Homeबुन्देलखण्ड के साहित्यकार Dr. Raj Goswami  डॉ. राज गोस्वामी

 Dr. Raj Goswami  डॉ. राज गोस्वामी

बुन्देली भाषा के मर्मज्ञ एवम् विख्यात कवि Dr. Raj Goswami का जन्म 1 जनवरी 1957 को दतिया जिले में हुआ। इनका लालन पालन एवं शिक्षा अपने ही पितृगृह दतिया में हुई। इण्टरमीडियेट के पश्चात बी.ए. दतिया केन्द्र से जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर से उत्तीर्ण की।

आपने भारतीय विद्या भवन बम्बई द्वारा संचालित संस्कृत भाषा बालबोध, प्रारंभ, प्रवेश की संस्कृत परीक्षाएं द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण की तथा विशेष योग्यता के साथ “परिचय” संस्कृत परीक्षा उत्तीर्ण की। बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात आपने कुछ समय तक अशासकीय शिक्षा के रूप में अध्यापक रहे आपकी परिस्थिति अच्छी नहीं थी इनके पिता शिक्षक थे बहुत नेक इंसान थे।

बुन्देली के उदभट विद्वान मर्मज्ञ एवं अनुसंधाता

कवि डॉ राज गोस्वामी कक्षा 10 से ही पठन-पाठन,  साहित्य लेखन में रूचि रही स्कूल की बाल सभाओं में कविता पाठ के लिये इनका नाम सुर्खियों में रहता था प्रारंभ से ही जैसा देखना बैसा लिखना ध्येय रहा है इनके प्रथम गुरू चाचा श्री गंधर्वसिंह तोमर ने इनकी कविताओं की भावनाओं को सराहा अपितु और अच्छी कवितायें लिखने को प्रेरित किया। उन्होंने इनकी मनोभावों के अनुकूल इनकी कविताओं में वांछित संशोधन भी किया उन्हीं की कृपा से काव्य की विविध विधाओं में आज इनकी 17 कृतियां प्रकाशित हो चुकी है।

कवि डॉ राज गोस्वामी को बाल्यकाल में शिक्षक श्री के.के.मिश्रा, फूलसिंह पुण्डीर, रामवीर सिंह ठाकुर, सुधाकर शुक्ल, प्राचार्य रणजीत सिंह, छज्जेगुरू, प्रियाशरण शर्मा, विपिन बिहारी श्रीवास्तव आदि ने सदैव प्रोत्साहित किया है। इनके बाबा पंडित पुरूषोत्तम लाल गोस्वामी, श्री भागवत प्रवक्ता रहे उनके भी बाबा प. राधालाल गेस्वामी राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के काव्य गुरू रहे। बाबा लक्ष्मण किशोर गोस्वामी न्यायविद रहे।

चाचा श्री केशव किशोर गोस्वामी, श्री मदनमोहन गोस्वामी शिक्षक रहे। आपने समाजशास्त्र तथा हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर तथा एल.एल.बी. की परीक्षायें जीवाजी विश्वविधालय ग्वालियर से उत्तीर्ण की तथा ज्योतिष रत्न, साहित्य रत्न तथा आयुर्वेद रत्न की परीक्षायें प्रयाग विश्वविधालय इलाहाबाद से उत्तीर्ण की।

विक्रम शिला हिन्दी विधापीठ भागलपुर (बिहार) से विधावाचस्पति, विद्यासागर की उपाधियाँ ग्रहण की। वहीं साहित्य एवं सांस्कृतिक अकादमी परियावॉ प्रतापगढ से साहित्य महोपाध्याय, साहित्य वारिधि की उपाधि प्राप्त की। आपकी रचनायें विभिन्न विश्वाविद्यालयों के शोध छात्रों ने अपने शोध में उल्लिखित की हैं, बाल साहित्य, हाईकू, गजल, दोहे, कवितायें बुन्देलीगीत और फागों के माध्यम से अपनी अनुभूतियों को व्यक्त किया है। कविताओं के माध्यम से शिक्षकों को प्रसन्न कर लेना इनकी खूबी रही है।

फरवरी 1978 में करैरा जिला शिवपुरी निवासी शिक्षाविद पंडित श्री हरिनिवास त्रिपाठी की सुपुत्री मंजू के साथ इनका विवाह हुआ इनके दो भाई और हैं जिनका नाम आनन्दकिशोर गोस्वामी तथा रूपकिशोर गोस्वामी है बहिन कुमकुम सभी विवाहित है। घर में परिस्थितियों अनुकूल न होने के कारण पेट पालने के लिये मैसर्स कटारे ज्वेलर्स की दुकान पर एक रूपया रोज से नौकरी की।

फिर शासकीय सेवा में आये तो जल संसाधन विभाग म.प्र. शासन में चतुर्थश्रेणी की नौकरी पाई। तब दैनिक वेतन भोगी में मासिक 115 रूपये मिलते थे तत्पश्चात चतुर्थश्रेणी की नियमित नियुक्ति हुई तत्पश्चात् पदोन्नति होकर सहायक वर्ग -3 उसके बाद सहायक वर्ग -2 और अब सहायक वर्ग-1 के पद पर कार्यरत हैं।

