बुन्देली का शुद्ध क्षेत्र या मध्यवर्ती क्षेत्र बुंदेली बोली विस्तृत भू-भाग की स्वामिनी है। उसका अपना विशाल प्रसार क्षेत्र है, Bundeli Ka Swaroop Aur Visheshtayen बुन्देली का स्वरूप और विशेषताएं इसे समृद्ध बनाती हैं। इसी क्षेत्र के बीचों बीच जो भाग आता है, उसे ही बुन्देली का मध्यवर्ती क्षेत्र कहा जाता है। चूँकि इस क्षेत्र की बुन्देली, भाषाई दृष्टिकोण से मानक अथवा शुद्ध है, इसलिये इसे शुद्ध बुन्देली का क्षेत्र माना जाता है।
बुन्देली क्षेत्र के अन्तर्गत झाँसी, टीकमगढ़, दतिया, सागर, दमोह, विदिशा (पश्चिमी भाग के अलावा) छतरपुर एवं पन्ना जिले का पश्चिमी हिस्सा नरसिंहपुर तथा जबलपुर जिले का पश्चिमी भाग, गुना एवं शिवपुरी का पूर्वी भाग एवं होशंगाबाद का मध्यपूर्वी जिला आता है।
यथार्थतः देखा जाय तो किसी भी भाषा अथवा बोली का संपूर्ण क्षेत्र एक स्वरूप नहीं लिए होता है, क्योंकि परम्पराओं एवं स्थान परिवर्तन के कारण बोली विशेष में स्थानीयता का प्रभाव पड़ता है। परिणामतः बोलीरूपों में भिन्नता स्पष्ट प्रतीत होने लगती है, जो स्वाभाविक है।
बुन्देली के सीमावर्ती क्षेत्रों में बघेली, कन्नौजी, छत्तीसगढ़ी, मालवी, मराठी, ब्रज एवं राजस्थानी जैसी बोलियाँ प्रचलित हैं, जिनका बुन्देली पर स्पष्ट प्रभाव है और इसी प्रभाव ने बुन्देली के अनेक मिश्रित रूपों को जन्म दिया है, किन्तु बुन्देली का मध्य क्षेत्र इन बोलियों से दूर है, इसलिए यहाँ शुद्ध बुन्देली रूप है। शुद्ध बुन्देली से तात्पर्य इस अप्रभावित क्षेत्र की बोली से है, जो बुन्देली प्रधान है। इन जिलों में कुछ भिन्नताओं के साथ बुंदेली अपने शुद्ध रूप में विद्यमान है, जिसका विवरण इस प्रकार है-
बुन्देली का मानक – झाँसी
झाँसी जिला बुन्देली भूमि एवं बुन्देली का आधार क्षेत्र है। भाषाविज्ञान इसी क्षेत्र को बुन्देली के विश्लेषण का मुख्य आधार बनाते हैं। यह बुन्देली के मध्य भाग में स्थित है, जो किसी अन्य बोली से पूर्णतः अप्रभावित है। इसी कारण भाषावैज्ञानिक इसे शुद्ध बुन्देली का क्षेत्र कहते हैं।
झांसी क्षेत्र की बुन्देली की विशेषताएँ
1 – हकार लोप की प्रवृत्ति बुन्देली की प्रमुख विशेषता है, जो हमें झाँसी की बुन्देली में स्पष्ट दिखायी देता है। उदाहरणतः – उदनशाह – उदनशाय, उन्होंने – उनने, बहू – बऊ, पहुँची – पोंची।
2 – बुन्देली में संज्ञा शब्दों को बहुवचन रूप में परिवर्तित करने के लिए ‘न‘ एवं ‘ए‘ प्रत्यय लगाये जाते हैं। उदाहरण स्वरूप – सैनिक – सैनिकन, आदमी – आदमियन, बहू – बऊऐं, मोड़ी – मोड़ियें।
3 – झाँसी क्षेत्र की बुन्देली में शब्दों के संयुक्त रूप भी देखने को मिलता है। उदाहरण के लिये-पड़ते ही – परतनईं, जैसे ही- जैसई, स्नान कर रही – सपर्रई।
4 – बुन्देली में अकारान्त संज्ञा एवं विशेषण शब्दों का उच्चारण रूप ओकारान्त हो
जाता है। यही कारण है कि झाँसी की बुन्देली में भी यह प्रवृत्ति स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है- रजवाड़ा – रजवाड़ो, धोक – धोको, होता – होतो।
5 – ‘लेकिन‘ शब्द के लिए बुन्देली के क्षेत्र में अनेक शब्द प्रयोग किये जाते हैं। जैसे- पै, परन्तु इत्यादि। परन्तु झाँसी जिले में लेकिन के लिए ‘अकेले‘ शब्द का प्रयोग देखने को मिलता है, जो क्षेत्रगत विशिष्टता प्रतीत होती है।
