को अपनी अदायगियों से दमदार करते रहे नाचते-गाते हुए उनमें संतराम, भागीरथ, पंचोले, देशराज, मंगली, हरजू, मन्ना जैसे दिग्गजों की एक लंबी श्रंखला है जो संगीत की एक जीवंत परंपरा इहलोक में छोड़कर परलोक में भजन गा रही है। महिला-मण्डलियाँ में अगुआ रही कडूरावाली काकी हैं, गोरावाली आजी हैं, जालौन वाली दादी हैं, उपाध्यायिन कक्की और अनेक भावभीगी सखियाँ हैं। अभिनेताओं में अपनी धाक जमाने वाले एक से बड़कर एक हैं।

गाँव के पहले व्यक्ति नेतराम पालीवाल से लेकर आखिरी कतार का अंतिम व्यक्ति श्यामा बरार तक की जो रसरंगी कतार है अद्भुद है, अनोखी है। रावण का चरित्र को मंच पर जीवंत करने वाले स्व.छुट्टे पैमरिया, ताड़का का विकराल-भयावह रूपधरे रामस्वरूप स्वर्णकार हैं, परुषराम बने पालीवाल जी हैं, ताँती सेठ, हरगोविंद खैमरिया, बद्रीशरण मिश्रा, शिव- नारायण त्रिपाठी हैं, गजराज निरंजन हैं, रामस्वरूप जी स्वर्णकार, बंटे विश्वकर्मा, राम गोपाल श्रोत्रिय मूलचंद्र शर्मा, राधेश्याम पुजारी और रामेश्वरपाल जैसे जमीन से जुड़े और भी गाँव की नाट्यशाला के अनेक कलावंत थे जो अब उस दुनिया के किरदार हो चुके हैं जहाँ हम सबका सूत्रधार बैठा है। उसी के निर्देशन का बोलवाला है यहाँ-वहाँ। उसकी ही स्क्रिपट के सभी अभिनेता हैं… गाँव के इन कीर्तिशेष कलाकारों की, उनकी पावन स्मृतियों को शत-शत प्रणाम। राम-राम ।

सुरीलों का गाँव … क्योलारी आज
आज भी गाँव में संगीत और अभिनय से जुड़े पचासों कलाकार हैं। जिनमें दर्जनों हरमोनियम-ढोलक वादक हैं,  कुछ नक्कारची हैं, तबलावादक हैं, अलगोजा, बाँसी और महुअर बजाने वाले हैं, सितार पर हाथ साधने वाले हैं और कवि, लेखक पत्रकार कभी लोक मनोरंजन का सबसे सुलभ और सस्ता साधन रही नौटंकी कंपनी के मालिक और डायरेक्टर रहे अभिनेता ग्याप्रसाद कुशवाहा हैं । सियाशरण बुधौलिया, बुद्धसिंह निरंजन, रामलीला मंचन में मोहन शर्मा बंधु,गायन में ओमप्रकाश सूरदास, संगीतज्ञ भगवान सिंह राही, जगदीश भारती, अत्रि शिकंपनी, रमाकान्त शर्मा, प्रेमनारायण सविता, रामकुमार राठौर,सत्यप्रकाश जाटव इत्यादि।

वादन में बैजनाथ जाटव, म्.शकरखान महम्मद रफी गणेश – जाटव ,परुखराम ब्रास बैण्ड और इसी परंपरा के अन्य कई देशी कलाकार हैं जो अनेक मंचों पर अपने गायन-वादन और अभिनय का मदमस्त जादू बिखेरते रहते हैं और गाँव में भी। फिल्म के क्षेत्र में इन्दल सिंह हैं,अखिलेश चौधरी हैं,नृत्य में कोरियोग्राफर हिमांशु भारती हैं।कला जगत में सुनील कुमार गौतम दर्राष्ट्रीय चित्रकार हैं।इन सबके अतिरिक्त और भी नाम हैं जो कला ही जीवन है ‘के मंत्र में विश्वास करते हैं। स्वांतःसुखाय होकर संगीत को जीते आ रहे हैं…!