कवि डॉ राज गोस्वामी के जीवन में इनकी कविता ने ही धूल में फूल खिलाये हैं 17 पुस्तकें प्रकाशित कराना इनके बूते की बात नहीं थी किन्तु कारवां बनता गया और पुस्तकें छपती रहीं, लेखन भी निरन्तर चलता रहा उनका कथन है कि मेरी कविताओं से मैं ही अगर प्रफुल्लित नहीं हो सका तो दूसरा क्या होगा इसका हमें अपने लेखन में ध्यान देना चाहिये।

कवि को नम्र और संवेदनशील होना अनिवार्य है आपने शोध पुस्तकें भी लिखी जो अप्रकाशित है एक तो पुलिस प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक डॉ. बी. मरियाकुमार की अंग्रेजी एवं तेलगू कविताओं का हिन्दी अनुवाद तथा रामचरित मानस का उपेक्षित पात्र जटायू उक्त दोनों शोध कार्य पर आपको मानद उपाधियां अर्जित हुई हैं।

बाल्यकाल :
डॉ राज गोस्वामी की अत्यधिक गरीबी में बाल्यावस्था बीती, आपके पिता पडित श्री माधवकिशोर गोस्वामी शिक्षा विभाग में सहायक शिक्षक के पद पर रहे। माँ की योग्यता कम रही घर का खर्च बडी कठिनाई से चल पाता था परिवार में और भी सदस्य थे। मिडिल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात आगे पढते भी रहे और पिता ने एक दुकान पर नौकर करा दिया था जहां वे दुकान की साफ सफाई आदि किया करते थे।

श्री सत्यसाई सेवा समिति दतिया के संरक्षक (चेयरमैन) श्री डी.पी. आनन्द जो कि जल संसाधन विभाग के तत्कालीन कार्यपालन यंत्री के पद पर पदासीन थे इनकी दृष्टि बालक “राज” पर पड़ी उसकी साहित्यिक सांस्कृतिक गतिविधियों से प्रभावित होकर “राज” के पिता श्री माधव किशोर गोस्वामी से मिले। उन्होनें पिता से कहा कि बच्चे को पढाते भी रहे और मेरे विभाग में भेज दें मैं इसे दैनिक वेतन भोगी कर्मी के रूप में रख लूंगा जिससे आर्थिक मदद आपके परिवार को मिल सकेगी। और उन्होंने जल संसाधन विभाग में टाइपिस्ट के पद पर कार्य दे दिया।

कवि डॉ राज गोस्वामी ने जो नौकरी एक बार जल संसाधन विभाग में की तो फिर उसे छोडी नहीं अधिकारियों के मार्गदर्शन और उनके अनुरूप बनकर पूर्ण लगन और मेहनत से शासकीय सेवा की। यही कारण है कि वे चतुर्थ श्रेणी के पद पर भर्ती होने के बाद निरंतर निम्न श्रेणी लिपिक, प्रथम श्रेणी लिपिक तथा सहायक वर्ग-1 के पद पर क्रमशः पदोन्नति पाते रहे। कवि डॉ राज गोस्वामी  की ज्योतिष में प्रगाड रूचि होने के कारण प्रयाग विश्वविद्यालय से ज्योतिष रत्न की परीक्षा पास करने पर इन्हें झांसी में अखिल भारतीय ज्येतिष शोध केन्द्र का अवैतनिक मानद कुलपति के पद पर 5 वर्ष के लिये सुशोभित किया गया।

पीताम्बरा पीठ दतिया का दर्शनीय स्थल रहा है जहां भारतीय विद्या भवन बम्बई द्वारा संचालित शाखा दतिया से आपने संस्कृत परिचय की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की उस उपलक्ष्य में इन्हें पीठ पर सम्मानित किया गया और वहीं जगदगुरू श्री स्वामी जी की मौजूदगी में इनका यज्ञोपवीत संस्कार विधि विधान से करवाया गया।

इनको जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर से पोस्टर प्रतियोगिता में 1000/- रूपये की राशि तथा सम्मान पत्र देकर प्रथम स्थान पाने के लिये अभिनंदन किया गया। तब आप विधि संकाय शासकीय महाविद्यालय दतिया के तृतीय वर्ष के छात्र थे। एल. एल. बी. की परीक्षा आपने यहीं से उत्तीर्ण की।

साहित्य सर्जना का प्रारंभ :
है काव्य सृजन का बीज उनके अन्तःकरण में विद्यमान था समय पाकर वह प्रस्फुटित हो उठा। दतिया में उन दिनों अनेक सांस्कृतिक व साहित्यिक आयोजन हुआ करते थे। डॉ गोस्वामी उनमें सउत्साह भाग लिया करते थे इनके कार्यक्रमों में समय समय पर साहित्यिक गोष्ठियां भी खूब हुआ करती थी जिनमें शरद जोशी, भवानी प्रसाद मिश्र, कृष्ण बिहारी लाल पाण्डेय, वासुदेव गोस्वामी, चतुरेश जी, लक्ष्मीनारायण पथिक, दुर्गाप्रसाद दुर्गेश, चन्द्रसेन विराट, आनंद मिश्र, जगन्नाथ प्रसाद, शिवेन्द्र, मुकुटबिहारी सरोज, सोमठाकुर, बलवीरसिंह रंग, वीरेन्द्र मिश्र, जयन्ती अग्रवाल, शांतिस्वरूप चाचा, गंधर्वसिंह तोमर, बलवीर सिंह फौजदार तथा डॉ सियाशरण शर्मा, डॉ सुरेश चन्द्र शास्त्री इत्यादि के साथ बुन्देली प्रसिद्ध कवि रामचरण हयारण मित्र, भैयालाल व्यास, नर्मदाप्रसाद गुप्त, गंगाप्रसाद बरसैंया, बहादुर सिंह परमार, आदि कवियों के छंद तथा कविताओं पर अखाडे होते थे।