6 – बुन्देली में तृतीय पुरुष ‘वह‘ एक वचन सर्वनाम के लिए ‘बो‘ अथवा ओकारान्त ‘बौ‘ शब्द का प्रयोग होता है। प्रस्तुत उदाहरण में ‘वह‘ के लिए ‘ऊ‘ शब्द का प्रयोग मिलता है – ऊ कर लैहे जो काम, तम नें करो।
7 – बुन्देली का संपूर्ण क्षेत्र ही सानुनासिकता की प्रवृत्ति लिए हुए है, जिसका रूप झाँसी क्षेत्र में भी मिलता है- उन्होंने-उननें, नहीं-नईं, हती-हतीं, से-सें।
8 – बुन्देली भाषी प्रदेश में हिन्दी के भूतकालवाची था, थी, थे रूपों का प्रयोग हतो, हती, हते रूपों में होता है, जिसका प्रचलन झाँसी क्षेत्र में भी मिलता है – अच्छे थे – अच्छे हते, दुखी नहीं था- दुखी नई हतो, फौजें थीं- फौजे हतीं।
9 – सामान्य हिन्दी के भविष्य वाची प्रत्यय ग, गी, गे का प्रयोग बुन्देली में अन्य रूपों में मिलता है, जो झाँसी क्षेत्र में भी प्रचलित है- होगा-हुईए, चढ़ेगा-चढ़है, चढ़ चुका होगा-चढ़ चुको हुइए।
उपर्युक्त उदाहरण के आधार पर हम कह सकते हैं कि झाँसी जिला बुन्देली का मानक क्षेत्र है, जिसकी विशेषताओं के आधार पर हम बुन्देली के किसी भी क्षेत्र विशेष की बुन्देली का परीक्षण एवं विश्लेषण कर सकते हैं।
ललितपुर की बुन्देली
झाँसी जिले के दक्षिण में ललितपुर जिला है, जो बुन्देली के मध्यवर्ती क्षेत्र के अंतर्गत ही परिगणित किया जाता है। झाँसी एवं ललितपुर की बोली-बुन्देली में विशेष नहीं मिलती है। यहाँ मानक बुन्देली का ही रूप प्रचलन में है। कुछ शब्दों में भिन्नता अवश्य दिखाई देती है ।
ललितपुर क्षेत्र की बुन्देली की विशेषताएँ
1 – ललितपुर जिले की बुन्देली में ‘ई‘ प्रत्यय का प्रयोग बहुतायत से मिलता है। प्रस्तुत उदाहरणों में इस प्रकार का प्रयोग दृष्टव्य है-दुःखी नईं होय, नाईं, नईं कई जात, फोर लाईं, जई की तईं, भईं, भीतरईं, भीतई इत्यादि।
2 – खड़ी बोली हिन्दी के तृतीय पुरुष बहुवचन रूप ‘उन्होंने‘ जहाँ ललितपुर में ‘उननें‘ के रूप में बहुवचन के लिए प्रयुक्त है, वहीं सम्मान सूचक शब्द के रूप में इसका प्रयोग एकवचन के रूप में किया जाता है। इसी प्रकार खड़ी बोली के ‘उसने’ के लिए सामान्य व्यक्तियों के लिए ‘ऊने‘ एवं सम्मान दर्शाने के लिए ‘उननें‘ का प्रयोग ‘उसको‘ के लिए ‘ऊखों‘ और सम्मानपूर्वक ‘उनें‘ अथवा ‘उनखों‘ शब्द का प्रयोग मिलता है। वैसे ये बहुवचन रूप में भी प्रयोग किये जाते हैं।
3 – ‘एकारान्त‘ शब्दों का ‘ऐकारान्त‘ तथा ‘ओकारान्त‘ शब्दों का ‘औकारान्त‘ रूप में उच्चारण ललितपुर की बुन्देली में मिलता है, उदाहरण स्वरूप-ऊँच नीच-ऊँचे, नीचे, होकर – होकें, होता-होतो। इसी प्रकार-पर-पै, केबो-कैबो, के-कै, लरबे-लरबै। उपरोक्त उदाहरणों के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि ललितपुर जिले की बुन्देली कुछ शब्द रूपों को छोड़कर बुन्देली की सामान्य विशेषताएँ ही लिए हुए हैं। ललितपुर जिले का दक्षिण क्षेत्र सागर जिले की उत्तरी सीमा से लगा हुआ है, इसलिये इस क्षेत्र पर सागर जिले की बुन्देली का भी अत्यल्प प्रभाव देखने को मिलता है।
टीकमगढ़ का बुन्देली रूप
टीकमगढ़ जिला बुन्देली का प्रमुख केन्द्र है, जिसके अन्तर्गत वर्तमान में ओरछा भी सम्मिलित है। ओरछा क्षेत्र बुन्देली के महान कवियों की काव्य-स्थली रहा है। यहाँ की बुन्देली भी मध्यवर्ती भाग के अन्य क्षेत्रों के समान ही है।