एक साथ इतनी ललित कलाओं के साधकों का एक ही गाँव में होना निश्चित रूप से साधारण बात नहीं है। यह जो असाधारणता है साधारण गाँव की वह प्रणम्य है अभिनंदनीय है।नमन इस सांस्कृतिक विशिष्टता को। गाँव की रसवंती धारा अपनी सकारात्मक सुगंध के साथ अनेक अभावों को ओढे हुए भी अपने सुख बाँटते रहती है हँस-हँस कर ढोल-मंजीरे की जुगलबंदी की तरह मंदिर की घण्टियों की तरह मसिजद से आती अज़ानों की तरह। आँचलिकता को समर्पित सुकवि श्री भवानीप्रसाद मिश्र की लगभग साठ साल पहले गाँव पर लिखी इस कविता के कुछ अंश अपने तेवर के साथ यहाँ दे रहा हूँ, जिसमें गाँव के सांस्कृतिकमूल्यों के क्षरण पर गहरी चिंता जाहिर करती है …

आज गाँव के ये कलाकार भले ही कोई बड़ी पहचान ना बना पाए हो, किन्तु हकदार उसके जरूर हैं। सबसे बड़ी विडम्बना तो ये है कि जिले का सांस्कृतिक विभाग भी इस गाँव के बारे में कुछ नहीं जानता है और जानना भी नहीं चाहता है।इस आलेख के लेखक ने “नौटंकी कला केन्द्र, बाँदा” के संस्थापक और संगीतकार अब स्वर्गीय डा.कृष्ण स्वरूप सक्सेना ने क्योलारी गाँव के संगीतकारों व अन्य कलाकारों के विषय में शासन को अवगत कराया था।

संस्कार भारती जैसी शुद्ध सांस्कृतिक संस्था के अगुआ और लोकमंगल के संस्थापक श्री अयोध्याप्रसाद कुमुद जी ने उस समय इस गाँव को लेकर गहरी रुचि ली थी, फिर पता नहीं क्यों उनकी रुचि अरुचि में बदल गयी। खैर जो भी हो आज भी वही गाँव है, वही अंदाज है, उसी गांव की की माटी में आज भी वही संगीत मौजूद है, हवाओं में भी वही खूब सीलापन है, धूप में अनेक चटक रंग बिखरे हैं, पानी में कल-कल करते गंधगीत हैं, अभिनय के आकाशी इंदधनष है, सृजन के सारस्वत सोपान है,और हैं लोकमंगल के अनेक आराधक। बस, कमी है उनके विशुद्ध संरक्षण की……!

बहुत कुछ भले ही बदल गया हो गाँव में। पर सबसे जो बड़ी चीज है गाँव की सांझा विरासत, वह आज भी कायम है। जहाँ सबेरे मिलने पर रहमान राम-राम करते हैं और मैं उन्हें सलाम करता हूँ …. राम और रहमान की एकता में ही शायद सबका भला है। हिन्दुस्तान के नक्शे पर क्योलारी जैसे गाँवों की आज सख्त जरूरत है। जहाँ सांझा विरासत की खुशबू से सब लवरेज हैं, अलमस्त हैं। शायद इंसानियत का यही तकाजा है और वक्त की जरूरत भी….।

कलाधर्मी क्योलारी के  विकास को लेकर क्या कहते हैं गाँव के युवा
प्रदीप कुमार पटेल ( दीपू )
     गाँव के बहुमुखी विकास के लिए समर्पित युवा समाज सेवी प्रदीप कुमार पटेल क्योलारी गाँव के निवासी होने का फर्ज  पूरी तरह से निभाने में लगे हुए हैं। उनका समूचा ध्यान गाँव की सड़कों , तालाबों व पहूँच मार्ग को  व्यस्थित बनवाने की ओर है । वह चाहते हैं कि गाँव से खेत – खलिहानों लेकर  शहर तक जाने – आने के लिए समुचित  सड़कें बनें। अच्छे रास्ते हों ।