डॉ गोस्वामी ने इन्हीं साहित्यिक अखाडों में जमकर मार्गदर्शन लिया। और इन कवियों की अनेक कवितायें यह कह रही थी यहां तक कि हस्याचार्य चतुरेश जी की गणेश वंदना उसी लय में दूरदर्शन केन्द्र भोपाल पर प्रस्तुत की। बचपन से ही उनमें काव्य सृजन के बीज अंकुरित हो गये थे वे धनाक्षरी, दोहा, सवैया, हाईकू, क्षणिका, तथा गीत रचना कर इन्हीं अखाडों में सुनाते उन दिनों काव्य गोष्ठियों को अखाडा कहते थे यदि एक ने नायिका की आंख के संदर्भ पर कवित्त सुनाया तो दूसरे ने चार छन्द उसी आंख पर लिख दिये। यह प्रतियोगिता उन दिनों साहित्यिक अखाडा कहलाती थी।

समस्यापूति गोष्ठियों भी खूब हुई एक विषय पर तात्कालिक भाषण की तरह कवितायें लोग लिख देते थे डॉ राज गोस्वामी ने उन दिनों कीर्तिमान स्थापित किया। भगवान ने डॉ राज गोस्वामी को सुन्दर कंठ दिया है इन साहित्यिक अखाडों में जब से अपनी कविता ऊंचे स्वर में गाकर सुनाते तो लोग उनकी बडी प्रशंसा किया करते थे। यहीं से उनकी काव्य सर्जना का शुभारंभ हुआ यद्यपि वे कवितायें तो तभी से लिखने लगे थे।

जब से वे मिडिल में पढ़ते थे लेकिन तब उन्हें कहीं सुनाने का न तो अवसर मिला न ही प्रोत्साहन और नही मंच आगे उन्हें दतिया में कुछ मंच मिले तथा चिरगांव, झांसी, ग्वालियर, ललितपुर, उरई जैसे अंचल के कवि सम्मेलनों में जाने का अवसर मिला। क्षेत्रीय कवि सम्मेलनों में कविता पाठ से उनकी ख्याति बढी।

दतिया एक ऐतिहासिक नगर है जहां पीताम्बरा पीठ के नाम से अब तीर्थ स्थल बन चुका है पहले विश्व विजयी गामा पहलवान भी यहीं का रहने वाला था। बाद में वह पाकिस्तान चला गया। दतिया को धार्मिक नगरी के अंतर्गत दूसरा वृन्दावन की संज्ञा दी जाती है। लोककवि ईसुरी, राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त भी यहां समय समय पर आते रहे हैं।

डॉ. राज गोस्वामी के पर बाबा पं. राधालाल गोस्वामी श्रीमद्भागवत पुराण के प्रवक्ता रहे है जो घोडे पर सवार होकर चिरगांव जाते थे राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी अपनी कविताओं का संशोधन करवाने उनके पास आते थे उसी परिवार कुटुम्ब में जन्मे डॉ. राज गोस्वामी का काव्य सृजन आगे बढता गया और ऊचाइयां को स्पर्श करता गया।

हिन्दी की अनेक पत्र पत्रिकाओं में आपकी रचनायें कविता, कहानी, निबंध, लेख तथा समसायिक विषयों पर लेखन होता रहा। झांसी के पं. गौरीशंकर द्विवेदी, रामचरण हयारण मित्र, भगवानदास माहौर, सेवकेन्द्र त्रिपाठी, द्वारिका प्रसाद मिश्र, डॉ. सियारामशरण शर्मा, डॉ सुरेशचन्द्र शास्त्री, मोतीलाल त्रिपाठी, अशांत, अवधेश जी, प्रकाश सक्सैना, ऊंकार बरसैंया, ज्ञानेन्द्र स्नेही अश्क, झांसवी, हरिमोहन श्रीवस्तव, प्रो. परशुराम शुक्ल, अरूण श्रीवास्तव, मुन्नीजी आदि के संपर्क ने डॉ. राज गोस्वामी के काव्य को खूब विस्तार दिया और इन्हें अनेक काव्य गोष्ठियों में सादर आमंत्रित किया। इस प्रकार डॉ. राज गोस्वामी का काव्य सृजन निरंतर आगे ऊंचाइयों को स्पर्श करता गया। फलतः अनेक काव्य ग्रंथों का सृजन हुआ।

पुरस्कार एवं सम्मान :
डॉ गोस्वामी हाईस्कूल के छात्र थे इनके अव्वल नंबर आने पर इनके गुरूजी ने पचास रूपये का पुरूस्कार देकर सम्मानित किया। दतिया की नगर पालिका ने इनका नागरिक अभिनंदन किया है देश के सर्वाधिक प्रसार करने वाले दैनिक जागरण के झांसी संस्करण द्वारा प्रदान किये जाने वाला  “जागरण पुरूस्कार” आपकी बुन्देली कृति ओंछे बार ककई से जो फागों की पुस्तक एवं समग्र बुन्देली सेवा के लिये सम्मानित किया गया। बुन्देलखण्ड में उरई से इसी कृति पर 5000/- रूपये नगद पुरूस्कार से सम्मानित किया हैं।