टीकमगढ़ क्षेत्र की बुन्देली की विशेषताएँ
1 – हकार लोप की प्रवृत्ति अन्य क्षेत्रों की तरह ही है। उदाहरण स्वरूप-कहता-कत, बहुत-भोत, उन्होंने-उननें।
2 – बेई (वही), नोनें (अच्छे), घरके (पास के), नाँय – माँय (इधर-उधर), झपट कें कर लिआव (जल्दी कर लो), हओं (हाँ) इत्यादि शब्द टीकमगढ़ जिले की बुन्देली का स्थानीय वैशिष्ट्य लिए हुए हैं।
३ – बुन्देली का अधिकांश क्षेत्र ‘व‘ के ‘ब‘ के रूप में उच्चारित करने के लिये जाना जाता है, किन्तु टीकमगढ़ क्षेत्र की बोली में ‘व‘ के रूप में ही ज्यादातर प्रयोगकर्ता प्रयुक्त करते हैं, भव, रव, चढवे दीवान इत्यादि। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि बुन्देली से अत्यल्प भिन्नताओं को छोड़कर टीकमगढ़ क्षेत्र की बुन्देली का स्वरूप मानक रूप जैसा ही है।
दतिया का बुन्देली रूप
दतिया जिला भी बुन्देली के शुद्ध रूप वाले क्षेत्र के अंतर्गत सम्मिलित किया जाता है। इस क्षेत्र में नब्बे प्रतिशत बुन्देली भाषी रहते हैं। दतिया जिले में पँवार (परमार) जाति के लोग बड़ी संख्या में निवास करते हैं, हालांकि इस जिले की अन्य जातियाँ भी उसी प्रकार की बुन्देली का प्रयोग करती हैं, जो पँवार लोग करते हैं।
दतिया क्षेत्र की बुन्देली की विशेषताएँ
1 – सानुनासिकता की प्रवृत्ति मानक रूप की तरह ही है।
2 – ‘हकार‘ लोप की प्रवृत्ति भी बुन्देली के रूप को स्पष्ट करती है।
3 – प्रस्तुत उदाहरण में ‘अपने‘ के स्थान पर ‘आपईं‘ शब्द दतिया क्षेत्र की बुन्देली के स्थानीय स्वरूप को प्रकट करता है, क्योंकि इस शब्द का प्रचलन अन्य कहीं नहीं मिलता है।
4 – बुन्देली के अधिकांश क्षेत्रों में कर्मकारकीय परसर्ग ‘खों‘ का प्रयोग किया जाता है, किन्तु इस क्षेत्र में यह ‘कों‘ के रूप में मिलता है।
5 – मध्यवर्ती क्षेत्र में जहाँ प्रस्तुत उदाहरण में सम्मान सूचक हते, ते आदि शब्द मिलते हैं, वहीं यहाँ हतो, तो शब्द मिलते हैं- अच्छो हतो – अच्छो तो, मानत्तो, मानत तो, इत्यादि।
6 – ‘कहने‘ शब्द के लिए मध्यवर्ती क्षेत्र में ‘कहते‘, केतते, कत्ते शब्द का प्रयोग किया जाता है, किन्तु यहाँ ‘कऊत‘ शब्द का स्थान वैशिष्ट्य के रूप में प्रयोग प्राप्त होता है।
ग्वालियर जिले की बुन्देली की प्रमुख विशेषतायें
1- बुन्देली के अन्य पुरुष उये, ऊने, उनने, उनपे, उनके आदि रूपों के लिए इस क्षेत्र में बाये, बाने, बिनने, बिनपे जैसे रूप प्रयुक्त किये जाते हैं।
2- बुन्देली के द्वितीय पुरुष ‘तुम‘ का संबंध कारक रूप तुमारो अथवा तुमाओ यहाँ के बोलीरूप में तेव के रूप में व्यवहृत किया जाता है। जैसे- तेव लोग-तुम्हारा पति। तेव मोड़ा – तुम्हारा बच्चा।
3- हकार लोपीकरण की प्रवृत्ति बुन्देली की एक प्रमुख विशेषता है जो कि यहाँ स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है, जैसे- कहत-कत, ऊदनशाह-ऊदनशाय, बहुत-भोत।
4- अकारान्त का एकारान्त रूप भी यहाँ द्रष्टव्य है, जैसे- तरह – तरै, कह – कै।
5- स्त्रीलिंग कर्ता के कहन शब्द के लिए यहाँ कत शब्द का प्रयोग स्थानीय वैशिष्ट्य का प्रतीक है।
मुरैना जिले का बुन्देली रूप
इस जिले का बुन्देली रूप ग्वालियर जिले से अधिक भिन्न नहीं है। ग्वालियर क्षेत्र से उत्तर की ओर बढ़ने पर बुन्देली में ब्रज का मिश्रण होता जाता है, वही स्थिति मुरैना जिले की भी है। मुरैना जिले के पूर्वोत्तर जाने पर इसके सीमावर्ती कन्नौजी का प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है।
