Mahalaxmi Ki Katha महालक्ष्मी की कथा

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जा कथा कैबे के पैला Mahalaxmi Ki Katha के दिना घर के बड़े बूढ़े सूक्ष्म रूप में ई कथा खौं ऐसी कन लगत ‘आमौती दामौती रानी पोला परपाटन गाँव मगर से राजा बम्मन बरुवा कहें कहानी सुनों हो महालक्ष्मी देवी रानी।’ हम से काते तुमसे सुनते सोरा बोल की कहानी सुनोहो महालक्ष्मी देवी रानी देवी रानी।

एक बड़े सिहिर में एक राजा रत्ते वे दानी ईमानदार भगवान के भक्त उर प्रजा को पालन करबे वारे हते। उनके राज में प्रजा खौ कोंनऊ तरा की तकलीफ नई हती। उनके राज में पूरी प्रजा आनंद के दिन व्यतीत करत ती। कजन उयै राम राज कई जाय तौ सोरा आना साँसी है। ऊ राजा की दो रानी हती। बड़ी रानी कौ नाँव आमौती उर हल्की कौ नाँव दामोंती हतो।

बिलात दिना नौ तौ दोई रानी सला सूद में बनी रई। कछू दिना में भीतरै खुटर पुटर होन लगी उर उन दोई रानियँन के मन में तनतन दरार सी होन लगी। उयै देख कै राजा कौ प्रेम पैलाँ तौ बड़ी रानी पै जादाँ बनो रओ। उयै देख कैं हल्की रानी मनई मन जरत बरत रतती। औरतन में जरबे बरबे की तौ आदत होतई है। हराँ-हराँ हल्की रानी नें राजा पै मोहिनी डारबौ शुरू कर दओ। वे रात दिनाँ उनई की सेवा खुशामद मे विवूचीं रत्ती।

उर उन्ने राजा पै ऐसौ जादू डार दओ कैं वे हल्की रानीं की उगईयँन के इशारे पै नचन लगे। हल्की रानीं दामौती अपनौ पूरौ राज चाऊत तीं। उन्नें राजा के कान भरबौ शुरू कर दो उर जब देखौ जब राजा खौं भड़काउतई रततीं। एक जनी कोऊ रैय। हम रै कैं बड़ी रबैं बताव कैं एक म्यान में दो तरवारें कैसे समैंय? राजा तौ हल्की पै भौतई रीझे ते वे उयै तौ छोड़ई नई सकत ते।

उन्ने हल्की रानी के कयै सैं बड़ी रानी आमौती खौं राजमिहिल सैं निकार दओ। बड़ी रानी तौ भौतई भोरी भारी हतीं। उन्नें राजा सै तौ कछू कई सुनी नई उर मौगी चाली राजमिहिल सैं निकर कैं एक टूटी-फूटी ढोरन की सार में रन लगीं। वे झारा बटोरी उर गोबर डारन लगी। राजमिहिल सैं उनें सेर भर नाज मिलत्तो उयै पीस कैं दो-चार ठौवा रोटी थोप कैं अपनौ पेट भरत रत्ती। उर हल्कीरानी दामौती सो ठाट सै राजा के संगै गुलछर्रे उड़ाऊत रत्ती।

ऐसई ऐसै कैऊ बरसें कड़ गई। बड़ी रानी रो-धो कैं अपनें दिन काड़त रई उर हल्की रानी राजा के राम करन लगी। तित त्योहारन पै बड़ी रानी की तौ पाँचई उगईयाँ घी में हती। मन कौ बनाव खाव उर बाँटो बिड़ारो। बड़ी रानी अमौती बड़ी चिन्ता में हती। चेहरा उदास हतो। वे कछू सोस नई पा रई ती कायकै उदनाँ मालच्छमी कौ त्योहार हतो। सोस रई ती कै आज कजन हल्की तनक कनक गुर बेसन उर तेल दै दैय तौ थोरौ भौत बना कैं महालक्ष्मी देवी रानी की पूजा कर दैंय।

