Anita Shrivastava अनीता श्रीवास्तव

Anita Shrivastava अनीता श्रीवास्तव

सुश्री अनीता श्रीवास्तव Anita Shrivastava

(कवयित्री, कथाकार, व्यंग्यकार, मंच संचालक, पूर्व रेडियो एवम टी वी उद्घोषिका)

पिता का नाम- स्मृति शेष रमेश चंद्र श्रीवास्तव

पति का नाम- श्री वीरेंद्र कुमार श्रीवास्तव

शिक्षा

एम. एससी. (वनस्पति शास्त्र) बुंदेलखण्ड विश्व विद्यालय, झाँसी।

बी. एड. बरकतुल्लाह विश्व विद्यालय भोपाल ।  

बी. जे. माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्व विद्यालय, भोपाल।

200 से अधिक रचनाएँ विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित।

भास्कर मधुरिमा, देशबंधु, पत्रिका, इंदौर समाचार,सम्पर्क क्रांति, विज्ञान पत्रिका, सत्य की मशाल, संगिनी (कहानी, कविता,व्यंग्य) बच्चों का देश,  नूतन कहानियाँ,  साहित्य संस्कृति, उजाला मासिक ( बाल कविताएं) एवम व्यंग्य की  राष्ट्रीय स्तर की अग्रणी पत्रिकाओं  व्यंग्य यात्रा, अट्ठहास, रंग चकल्लस,सहित विभिन्न अखबारों में लगातार  रचनाएँ प्रकाशित l

कनाडा से प्रकाशित पाक्षिक वेब पत्रिका “साहित्य कुंज “ में नियमित लेखन l

कहानी “धरती की छाती में” ( भू- जल संरक्षण पर आधारित) एवम     

“पुरस्कार” (नशामुक्ति पर आधारित)  आल इंडिया रेडियो से प्रसारित l

काव्य पाठ का प्रसारण।

वार्ता एवम रेडियो नाटक में प्रतिभाग ।  

प्रकाशित कविता संग्रह “जीवन वीणा” ( अंजुमन प्रकाशन, प्रयागराज)

कहानी संग्रह “तिड़क कर टूटना” (सनातन प्रकाशन, जयपुर)

बाल गीत संग्रह- बंदर संग सेल्फी

स्वयम का यू ट्यूब चैनल- शब्द वीणा

 ब्लॉग – बत्तोरानी

राष्ट्रीय स्तर का कादम्बरी सम्मान 2022 व्यंग्य संग्रह बचते बचते प्रेमलाप के लिए।

इंदौर समाचार  में व्यंग्य स्तंभ लेखन

सम्प्रति

अध्यक्ष- छत्रसाल बुंदेलखण्ड साहित्य संगीत संस्थान जिला टीकमगढ़ (मध्य प्रदेश) ।

उपाध्यक्ष- तुलसी साहित्य अकादमी जिला टीकमगढ़ (मध्य प्रदेश) ।

शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, मवई, टीकमगढ़, मध्यप्रदेश में उच्च माध्यमिक शिक्षक, जीवविज्ञान के पद पर  सेवारत साथ ही लगातार लेखन में सक्रिय l

बुन्देली झलक के बारे में 

admin

Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.

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