मुरैना क्षेत्र की बुन्देली की विशेषताएँ
1- एकारान्त के स्थान ऐकारान्त का प्रयोग ब्रज की विशेषता का प्रमाण है, जो इस क्षेत्र में देखने को मिलता है, जैसे- कहते थे – कहातै, मानते – मानतै।
2- समीकरण की प्रवृत्ति भदावरी की एक प्रमुख विशेषता है, जो इस क्षेत्र के बुन्देली रूप में स्पष्ट है, जैसे- मानते थे – मानतै, जानते हैं – जानत, बैठा दिए – बैठादय।
3- शब्दान्त में ‘आय‘ प्रत्यय का प्रयोग मिलता है, जैसे- खींच-खिंचबाय, हरबा- हरबाय, करबा – करबाय, बनवा – बनबाय।
4- ‘वह‘ अन्य पुरुष एक वचन के लिए ‘बू‘ शब्द का प्रयोग स्थानीय वैशिष्ट्य का प्रतीक है, जैसे- वह कहता था-बू कहत तो।
5- अनेक अकारान्त संज्ञा शब्दों का इकारान्त रूप में प्रयोग करने की प्रवृत्ति ब्रज एवं कन्नौजी के प्रभाव की ओर इंगित करती है, बाद – बादि, छवि – छब।
6- हकार लोपीकरण एवं अनुनासिकता बुन्देली के अन्य क्षेत्रों के समान ही हैं।
भिण्ड का बुन्देली रूप
बुन्देली के उत्तरी रूप के अंतर्गत भिण्ड जिला भी सम्मिलित किया जाता है। सीमावर्ती जिला होने के कारण यहाँ के बोलीरूप पर ब्रज और कन्नौजी का प्रभाव है।
भिण्ड क्षेत्र की बुन्देली की विशेषताएँ
1- शब्दों के मध्य अक्षर को अर्द्ध अक्षर करने की प्रवृत्ति कन्नौजी के प्रभाव को दर्शाती है, जैसे – जानते – जान्त, मानते – मान्त, मिलते – मिल्त।
2- भदावरी की एक प्रमुख विशेषता समीकरण वृत्ति है जो कि यहाँ के बोली रूप पर भी स्पष्ट दिखायी पड़ता है। जैसे- हद कर दी – हद्दई कर दई, रख- धद्दई, बरसा – बस्सो, बैठा दिये – बैठाद्दय।
3- ‘कह‘ के लिए ‘कस‘ शब्द का प्रयोग स्थानीय वैशिष्ट्य का प्रतीक है, अन्य विशेषताएँ बुन्देली के अन्य क्षेत्रों के समान ही हैं। हम कह सकते हैं कि ग्वालियर, मुरैना, भिण्ड एवं उत्तरप्रदेश के आगरा, मैनपुरी और इटावा जिलों के बोलीरूप बहुत कुछ समानता के धरातल पर प्रवाहित हैं। प्राचीन काल से ही इन जिलों की सांस्कृतिक एकता भी इनके एकत्व को संरक्षित करती है। यहाँ तक कि इन क्षेत्रों की भौगोलिक स्थिति भी समान है। बोलीरूप भी नाममात्र के अंतर से व्यवहृत है, इसलिए यहाँ के बुन्देली रूपों में मूलभूत समानता को अस्वीकृत नहीं किया जा सकता है।
विदिशा का बुन्देली रूप
बुन्देली के मध्यवर्ती क्षेत्रों के अन्तर्गत विदिशा जिले का पूर्वी एवं दक्षिणी भाग ही केवल सम्मिलित किया जाता है। क्योंकि इसका पश्चिमी भाग मालवी बोली के क्षेत्र से संपृक्त है। चूँकि इसका पूर्वी भाग सागर जिले से एवं दक्षिणी भाग रायसेन जिले से जुड़ा हुआ है और ये क्षेत्र शुद्ध बुन्देली के होने के कारण विदिशा के पूर्वी एवं दक्षिणी क्षेत्र की बुन्देली सागर एवं रायसेन की शुद्ध बुन्देली के समान ही है, फिर भी पूर्णतः नहीं। इस पर कहीं खड़ी बोली तो कहीं मालवी का प्रभाव देखने को मिलता है।
विदिशा क्षेत्र की बुन्देली की विशेषताएँ
1 – मध्यवर्ती क्षेत्र के अनेक हिस्सों की तरह इस क्षेत्र में भी एकारान्त को ऐकारान्त और ओकारान्त को औकारान्त रूप में प्रयोग करते हैं – सुना – सुनो, बार – बैर, होकर- होकें।