म.प्र.लेखक संघ भोपाल द्वारा आपको आचंलिक सम्मान सन् 2001 में प्रदत्त हुआ। हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रभाग, भारतीय युवा साहित्य परिषद दतिया, म.प्र. बाल साहित्यकार परिषद दतिया, हनुमान आराधना मण्डल दतिया, जनवादी लेखक संघ एवं भगवान श्री सत्यसाई सेवा समिति एंव नवोदित साहित्यकार संघ जबलपुर, से आपको सारस्वत सम्मान से सम्मानित किया गया। मध्यप्रदेश विधानसभा के सन् 1987 के साहित्य समारोह में आपको बुन्देली कवि के रूप में संसदीय सचिव कृषि एवं सहकारिता मंत्री माननीय श्री महेन्द्र बौद्ध ने आपकी काव्य कृति ओ मेरे मन, अनुबंधों के छंद एवं बाल कृति मम्मी की मिट्टी, की सराहना ही नहीं बल्कि प्रशंसा पत्र भी प्रदान किया।

अखिल भारतीय कला साहित्य परिषद देवरियां उ.प्र., म.प्र. भावनात्मक एकीकरण एवं शैक्षणिक संस्थान एम.पी. सिटी, नेहरू युवा केन्द्र दतिया तथा जैमिनी साहित्य शैक्षणिक संस्थान पानीपत द्वारा शताब्दी रत्न सम्मान प्रदान किया। मुक्त मनीषा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समिति डबरा जिला ग्वालियर, भारतीय स्टेट बैंक दतिया, महाकवि अवधेश साहित्य संस्थान झांसी ने अपनी कृति कुंभकर्ण हो गई चेतना पर सम्मानित कर 5000/- रूपये पुरूस्कार में दिये।

भारतीय दलित साहित्य अकादमी दिल्ली साहित्य एवं सांस्कृतिक कला संगम संस्थान प्रतापगढ तथा विक्रम शिक्षा हिन्दी विद्या पीठ भागलपुर बिहार से विद्यासागर, एवं साहित्य वाचस्पति उपाधियों से सम्मानित किया। संस्कारधानी जबलपुर की साहित्यिक संस्था “कादम्बरी” ने आपकी “ओछे बार ककई” बुन्देली कृति पर स्वर्गीय हरप्रसाद पचौरी स्मृति लोक साहित्य सम्मान के साथ 2100/- रूपये का पुरूस्कार प्राप्त हुआ, अखिल भारतीय साहित्यकार अभिनंदन समिति मथुरा ने आपके समग्र साहित्य पर राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त पुरूस्कार से सम्मानित किया।

बाल कल्याण एवं बाल शोध केन्द्र भोपाल के निदेशक श्री महेश सक्सैना द्वारा इन्हें बाल साहित्यकार के रूप में उनकी कृतियों पर उन्हें सन् 2011 में सम्मानित किया। झांसी लोक भाषा सम्मेलन में आपको बुन्देली गौरव की उपाधि से सुशोभित किया गया। इस लोकभाषा कवि सम्मेलन में हिन्दी की सभी लोक भाषाओं जैसे बुन्देली, मालवी, बघेली अवधी बृज, हरियाणवी आदि लोक भाषाओं में श्रेष्ठ प्रतिनिधि कवियों को सम्मेलन आयोजित किया गया बाल साहित्य सृजनपीठ इन्दौर, हिमाक्षरा राष्ट्रीय साहित्य परिषद नई दिल्ली निर्दलीय प्रकाशन, भोपाल के अलावा अखिल भारतीय अंबिका प्रसाद दिव्य स्मृति प्रतिष्ठा पुरुस्कार संस्थान भोपाल के निदेशक श्री जगदीश किंजल्क ने आपकी बुन्देली सेवा के लिये विश्व भारती प्रज्ञा सम्मान 2001 से सम्मानित किया है।

बाल कल्याण संस्थान खटीमा, उधमपुर नगर उत्तरांचल ने नेशनल बुक ट्रस्ट की सहायता से आपको शाल, श्रीफल एवं प्रतीक चिन्ह के साथ सारस्वत सम्मान बाल साहित्यकार के रूप में दिया। बुन्देली साहित्य एंव संस्कृति विकास संस्थान झांसी द्वारा श्री मेघराज सिंह कुशवाहा अध्यक्षता में आपकी समग्र विधाओं पर सम्मानित किया।

मध्यप्रदेश तुलसी अकादमी भोपाल के अध्यक्ष डॉ. मोहन आनन्द ने आपको तुलसी सम्मान 2010 से सम्मानित किया इस अवसर पर श्री मुरारीलाल गुप्त गीतेश तथा विठ्ठलभाई पटेल ने इनके कृतित्व एंव व्यक्तित्व की व्याख्या कर सराहना की। ग्रामीण बैंक दतिया शाखा की प्राची नामक एक संस्था ने आपको हिन्दी दिवस दिनांक 14.11.10 को सभाग्रह में आपका नागरिक अभिनंदन किया था सन् 2011 में राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन नई दिल्ली द्वारा आपकी साहित्य सेवाओं पर केन्द्रित कवि सम्मान प्रदान किया।