गाँव की गलियों को पक्का बनाकर जल निकासी समुचित प्रबंध हो सके। जिससे गाँव में गंदगी – कीचड़ आदि से मुक्ति मिले। लोग स्वच्छता , स्वास्थ्य तथा पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक बनें। इसके लिए उन्होंने  अपने व्यक्तिगत प्रयासों से शासन – प्रशासन व जनप्रतिनिधियों से मिलकर गाँव में 1.50 करोड़ रुपये की लागत से पिछले चालीस साल से उबड़ – खाबड़ पड़ी मुख्य सड़क का निर्माण  करवा दिया है।

गाँव के गलियारों , गलियों आदि का निर्माण भी करा चुके हैं। उच्चशिक्षा प्राप्त दीपू पटेल गाँव के विकास के लिए हर संभव कार्य करने में लगे हुए हैं। उनका मानना है कि हमारे गाँव में अनेक प्रतिभाएँ हैं जिन्हें संरक्षण देने में भी वह प्रयासरत हैं। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती…..पटेल भी परास्नातक डिग्रीधारी हैं वह भी उनके साथ गाँव की सामाजिक समस्याओं के समाधान के लिए संघर्षरत हैं। गाँव के विकास के लिए वे महिलाओं को भी  प्रेरित कर रहीं हैं।

डा. असेन्द्र राव जी  
जाटव समाज के जिलाध्यक्ष डा. असेन्द्र राव जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी युवा समाजसेवी हैं। गाँव के व्यक्ति की हर समस्या का समाधान ढूँढ़ने में कुशल डा.असेन्द्र राव संगीत व साहित्य के भी पारखी हैं। आपकी पहचान कुशल मंच संचालक के रूप में बुंदेलखण्ड भर में है। गाँव के विकास की अभिधारणाओं लेकर उनका मानना है कि शिक्षा ही विकास का मूलाधार है।


वे चाहते हैं गाँव के बच्चों को उच्चस्तरीय , गुणवत्तापरक आधुनिक विज्ञान आधारित शिक्षा गाँव में ही प्राप्त हो , जिससे गाँव के बच्चे आगे चलकर देश के एक सफल नागरिक बन सकें। डा.असेन्द्र राव की यह सोच निःसंदेह अनुकरणीय और अभिनंदनीय है। वह अपने व्यक्तिगत प्रयासों से सर्वांगीण विकास की शिक्षा प्राप्ति के लिए सामाजिक जागरूकता पैदा करने के पुण्य कार्य में  निरंतर लगे हुए हैं।

डा. दीपक राजा
   वंचित – शोषित व हाशिये के समाज के उत्थान के लिए मशाल बनकर अँधेरों को मार भगाने में लगे डा. दीपक राजा पत्रकारिता में डाक्टरेट हैं।आप पिछले 10 सालों से अपनी प्रतिष्ठित मासिक पत्रिका ‘ हाशिये पर ‘ का संपादन कर रहे हैं। डा. दीपक राजा का मानना है कि अभावग्रस्त , मजदूर व अत्यंत निर्धन वर्ग को मुख्यधारा में लिए बिना समाज के विकास की परिकल्पना अधूरी है। अभावग्रस्त समाज को रोटी , कपड़ा व मकान  का यदि मुक्कमल इंतजाम हो तो यह मेहनतकश समाज अपने बूते पर आकाश छूने की ताकत रखता है। गाँव के लिए , गरीबों के लिए सदैव कंधों से कंधा मिलाकर साथ चलने वाले  डा. दीपक राजा कहते हैं अंधेरे को कोसने से कुछ नहीं होगा हमें अँधेरों को भगाने के लिए दीये जलाने होंगे , तभी हमेरा गाँव को जगमग रोशनी मिलेगी और विकास सूरज अपनी चमक बिखेरेगा।

अत्रि कुमार त्रिपाठी
       भजन गायक व रामकथा प्रवक्ता अत्रि कुमार त्रिपाठी का मानना है कि गाँव के विकास के लिए हमारे जनप्रतिनिधियों की भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। प्रधान से लेकर विधायक , सांसद तक के हमारे जो माननीय जनप्रतिनिधि हैं उन्हें गाँववालों के साथ बैठकर चर्चा करनी चाहिए तथा गाँव की जो समस्याएं हैं उनका समाधान प्राथमिकता के आधार पर हो। चूँकि मैं संगीत से जुड़ा हूँ इसलिए मेरा मानना है कि गाँव के कलाकारों की कलाओं के संरक्षण के लिए गाँव में नाट्यशाला , रंगमंच आदि की स्थापना हो जिससे हमें अभिव्यक्ति का अवसर प्रदान हो सके।

