भारतीय कला की एक विशेषता उसमें अंकित सांस्कृतिक जीवन की सामग्री है। राजा और प्रजा दोनों के ही जीवन का खुल कर चित्रण किया गया है। Bhartiya Kala Me Lok Jivan और रहन-सहन की स्पष्ट छाप है। भारतीय वेशभूषा, केशविन्यास, आभूषण, शयनासन आदि की सामग्री चित्र, शिल्प आदि में मिलती है।
Folk Life in Indian Art
भारतीय कला में अंकित विषय और जन जीवन/ विश्वास और धारणाएं
छोटी मिट्टी की मूर्तियां भी इस विषय में सहायक हैं। उनमें तो सामान्य जनता को भी स्थान मिला है। भरहुत, सांची, अमरावती, नागार्जुनीकोण्डा आदि के स्तूपों पर इसकी छाप है। भारतीय कला सदा जीवन को साथ लेकर चली है।
समय-समय पर जो धार्मिक आन्दोलन हुए और जिन्होंने लोकजीवन पर गहरा प्रभाव डाला, उनसे भी कला को प्रेरणा मिली और उनकी कथा कला के मूर्त रूपों में सुरक्षित है। इस विषय में कला की सामग्री कहीं तो साहित्य से भी अधिक सहायक है।
यक्षों और नागों का बहुत अच्छा परिचय भरहुत, सांची और मथुरा की कला में मिलता है। इसी प्रकार उत्तरकुरु के विषय में जो लोकविश्वास था, उसका भी उत्साहपूर्ण अंकन भाजा, भरहुत, सांची आदि में हुआ है। मिथुन, कल्पवृक्ष, कल्पलता आदि अलंकरण उसी से सम्बन्धित हैं जिनका वर्णन जातक, महाभारत, रामायण आदि में आया है।
दुकूल वस्त्र, पनसाकृति पात्रों में भरा हुआ उत्तम मधु, आम्राकृति पात्रों में भरा हुआ लाक्षारस, सिर, कान, ग्रीवा, बाहु और पैरों के आभूषण एवं स्त्री पुरुषों की मिथुन मूर्तियां- सबका कल्पवृक्ष है जिसकी छाया में वह अपनी इच्छा के अनुसार फूलता-फलता है। इसी प्रकार अजंता के गुफा चित्रों को देखें तो इनका विषय सर्वथा धार्मिक है। इनमें अंकित करुणा बुद्ध की भावना का मूर्त रूप है।
चित्रकारों ने मनुष्यों के रूपों के भेद और उनका अभिजात्य बड़ी कुशलता से चित्रित किया है, अर्थात भिक्षुक, ब्राह्मण, वीर सैनिक, सुन्दर राजपरिवार, विश्वसनीय कंचुक और प्रतिहार, निरीह सेवक, क्रूर व्याध, निर्दयी वधिक, शांत तपस्वी, साधुवेशधारी धूर्त, परिचारिका, विरहाकुल राजकुमारी, माता-पुत्र, आदि के भिन्न-भिन्न मुख मुद्राओं आदि की कल्पना उन्होंने बड़ी मार्मिकता से की है जो Bhartiya Kala Me Lok Jivan की छाप है ।
प्रेम, लज्जा, हर्ष, हास, शोक, उत्साह, क्रोध, घृणा, भय, आश्चर्य, चिन्ता, विरक्ति, शान्ति आदि भाव भी बहुत खूबी से दिखाए गए हैं। रेखाओं और वृत्तों की ज्यामितीय आकृतियों का स्थान-स्थान पर उपयोग किया गया है, किन्तु प्रधानता कमल की है, जो अनेकरूप होकर सर्वत्र व्याप्त है।




