Homeबुन्देलखण्ड के साहित्यकारKaviraj Bihari Lal कविराज बिहारी लाल

Kaviraj Bihari Lal कविराज बिहारी लाल

Kaviraj Bihari Lal का जन्म संवत् 1946 में अश्विन शुक्ल दसवीं को प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में तत्कालीन रियासत बिजावर में हुआ था। यह बिजावर रियासत वर्तमान में जिला छतरपुर मध्यप्रदेश की एक तहसील है। आपके पितामह श्री दिलीप जी एक अच्छे कवि और बिहारी जी नामक राजमंदिर के प्रधान प्रबंधक थे।

कविराज श्री बिहारी लाल राजकवि टीकमगढ़

कविराज श्री बिहारी लाल जी की शिक्षा-दीक्षा विद्यालयों की सीमा के बाहर रहकर ही हुई। अनेक शिक्षा-विशारद्, उद्भट विद्वान् मुसाहिब श्री हनुमान प्रसाद जी ने आपको सभी आवश्यक शिक्षा दी और साहित्य एवं संगीत में दीक्षित किया। आठ वर्ष की अवस्था में ही तत्कालीन महाराजा बिजावर श्री भानु प्रताप सिंह जू ने एक दोहे की रचना पर प्रसन्न होकर कवि जी की उपाधि दी।

कहते हैं कि इसी आयु में महाराजा टीकमगढ़ महेन्द्र प्रताप सिंह जू ने अपने राज कवियों में स्थान दिया। तब से जीवनपर्यन्त ये टीकमगढ़ के राजकवि माने जाते रहे। आकर्षक व्यक्तित्व के धनी कविराज बिहारी लाल जी का शरीर हृष्ट-पुष्ट सुडौल और गठीला था। विशाल नेत्रों में प्रतिभा की आभा, चेहरे पर विरोचित स्वाभिमान और ऐंठी हुई पैनी काली मूछें उनके व्यक्तित्व को निखार देती थीं।

राजाओं और राजकुलों से निकट सम्पर्क होने के कारण वे राजोचित शिष्टाचार-व्यवहार, रीति-नीति और आचार विचार से भलीभांति परिचित थे। राजदरबारी-स्वरूप में उनके सिर पर बुन्देलखण्डी क्षत्रियों जैसा खिचा हुआ साफा, राजसी रेशमी अचकन, पैरों में जरीदार नुकीली पनहियाँ और कमर में लटकती हुई मखमली म्यान में तलवार रहती थी।

मन से संत प्रवृत्ति होने के कारण प्रौढ़ावस्था के द्वितीय चरण में वे सामान्य वेश-भूषा में ही रहने लगे थे। आचार्य केशव की परम्परा में बिहारी कवि ने पांडित्यपूर्ण साहित्य-सागर नामक रीतिकाव्य की रचना की। जिसमें लगभग 2000 छंद हैं। गागर में सागर को चरितार्थ करने वाले लगभग 700 पद की रचना की। कविराज ने 13-1-1961 को अपना नश्वर शरीर छोड़ दिया था।

कविराज बिहारी की निम्नांकित रचनायें हैं ।

प्रकाशित –

1 – साहित्य सागर (लक्षण ग्रन्थ), 2 – मथुरा-गमन, 3 – वैराग्य वावनी, 4 – शरीर-सप्तक, 5 – गांधी-गमन, 6 – गुरीरी-गारी, 7 – पाप प्रक्षालन अष्टादशी, 8 –  बिहारी-बिहारी, 9 –  ज्ञान गीतावली, 10 – कुण्डलनी-कल्प-लता

अप्रकाशित –

1 – गीता गंगोत्री (गीता का पद्यानुवाद), 2 – ईश्वरी गीता (देवी भागवत के सप्तम स्कंध के ज्ञानकांड प्रकरण का पद्यानुवाद), 3 – वारिद-वसीठ (मेघदूत का पद्यानुवाद), 4 – शांति-सम्वाद, 5 – वीर-वावनी, 6 – बिहारी-विनोद, 7 – लगन लीला।

इसके अतिरिक्त सैकड़ों स्फुट रचनायें हैं जो गायकों को मौखिक याद है अथवा पाण्डुलिपि बस्ते में बंधे है।

