Kalinjar- Angrejo Se Sandhi  कालिंजर – अंग्रेजों से संधि

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By admin

पन्ना के राजा सरमेदसिंह  के समय मे कालिंजर में रामकिसुन चौबे किलेदार थे। बाद मे  ये यहाँ को स्वतंत्र राजा बन बैठे । इस समय इन्होंने इसे दस वर्ष तक दृढ़ता पूर्वक  अपने अधिकार में रखा। इसी समय संवत्‌ 1859  में अलीबहादुर ने इस पर चढ़ाई की और वह यहीं मर गया।

अंग्रेजी राजसत्ता स्थापित होने के समय कालिजर के किले में रामकिसुन चोबे के लड़के (बलदेव, दरियावसिंह, भरतजू, गेविंददास, गंगाधर, नवल किशोर, सालिगराम और छत्रसाल) रहते थे। इनमें से बलदेव की मृत्यु  हो गई थी और  दरियावसिंह  किलेदारी करते थे। इन्होंने भी अंग्रेजों  से संधि करना चाहा और बुंदेले राजाओं के समान ही  हक मॉगे।

परंतु ऐसा होना संभव नही था। अंग्रेज लोग तरेघाठ सें भी शांति रखना चाहते थे। इससे चौबे कुटुंब की ओर से दरियावसिंह  को सनद दी गई। इस समय इन्हेंने और भी कुछ ग्रामो का दावा किया था। पर वे सब गाँव अजयगढ़ के किलेदार के पास थे, इससे नही  मिल  सके।

दरियावसिंह ने अंग्रेजों से सुलह कर ली और उसे सनद भी मिल गई थी, पर यह गुप्त रूप से राजविद्रोहियों को सहारा दिया करता था। इससे अंग्रेजों  ने इसके पास से किला ले  लेना ही उचित समझा।  पर ये ऐसा करने पर राजी नही थे इससे वि० सं० 1869  ( जनवरी सन्‌ 1812  ) में चढ़ाई कर दी गई पर कुछ लाभ नही  हुआ। पीछे से दरियावसिंह ने उतनी ही आमदनी का दूसरा इलाका ले लेने की शर्त  पर आत्मसमर्पण कर दिया।

इस समय चौबे कुटुंब में घरेलू झगड़े मचे हुए थे। इससे कुटुंब  के प्रत्येक व्यक्ति को तथा चौबे कुटुंब के वकील  राव गोपाल लाल  को भी अलग अलग सनदें देना उचित समझा गया। इस बँटवारे के समय गोविंददास और गंगाधर का स्वर्गवास हो गया था। इससे इनकी ओर से पोकरप्रसाद (पुष्कर प्रसाद) और गयाप्रसाद उपस्थित हुए। ऐसे ही दो  हिस्से पर छत्रसाल की माँ और भरतजू की स्री इन दो विधवाओं का अधिकार था।

इन दोनों ने अपने अपने हिस्से मे पेकरप्रसाद और  गया प्रसाद के हिस्से क्रमानुसार मिला  दिए पर बाद मे नवल किशोर और  भरतजू की विधवा में झगड़ा हो गया। पोकरप्रसाद का लड़का बिसेनप्रसाद ( विष्णुप्रसाद ) पुरवा जागीर का मालिक था। यह वि० सं० 1812  में एक कत्ल के मामले में शामिल  था। इससे इसकी जागीर जब्त कर ली गई।

छत्रसाल  के मरने पर जगरनाथ ( जगन्नाथ ) को जागीर मिली । यह वि० सं० 1900  मे मर गया। इससे इसकी विधवा नन्‍ही दुलैया अधिकारिणी हुई। इसके कोई पुत्र नही था। अतः इसने वंशगोपाल  को गोद लेना चाहा  परंतु हिस्सेदारों ने यह एतराज किया कि यह रामकिसुन चोबे के वंश मे से नहीं है।

किन्तु हिन्दू लॉ और चोबे वंश की प्रथा के अनुसार अँगरेजों ने उसका गोद  लेना उचित माना लेकिन हुक्म होने के पूर्व  ही वंशगोपाल  मर गया और  नन्‍ही दुलाइया  भी वि० सं० 1921  ( जनवरी सन  1864  ) में मर गई। यद्यपि इसने अपने मरने के पूर्व  ही बंशगोपाल  के लड़के बिहारीलाल को गोद लेने  की वसीयत की थी लेकिन ऐसा गोद लेना संनद की शर्तों के विरुद्ध था ।

इससे यह नामंजूर कर दिया गया और छत्रसाल का हिस्सा  भी दूसरे दूसरे हिस्सों मे मिला  दिया गया । इस तरह रामकिसुन चौबे की जागीर के अब 9 हिस्से रह  गए हैं। इनमें से चार ( पालदेव, तरॉव, पहरा और मसौदा ) तो  चौबे  वंश में हैं और पाँचवीं जागीर कामता-रजोला है यह राव गोपाल लाल वकील के वंश में है ।

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

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