Dr. Kunjilal Patel ‘Manohar’ Ki Rachnayen डॉ. कुन्जीलाल पटेल ‘मनोहर’ की रचनाएं

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जिला मुख्यालय छतरपुर से सत्रह किलोमीटर पूर्व में पन्ना रोड पर स्थित ग्राम बसारी में 8 जून 1960 को Dr. Kunjilal Patel ‘Manohar’ का जन्म हुआ। इनके पिताजी का नाम श्री गिल्ले पटेल तथा माताजी का नाम श्रीमती मुल्लीबाई है। डॉ. कुन्जीलाल पटेल ‘मनोहर’ का परिवार किसानी करता है। 

घूमत फिरत नंद कौ छौवा, संग लये सखा गुलौवा।
फिरत व्यर्थ मड़रात सखिन पै, जैसे भूखे कौवा।

ओड़ें फिरे कमरिया कारी, माथें मोर पखौवा।
गली रखाये भुनसारे सें, जैसें रतवाँ मौवा।

आज धुनक लो इन्हें ‘मनोहर’ लये सब सखी गुटौवा।।

जब श्रीकृष्ण की हरकतों से गोपियाँ परेशान हो जाती हैं तब वे (गोपियां) अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहती हैं कि ब्रज में अपने साथ पूरी मित्र मण्डली लिए नन्द का पुत्र इधर-उधर घूमता फिरता है, वे सखियां पर व्यर्थ में ऐसे मँडराते हैं जैसे कहीं पर दाना-पानी देखकर भूखे कौवे मँडराते हैं।

उसी तरह कृष्ण कमरिया ओढ़े और मयूर का पंख लगाए घूमते हैं। जिस प्रकार रतवा (रात में टपकने वाला) महुआ के पेड़ को रखाने वाला नजर गड़ाये बैठा रहता है उसी प्रकार वह (श्रीकृष्ण) तड़के से गलियों में घूमता है। कवि आगे कहते हैं कि एक गोपी अपनी सहेलियों से कहती है कि सभी सखियाँ इकट्ठा होकर आज इनको जी भरकर तंग कर लिया जाये।

बैठ श्याम कदम की डारन, तन पीतम्बर धारन।
आई उमझ फेटा से मुरली, लागे तुरत निकारन।

धर अधरन पर फूंक दई तब निकरीं तान हजारन।
मुरली मेहो नाव सखिन के लै-लै लगे पुकारन।

सुनके तान ‘मनोहर’ सखियाँ सजी मिलन के कारन।

कवि मनोहर कहते हैं कि कृष्ण पीले वस्त्र धारण करके कदम पेड़ की डाल पर बैठे हुए हैं, अचानक वंशी की याद आने पर उसको कमर से तुरन्त निकाला और जैसे ही उसको अपने होठों पर रखकर बजाया तो उससे अनेक प्रकार की धुनें निकल पड़ी, कृष्ण मुरली के द्वारा गोपियों के नाम पुकारने लगे और जैसे ही मुरली की धुनों को गोपियों ने सुना तो सभी कामकाज छोड़कर मिलने के लिए तैयार होने लगी।

सुनकें मुरली मुरलीधर की, राधा रुक्मन छरकी।
तन मन की सुध भूली ऐसी लगन लगी गिरधर की।

चलीं ठगीं सीं सजनी मजनी करकें उल्टी सरकी।
टोली जुरी सभी सखियन की बांकी एक ना बरकी।

चलीं ‘मनोहर’ मुरली सुनवे नटखट नट नागर की।।
राधा, रुक्मिणी ने जैसे ही कृष्ण की मुरली की आवाज सुनी तो वे थिरकने लगी, उन्हें अपने तन-मन का होश नहीं रहा, सिर्फ उन्हें नंदनन्दन की ही अजीब लगन लगी हुई थी, वे सभी काम-काज जल्दी से करके, ठगी हुई उल्टे पैरों घर से धीरे से भागी। घर के बाहर आकर अपनी सभी सहेलियों को एकत्रित किया। जिससे घरों के अंदर कोई भी सहेली नहीं बची और उन्होंने टोली बनायी। कवि मनोहर कहते हैं कि सभी गोपियाँ इकट्ठा होकर शरारती गिरधारी की मुरली सुनने के लिए चली आईं।