 कवित्त (शरद)
रंग भरी बांसुरी बजाई नंद नंदन जू,
संभु से समाधी जोगी तमक तमक उठे।

कहत बिहारी बृज-ग्वालिनी मनोज मींजी,
सरस सनेह दीप दिल में दमक उठे।।

भूषन रतन मनि पहिर कहूँ के कहूं,
गोपिन के वृन्द-वृन्द झमल झमक उठे।

देखत ही देखत रहस्य रंग मंडिल में,
चन्द्र मय तारन हजारन चमक उठे।।

नेह-रंग की रसभरी बाँसुरी (बंशी) नंदलाल श्रीकृष्ण ने बजाई तो शिव के समान समाधि लगाये हुए योगियों के मन में राग आ गया। बिहारी कवि कहते हैं कि बृज की वनिताओं को कामदेव ने प्रभावित किया उसके मन में प्रेम के रसमय दीपक प्रकाशित हो गये। गोपियाँ अपने आभूषण और वस्त्र उल्टे-सीधे पहिन कर झुंड के झुंड बनाकर उसी ओर दौड़ पड़ी। देखते ही देखते (थोड़े समय में ही) रहस्य मंडली तैयार हो गई और चंद्रमा के चारों ओर जैसे तारे चमकने लगते हैं वैसा ही दृश्य वहाँ बन गया।

सवैया – बसंत
रुच कंचन थार अबीरबिहार’, उड़ावत लाल गुलालन झोरी।
इत संग सखी लियैं राधे खड़ीं, उत श्यामलौ छैल करै बरजोरी।।

उनने उनकी प्रिय पाग रंगी, उनने उनकी रंग चुनरि बोरी।
मन मंदिर में मन मोहनी सें, मिलकें मन मोहन खेलत होरी।।

सोने के थाल में अबीर (अभ्रक का चूरा) और झोरी (थैले) में लाल गुलाल भरकर उड़ाते हुए एक ओर सखियों सहित राधिका जी खड़ी हैं और उस तरफ श्याम सुन्दर जबरदस्ती कर रहा है। राधिका जी ने श्रीकृष्ण जी की प्यारी पगड़ी को रंग से रंग दिया, इधर कृष्ण जी ने उनकी चुनरी लेकर रंग में डुबो दी। (यह लौकिक क्रीड़ा अलौकिक में बदल जाती है) दोनों के हृदय में स्नेह हो जाता है। वे मन मंदिर में आपस में मिलते हैं और हृदय के भावों से होली खेलने लगते हैं।

कवित्त
गौवन कौ मोद भयो, ग्वालन प्रमोद भयो,
दूषन भौ दुष्टन को, भूषन भौ बंश कौ।

आरत हरैया भयो, कारज कौ करैया भयो,
धरम धरैया भयो, जगत प्रसंस कौ।

कहते बिहारी कवि गोपिन हुलास भयौ,
परम प्रकाश भयो, जैसे नभ अंस कौ।

दीन कौ दयाल भयौ, दासन कौ पाल भयौ,
नंद जू कौ लाल भयौ काल भयौ कंस कौ।।

श्री कृष्ण का जन्म होने पर गौ वंश के लिये आनंद हो गया, ग्वालों को प्रसन्नता हो गई, दुष्ट जनों के लिये कष्टदायी हो गया (बुरा गया) और यदुवंश की शोभा बढ़ गई। दुखियों का कष्ट दूर करने वाला आ गया, कार्यों की पूर्ति करने वाला आ गया, धर्म को धारण करने वाला अर्थात् धर्म का आश्रय आ गया, और संसार में प्रशंसा करने योग्य परम पुरुष का जन्म हो गया।

बिहारी कवि कहते हैं कि गोपियों को उत्साह हुआ और जिस प्रकार आकाश में सूर्य का प्रकाश बिखर जाता है उसी प्रकार पृथ्वी पर परम प्रकाश हो गया। दीन दुखियों पर दया करने वाला और अपने सेवकों का आश्रय पृथ्वी पर आ गया। नन्द बाबा के घर पुत्र का जन्म हुआ और कंस राजा के लिये काल का अवतरण हो गया।

फनन फनन फन फन से पुकार भरै
काली कुल कठिन कराल दरसायो है।

ताके शीश सहज कलान सों किलोलैं करै,
निपट निसंक नयौ कौतुक बतायो है।

कहत बिहारी परो परो पालना में लखो
आज ये चरित्र पा कौ चित्त में न आयो है।

कालिंदी बसैया महाविष बरसैया ताहि,
छोटौ सौ कन्हैया भैया कैसे नाथ ल्यायो है।

 प्रत्येक फन से भयंकर फुफकार की ध्वनि निकल रही है। कालिया नाग ने अपना विकराल रूप बना लिया है। श्री कृष्ण उसके सिर पर स्वाभाविक रूप से आनंदित हो क्रीड़ा कर रहे हैं। बिना किसी भय के नया कौतूहल उत्पन्न कर दिया है।

