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Nai Ki Chaturai नाई की चतुराई

बल्लू नाई राजा के मुह लगा हुआ था उस Nai Ki Chaturai नाई की चतुराई बहुत मशहूर थी । विक्रम दीवान ने उसे इस बात पर डॉट दिया कि कभी भी तुम चाहे जैसी बात चाहे जब राजा से कह देते हो न समय देखो न बात समझते हो । दरबार में सभी के सामने डाँटने पर बल्लू  नाई ने अपनी तोहीन समझी और बदला लेने के विचार से विक्रम दीवान को नीचा दिखाने का मौका देखने लगा।

पूर्णिमा के दिन दरबार भरा हुआ था। राजा से नाई ने कहा हुजूर आपके पिताजी स्वर्गवासी हुए कितना समय हो चुका है तबसे अभी तक कोई खबर नहीं मिली है। दीवान से कहें कि वे राजी खुशी लेकर आयें। नाई  की बात सुन राजा ने दीवान से कहा शीघ्र जाकर पिताजी की खबर लाकर दो। दीवान ने कहा मुझ स्वर्गलोक की यात्रा के लिए किस प्रकार से जाना पड़ेगा। राजा ने कहा जैसे हमारे पिताजी गये हैं उसी प्रकार अर्थी पर बैठकर आप भी जायेंगे।

उस दिन दीवान बड़ी भारी चिन्ता में उदास होकर घर पर आ आये । तभी दीवान की साली राधा आकर मजाक करने लगी। दीवान जी, कुछ अधिक चिन्ता में थे। बोले मुझ कल ही मरना है उसने कहा क्या किसी ने मारने का बीड़ा उठाया है बताइये ऐसे राजाओं को तो मैं चटकियों में घुमाती हूँ। दीवान ने कहा-बल्लू नाई के कहने से राजा ने हमे कह  दिया है कि तुम स्वर्गलोक जाओ और हमारे पिताजी की खबर लेकर आओ मैंने कहा रास्ता बताओ कैसे जाय तो उन्होने कहा इसमें भी क्या कोई पूछने की बात है आप अर्थी लगवाईये।

राधा ने उत्तर दिया कि आप राजा से कहिए कि मुझ दस करोड़ रूपये चाहिए क्योंकि आपके पिताजी के पास जाना पड़ेगा। और अपने परिवार का भी कम से कम पांच वर्ष का खर्चा रखके जाना पड़ेगा। इधर अर्थी भी बनवाना है । ६ माह का समय लगेगा उसके कहे अनुसार दीवान ने राजा को यह समाचार सुना दिया तो राजा ने रुपये का इंतजाम कर दिया।

दीवान दस करोड़ रुपये लेकर अपनी ससुराल चले गये वहाँ आराम से रहे और इस तरह पांच माह गुजर गये। तब दीवान ने अपनी साली राधा को बुलाकर पूछा अब क्या होगा। बस एक माह बचा है राधा ने बताया कि आप शीघ जाकर शहर से शमशान घाट के अन्दर तक एक गुप्त रास्ता बनवा लो।

जहां पर आपका गुप्त रास्ता शमशानघाट में खुले, वहीं अर्थी के नीचे पोली और ऊपर से बारीक लकड़ी लगाना जिससे पतली लकड़ी टूटने पर आप अन्दर सुरक्षित गुप्त मार्ग से बाहर आ सके। आने के लिए इस शहर में एक चूड़ीदार पजामा, कुर्ता और बुर्का सुरंग के दरवाजे पर ही रखने के बाद अर्थी पर चढ़ना और सभी भाई बन्धुओं से राम नाम सत्य है कहकर बिदा होना।

आग लगने पर लपटें छूटे तभी लकड़ियों के नीचे पहुच जाना और तुरन्त ही नीचे के कपड़े पहिनकर बुर्का ओढ़कर अपने कपड़े साथ लेकर और प्रमुख द्वार पर पत्थर की चटटान को बन्द कर बाहर आकर भी गुप्त द्वार बन्द करके आप सीधे यहाँ चले आना। दीवान बढ़िया कपड़े पहन के चल दिए विश्वासी गुप्त मजदूरों से दीवान ने गुप्त रास्ता तैयार कराया जिससे कोई नहीं देख पाए एक दिन फिर दीवान राजा से मिले और स्वर्ग लोक जाने की तिथि घोषित कर दी। नियत दिन आया। अर्थी तैयार थी, अग्नि लगा दी गई, सभी के देखते-देखते अग्नि बढ़ी और आग की लपटें आकाश छने को थी।