2 – हकार लोप की प्रवृत्ति बुन्देली की महत्त्वपूर्ण विशेषता है, जो इस क्षेत्र में भी स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है। जैसे- कहता- कत, गढ़पहरा – गढ़पैरा, पहचानते- पैचानत इत्यादि।
3 – खड़ी बोली का वह सर्वनाम बुन्देली के अन्य स्थानों पर बाए, बोई, बा आदि रूपों का प्रयोग मिलता है, किन्तु प्रस्तुत उदाहरण में ‘बई‘ रूप का प्रयोग किया गया है, जो स्थानीय विशेषता ही कही जा सकती है।
4 – खड़ी बोली के शब्दों का आंशिक प्रयोग भी खड़ी बोली के प्रभाव की ओर इंगित करता है। उदाहरण के लिए – लोगों, खुश, शत्रु, दीवान।
5 – अनुस्वार की प्रवृत्ति भी विद्यमान है।
सागर जिले का बुन्देली रूप
शुद्ध बुन्देली के क्षेत्रान्तर्गत सागर जिले की बोली का महत्त्वपूर्ण स्थान है। सागर जिले के चारों ओर शुद्ध बुन्देली क्षेत्र होने के कारण यहाँ की बोली पर अन्य किसी बोली का प्रभाव नहीं है। इसी कारण यहाँ की बोली शुद्ध बुन्देली है, जिसका रूप झाँसी जिले की मानक बुन्देली से मिलता-जुलता है। वैसे भी सागर जिले की उत्तरी सीमा, झाँसी जिले की दक्षिणी सीमा को स्पर्श करती है।
सागर क्षेत्र की बुन्देली की विशेषताएँ
1 – मानक बुन्देली के अधिकांश क्षेत्रों की तरह जहाँ ‘औकार‘ की प्रवृत्ति मिलती है, वहीं सागर क्षेत्र में ‘औकारान्त‘ ही प्रयोग किये जाते हैं।
2 -सानुनासिकता की प्रवृत्ति यहाँ के बोलीरूप में बुन्देली की विशेषता के अनुरूप ही है।
3 – ‘हकार‘ लोप की प्रवृत्ति सर्वत्र परिलक्षित होती है। यह लोपीकरण आदि, मध्य और अन्त सभी प्रकार से मिलता है। हद ही कर दीं – हद्दई कर दईं, पहुँचे – पौचे, पहला – पैला।
4 – कोमलीकरण बुन्देली की प्रमुख विशेषताओं में से एक है। परिणामतयः कठोर वर्ण ‘ड‘ ‘ड़‘ ‘र‘ में तथा ‘ढ‘ ‘ढ़‘ ‘र‘ वर्ण में परिवर्तित होते दिखायी देते हैं। पहाड़-पहार, चिड़िया – चिरिया।
5 – नहीं के लिये ‘नें‘ हम नें करहें।
6 – जो काम ‘कह‘ के लिये ‘के‘ को का के रओ।
7 – ‘उलात‘ शब्द जल्दी के लिये उलात कर लो।
8 – संयुक्ताक्षर की प्रवृत्ति अब ही के लिये ‘अब्बई‘, कर लिया के लिये कल्लव, तुम ही के लिये ‘तुमई‘, हम ही के लिये ‘हमई‘।
9 – एकवचन और बहुवचन दोनों में ‘हम‘ शब्द का प्रयोग हम नें जैहें अर्थात् मैं नहीं जाऊँगा या जाऊँगी।
छतरपुर का बुन्देली रूप
छतरपुर जिले की बुन्देली बोली को सर जार्ज ग्रियर्सन ने ‘खटोला‘ बुन्देली कहा है। इस क्षेत्र के अंतर्गत उन्होंने बिजावर, पन्ना, रामपुर, परगना, महराजनगर, छतरपुर खास, देवरा, रामनगर, लुगासी, गर्रोली, अलीपुरा, बीहट, बिलहरा आदि भाग सम्मिलित किये हैं। इसके ‘खटोला‘ नामकरण का ऐतिहासिक तथ्य यह है कि छतरपुर जिले के बड़ा मलहरा कस्बे से पाँच कि.मी. दूर ‘गंज‘ नामक ग्राम है, जहाँ विक्रम की तेरहवीं से पन्द्रहवीं सदी तक गौड़ राजाओं का छोटा सा राज्य था।
महाराज छत्रसाल के समय में ‘खटोला‘ परगना कहलाता था, जिसके अन्तर्गत बिजावर तहसील, छतरपुर का मध्य एवं उत्तरी भाग टीकमगढ़ का दक्षिणी भाग, दक्षिण में बक्स्वाहा तथा शाहगढ़, पन्ना का दक्षिणी क्षेत्र एवं दमोह का उत्तरी भाग इसी राज्य के अन्तर्गत सम्मिलित किया जाता था और इसी कारण ‘खटोल‘ राज्य के इन क्षेत्रों में प्रचलित बुन्देली रूप को ‘खटोला बुन्देली‘ के नाम से जाना जाता है।
छतरपुर क्षेत्र की बुन्देली की विशेषताएँ