बिहारी कवि कहते हैं कि जो बालक दो दिन पूर्व (परसों) पालने में झूलते हुए देखा था उसका आज का यह खेल (क्रियाकलाप) कुछ समझ नहीं आ रहा। यमुना का निवासी अत्यन्त विषैला (महाविषधर) कालिया नाग को अपना छोटा-सा कन्हैया भैया नाथ कर के ले आया है अर्थात् अपने बस में कर लिया है।

हरे हरे रंग लाय हरेई हिड़ोरन में,
हरे हरे झूलें कान्ह कालिंदी कछारी में।

हरी हरी भूमि हरे हरे खेत शोभा देत,
हरी हरी डूब रही ऊब नेह प्यारी में।

कहतबिहारी’ हरी हरी केलि कुन्जन में,
हरे हरे डोलें पत्र हरी हरी डारी में।

चलो सुकुमारी मान छोड़ कें दुलारी भला,
को न हरि यारी करै ऐसी हरियारी में।

हरे रंग की बेलों और पत्रों से हरीरे झूले को सजाया गया है। उस पर श्रीकृष्ण यमुना नदी के निचले मैदान में धीरे-धीरे झूल रहे हैं। सम्पूर्ण भूमि हरियाली से आच्छादित है। हरे खेत शोभा पा रहे हैं, अलग से जल के बहाव के पास हरी घास (दूर्वा) उग आई है। बिहारी कवि कहते हैं कि हरियाली से आवृत्त क्रीड़ा स्थल हरी-हरी लताओं की डालियों से लहरा रहे हैं। हे रमणी! मान छोड़कर तुम श्री कृष्ण के पास चलो, भला तुम्ही बताओ ऐसे आनंददायक समय में कौन ऐसी सुन्दरी होगी जो श्रीकृष्ण से नेह-नाता नहीं जोड़ना चाहेगी ?

कवित्त
चाहे करै चोजरी चबायने चहूँध धाम,
चाहे गृह काज लोक लाज गढ़ टूटैगो।

चाहे यह जावै ठांव चाहे घटै गाव नाव,
चाहे कोउ रोके राह चाह कोउ खूंटैगो।

कहतबिहारी’ कवि अब तौ हमारौ मन,
श्यामले छबीले छैल संग रस लूटैगो।

चाहे जोर जूटे या मर्याद मेढ़ फूटै,
चाहे विश्व भर रूठै पै न नेह यह छूटैगो।।

भले ही निंदक लोग चारों दिशाओं में जाकर मेरी हंसी करें और गृह काज अथवा लोक मर्यादा का किला टूट जाय, भले ही यह मेरा यह ठिकाना नष्ट हो जाय, भले ही मेरा नाव-गांव (पहिचान) समाप्त हो जाय और भले ही कोई मेरे मार्ग में व्यवधान बने अथवा मुझे रोकने समझाने का प्रयास करे।

किन्तु बिहारी कवि कहते हैं कि अब तो हमारा मन सांवले सुन्दर नटखट कृष्ण के साथ रहकर आनंद-रस का पान करेगा। भले ही किसी प्रकार की ताकत विरोध में लगा दी जाय अथवा मर्यादा की सीमा टूट जाय और सारा संसार नाराज हो जाय किन्तु प्रभु से लगा यह नेह का बंधन नहीं छूट सकता।

तारे गीध गणिका औ उबारे गज व्याध सबै,
अन्तर न राखो अजामिल उत्पाती सों।

शरण गहै जो दीन बांह गह लेत ताकी,
ऐसी वान गाउत पुराण भांति भांति सौं।।

कहतबिहारी’ है प्रतीत मोय मोहन की,
रीझत सनेह नर छीझत जात पांति सों।

मान लैहें भेद तो भगाय पै न दैहैं दूर,
पाय लै हैं प्रेम तो लगाय लैहैं छाती सों।।

भगवान (श्रीकृष्ण) ने गीध और गणिका को भव सागर से पार कर दिया, गजेन्द्र और व्याध को भारी विपत्ति से छुटकारा दिला दिया। इस उद्धार की प्रक्रिया में आपने उत्पात करने वाले अजामिल में भेद नहीं माना। श्रीकृष्ण भगवान की जो दीन व्यक्ति शरण पकड़ लेता है वे उसका हाथ थाम लेते हैं।