सज गई बृज की बनिता प्यारी, प्यारी पहरें सारी।
सारी सजनी करी सम्हर कें तनकी खबर बिसारी।

सारी उल्टी सीधी डट कें झट कर दई तैयारी।
तैयारी कर चली श्याम सें मिलवे ब्रज की बारी।

वारी वारी सजीं ‘मनोहर’ रूप रासि अनियारी।।

इस छंद में कवि मनोहर कहते हैं कि ब्रज की सभी सुन्दर नारियाँ अच्छी साड़ी पहनकर तैयार हो गई। गोपियों ने साड़ी को तो संभालकर पहना है लेकिन उन्हें अपने शरीर की सुध नहीं रही। सभी गोपियाँ जैसे भी हो तैयार हो गई, चाहे साड़ी को उल्टी ही क्यों न  पहन रखा हो ? ब्रज की सभी स्त्रियाँ कृष्ण से मिलने के लिए तैयार होकर चली गई। आगे कवि कहते हैं कि वे सभी गोपियाँ जिनकी रूप-सौन्दर्य की कोई सीमा नहीं है, सज-धजकर तैयार हो गई।

रिमझिम-रिमझिम झरै फुहारी, गरजें नभ घनकारी।
वसुन्धरा की गोद मुदित मन, मोहित हरियल सारी।

सारी अबनी सजी बजी अति, हरी छटा अनियारी।
सुन घनघोर मोरगन प्रमुदित, थिरकत पंख पसारी।

पिउ-पिउ बोलें बोल ‘मनोहर’, पपिहा की किलकारी।।

वर्षा ऋतु के समय प्रकृति का रूप किस तरह का होता है, कवि ने इस छंद के माध्यम से इसका एक स्पष्ट चित्र खींचा है, पानी रिमझिम-रिमझिम होकर बरस रहा है और आकाश भी जोर से गरज रहा है। धरती माता ने अपनी गोद में सुन्दर हरियाली बिछा रखी है, यह देखकर मन प्रफुल्लित हो जाता है। सारी पृथ्वी सजकर तैयार हो गई है अपने ऊपर सुन्दर हरी छटा बिखेर रखी है, बादलों की प्रसन्नता सुनकर मयूर भी प्रसन्न होकर अपने पंखों को फैलाकर नृत्य करने लगे हैं। कवि कहते हैं कि पपीहे की जो किलकारी है उससे पिउ-पिउ आवाजें निकल रही हैं।

खेती खेतन खेतन नौनी, नौनी घरी सुहौनी।
हीनी हती दया की दृष्टि, करी समय पै बौनी।

बौनी भई वरषा की नौनी, सबको सुख उपजौनी।
उपजौनी सब फसलें आहैं, घर-घर औनी पौनी।

पौनी पाला खूब ‘मनोहर’ हुइयें रकम चुकौनी।।

वर्षा के बाद जब खेती करने का समय आता है, उसका वर्णन करते हुए कवि कहते हैं कि खेतों में जब तक फसलें हों तभी तक वे अच्छे लगते हैं और अच्छी घड़ी (समय) भी मन को भाती है। दया की दृष्टि कमजोर थी जो उपयुक्त समय पर बुवाई कर दी लेकिन पानी अच्छी तरह से हो जाने से बुवाई हो गई जिससे सभी किसानों को हृदय में शांति मिली, अन्य सभी फसलें अच्छी तरह से उपजें भी और जैसे भी होगा सभी के घरों में आएँगी। यदि फसलें अच्छी रहीं तो कर्ज भी चुक जायेगा।