कजन वा कछू दैय नई तौ करई का सकत? उदनाँ हल्की रानी नें थोरौ-थोरौ सब सामान पौंचा दअे सो उयै देखतनई वे भौतई खुश भई उर दिन बूढ़ई सैं अपनी कुठरिया में बैठकैं पूजा कौ सामान बनाउन लगीं। उन्नें सोसी कैं पैलऊँ पूजा कौ सामान बना लयें फिर सपरबे उर सोरा ढारन जैंय। तनक इँदयारौ होतनई लच्छमी जू एक बूढ़ी सी डुकरिया कौ रूप धर कै पैला तौ हल्की रानी के राजमिहिल के दोरै जाकै टेर लगाई।

कोआ है री भीतरै आवाज के सुनतनई हल्की रानी की दासी बायरें कड़ी। डुक्को कन लगी कैं हम तुमाई रानी की मौसी आय। बिलात दिना सें अपनी मौड़ी खौं देखो नई तो सो ऊसें मिलबे आ चले आयें। ऊनें जाकै रानी से कई के चीथरा पैरे लठिया लयें बायरें एक डुकरिया ठाँढ़ी हैं। उर वा कै रई कैं हम तुमाई मौंसी आँय।

सुनतनई हल्की रानी खौं गुस्सा आगई उर उन्नें अपनी दासी सैं कई कै तुम जाकैं ऊ डुकरिया सैं कै दो कै हमाई कोऊ मौसी नइयाँ। हमें लजाबे खौं बरस दिना के दिन इतै कायखौं आगई? जाव कोनऊ और घर देख लो। लच्छमी जू जातौ जानतनई हतीं कै घमण्ड के मारैं अब उयै अपनें बिरानें की कोनऊ पैचान नई रई। वे तनकई देर में लठिया टेकत बड़ी रानी आमौती की झुपड़िया के दोरै, पौंच गई।

उन्नें बायरई सै टेर लगाई कैं को आहैरी घरै वे तौ ऊ फुट्टा घर में अकेलिअई हतीं। पूजा कौ सामान बनावे में बिबूची तीं। उन्नें भीतरई सैं कई कैं कौआ है बायरें। डुक्को बोली कैं बेटा हम तुमाई मौसी आँय हम तुमसै मिलवे खौं आये। इत्ती सुनतनई वा अकबका कै दौरी उर बायरैं आकैं डुक्कौ के गरे सैं चिबककैं बड़ी देर नौ रोऊत रई। उर बोली कैं मौसी तैने मोरी बिलातई दिनन में खबर लई। आज महालक्ष्मी कौ दिन है। अच्छे मौका पै आई मौसीं। मोरो अकेलै ई झुपड़िया में मन नई लगत तो।

चलो भीतरै हल्की रानी ने थोरक सौ सामान दओ तो सो थोरक सो पूजा कौ पई पकवान बना रई ती। इत्ती कैकैं बेहात पकरकै डुक्कौ खाऊ भीतरें लुआ गई। अच्छी तरा सैं उने बोरा बिछाकै बैठारो। उर फिर अपनी मौसी के पाँव मीड़न लगीं। मौसी तुम हार गई हुइयों। डुक्को के भीतरे पौंचतनई वौ फूटौ, घर जगर-मगर हो गओ। तनक बैठकैं मोसी कन लगी कैं बेटा पूजा की बेरा होबे वारी है। तुम जाव उर नदिया के घाट पै अच्छी तरा सैं सपर खोर आव। सोरा ढार आव।

देखौ तुमें घाट पै लहर पटोरे पैरबे धरे मिलें उर सोने कौ लोटा धरो मिलें। सो तुम डराइयौ नई। अच्छी तरा सैं सपरकैं सोने के लोटा सैं सोरा ढार लिइयौ। उर फिर आराम सैं लहर पटोरे पैर लिइयौ। इतै की फिकर नई करियौ। हम इतै को सब सामान तैयार कर दैंय। तुमतौ सपर खोर कै पूजा करबै खौ आ जाव।

सुनतनई आमौती पगलयानी सी रै गई। उर कन लगी कैं ओ मौसी, तुम जा काया कै रई। हमाये भाग में लहर पटोरे उर सोने कौ लोटा काँ धरो। सालन सै तौ फटीं चिथरियाँ पैर रये उर एक फुट्टू गढ़ई सैं पानी पी रये। तुमाई कृपा सै कजन जौ सब मिल जाय तौ ईसैं बड़कैं का नइयाँ।