ऐसी विविध प्रकार से प्रभु की गाथा पुराण गाते हैं। बिहारी कवि कहते हैं कि मुझे श्रीकृष्ण पर पूरा विश्वास है वे प्रेम से प्रसन्न होते हैं और जाति आदि के कारण कोई दुराव नहीं मानते यदि अन्तर मान लेंगे तो भी दूर नहीं भगा सकते और यदि उन्होंने प्रेम देखा तो निश्चित ही छाती से लगा लेंगे।

या भव सिन्धु अगम्य अपार, निहार निहार नहीं घवरइयौ।
हो बहु पार प्रवीण ‘‘बिहारी’’, न शंशय की चित लाग लगइयौ।।

और विशेष नहीं कहनै, इक वात हमारी यही चित दइयौ।
नीर में नाँव चलइयौ भली, पर नाव में नीर न आवन दइयौ।।

यह संसार सागर अगम्य है। इसका पार पाना संभव नहीं किन्तु इसे देख-देख कर घबड़ाना नहीं। बिहारी कवि कहते हैं कि निश्चित ही इससे चतुराई से पार हो जाओगे। मन में थोड़ा शंका मत करना। हमें कुछ अधिक विशेष बात नहीं कहनी है, केवल यही सीख मन में रखे रहना कि पानी में नाव भले ही चलाना किन्तु अपनी नाव (नौंका) में पानी न आने देना।

तीरथ अनेक करै मंत्र अभिषेक करै,
खेल करै कूद करै गावै राग वानी में।

व्याह संस्कार करै पर उपकार करै,
चाहै रहे आनी चाहै रहै अज्ञानी में।।

कहत बिहारी पर काहू में न होवै लिप्त,
सबसे विलग रहै ध्यान चक पानी में।

जगत में येन रहै ऐन सुख चैन रहै,
रैन रहै एसी ज्यों पुरैन रहै पानी में।।

अनेक तीर्थ यात्रायें करिये और विविध प्रकार के कर्मकाण्ड आदि विधान सहित पूजन कराइये। अनेक प्रकार की क्रीड़ायें करिये और अनेक प्रकार से संगीत में प्रभु के गीत गाइये। अपना व्याह संस्कार कराइये और दूसरों के हित में अनेक कार्य करिये। चाहे आप ज्ञान प्राप्त करिये अथवा अज्ञानी बने रहिये।

बिहारी कवि कहते हैं कि किसी भी क्रिया में लिप्त न होना। सबसे अलग बने रहिये केवल चक्रपाणि (भगवान) में ध्यान लगाये रखिये। आप संसार में खूब बने रहिये और पर्याप्त सुख-आनंद में रहिये लेकिन संसार में इस प्रकार रहो जिस प्रकार पानी में पुरैन का पत्ता, पानी में डूबा रहने पर भी गीला नहीं होता।

साहसी सूर सिपाइ कहाय कें,
काम करै बस कायर टोली।

फूलन मार मरोर उठै,
फिर वीर विहार सहै किम गोली।।

भूपत रूप भुलायके आपनौ,
मागत भीख पसार के झोली।

राग बड़ो दुख होत हमें,
जब बोलत शेर स्यार की बोली।।
(उपर्युक्त सभी छन्द सौजन्य से : भगवान दास विश्वकर्मा, बगौता)

शूरवीर योद्धा और बहुत साहसी कहलाने के बाद कायरों की तरह कार्य करे तो व्यर्थ है। बिहारी कवि कहते हैं कि फूलों की मार से ही तकलीफ हो जाय तो युद्ध में बंदूक की गोली कैसे सहन करोगे। तुम अपना राजा का रूप भूलकर झोली फैलाये हुए भीख मांगते हो। हे भगवान! हमें तब बहुत दुख होता है जब शेर सियार की बोली बोलने लगता है अर्थात् अपना प्रभुत्व छोटों का अनुकरण करने लगता है।

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

शोध एवं आलेख – डॉ.बहादुर सिंह परमार
महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय छतरपुर (म.प्र.)

admin
adminhttps://bundeliijhalak.com
Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

error: Content is protected !!