लैले खबर सजनवाँ मेरी, बाट कबन से हेरी।
अब लौ आये ना खबर पठाये, कौन मुसीबत घेरी।

मैं देरी लौ ठांड़ी-ठांड़ी, देखत हौं हर देरी।
देरी करत काय खाँ कैसी, तड़फत सजनी तेरी।

तेरी मेरी मिलन ‘मनोहर’ कौन घड़ी होने री।।

नायक के विरह वियोग से तड़प रही नायिका अपने मनोभावों को व्यक्त करती हुए कहती है कि प्रिय! मैं तुम्हारी राह जाने कब से देख रही हूँ ? इसलिए अब तो आकर मेरी खबर ले लो, हाल-चाल पूछ लो। ऐसी कौन-सी मुसीबत में आप फँसे हुए हैं जिस कारण अभी तक न तो स्वयं ही आए और न अपनी कोई खबर ही भेजी।

मैं द्वार पर खड़ी होकर हर घड़ी तुम्हारा ही इंतजार कर रही हूँ। अब किसलिए देर कर रहे हो ? यहाँ आकर एक बार देख लो कि तुम्हारी सजनी किस तरह बिना तुम्हारे तड़प रही है। आगे कवि मनोहर कहते हैं कि नायिका कहती है वह कौन सा शुभ क्षण होगा, जिस समय तुम्हारा मेरा मिलन होगा।

कैसे बेदरदी भये सैयाँ, आये अबैलौ नैयाँ।
नैंया कोऊ जगत में उनसें, मिलवा दे झट दैयाँ।

दैयाँ दौर चले आते ज्यों, सन्ध्याकाल चिरैयाँ।
काल चिरैयाँ कब धर दाबै, पैर चलेना बैयाँ।

बैयाँ पकर ‘मनोहर’ लाये, धाये कहाँ गुसैयाँ।

इस छंद में नायिका अपने विरह का वर्णन करती हुई कहती है कि पतिदेव तुम कैसे निष्ठुर हो गये हो ? जो अभी तक नहीं आये। इस संसार में ऐसा कोई नहीं है जो उनसे शीघ्र ही संयोग करा दे। जिस प्रकार शाम होते ही सभी प्राणी अपने-अपने घर लौटने लगते हैं। तुम्हारे बिना पता नहीं मृत्यु कब अपने आगोश में ले ले, उस समय न पैर चलेंगे और न हाथ। कवि कहते हैं कि नायिका कहती है मेरी बांह पकड़कर लेकर आये हैं अर्थात् विवाह करके लाए हैं और खुद कहीं भाग गए हैं, मुझे तड़पाने के लिए।

बोल कूर कोकिला कारी, कारी जा हत्यारी।
हत्यारी जा लैबो चाहत, आसुन जान हमारी।

मारी मारी फिरों बिरह में, जानत दुनियां सारी।
सारी देह धधक रई मोरी हो गई सूख छुहारी।

हारी खाई ‘मनोहर’ मोखां भूल गये बनवारी।।

कवि मनोहर इस छंद में नायिका के विरह के बारे में बताते हैं, नायिका कहती है कि काली कोयल की मधुर आवाज अब हृदय को कष्ट देती है। यह काली अब हत्यारी बन गई है। यह हत्यारी मेरे प्राण लेने पर तुली हुयी है। तुम्हारे वियोग में मैं इधर-उधर भटक रही हूँ। इस बात को सभी कोई जानते हैं। नायिका आगे कहती है कि मेरा सारा शरीर जलकर सूखे छुहारे की भाँति हो गया है। मैं तो तुमसे पस्त हो गई हूँ क्योंकि मुझको गिरधारी तुमने भुला दिया है।

फागुन वन वीथिन में छाये, फगुआ जोर जनाये।
वन-बागन में ऋतुराजा ने अपन जाल बिछाये।

मनभावन बिन पावन फागुन पल पल नित तरसाये।
कोयल कूक बिरह व्यथितों को, औरहु और जलाये।