1 – ‘खटोला‘ रूप की प्रमुख विशेषता हकार के लोपीकरण की है और यह प्रवृत्ति आद्याक्षर, मध्याक्षर एवं अन्त्याक्षर सभी जगह मिलती है। उदाहरण के लिए – खड़े – ठाढ़े, ठाड़े, पहचानते – चीनतो, ऊदनशाह – ऊदनशाय इत्यादि।
2 – ‘कहना‘ के लिए अधिकांश क्षेत्र में कात, कहत जैसे शब्दों का प्रयोग मिलता है। ‘कइत‘ शब्द का प्रयोग स्थानीय प्रवृत्ति का द्योतक है।
3 – इसी प्रकार ‘बार‘ शब्द के लिए ‘दइंयाँ‘ शब्द का प्रयोग एक तरफ के लिए ‘कोद‘ भी इसी स्थानीय वैशिष्ट्य को स्पष्ट करता है।
4 – बुन्देली के अन्य क्षेत्रों में कर्मकारण परसर्ग खों, कों प्रचलित है, किन्तु इस क्षेत्र में यह ‘खाँ‘ हो गया है।
5 – शब्दों के अन्त में ‘ही‘ के लिए ‘ई‘ प्रत्यय जोड़कर संयुक्त शब्द रूप बनाये जाते हैं। उदाहरण के लिए – स्नान कर रही – सपर्रई, देखते ही – देखतइ, जैसे ही – जैसई, करते ही – करतई।
6 – इसी प्रकार एकारान्त का ऐकारान्त एवं ओकारान्त का औकारान्त रूप भी यहाँ की विशेषता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि छतरपुर जिले का ‘खटोला‘ रूप भी शुद्ध बुन्देली का प्रतिनिधि है।
पन्ना का बुन्देली रूप
बुन्देली के शुद्ध रूप के अंतर्गत पन्ना जिले का केवल पश्चिमी भाग ही सम्मिलित किया जाता है, क्योंकि इसके दूसरे भागों की सीमाएँ बघेली प्रभावित हैं। चूँकि यहाँ की बुन्देली में एवं पन्ना जिले के पश्चिमी भाग की बुन्देली में विशेष अन्तर नहीं है। इसी कारण इसे ‘पन्ना का खटोला‘ भी कहा जाता है।
पन्ना क्षेत्र की बुन्देली की विशेषताएँ
1 – मध्यवर्ती क्षेत्रों में ‘कहता‘ के लिए ‘कात‘ ‘केत‘ और ‘कइत‘ जैसे शब्द प्रचलित हैं। यहाँ ‘कहत‘ प्रयोग किया जाता है, जिसमें ‘हकार‘ विद्यमान है।
2 – अन्य शब्दों में भी यह प्रवृत्ति कम ही देखने को मिलती है – गढ़पहरा, पहचानते, बहू इत्यादि। इससे सिद्ध होता है कि इस क्षेत्र में अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा हकार लोपीकरण की प्रवृत्ति बहुत कम है। इसके विपरीत कुछ शब्दों में यह अतिरिक्त विद्यमान है- होगा – हूहे, चढ़ेगा – चढ़है।
3 – छतरपुर की खटोला में कर्मकारक परसर्ग ‘खों‘ है। अन्यत्र यह ‘को‘ रूप भी धारण किए हुए है, परन्तु पन्ना के इस क्षेत्र की खटोला बुन्देली में यह ‘खों‘ ‘खें‘ रूप में मिलता है। धरम खें, आँखन खों।
4 – मध्यवर्ती क्षेत्र में जगह-जगह शब्द के लिए जगाँ-जगाँ, जगे-जगे, जगा-जगा, लंगन-लंगन आदि शब्द रूपों का प्रयोग मिलता है, लेकिन यहाँ पर यह जँहगन-जँहगन जैसे रूप में विद्यमान है, जो स्थानीय वैशिष्ट्य का परिचायक है।
5 – इन विशेषताओं के अलावा ओकारान्त और एकारान्त शब्दरूपों का प्रचलन मध्यवर्ती बुन्देली के अन्य क्षेत्रों के समान ही है।
दमोह का बुन्देली रूप
बुन्देली के खटोला रूप के क्षेत्र में, दमोह जिले का उत्तरी भाग सम्मिलित है, जो कि पन्ना जिले के खटोला भाषी दक्षिणी क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। इस क्षेत्र का पश्चिमी भाग सागर जिले के पूर्वी भाग से संपृक्त है। इस कारण इस जिले के बोलीरूप दो तरह के हो गये हैं। पन्ना सीमा से जुड़ा क्षेत्र खटोला रूप में और सागर से जुड़ा क्षेत्र सागरी रूप में विद्यमान है।
पन्ना क्षेत्र की बुन्देली की विशेषताएँ
1 – एकारान्त और ओकारान्त की प्रवृत्ति अन्य क्षेत्रों सदृश है।
2 – ‘हकार‘ लोपीकरण भी है।