आकशवाणी बैतूल म.प्र. द्वारा आयोजित अखिल भारतीय काव्यगोष्ठी में एक मात्र आपको बैतूल काव्य का प्रतिनिधित्व करने के लिये सादर आमंत्रित किया गया। आकाशवाणी ग्वालियर द्वारा बुन्देली काव्यगोष्ठी में आपका काव्यपाठ सम्पन्न हुआ। दूरदर्शन भोपाल एवं ग्वालियर द्वारा बुन्देलखण्ड के सुप्रसिद्ध हास्याचार्य कवि चतुरेश जी पर केन्द्रित उनको कविताओं पर विवेचना और काव्यपाठ किया। दिनांक 10.01.2011 को आपका एकल काव्य पाठ दूरदर्शन भोपाल पर हुआ झांसी में स्वर्गीय राष्ट्रकवि घासीराम व्यास की जयन्ती समारोह में आयोजित कवि सम्मेलन में आपका सारस्वत सम्मान किया गया।

ललितपुर-तालबेहट एंव गुरसरांय की साहित्य संस्थाओं ने आपकी साहित्यिक सेवाओं के लिये अभिनंदन किया गया। देश और प्रदेश की अनेक साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंचों एवं संस्थाओं ने आपको आमंत्रित कर अभिनंदन किया है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सहयोग से विभिन्न विश्वविद्यालयों, विद्यापीठ एंव महाविद्यालय में आपके विद्वतापूर्ण शोध आलेखों को पाठन एवं वाचन के लिये सादर आमंत्रित किया गया है।

जापानी विधा हाईकू में आपने श्रीमदभागवत गीता का काव्यानुवाद करके जापान भेजा जहां आपकी कृति ने तहलका मचा दिया। यह काव्यानुवाद को अनेक पत्रिकाओं ने अपने धारावाहक रूप से निरंतर छापा है डॉ गोस्वामी बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं वे एक सशक्त कवि, शिक्षाविद, समाजसेवी, बुन्देली के उदभट विद्वान मर्मज्ञ एवं अनुसंधाता है वे साहित्यिक एंव सांस्कृतिक मंचों के कुशल आयेजक एवं संचालक है तथा ओजस्वी प्रखर प्रवक्ता है तथा अनेक शैक्षणिक, साहित्यिक व सांस्कृतिक संस्थाओं के संस्थापक एवं जन्मदाता हैं।

व्यक्तित्व की आधारभूत रंग रेखायें :
समग्र बुन्देलखण्ड में हिन्दी और बुन्देली के प्रतिष्ठित स्थापित एंव विख्यात साहित्यकार डॉ राजगोस्वामी बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी है लगभग साढे पांच फुट के सुन्दर, स्वस्थ्य और आकर्षक धुंघराले लमछर्रे बाल, रौबीले व्यक्तित्व, चुम्बकीय, देहदृष्टि, उन्नत ललाट, निरंतर मुस्कराती आँखें मनोविनोदी और सादा वेशभूषा तथा वाणी में अद्भुत आकर्षण और मिठास उनकी साहित्यिक प्रतिभा के निरूपण में सहायक है। मिलन सरिता प्रेम, उदारता और सहज मानवीय व्यवहार की प्रतिमूर्ति डॉ. राज गोस्वामी का व्यवहार हर किसी की पीडा पर मरहम बनकर उतरता है।

हम डॉ राज के व्यक्तित्व को निम्नलिखित आधार भूत की रंग रेखाओं के आधार पर उनके विचार एवं विषद व्यक्तित्व के पावन दर्शन कर सकते है 1-शासकीय सेवा और ज्योतिष के रूप में 2- समाज सेवा के रूप में 3- कवि एवं साहित्यकार के रूप में।

शासकीय सेवा और ज्योतिष के रूप में :
मिडिल परीक्षा पास करने के पश्चात कुछ समय के लिए दतिया जिले के व्यवसायी मैसर्स रामप्रसाद कटारे ज्वेलर्स की दुकान पर रोजनदारी के रूप में 100/- रूपये माह की नौकरी पर मजदूरी की। किन्तु उनकी संपूर्ण सेवा लिपिक के रूप में म.प्र. शासन जल संसाधन विभाग में ही रही। मानद कुलपति अखिल भारतीय ज्योतिष संस्थान झांसी के रूप में 5 वर्ष की सेवायें अवैतनिक रूप से की। आप ज्योतिष विद्या में पारंगत है और आपने हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग की ज्योतिष रत्न की उपाधि प्राप्त की है।

ज्योतिषी के रूप में सन् 1982 में क्या होगा विषय पर सूर्या इण्डिया पत्रिका जो नई दिल्ली से प्रकाशित हुई थी उसके संपादक श्री माधवकान्त मिश्र ने देश विदेश के चुनिंदा ज्योतिषियों से भविष्यवाणी के रूप में विचार आमंत्रित किये थे उनमें डॉ. राज गोस्वामी ने भविष्यवाणी की थी कि 1982 में संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना होगी और उसकी प्रथम अध्यक्ष भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी होंगी और विश्व में उनकी भूमिका सराही जायेगी और हुआ भी यही। तब से डॉ. राज गोस्वामी जी को ज्योतिष विधा में प्रमुखतः से आदर के साथ नामोल्लेख किया जाने लगा।