जीवनमूल ‘मनोहर’ के बिन, कैसे फाग मनायें।

फागुन के महीने में धरती माँ का रूप किस तरह का होता है इसका वर्णन करते हुए कवि कहते हैं कि फागुन में सभी जगह फूल, हरियाली फैली हुई है और फाग गाने वाले भी अपनी धुन में मस्त है, ऋतुराज अर्थात् बसन्त ने बागों में, वनों में अपना जाल बिछाया हुआ है।

साजन के बिना यह पवित्र फागुन का महीना मुझे हर क्षण तड़पा रहा है। एक तो वे घर में नहीं हैं। इसलिए पहले से ही विरह सता रहा है और ऊपर से कोयल की आवाज विरहणियों को और अधिक व्याकुल कर रही है। नायिका कहती है कि जिसके साथ अपना जीवन जोड़ा हुआ है उसके बिना हम यह त्यौहार कैसे मनाएं?

जिदना आहै राम टिरउवा, चलहैं ना टिरकउवा।
खबर के सुनतन जाने परहे, ऐसौ ऊकौ पउवा।

अच्छन अच्छन के ऊ पल में, देवै टोर डड़उवा।
सबई बराबर परमेश्वर खां, बगला कोयल कौवा।

हुकम ‘मनोहर’ पालैं उनकौ, दाने देवता हउवा।

इस छंद में कवि ने ईश्वर को सर्वशक्तिशाली बताया है। कहते हैं कि जिस दिन राम का बुलावा आयेगा उस दिन कोई बहाना नहीं चलेगा। उसकी खबर मिलते ही जाना पड़ेगा क्योंकि उसका दबदबा अत्यधिक है, उसकी शक्ति के समक्ष सभी लघु हैं। राम ने उनको जो अपने आपको कुछ समझते हैं, एक पल में ही ठिकाने लगा दिया है, उसको अहं पसन्द नहीं है। उनकी दृष्टि में सभी समान हैं चाहे वह बगुला हो, कोयल हो या फिर कौवा। आगे कवि मनोहर वर्णन करते हुए कहते हैं कि उनकी आज्ञा को सभी सिरौधार्य करते हैं चाहे वह दानव हो, देवता हो या फिर कोई बड़ा जानवर ही हो।

नेता अपनी नीति भुलाने, कुर्सी के दीवाने।
खादी पहिन राजनीति में, टांड़ी से उमड़ाने।

ऊचौ पद पाबे खाँ, उल्टी सीधी लगी चलाने।
भोली भाली पब्लिक ऊपर अत्त करें मनमाने।

नीति नियम सब भुला ‘मनोहर’ जनतै लगे सताने।।

कवि आजकल के नेताओं की नीतियों के बारे में बताते हुए कहते हैं कि नेताओं ने अपनी सभी सही नीतियाँ भुला दी हैं और सिर्फ कुर्सी के लिए पागल हैं जैसे भी हो कुर्सी मिले। राजनीति में आकर और खादी वस्त्र पहनकर बने ये नेता टिड्डी की भाँति एक दूसरे को ऊपर नीचे करते हैं। कुर्सी के लिए वे सभी प्रकार की अनीतियों का उपयोग करते हैं। जनता द्वारा चुने जाने के बाद उन्हीं के ऊपर मनमाने अत्याचार करते हैं। वास्तविक राजनीति के जो नियम, नीतियाँ रही हैं उन्हें भूल गए हैं और आम आदमी को कष्ट देने में लगे हैं।

According to the National Education Policy 2020, it is very useful for the Masters of Hindi (M.A. Hindi) course and research students of Bundelkhand University Jhansi’s university campus and affiliated colleges.

डॉ. कुन्जीलाल पटेल ‘मनोहर’ का जीवन परिचय 

शोध एवं आलेख – डॉ.बहादुर सिंह परमार
महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय छतरपुर (म.प्र.)

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