वीरसिंह बुंदेला
    फाइन आर्ट से जुड़े जुझारू व्यक्तित्व के स्वामी वीरसिंह बुंदेला वीरू भाई गाँव की विकास यात्रा में हर कदम साथ चलनेवाले खुद्दार व्यक्तियों में शुमार हैं। वीरू भाई की सोच है कि गाँव में रोजगार की कमी है जिसके कारणवश गाँव से लोगों का पलायन हो रहा है। यह समस्या भी गाँव के विकास में वाधक है। गाँव के जो श्रमजीवी हैं तथा बेरोजगार लोग हैं उन्हें यदि गाँव में ही रोजगार मिलता है तो हम उनके पलायन को रोक सकते हैं। इसके लिए ग्रमीण कुटीर उद्योगों की स्थापना यदि गाँव में हो तो गाँव के विकास के साथ ही बेरोजगारी की भी समस्या का समाधान हो सकता है।

रामजी कुशवाहा
लोकसंस्कृति के संस्कारों में पले बड़े रामजी कुशवाहा उच्च प्राथमिक विद्यालय में कला अनुदेशक हैं। गाँव की सौंधी माटी को सदैव पूजने वाले रामजी कुशवाहा जहाँ कला के चितेरे हैं वहीं आधुनिक कम्प्यूटर साइंस के भी वे कुशल जानकार हैं। वह अपने ज्ञान और कला का समूचा उपयोग गाँव में कर रहे हैं।
रामजी का मानना है कि गाँव में शिक्षा के तो पर्याप्त संसाधन हैं। अनेक विद्यालय हैं। किंतु क्योलारी ग्राम पंचायत में तीन गाँव जुड़े हैं । इतनी बड़ी आबादी के गाँव में कोई सरकारी अस्पताल नहीं है। न ही अन्य कोई छोटी डिस्पेंसरी भी। जबकि अन्य छोटे गाँवों में यह सुविधा उपलब्ध है। क्योलारी गाँव में स्वास्थ्य केंद्र की स्थापना होने से पड़ोसी गाँव करिहैयापुर , बदँउवा , हिड़ोखरा , बिरौरा आदि गाँववालों को स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ मिल सकता है। ग्रामीण विकास के लिए यह पक्ष भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

हिमांशु भारती
यशराज फिल्म्स  जैसे बड़े  फिल्म संस्थान से जुड़े डांस कोरियोग्राफर हिमांशु भारती भी क्योलारी गाँव की सांस्कृतिक परंपरा की युवा पीढ़े के उभरते हुए कलाकार हैं। उनका गाँव को लेकर अपना स्पष्ट नज़रिया है। उनके अनुसार गाँववालों का अपनी सांस्कृतिक विरासत को लेकर जो मोह था वह अब धीरे- धीरे टूटता जा रहा है। यह टूटन कहीं न कहीं हमारे लोकरस को , लोकसंस्कृति व लोकोत्सवों की अखण्ड माने जानेवाली परंपरा को खण्ड – खण्ड कर रही है । यदि हमने अपने तीज – त्योहारों को फिर से सामूहिकता के साथ मनाना प्रारंभ कर दिया तो निश्चित मानिए गाँव की आवोहवा में बदलाव आ जाएगा। यही बदलाव गाँव के विकास में मील का पत्थर साबित होगा। ऐसे ही और भी अनेक उत्साही युवा और समाज के अन्य सम्मानीय लोग  गाँव में हैं जो सभी प्रकार से गाँव की खुशहाली के लिए समर्पित हैं।

सुरीलों का गाँव – क्योलारी
जनपद – जालौन, तहसील- कोंच

* कलासाधकों की सूची *
कलाकार का नाम और विधा
1- डा.रामशंकर भारती   (साहित्य व लोक संस्कृति)

