Banda Nawab Ka Aatmasamarpan बांदा नवाब का आत्मसमर्पण

Banda Nawab Ka AatmaSamarpan बांदा नवाब का आत्मसमर्पण

बांदा के नवाब अली बहादुर द्वितीय के विद्रोह करने के बाद वह इधर-उधर भाग रहे थे । उनका घर परिवार बिखर गया था वह परेशान होकर 19 नवम्बर 1858 को राम आठ बजे Banda Nawab Ka Aatmasamarpan जनरल माईकल के समक्ष ओसकुल्ली कैम्प पर हुआ ।

बांदा के नवाब आली बहादुर मौदहा होते हुए कालपी पहुंचे जहाँ अपने साथियों के साथ तात्या टोपे से मिले। फिर नवाब साहब  कालपी से ग्वालियर, जोरा-आलमपुर होते हुए चम्बल नदी पार करने में सफल रहे। अक्टूबर में नवाब के साथ सात हजार नियमित पैदल तथा नौ हजार अनियमित सवारों की फोर्स थी । सवारों की पल्टन का कमाण्डर, बागियों की पल्टन का रिसालदार करता  था।

इस समय नवाब के कैम्प में पाँच हजार के लगभग सैनिक होंगे । जिसमें बुन्देले तथा रजबाड़ा के अनेक लोग शामिल थे। बरेली का नवाब भी अली बहादुर के साथ आ मिला। इस सबके होते हुए भी नवाब अली बहादुर के पास विशेषतया शस्त्र गोला बारूद तोपों आदि की कमी थी। बीस हाथी अवश्य थे। नवाब के पास बहुत सारा रुपया पैसा जवाहरात भी थे। इसी धन से वह अपने तथा अपने साथियों के लिये राशन आदि की व्यवस्था करता था ।

जब कभी धन की कमी पड़ जाती तो ये लोग गांवों को भी लूटने से नहीं चूकते, थे। उनके पास घोड़े अच्छे नहीं बचे थे । लेकिन घुड़सवार अवश्य ही मुस्तैद थे । पैदल सिपाहियों की चलते चलते हालत खराब हो गई थी, उनके पैरों में फोड़े हो गये । ये लम्बी लम्बी एक मुश्त पैदल यात्रा करने में धबराते थे ।

विद्रोही नवाब के भाग जाने के बाद उसकी सम्पत्ति सरकार ने जब्त कर ली। जिसके बाबत कलेक्टर का फैसला किया कि यह कि बांदा से 14 जून 1857 को ब्रिटिश अधिकारियों के जाने के बाद नवाव अली बहादुर ने अपने शासन की घोषणा कर दी तथा वह विद्रोहियों एवं बागी सिपाहियों से मिल गया। वह नाना साहेब बिठूर से तथा अन्य विद्रोही प्रमुखों से भी विद्रोह के बाबत पत्र व्यवहार करने लगा।

यह कि उसने बाँदा में अमलदारी उल-इसलाम लागू कर दिया। उसने सरकारी कोष का तथा अन्य लोगों का बहुत सा धन अपने निजी कार्य में लगा दिया । उसने एक सेना का गठन किया । दानापुर तथा अन्य स्थानों से आये बागी सिपाहियों (पैदल एवं घुड़सवार) को अपनी सेना में रख लिया। उसने नागौद स्थित पचासवीं पल्टन के सिपाहियों को विद्रोह के प्रति उकसाने हेतु बाँदा से एक सेना टुकड़ी भेजी।

नवाब तोपों को ढलवाता रहा तथा नई-नई भर्ती करता रहा। उसने शहर के विशेषकर महाजनों तथा अन्य लोगों को शक्ति के बल पर लूटा। बांदा जिले के जिस आधे भाग पर उसने जोर जबरदस्ती से कब्जा कर लिया था उन गांवों से लगान वसूली की तथा उसे अपने काम लिया तथा कई गाँव को बरबाद कर दिया।

19 अप्रैल 1858 को उसने स्वयं फौज का संचालन करते हए जनरल विटलाक की सेना से युद्ध किया । उसने उन व्यक्तियों को भी अपनी सेवा में रखा जिले ब्रूस, बेन्जामिन, लायड, श्रीमती ब्रूस एवं श्रीमती विन्जामिन का कतल कर दिया था। अतः मुनादी फैसला की घोषणा की जाती है कि उसकी समस्त सम्पत्ति जब्त की जाती है…. ।