डॉ. राज गोस्वामी अपनी कार्यकुशलता के कारण ही चतुर्थ श्रेणी से भर्ती हुए और वे वर्तमान में सहायक अधीक्षक के रूप में क्रमोन्नत हुए जो इस पद की शोभा बढा रहे है आपकी साहित्य के प्रति रूचि बाल्यकाल से ही रही है शिक्षा के साथ साहित्य सृजन आपका साथ-साथ होता रहा। बाद में शासकीय सेवा से जुड़े इस प्रकार इनकी सेवाओं की त्रिवेणी इनके जीवन में निरन्तरता लिये रही। साप्ताहिक मृदंग जो ग्वालियर से प्रकाशित होता रहा और आज भी प्रकाशित हो रहा है उसमें साप्ताहिक भविष्य फल आपके द्वारा लिखा जाता रहा। जिसके कारण भी आपका ज्योतिष लोकप्रिय रहा देश के तमाम हिस्सों में आपका ज्योतिषी के रूप में ज्योतिष सम्मेलनों में भागीदारी रही। ज्योतिष में आपके गुरू डॉ. श्री सी.एल. दीवान जो झासी के निवासी है उनके ही मार्गदर्शन में इन्होंने इस विधा में यह विद्या हासिल की।

ज्योतिष जगत के मौन तपस्वी साहित्य मनीषी डॉ. राज गोस्वामी ने अब तक के जीवनकाल में अपूर्व निष्ठा व समर्पण की भावना से काम किया। आपके अनेक शिष्य भारतीय पुलिस एवं प्रशासकीय न्यायिक सेवा में उच्च पद पर सुशोभित है वे सदैव मौलिक एवं हृदयस्पर्शी रहे है ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर आपने शिक्षा और साहित्य की अलख जगाई कवि पंचायत के नाम से लगातार दो वर्ष गांव में जा जाकर अपनी कविताओं से और प्रौढों को जो निरक्षर थे साहित्यकार विनोद मिश्र के सहयोग से उन्हें सदाचार एवं अक्षर ज्ञान कराया। इन्हीं कारणों से आपका ग्रामीण अंचल में बडा योगदान है कॉलेजों द्वारा आयोजित राष्ट्रीय सेवा योजना के शिविरों में आपकी अग्रणी भूमिका रही। साथ ही कई ग्रामों को आदर्श ग्राम बनाने में आप अग्रणी रहे।

दतिया के पर्यावरण में सुधार लाने के लिये आपने करनसागर तलाब, लाला का तालाब, बारादरी को रमणीय स्थल बनवाने हेतु शासन स्तर पर प्रयास किये। उसी का परिणाम है कि जिले के विधायक एवं म.प्र. शासन के विधि विधायी मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्र के अथक प्रयास से दतिया में देश विदेशों के पधारे पर्यटकों के लिये भारत सरकार द्वारा रहने के लिए मोटल की स्थापना की गई तत्काल सुशोभित हुए और दतिया के मध्य में स्थित सीतासागर तालाब पर्यटन की श्रेणी में आ चुका है इसमें नगर के धर्म पर्यावरणविद श्री रामस्वरूप ढेंगुला, रवि ठाकुर, विनोद मिश्र एवं गिरराजशरण शुक्ल आदि ने भरपूर साथ दिया।

समाजसेवा के रूप में :
डॉ. राज गोस्वामी जीवन के आरंभ से ही राष्टभक्ति और समाजसेवा से आप्लावित रहे है श्री गोस्वामी जी दतिया में आध्यात्किता से जुड़े एक संगठन भगवान श्री सत्य साई सेवा समिति के क्रियाशील सदस्य रहे है उस समिति के चेयरमैन श्री डी.पी. आनंद थे परन्तु उनकी सेवा भावना की बात की जाये तो उन्हें रत्ती भर अधिकारी होने का गुमान नहीं था बल्कि गरीबों के प्रति उनकी नारायण सेवा में प्रतिदिन कुछ घन्टे बिताते थे उनकी भोजन व्यवस्था एवं चिकित्सा तक के लिए अपनी ओर से धनराशि व्यय करके उनकी मदद करते थे वे अपने जीवन में सबसे बड़ी सेवा गरीबों की नारायण सेवा मानते थे वे सन्त हृदय एवं समाजसेवी थे ग्रामीण अंचलों में जा जाकर अनपढ लेगों में बैठकर ज्ञान तथा बच्चों की पढाई की पुस्तकें वितरित कर अपना योगदान देते थे।

जैसे अंधेरे में दीपक जलाकर नई रोशनी लाये हों। उनके सदप्रयाशों का प्रभाव डॉ राज गोस्वामी के जीवन पर पड़ा और जनहित के कार्य तथा समाजसेवा के कार्यो के प्रति इनका सम्मान बढा तो बढता ही चला गया। दतिया जिले के अंतर्गत सेंवढा, इंन्दरगढ, थरेट बडौनी, उनाव, बसई और भाण्डेर के अंचलों में उन्होंने भारत सेवक समाज के तत्वाधान में अनेक समाजसेवा के कार्य सम्पादित कराये बिहार में भयंकर अकाल के समय श्री सत्यसाई सेवा समिति द्वारा चार ट्रक वस्त्र दवाईयां और धन एकत्रकर बिहार भेजा था।