2- भगवान सिंह राही (शास्त्रीय व लोकसंगीत, काव्य )
3 – सुनील गौतम    ( राष्ट्रीय स्तर के चित्रकार )
4- अखिलेश चौधरी  ( फिल्म लेखक / निर्देशक )
5- इन्दल सिंह बाबी  ( फिल्म अभिनेता )
6-  दीपक राजा      ( पत्रकारिता )
7- जगदीश कुमार भारती (सुगम संगीत गायक)
8- मुहम्मद रफी      (गायन )
9- मोहन शर्मा        ( रामलीला अभिनेता )
10- अत्रि तिवारी।     (गायन )
11- प्रेमनारायण सविता  (ढोलक वादन )
12- मु. सकूर             ( ढोलक )
13- धनीराम कुशवाहा    ( ढोलक )
14- रामकुमार आचार्य    ( गायन )
15- बुद्धि सिंह निरंजन    ( गायन , नौटंकी )
16- सियाशरण बुधौलिया  ( अभिनय रामलीला )
17- मोहन बुधौलिया       ( राम के अभिनेता )
18- अशोक कुमार पालीवाल  (अभिनय रामलीला )
19- उमेश शर्मा           ( अभिनय रामलीला)
20- रमाकांत शर्मा        ( संगीताचार्य )
21-राधेश्याम पुजारी      ( रामलीला )
22- उमराव सिंह निरंजन (रामलीला, नौटंकी )
23- बैजनाथ भारती (ढोलक, नगाड़ा )
24-ओमप्रकाश सूरदास (गायन, वादन )
25 – श्रीमती रचना ( लोक गायन )
26 – जितेंद्र बुधौलिया ( गायन )
27- अजय जाटव  ( गायन )
28 – सीताराम अहिरवार ( गायन )
29- सरमान सिंह कुशवाहा ( गायन )
30 – रामेश्वर पाल  ( गायन )
31- केशराम राठौर ( गायन )
मौनिया नर्तक,ढ़ांक वादक , गोट गायक तथा लोकसंगीत एवं लोक-संस्कृति से जुड़े कलाकारों की सूची – ग्राम कैलाश नगर (क्योलारी) जिला जालौन उ०प्र०

मौनिया नृत्य कार
1 -सर्वश्री मुन्नीपाल

2 – रामबाबू जाटव
3 – हरीसिंह,जाटव
4 – कैलाश कुशवाहा भगत
5 – गंगोले कुशवाहा
6 – कैलाश सविता
7 – जसवन्त कुशवाहा
8 – सुरेन्द्र कुमार जाटव
9 – रामबाबू रजक
10 -धनीराम कुशवाहा (ढोलक वादक )

गोट गायक तथा वादक
1 – मूलचंद पाल (भगत)

2- कलू भगत
3- खिलौने कुशवाहा
4- राधे कुशवाहा
5- मुन्नीलाल
6-हरीराम कुशवाहा (खेरापति)
7- हरीराम कुशवाहा
8- कैलाश भगत
9- रामदास कुशवाहा
10- रामबाबू सविता
11- मुन्नी पाल

लोकसंगीत कलाकारों की सूची-
1 –  सर्वश्री रामेश्वर पाल

2 –  ओमप्रकाश बुधौलिया
3 –  रामकेश प्रजापति
4 –  केशराम राठौर
5 –  जगदीश जाटव
6 –  रामकुमार राठौर(बबलू)
7- छोटे अहिरवार
8- गणेश जाटव
9-  किशोर कुशवाहा
10- सगुनसिंह राठौर
11- रामकुमार राठौर (आचार्य)
12- धनीराम कुशवाहा ( ढोलक वादक)
13 –  अत्रि तिवारी
14 -प्रेम नारायण सविता (ढोलक)
15 – जितेन्द्र बुधौलिया
16- बैजनाथ जाटव
17- रचना जाटव
18- अजय जाटव
19 – मुहुम्मद रफी
20- बुद्ध सिंह निरंजन
21- सीताराम अहिरवार
22-सियाशरण अहिरवार
23-अखिलेश कुमार चौधरी
24-सरमान सिंह कुशवाहा

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

 

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