नवाब ने दिनांक  2 नवम्बर 1858 को गवर्नर जनरल के एजेन्ट के नाम एक पत्र भी लिखा। उसका कहना था कि मैं 6 माह से बदमाशों के चुगुल में फंस गया हूँ । मैं दुखी हूँ। तात्या टोपे के साथ भागते हुए भी मैंने आपको कई स्थानों से इस बाबत पत्र भी लिखे, मैंने सीरौंज से आपके पास अपने दो वकील मुन्शी सदरुद्दीन अहमद तथा कुदरत उल्ला को भेजा था ।

उनको मैंने अपना मुख्यतार नामा भी दे दिया था और आपके नाम एक पत्र भी जिसमें मैंने अपने दुःखों का जिक्र किया था और बतलाया था कि मैंने समय समय पर ब्रिटिश सरकार की क्या क्या सेवा की है। ऐसा नहीं है कि उन्होंने मेरे दुःख व तकलीफों का जिक्र आप से किया न हो लेकिन बदकिस्मती है कि अभी तक आपकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला ।

यह तो मेरा मुखतासिर नोट कहिये जिसके जरिये में आपको अपने पूर्व पत्रों का स्मरण करा रहा हूँ। मुझे उम्मीद है कि आप मुझ पर बड़ों की तरह मेहरबानी करेंगे । और कृपा करके पत्रोत्तर दें। मेरा आगे निवेदन है कि मेरे प्रतिनिधियों के निवेदन पर मुझे अनुमति देगे, कि मैं स्वय आपकी सेवा में आकर आदर प्रकट करूं ।

प्राचीनकाल के उदार शासकों का दायित्व रहा है कि उन व्यक्तियों को क्षमा कर देते थे, जो उनके प्रति स्वामी भक्त रहे हैं। चाहे वे भूल से किसी के बहकावे में या परिस्थति बस गलत रास्ते पर क्यों न चले गये हों, ऐसी ही बात मेरे साथ है अतः मैं आपकी उदारता और अनुकम्पा का पात्र हूं।

नवाब अली बहादुर मई 1858 से तात्या टोपे के साथ भागते  रहे । नवाब ने महारानी लक्ष्मीबाई का साथ कालपी में मई 1858 में दिया था जहां पर तात्या टोपे भी थे और उनके साथ वह ग्वालियर भी गये । ग्वालियर से नबाब तात्या टोपे के साथ राजपूताना, मालवा, मालवा नर्वदा, ताप्ती को पार करता हुए  दक्षिण के विदर्भ प्रांत तक गये  । और फिर ताँत्या टोपे के साथ इन नदियों को पुनः पार करते  हुए लौटे  भी । तात्या टोपे तो राजगढ़ होते हुए  गुना शिवपुरी तक बढ़ते गए ।

बांदा के नवाब अली बहादुर का घर परिवार बिखर गया था वह परेशान होकर जनरल माईकल के समक्ष ओसकुल्ली कैम्प पर 19 नवम्बर 1858 को राम आठ बजे आत्म समर्पणकर दिया । नवाब के साथ निम्नलिखित व्यक्ति थे ।
1-मुबारक महल बेगम (नवाब की विवाहित पत्नी)

2-इफ्तखार महल बेगम (दूसरी पत्नी)

3-नवाब बेगम सासर

4-बेगनी साहिबा (बहिन की पुत्री)

5- उमकर बेगम (पुत्री)

6-सुगरा बेगम (दूसरी बेगम की पुत्री)

7-वजीर बेगम (दूसरी बेगम की पुत्री)

8-इमतियाज बेगम (दूसरी बेगम की पुत्री)

9-इमामन खातून नवाब की (वहिन)

(अंग्रेजों ने नवाब को बदनाम करने के लिए यह रिकार्ड किया है।)

बच्चे- 1-नवाब बहादुर (शाहजादा), 2-शमशेर बहादुर दूसरी बेगम का पुत्र, 3-हुमायू मिर्जा (भानजा), 4-फारुख मिर्जा (भानजा), 5 नूर खाँ (ग्वाला का पुत्र), 6-बूला खां (दीन मुहम्मद का पुत्र), 7-सुहल (शादी का पुत्र), 8-लाहिन (शादी का पुत्र), 9-नियाज अली, 10-बुदिया 11-अमीना, 12 – गुचेछी खाँ 13-नूर मुहम्मद।