डॉ. राज गोस्वामी ने बेटी बचाओं अभियान के अंतर्गत चंबल सर्किल जेल दतिया के बंदियों में नई ऊर्जा, बेटी बचाओं संदेश की भावना प्रत्येक बंदी में भरने हेतु अपनी काव्य रचनायें सुनाकर एकता संरक्षण का संदेश दियां वही पर्यावरण जागरूकता अभियान के अंतर्गत समाज में जाकर ऊर्जा का संदेश दिया। इंसान पर्यावरण से खिलवाड़ कर अपने आपको परेशानी में डाल रहा है अगर पर्यावरण की ठीक तरह से देखभाल की जाये तो ऐसी ऐसी बूटियां और वृक्ष है जो आदमी को जीवन प्रदान करते है।

जंगलों में जाकर डॉ. राज गोस्वामी ने तमाम ऐसी औषधियों को तलाशा जिनका उपयोग कर गरीब तपके के लोगों को उनके आसाध्य रोगों के ठीक करने में सहायक हुए। कैंसर, खांसी, कफ एंव हड्डियों और जोड़ों के दर्द ठीक करते हुए देखा है। दतिया के ग्रामीण युवा केन्द्र के समन्वयक श्री संजय रावत के सहयोग से अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर सरकार से अपील की कि महिलाओं को और अधिक अधिकार दिये जा क्योंकि समाज में अपना स्थान बनाने के लिये महिलाओं को विशेष संघर्ष करना पड़ता है वहीं महिलाओं का घटता अनुपात आने वाले समय में देश के लिए एक बहुत बड़ा संकट हो सकता है जिससे लड़ने के लिये शासन को कठोर कदम उठाने पड सकते है यदि समाज महिलाओं के प्रति जागरूक नहीं हुआ तो जिस तरह पानी का संकट देश में दिखने लगा है उसी प्रकार आने वाले समय में महिलाओं का संकट देश में हो सकता हैं।

नशामुक्ति अभियान में अपना योगदान देने में डॉ राज गोस्वामी ने, कई शिविर ग्रामीण अंचलों में जाकर लगाये यदि व्यक्ति अपने आप के दृढ संकल्प कर ले कि हमें नशा नहीं करना है तो वह इस बुरी लत से दूर हो सकता है बाहरी प्रभाव उसे जागरूक कर सकते है लेकिन नशा न करने की प्रवृत्ति उसे स्वंय अपने अंदर लानी पडेगी। वहीं डॉ. राज गोस्वामी ने बाल विवाह की रोकथाम हेतु लगातार लंबे समय तक समाज में जाकर कुरीतियों को समझने व समझाने के प्रयत्न कर परिवर्तन की अलख लगाई।

बाल विवाह समाज के लिए विषम समस्या हैं शासन को बाल विवाह रोकने के लिए जिला स्तर पर टोल हैल्प लाइन नंबर जारी करना चाहिये ताकि दूरदराज क्षेत्रों से भी आम आदमी बाल विवाह की सूचना प्रशासन को दे सके आपने इस समस्या को सुलझाने में क्षेत्रीय कमेटियों का गठन कर घर जा जाकर उत्साहित किया कि इस समस्या से ग्रसित छोटे से छोटा व्यक्तिअपनी बात स्थानीय कमेटी में रखकर जिले स्तर पर प्रशासन का ध्यान आकर्षित करेगा।

संघर्ष, सम्पर्क, संगठन, सरसता, सामूदायिक, सदभाव आदि क्षमताओं के धनी मानव धर्म के प्रवर्तक सहज व्यक्तित्व डॉ राज गोस्वामी की संवेदना संपादक, सफल संयोजक सांस्कृतिक संगठन आदि में राज गोस्वामी सफलता के साथ अग्रणी है आपने वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की संस्था पर्यावरण वाहिनी के साथ विभिन्न संस्थाओं में रहकर अनेक वर्ष तक लोगों में प्रेरणा जगाकर 30,000/- बीजों का रोपण कराया तब वहीं 10,000/वृक्षों का रोपण भी करवा चुके है।

गरीबों के हितार्थ बिना किसी शासकीय सहायता के आप निशुल्क कुष्ठ, टी.वी., दन्त रोग नेत्र एवं पोलियो, एक्यूप्रेशर चिकित्सा योग आदि के शिविर झांसी बुन्देलखण्ड के चुम्बक चिकित्सालय डॉ. आलोक रावत के साथ लगा चुके है। विभिन्न राष्ट्रीय जनहितकारी युवाओं के प्रेरणा देने के उद्देश्य को लेकर अपील व आप 30 रैली/पदयात्रा/साहित्यिक यात्रा कर चुके है।

विभिन्न विषयों के लेकर विभिन्न क्षेत्रों एवं विषयों की एक दर्जन प्रदर्शनी लगवा चुके है हिन्दू मुस्लिम, सिख, ईसाई के बच्चों को लेकर समारोहों में पुरूस्कार देकर और उन्हें अच्छे संस्कारें कवितायें सुनाकर आत्मा के साथ साथ रहे हैं। शासन की जनहित कारी योजना विश्व जनगणना में आपका विशिष्ट योगदान रहा है साक्षरता अभियान में भी आप अग्रणी रहे है जातीय जनगणना में आपने दतिया जिले में नाम रोशन किया है।

साहित्यकार के रूप में :
नियति का विधान बडा विचित्र है यह किसी को देहयष्टि प्रदान करती है तो सुन्दर कंठ प्रदान करती किसी को सुंदर कंठ प्रदान करती है तो सुंदर देहयष्टि नहीं देती। किसी को वक्रतत्व कला प्रदान करती है तो लिखने की क्षमता नहीं देती लेखन कौशल प्रदान करती है तो भाषण देने की कला प्रदान नहीं करती।

