सौंदर्य का अपना अलग महत्व है बुंदेलखंड मे जिस प्रकार स्त्रियों और बालकों के आभूषण होते हैं। उसी प्रकार Bundeli Purushon ke Abhushan होते हैं। पुरुषों के आभूषण का प्रचालन आदिकाल से है । ये आभूषण पुरुषों के सौन्दर्य मे चार चाँद तो लगाता ही है परंतु ये वैज्ञानिक आधार पर जाँचे और पारखे हुए होते हैं ।
बुन्देलखंड के पुरुषों के आभूषण
पैर के आभूषण
बुन्देलखंड मे पुरुषों के आभूषणो मे मुख्य हैं कड़ा, चूरा और तोड़ा पुरुष पहनते हैं, पर उनका विवरण स्रियों के आभूषण में दिया जा चुका है । वस्तुत: प्राचीनकाल में कुछ आभूषण स्री और पुरुष दोनों पहनते थे, बाद में लिंग के आधार पर उनका विभाजन हुआ है ।
हाथ के आभूषण Hand Jewelery
इनमें छला, फिरमा, मुंदरी (अंगूठी), कड़ा और चूरा प्रमुख हैं, जिनका विवरण पहले ही दिया जा चुका है। बाजू में बाजूबंद या भुजबंध और अनन्त पहनते थे, जिनका परिचय भी पूर्व पृष्ठों में वर्णित है।
गले के आभूषण Neck Jewelry
इनमें कण्ठा, गजरा, गुंज, गोप, जंजीर (साँकर), तौक, तबिजिया, बनमाल, मोतीमाल, हार प्रमुख हैं। कण्ठा में सोने के मोटे और गोल गुरिया जरी में बरे रहते हैं । उनके साथ जरी की गुटियाँ बीच-बीच में गूँथी जाती हैं। रियासतों में उच्च वर्ग के लोग कण्ठा पहनते थे और राजा भी पुरस्कार में कण्ठा दिया करते थे। गजरा पोत का होता था और उसके बीच में तबिजियाँ और ढुलनियाँ होती थीं।
गुंज में सोने की चार-पाँच लम्बी लरें बीच-बीच में समान दूरी पर सोने की पत्ती से जुड़ी रहती हैं। हर लर सोने के महीन तारों की बनी कलात्मक होती है और उसके छोर पर कुलाबे लगे रहते हैं। गोप में सोने की मोटे तारों की दो लरें बीच में पन्ना, हीरा, मानिक आदि नगों से जटित टिकरा से जुड़ी रहती हैं। गुंज-गोप की लरों की बुनावट गुंजों जैसी होने के कारण वे गुंजन की लरें कहलाती हैं। मध्य युग में गुंज-गोप समृद्धि का ही नहीं, प्रतिष्ठा का भी प्रतीक था ।
साँकर (जंजीर) सोने के तारों की कई बनक की बनती थी, जिसे बनक के अनुसार कई नामों से पुकारा जाता था। जलजकंठुका नाम कमल की बनक के कारण रखा गया था। तौक हँसली की बनक का सोना या चाँदी का ठोस या पत्तादार आभूषण होता था। गुलामों को पहनाये जाने के कारण इसका प्रचलन नहीं था। वनमाल, मुक्तामाल और मणिमाल पुरुषों को बहुत पसंद थीं। कविवर बिहारी ने वनमाल और मनि-मुक्तिय-माल का उल्लेख अपने दोहों में किया है।
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कान के आभूषण Ear Jewelry
इनमें कुण्डल, गुरखुरु, चौकड़ा, झेला, बारी और मुरकी प्रमुख हैं । कुण्डल, बारी और मुरकी के विवरण दिये जा चुके हैं । गुरखुरु सोने का बेर की गुठली जैसा काँटेदार आभूषण है । उसकी बनक गुरखुरु की तरह होने के कारण उसका नाम गुरखुरु पड़ा है । चौकड़ा में सोने की चार बालियाँ जुड़ी होती हैं । झेला कुण्डलों से जुड़ी उन्हें सँभालने वाली साँकरों को कहा जाता है ।
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संदर्भ-
बुंदेली लोक साहित्य परंपरा और इतिहास – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुंदेली लोक संस्कृति और साहित्य – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुन्देलखंड की संस्कृति और साहित्य – श्री राम चरण हयारण “मित्र”
बुन्देलखंड दर्शन – मोतीलाल त्रिपाठी “अशांत”
बुंदेली लोक काव्य – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुंदेली काव्य परंपरा – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुन्देली का भाषाशास्त्रीय अध्ययन -रामेश्वर प्रसाद अग्रवाल