3 – जहाँ पन्ना की बुन्देली में ‘खाँ‘ कर्मकारक परसर्ग है, वहीं यहाँ ‘खों‘ रूप में है।
शिवपुरी का बुन्देली रूप
भाषा-भूगोल के दृष्टिकोण से शिवपुरी बुन्देली का सीमावर्ती जिला माना जाता है, क्योंकि इसके दक्षिण पश्चिम में मालवी एवं उत्तर पश्चिम में जयपुरी का क्षेत्र है। शुद्ध बुन्देली की दृष्टि से इसका पूर्वी हिस्सा ही सम्मिलित किया जाता है। हालांकि इसमें भी अत्यल्प मात्रा में राजस्थानी, मालवी तथा खड़ी बोली का प्रभाव मिलता है। इस क्षेत्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
1 – ‘यहाँ’ के लिए ‘हिना‘ शब्द का प्रयोग अनेक बार हुआ है, जो राजस्थानी का प्रभाव लिये हुए है।
2 – इसी प्रकार ‘कहता‘ क्रिया वाचक शब्द के लिए जहाँ अन्य क्षेत्रों में कत, कहत, केत, कईत, कऊत शब्द मिलते हैं, वहीं प्रस्तुत उदहारण में ‘कूत‘ शब्द का प्रयोग भी किया गया है, जो सम्भवतः उच्चारण वैशिष्ट्य ही कहा जा सकता है।
3 – निजवाचक सर्वनाम खड़ी बोली ‘अपने‘ एवं ‘अपनी‘ शब्दों के लिए यहाँ क्रमशः ‘अपयें‘ एवं ‘अपई‘ शब्द रूपों का प्रयोग मिलता है।
4 – तरफ के लिए ‘तनें‘ देखने के लिए ‘चिते‘ ‘नहा रही‘ में ‘नारई‘ जैसे शब्द जहाँ स्थान, वैशिष्ट्य के द्योतक हैं, वहीं हकारलोप की प्रवृत्ति को स्पष्ट करते हैं।
5 – एकारान्त और ओकारान्त की प्रवृत्ति अन्य क्षेत्रों के समान ही वर्तमान है। इन भिन्नताओं के अलावा शेष रूप मध्यवर्ती क्षेत्र के अन्य भागों की तरह ही है।
गुना का बुन्देली रूप
गुना जिले के पूर्वी भाग की उत्तरी सीमा शिवपुरी जिले की दक्षिणी सीमा से पूर्वी सीमा झाँसी जिले की पश्चिमी सीमा से तथा दक्षिणी सीमा विदिशा जिले की उत्तरी सीमा से संलग्न है।5 मध्यवर्ती क्षेत्र की बुन्देली में गुना का पूर्वी हिस्सा ही सम्मिलित किया जाता है, क्योंकि अन्य भाग मालवी प्रभावित है।
गुना क्षेत्र की बुन्देली की विशेषताएँ
1 – इस क्षेत्र का कर्मकारक परसर्ग विशुद्ध ‘कों‘ रूप में ही मिलता है।
2 – प्रस्तुत कहानी में कई जगह ‘था‘ के स्थान पर ‘थो‘ का प्रयोग किया गया है, जो मालवी के प्रभाव को प्रदर्शित करता है।
3 – इसी प्रकार ‘सकता‘ का ‘सक्त‘, जानता का ‘जान्त‘ शब्दरूपों में आद्य अक्षर की प्रवृत्ति उच्चारण वैशिष्ट्य को प्रकट करती है, जिसकी समानता भिण्ड क्षेत्र की बोली में देखने को मिलती है।
4 – इसी प्रकार ‘होगा‘ का ‘होयगा‘ का ‘होयगो‘, ‘चढ़ेगा‘ का ‘चढ़ेगो‘ शब्द मालवी के हैं।
5 – ‘स्त्री‘ के लिए ‘बैय्यर‘ शब्द का प्रयोग स्थानीयता का द्योतक है। इन विशेषताओं के अलावा अन्य रूप बुन्देली के शुद्ध क्षेत्रों के समान ही हैं।
होशंगाबाद का बुन्देली रूप
भाषा वैज्ञानिकों ने होशंगाबाद जिले के बोलीरूप को दो भागों में बाँटा है –
1– बुन्देली क्षेत्र – यह वह क्षेत्र है जहाँ बुन्देली बोली जाती है, इसके अंतर्गत सोहागपुर एवं होशंगाबाद तहसीलें सम्मिलित की गयीं हैं।
2– मालवी क्षेत्र – इस क्षेत्र में सिवनी तहसील एवं दूसरी हरदा तहसील है, जहाँ की मालवी पर बुन्देली अपने अल्प प्रभाव के साथ है। इसलिए शु़द्ध बुन्देली के क्षेत्र के अन्तर्गत सोहागपुर एवं होशंगाबाद तहसीलें ही आती हैं, जबकि हरदा एवं सिवनी तहसीलें मिश्रित बुन्देली के अंतर्गत सम्मिलित की जाती हैं।
सोहागपुर एवं होशंगाबाद में बोली जाने वाली बुंदेली की विशेषतायें