( नवाब के पास अनाज के नाम पर एक दाना भी नहीं था)

अंग्रेज  सरकार ने उसे पहली दिसम्बर 1858 से तीन हजार रुपये माहवार पेन्शन देने की स्वीकृत प्रदान की। तथा यह शर्त लगा दी कि उसे इन्दौर रेजीडेन्सी की सीमा क्षेत्र में ही रहना पड़ेगा । नवाब की माता को दो सौ पचास रुपये मासिक की पेन्शन दी गई  । जब नवाब ने आत्म समर्पण किया था तो उसकी बेगमों से सभी गहने तथा जेवरात उतरा लिए गये।

ये जेवरात 4-12-1858, को इलाहाबाद के खजाने में जमा कराये गये थे । अन्य कीमती वस्तुएं सोने का हुक्का 1, सोने का सरपेच 3, होरे का जेवर 1, बिना कटा हीरा 1, पन्ना के हार 2, (35 पन्नायुक्त हीरे की जंजीरें 2, पन्ना और मोतियों से चित्र 1, स्वर्ण आभूषण 1, हीरे 2। जेबरात हीरों की पायजेब 2, सोने की पायजेब 2, हीरों का बकसुआ 2, होरों की लड़ी 1, पायजेब (पन्ना युक्त) 1,हीरे के जेवर  (14हीरों) का 1, स्वर्ण हार 3, नाक को पुगरिया सोने की 1, हाथ का कगन सोने  का 1, मूगे का हार 1, हीरों की लड़ी (15 की)1 । हीरों की लड़ी (16 को) 1, हीरों की लड़ी 17 की 1, पांच हीरों का गुच्छा  1, दो हीरों की लड़ी।

उस समय इस सबका मूल्य पच्चीस हजार रुपया या इसके अलावा नवाव के पास उस समय सात आठ हजार नगद रुपया भी था।

1 – राष्ट्रीय अभिलेखागार कन्सलटेशन २७८-६ दिनांक १६-११-१८५८. राष्ट्रीय अभिलेखागार कन्सलटेशन १८ दिनाँक १-१०-१८५८

2 – पोलीटिकल, नबाब बाँदा के संबंध में कलेक्टर बाँदा का निर्णय दिनांक ७-६-१८५८ ।

3 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-कन्सटेशन २४८-५६ पोलीटिकल नवाब अली बहादुर का गवरनर जनरल के एजेन्ट के नाम पत्र दिनांक २-११-१८५८।

४- राष्ट्रीय अभिलेखागार-(१) कन्सलटेशन ४०६० दि०३१-१२-१८५८ पोलीटिकल, गवरनर जनरल के एजेन्ट की ओर से भारत सरकार को प्रेषित समाचार दिनांक २३-११-१८५८ । (२) कन्सलटेशन ४०७३ दिनांक ३१-१२-१८५८ पोलीटिकल मेजर जनरल माइकेल द्वारा प्रेषित समाचार संख्या ३४८ दिनांक २०-११-१८५८ ।

5 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-कन्सलटेखन २४८-२५६ दिनांक १-१-१८५६ पोलीटिकल एजेन्ट का गवरनर जनरल के एजेन्ट के नाम पत्र संख्या १६- दिनांक २०-११-१८५८ ।

6 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-कन्सलटेशन १७२-७३ दितांक २७-५-१८५६.

7 -पोलीटिकल, असिस्टेन्ट गवरनर जनरल के एजेन्ट की ओर से गर्वनर जनरल के एजेंट के नाम पत्र स. ५२६ दिनांक ३-५-१८५६।

8 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-कन्सलटेशन २७१ दिनाँक ३-६-१८५६,

9 – पोलीटिकल गर्वनर जनरल के एजेन्ट के नाम अन्डर सेकेट्री का नोट संख्या ३३१३ दिनांक ३-६-१८५६ ।

10 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-पोलीटिकल प्रासीडिंग्ज १८ से २५ नवम्बर १८५६, अनुक्रमांक ४६, मिलिटरी डिपार्टमेन्ट इलाहाबाद, का मेमोरेन्डम दिनांक ६-१०-१८५६ ।

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