Bundeli Ke Geet Gazal Ki Ka Kaine बुंदेली के गीत गजल की का कैनें

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Bundeli Ke Geet Gazal Ki Ka Kaine बुंदेली के गीत गजल की का कैनें
Bundeli Ke Geet Gazal Ki Ka Kaine बुंदेली के गीत गजल की का कैनें

बुंदेली के गीत गजल की का कैनें

फाग लावनी के दंगल की का कैनें ।
बुंदेली के गीत गजल की का कैनें॥

राई, कहरवा, गोटें, गारीं, लमटेरा ।
नचै काँडरा स्वाँग सकल की का कैनें॥

कारीटोरन, द्रोनागिर जैसे परबत ।
जेठे बब्बा बिन्ध्याचल की का कैनें॥

लंकलाट औ फलालेंन से बे कपड़ा ।
ऊ सुपेत देसी मलमल की का कैनें॥

कुन्डेसुर कीं बिहीं किसुनगढ के ओंरा ।
हीरापुर के छीताफल की का कैनें॥

छत्रसाल से बीर बली  रानी झाँसी ।
आला ऊदल औ परमल की का कैनें ॥

कैंन, धसान,जामनी काठन सीं बैंनें ।
सरस बेतवा के आँचल की का कैनें॥

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घुघटा के भीतर मुसक्या रइं यैसारे दै दै कें।
बर्रोटन में रोज बुला रइं यैसारे दै दै कें॥

बजें पायलन के जब ककरा छन्न छन्न जी होबै।
हाँतन कीं चुरियाँ खनका रइं यैसारे दै दै कें॥

दिल की लगी दिलइ  जाँनत है और कोउ का जाँनें।
गलियँन खोरन में इठला रइं यैसारे दै दै कें॥

तुमें देखबे ताल कुवा पै पारन ठाँडे रइये।
हारन खेतन खूब नचा रइं यैसारे दै दै कें॥

जी भरकें तौ कबउँ दिखादो गोरी प्यारी मुइंयाँ।
दरसन खों कब सें तरसा रइं यैसारे दै दै कें॥

यैसी मोहनियाँ डारी है बिसरौ नहीं बिसारीं।
मुस्की मार- मार तलफा रइं यैसारे दै दै कें॥

छाती सें चिपका कें ओजू पथरा सें नें मारौ।
सरस हँसी कबसें करवा रइं यैसारे दै दै कें॥
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आँदरे ऐंना दिखा रय गाँव में।
दही में मूसर दता रय गाँव में॥

रात दिन मौं पै धरी है लाबरी।
साँच की पट्टी पड़ा रय गाँव में॥

देख लौ बंदरा स्यानें हो गये।
स्वाद अदरक कौ बता रय गाँव में॥

पान सौ पत्ता पलोटत रय जिनें।
बेइ अब चूना लगा रय गाँव में॥

सेरनी कौ दूद पीकें पले पै।
पूँछ कुत्ता सी हला रय गाँव में॥

जोंन पातर में अबै लौ खात रय।
ओइ में छेदा बना रय गाँव में॥

पुन्न कौ पट्टौ सरस घर में धरौ।
पाप की गंगा बहा रय गाँव में॥

बुन्देली लोक संस्कृति 

रचनाकार – डॉ. देवदत्त द्विवेदी “सरस”
बड़ामलहरा छतरपुर