वे बोली कैं बेटा तुम जाव तौ, उतै तुमें वौ सब मिल जैय। सपर कै उलायती आ जइयौ। आमौती सोसत बिचारत जब नदियाँ पै पौंची तौ मौसी की बताँई सबई चीजें उतै धरी मिल गई। उनें देखतनई मौसी की बात साँसी मानकै अच्छी तरा सैं सपरो खोरौ। उर सोने के गढुवा सैं सोरा ढारे। लहर पटोरे पैर कैं हँसत मुस्क्यात मौसी खौं अशीशत जईसै अपने फुट्टा घर के दोरै पौंची सोऊ सकपकया कै रै गई।

उतै उनके फुट्टा घर कौ क्याऊँ पतोई नई चल रओ तों। ऊकी जगा पै आलीशान मिहिल ठाँढ़ो तो। आमौती सोसन लगी कैं का हम गैल भूल गये उर बिलबिचयाकैं बायरै ठाँढ़ी होकैं रै गई। इतेकई में भीतर सैं कड़कैं मौसी ने कई कैं बेटा। बायरै ठाँढ़ी तुम का कर रई। पूजा कौ पूरौ सामान बन गओ। डराव नई जौ तुमारऊ घर आय।

महालक्ष्मी देवी की तुमाये ऊपर पूरी कृपा हो गई। तुमने उनें मन सैं मानो सो उन्नें तुमें मानों। जौ तौ परस्पर कौ व्योहार है बेटा। ऐसी कानात कई जात कैं ‘दैपपइया सो लै पपइया’। आमौती मनधरयात सी भीतरै पौंची सोऊ देखतनई भौचक्की होकै रै गई। किले कैसी तौ बखरी ठाँढ़ी ती। सैकरन नौकर चाकर काम में लगे ते। पकवानन के ढेर लग गये। मौसी की कृपा सैं पूजा करबे के लाने इन्द्रपुरीसैं  ऐरावत हाती आ गओ। चारई तरपै शंख झालरें उर नगाड़े बजन लगे।

दामौती कौ घर छोड़कैं राजा उतई पौंचे। आमौती के संगै गाँठ जोरकैं लच्छमी जू की पूजा भई। उनकौ पूरौ घर जगर मगर हो रओ तो उर हल्की रानी दामौती के घर में इँदयारौ डरो तो। उर ऊके घर सैं राजा आमौती के नाँ भग आए ते। वा अकेली नाँय माँय भड़भेरी खात फिरन लगी। ऊनें सोसी कैं जौ का भओ, के ऊ मजूरन कौ घर तौ जगर-मगर हो रओ उर राजई इतै सैं चले गये। तनक देखैं तौ कैं ऊके घर में आज काया हो रओ है।

सामैं दोरे हुन तौ पैरेदारन के मारै भीतर घुस नई पाई। वा पाछै कै नरदा में हुन दै ढूँकी ओई बेरा रसोइया ने भीतर सै माड़ दै फेंको। माँड़ मौसे लगो सोऊ ऊकी थूतर सुगइया कैसी हो गई, उर वा हुर्रात उतै सै दै भगी। पूरे दिन रात भटकत फिरी। क्याऊँ कछू ठिकानौ नई लगों उर वे राजा उर रानी सो प्रेम सैं रन लगे। एक दिनाँ बड़े भुन्सराँ वा हुर्रात गंगा के किनारे पौंची उतै भोर सैं इन्द्र की परियाँ असनान करबे आऊत तीं।

उयै देखतनई वे जान गई कैं अरे जातौ मालच्छमी की निरासी आय। उन खौं दया आ गई। काऊ ने ऊपै बुलक दओ। काऊनैं पानी के छींटा डार दये।जीसै वा जाँ की ताँ सुन्दर रानी बन गई। अब का हतो दामौती अपनी गल्ती पै मनई मन पसतान लगी। ऊनैं बड़ी रानी नौ जाकैं उनके गोड़न पै गिरकैं माफी माँगी। उर उदनई सैं दोई रानी उर राजा एकई मिहिल में आराम सैं रन लगे। उर उनन ने जान लई कैं कभँऊ महालक्ष्मी कौ अपमान नई करो चइये। उनकी कृपा सैं सब दालुद्दुर दूर हो जात।

बाढ़ई ने बनाई टिकटी उर हमाई किसा निपटी।

महाकवि ईसुरी 

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