यह सुखद एवं स्वर्णिम संयोग है कि नियति ने डॉ. राज गोस्वामी को एक साथ यह सारे गुण दिये है औसत दर्जे का मझोला कद, सुंदर स्वस्थ्य शरीर, चुम्बकीय व्यक्तित्व, उन्नत ललाट, नित्य हंसती सी आंखे कभी पजामा कुर्ता तो कभी पेंट शर्ट ओर सफारी सूट कभी सादा वेश भूषा।

डॉ. राज गोस्वामी ओजस्वी वक्ता है ओर प्रतिभावान विद्वान लेखक हैं हिन्दी और बुन्देली के समर्थ कवि है बचपन में उन्होंने रामलीला मे शत्रुघन का मंच पर सफल अभिनय किया है आपके द्वारा लिखे गये नाटक कहानियों को बच्चों ने पाठशालाओं में अभिनीत किया है।

वे संपूर्ण हिन्दी संसार के हिन्दी एवं बुन्देली भाषा के लोक प्रिय प्रतिस्थापित कवि हैं उनका कंठ बडा मधुर है कवि सम्मेलनों के मंचों पर उनके मधुर और आकर्षक स्वर के द्वारा गाये गये गीत और कवितायें खूब सराही जाती है सुन्दर कंठ उन्हें प्रकृति ने वरदान स्वरूप दिया है।

कवि दो प्रकार के होते है एक कवि कोटि के कवि और दूसरे कलाकार कोटि के कवि डॉ. राज गोस्वामी देनों कोटि के कवियों का अदभूत रूप है उनकी कविता काव्य मे समस्त गुण विद्यमान रखते है तो उनकी शैली में अदभूत माधुर्य और आकर्षण। आज साहित्यकारों का एक वर्ग बाहरी हवाओं से इतना प्रभावित है कि गद्य को कविता के रूप में परोस रहा है साथ ही उस कविता को नकारने की साजिश कर रहा है जो कि सामवेद से चलकर आज तक भारतीय मनीसा और संस्कृति का संदेश वाहन बनी रही है।

भाव लोक के योगी काव्य पुरूष डॉ. राज गोस्वामी एक ऐसे ही विलक्षण साधक हैं जो आज के संक्रमण काल में भी काव्य की रक्षा करने तथा अपनी रचना शक्ति से उसे समृद्ध बनाने में पूरी निष्ठा के साथ समर्पित है डॉ. राज गोस्वामी मूल रूप में कवि कोटि के कवि है शासकीय सेवाकाल में उन्हें विभिन्न अंचलों में रहने के अवसर मिलते रहे। इन सुखद क्षणों में उन्हें जो अनुभव हुए वे सभी राग-विराग का समुच्चय कवि की जीवन दृष्टि को निर्मित करने में सहायक रहे हैं।

डॉ. राज गोस्वामी एक निष्ठावान रचनाकार होने के साथ ही एक उच्च कोटि के आदर्शों वाले इंसान हैं उनकी मानवीय संवेदना उनके कवि का प्रेरणा स्त्रोत रही है रचनाकार होना तथा एक अच्छा इंसान होना दो अलग अलग मानदण्ड है आवश्यक नहीं दोनें गुण हर कृतिकार में हों ऐसे कवि विरले ही है जिनके कृतित्व में यह मणिकान्चन संयोग पाया जाता है उनके इस स्वरूप का प्रभाव समूचे परिवार पर लक्षित होता है।

बहुमुखी काव्य प्रतिभा के धनी डॉ. राज गोस्वामी आदर्शवादी संचेतना के अति संवेदनशील रचनाकार है साहित्य के क्षेत्र में किसी परिचय के मोहताज नहीं है डॉ. गोस्वामी के गीतों में युगीन भावबोध, टूटते मूल्यों और दम घुटते आदर्शों की पीडा एवं दर्द का स्वर स्पष्टतः सुनाई देता है।

आज भौतिक और वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर अपार-धन लुटाया जा रहा है दूसरी ओर आम आदमी की भूख की पीड़ा से संत्रस्त मानवता कराह रही है यही नहीं इस आपाधापी के युग में कपट, छल और धोखे फल फूल रहे है डॉ. गोस्वामी के काव्य में गिरते सिमटते मूल्यों की टकराहट एवं टूटते आदर्शों की छटपटाहट स्पष्ट सुनाई देती है…

राम राज्य सपना सा लगता, सेवक अब हनुमन्त नहीं है।
गंगू तेली का झण्डा है, गद्दी पर यशवन्त नहीं है।
क्या होगी रक्षा राखी की, जब रक्षक ही भक्षक बनते।।

डॉ राज गोस्वामी की कविताओं में युगीन विसंगतियों का दर्द भरा स्वर स्पष्ट सुनाई देता है उनके काव्य में राजनैतिक विद्रूपता भाई भतीजावाद, जाति वाद, क्षेत्रवाद, स्वार्थपरता, बिखरते मूल्य टूटते आदर्श, नई पुरानी पीढी का संघर्ष, पर्यावरण में प्रदूषण युग का संकट आतंकवाद ओर सम्प्रदायवाद के कारण उत्पन्न, मानवता पर संकट की पीडा एवं दर्द के स्वर भरे पड़े है

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

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Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
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