आदि काल से भारत के अनेक क्षेत्रों मे अनेक भाषा और बोलियों का प्रचालन था Bhartiya Sanskriti Me Bhashagat Visheshtayen भारत की संस्कृति को श्रेष्ठतम बनाती हैं। भारत में आर्यों और आर्यों से पहले के भारतवासियों, खासकर द्रविड़ों के समन्वय से जो बड़ी संस्कृति उत्पन्न हुई, उसका प्रतिनिधित्व संस्कृत ने किया।
Linguistic Features in Indian Culture
संस्कृत शीघ्र ही उच्च वर्ग की विशेष बोली बन गई, जिसे शिक्षित लोग ही समझ पाते थे। इस भाषा में दी जाने वाली विधिवत शिक्षा पर ब्राह्मणों का ही अधिकार रहा। संस्कृत के विकास में उत्तर और दक्षिण दोनों ने योगदान दिया। बाद में दक्षिण के संतों और भक्त कवियों ने उत्तरी भारत के अन्दर तक प्रवेश किया और सांस्कृतिक रूप से इसे समृद्ध बनाया।
तमिल और संस्कृत के बीच शब्दों के आदान-प्रदान के प्रमाण मिलते हैं। किटेल की कन्नड़ इंग्लिश डिक्शनरी में ऐसे अनेक शब्दों का उल्लेख है जो तमिल से निकल कर संस्कृत में पहुंचे। इसी प्रकार संस्कृत ने भी तमिल को प्रभावित किया। द्रविड़ भाषाओं की सभी लिपियां ब्रमही से निकलीं। वैदिक धर्म के ग्रन्थ भी केवल उत्तर में नहीं लिखे गए। उनमें से अनेक की रचना दक्षिण में हुई। चिन्तकों, विचारकों और विशिष्ट समाज की भाषा दक्षिण में भी संस्कृत थी।
उत्तर भारत की सभी भाषाएं संस्कृत से निकल कर विकसित हुई हैं। ये भी परस्पर भिन्न हैं, परंतु संस्कृत ने हिन्दी को एक खास ढंग से विकसित करके उत्तर भारत को एक ऐसी भाषा दे दी, जो थोड़ी बहुत सभी भाषा क्षेत्रों में समझ ली जाती है यही Bhartiya Sanskriti Me Bhashagat Visheshtayen एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश की परम्पराओं के समन्वय मे सफल हुईं। तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम भी प्राचीन तमिल से ही निकली हैं। लेकिन द्रविड़ क्षेत्र में उस परिवार की कोई ऐसी भाषा उत्पन्न नहीं हुई, जो चारों भाषा क्षेत्रों में समझी जा सके।
तमिल जो भारत की अर्वाचीन भाषाओं में सबसे प्राचीन है, संस्कृत उससे भी कम से कम दो हजार वर्ष अधिक पुरानी भाषा है। अतः भारत को पहले जो कुछ भी कहना था उसने संस्कृत में कहा। अतः हिन्दू संस्कृति की मूल भाषा संस्कृत रही। यह जनता के विचार और धर्म का प्रतीक भी बनी। यद्यपि बुद्ध के समय से ही जनभाषा के रूप में इसका स्थान नहीं रहा।
भारतीय इतिहास में गुप्त युग से पूर्व के सहस्राधिक वर्षों में गंगा यमुना के मैदान में ही नहीं, पश्चिम में महाराष्ट्र से लेकर पूर्व में उड़ीसा तक और दक्षिण में आन्ध्र से लेकर हिमालयी राज्यों तक राजभाषा के रूप में उस जनभाषा का वर्चस्व दिखाई देता है, जो क्षेत्रीय भिन्नताओं के बावजूद पूरे देश में समझी जाती थी।
गुप्तों के उदय के बाद ब्राह्मण वर्चस्व की स्थापना के साथ ही संस्कृत राजभाषा के पद पर प्रतिष्ठित हुई। ब्राह्मण ग्रंथ संस्कृत में और बौद्ध ग्रंथ पालि में लिखे गए तो जैनों ने प्राकृत के अनेक रूपों का उपयोग करते हुए प्रत्येक काल एवं क्षेत्र में जब जो भाषा प्रचलन में थी, उसी के माध्यम से अपना प्रचार किया।
इस प्रकार आरंभ में विकसित हुई भाषा है पालि, जो मगध में बोली जाने के कारण मगधी भी कहलाती है और अन्य अनेक प्रांतीय प्राकृत भाषाएं। इन्हीं से हिन्दी , पंजाबी, बंगला, मराठी आदि आधुनिक भाषाएं निकलीं। किन्तु भारत में आर्येतर भाषाओं का भी एक विस्तृत और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण वर्ग है, जिसमें द्रविड़ भाषा समूह के अन्तर्गत तमिल, तेलुगु, कन्नड़ तथा मलयालम भाषाओं का समावेश होता है। इनके अलावा छोटे छोटे कबीलों की बहुत सारी बोलियां हैं।
सभ्यता और संस्कृति का क्या संबंध है ?