उधर पतली लकड़ी पैर के बजन से शीध्र टूट गई और विक्रम दीवान ने नीचे पहुचकर कपडे बदले फिर बुर्का ओढ़कर सुरंग में चल दिया द्वार पर पाट ढाँप कर गुप्त मार्ग से बाहर आ गये और दीवान राधा से मिलने चले गये। बल्लू  नाई बहुत खुशी मना रहा था कि मैंने विक्रम दीवान को ऐसे दाव से मारा कि उसे मरना ही पड़ा वह राजा से बोला दीवान जी बहुत ऐंठते थे मैंने सारी ऐंठ मुह में ठूस दी। राजा ने कहा उसने मेरी आज्ञा का पालन किया है। नाई मनमार कर बोला जी हाँ पर “क्या वे लौटेंगे” ?

राजा ने कहा उसे कुछ भी नहीं हो सकता है वह एक ईमानदार व्यक्ति है । मेरा तो विचार है कि वह कितने दिन बाद भी आये अवश्य आयेगा । बल्लू नाई ने कहा जितने लोग अर्थी पर चढ कर गये हैं क्या आज तक कोई लौट कर आया है ?राजा ने कहा ये तो समय बतायेगा।

विक्रम दीवान  ने उस रुपये से परचून की दुकान खोल ली और एक  दिन विक्रम दीवान ने अपनी पत्नी से कहा कि अब मै  राजा साहब के यहां जाता हूँ। सुरेखा ने पति दीवान को देखा उसने छ: माह से दाड़ी नहीं बनवाई. न नाखून काटे थे। ये सब इतने अधिक बढ़ गये कि विक्रम पहचान में भी न आता था। ऐसी ही दशा में दीवान राजा साहब के दरवार पहने राजा साहब दीवान से मिलकर बड़े खुश हुए। नाई घबराया कि ये तो भस्म हो चुका था।

राजा साहब ने पूछा कि दीवान आप पिताजी से मिले वह क्या कह रहे थे राजा साहब वहाँ तो कोई भी यह पूछने  वाला नहीं है कि आपने पिताजी के लिए क्या किया, लेकिन स्वर्गलोक में तो चारों तरफ आपके स्वभाव, पराक्रम एवं धर्म की चर्चा हो रही है “दीवान साहब बोले”।

गाय सोने के सीगों और चांदी के खुरों सहित आपकी जय जयकार कर रही थी आपने वस्त्र दान किए, जमीन दान की आज उन्हें स्वर्ग का सच्चा सुख आपके द्वारा प्राप्त है दुख तो केवल भीषण एक ही है और उसी से आपको थोड़ा कष्ट होगा आपके पिताजी ने कहा कि रजऊ ने सब कुछ किया एक नाई का इन्तजाम नहीं किया । जाकर नाई को अवश्य ही उस्तरा लेकर भेजें । विक्रम दीवान ने उलटा दाँव चलाया और कुछ रुक कर फिर बोला, मैं जब से गया हूँ आप देख रहे। मेरी यह हालत हो गई है। मेरो दाढ़ी, मूछ,नाखून सभी बढ गये।

उन्हें सभी सुख  है बस दुख है तो सिर्फ नाई का। मुझे जाने में तो थोडा परेशानी हुई  किन्तु आने में कोई परेशानी नहीं होती है। आपके पिताजी के पास चार परियां है । आपके पिताजी ने परी  को आज्ञा दी कि विक्रम दीवान को मृत्यु लोक में छोड़कर आओ, रास्ते में बड़ा आनन्द आया । इन्दलोक, शिवलोक सभी जगह घूमता हुआ यहाँ आ गया हूँ । ‘अब आप कल ही नाई को भेज दीजियेगा”।

राजा साहब ने बल्लू नाई को बुलाकर कहा सुनो कल ठीक दो बजे तम्हें जाना हैं दीवान जी,आप इनके लिए अर्थी तैयार करवायें । दुसरे दिन प्रातः ही लोगों को बुलाकर दीवान साहब ने लकड़ी मगवाकर अर्थी तैयार करा दी और ठीक दो बजे दोपहर में बल्लू नाई को बुलवाया। नाई रोता जाता था उसे अर्थी के ऊपर चढ़ाकर चिता पर ले गये और चिता में आग लगाई नाई ने कहा मैंने अपनी करनी की सजा पाई है । सबको सीताराम । कहा गया है जो दूसरों के लिए गडढा खोदता है वह स्वयं ही गडढे में गिरता है।

लेखक -डॉ. राज गोस्वामी

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