1 – बुन्देली के मध्यवर्ती क्षेत्रों में ‘हकार‘ लोप की प्रवृत्ति प्रमुख विशेषता है, परन्तु लोपीकरण इस क्षेत्र में बहुत ही कम मात्रा में मिलता है। उदाहरण के लिए – गढ़पहरा, हूहे, होहे इत्यादि।
2 – दिखनों, चढ़ेगा आदि शब्दों में मालवी प्रभाव परिलक्षित होता है।
3 – बहुत, नहीं, प्रजा, सहित, कभी इत्यादि शब्द खड़ी बोली के प्रभाव की ओर इंगित करते हैं।
4 – बुन्देली की द्वितीय विभक्ति में खाँ, खें, खों, कों आदि शब्दों का प्रचलन है, किन्तु इस क्षेत्र में इनके स्थान पर ‘हे‘ विभक्ति का प्रयोग भी होता है।
5 – यहाँ के लिए ‘झाँ‘ का प्रयोग स्थानी विशेषता का परिचायक है।
6 – अन्य रूप बुन्देली के मानक रूप के समान ही हैं।
रायसेन का बुन्देली रूप
रायसेन जिले का पश्चिमी भाग ही केवल ऐसा है, जो मालवी प्रभावित बुन्देली भाषी भोपाल से संलग्न है। इसके अलावा इसके पूर्व में सागर जिला, उत्तर में बुन्देली भाषी विदिशा तथा दक्षिण में बुन्देली भाषी होशंगाबाद की सोहागपुर तहसील है। तीन ओर से शुद्ध बुन्देली एवं एक ओर से मालवी होने के कारण रायसेन क्षेत्र की बुन्देली शुद्ध रूप में ही है। अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा इस क्षेत्र में अनुनासिकता की प्रवृत्ति न्यून है।
रायसेन क्षेत्र की बुन्देली की विशेषताएँ
1 – हकार लोपीकरण, शुद्ध बुन्देली की प्रवृत्ति के अनुसार ही है।
2 – एकारान्त का ऐकारान्त अधिक मिलता है, अपेक्षाकृत ओकारान्त के औकारान्त में परिवर्तित होने के।
3 – लोगों, कोई, बहुत इत्यादि शब्द खड़ी बोली के प्रभाव का परिचय देता है।
4 – थों, चढे़गा आदि शब्द मालवी का प्रभाव दर्शाते हैं।
5 – सर्वाधिक शब्दों में ‘उकार‘ की प्रवृत्ति देखने को मिलती हैं जैसे- का कह सकूँ, का कर सकूँ। इनके अलावा अन्य विशेषताएँ बुन्देली के समान ही हैं।
नरसिंहपुर का बुन्देली रूप
नरसिंहपुर जिले के चारों ओर बुन्देली भाषी जिलों की सीमाएँ हैं, जिसके कारण इस क्षेत्र का बुन्देली रूप अपने मूल रूप में वर्तमान है। डॉ. ग्रियर्सन ने इस क्षेत्र को बघेली मिश्रित बुन्देली का क्षेत्र कहा है। लेकिन डॉ. कृष्णलाल हंस ने भी ‘बुन्देली और उसके क्षेत्रीय रूप‘ ग्रन्थ में स्पष्ट कहा है कि नरसिंहपुर की बुंदेली शुद्ध बुंदेली है।
नरसिंहपुर क्षेत्र के पूर्व में जबलपुर, पश्चिम में होशंगाबाद, उत्तर में सागर, दमोह एवं दक्षिण में सिवनी और छिन्दवाड़ा जिलों की सीमाएँ हैं। डॉ. ग्रिसर्यन ने इस जिले के बुन्देली रूप को बघेली से मिश्रित बताया है, लेकिन वास्तव में यह क्षेत्र शुद्ध बुन्देली का ही है, क्योंकि यहाँ के भाषा रूप में बुन्देली का व्यवहार ही अधिक होता है।
नरसिंहपुर क्षेत्र की बुन्देली की विशेषताएँ
1 – इस जिले की बुन्देली लोच लिये हुए है। उदाहरणतः ‘कोइ‘ शब्द के लिए ‘कुई‘ का प्रयोग यहाँ व्यवहार में प्रचलित है।
2 – भविष्यकालीन क्रियारूपों में ‘हुइये‘ के लिए यहाँ ‘हैगो‘ शब्द का प्रयोग मिलता है, जो पूर्वोत्तर छिन्दवाड़ा के समान ही है।
3 – जहाँ बुन्देली के अधिकांश हिस्सों में ‘अन‘ प्रत्यय जोड़कर बहुवचन के रूप तैयार किए जाते हैं, वहीं इस जिले में बहुवचन के लिए संज्ञा रूपों ‘ओ‘ प्रत्यय का प्रयोग देखने को मिलता है।
4 -‘फिर‘ शब्द के लिए यहाँ पर ‘फिन‘ रूप का प्रचलन होता है, जो स्थानीय वैशिष्ट्य का प्रतीक है।