Homeबनाफ़री लोक कथाएंNiputri Raja निपुत्री राजा-बनाफरी लोक कथा

Niputri Raja निपुत्री राजा-बनाफरी लोक कथा

किस्सा सी झूठी न बात सी मीठी। घड़ी घड़ी कौ विश्राम, को जाने सीताराम। न कहय बाले  को दोष, न सुनय  बाले का दोष। दोष तो वहय जौन किस्सा बनाकर खड़ी किहिस  और दोष उसी का भी नहीं। । शक्कर को घोड़ा सकल पारे के  लगाम। छोड़ दो दरिया के बीच, चला जाय छमाछम छमाछम। इस पार घोड़ा, उस पार घास। न घास घोड़ा को खाय, न घोड़ा घास को खाय। …. जों इन बातन का झूठी जाने तो राजा को डॉड़ देय।. .. . . कहता तो ठीक पर सुनता सावधान चाहिए। . . . . .।  

ऐसे -ऐसे .. एक रहय  निपुत्री राजा Niputri Raja यानी उसके कोई बालक नहीं था। सो जमादारिन झाड़ू लगाने आती तो वह रोजाना अपने द्वारे पर बैठा मिलता। तो वह कहती, है- निपुत्री, तुम मुझे रोज अपनी सूरत दिखा देते हो, इसलिए मुझे दिन भर खाना नसीब नहीं होता। जमादारिन के इस कथन को एक दिन राजा ने सुन लिया तो उसे बड़ा दुख हुआ।

उसने सोचा, जब एक जमादारिन ऐसा कह सकती है तो दूसरे तो कहेंगे ही। अतः उसने अपने नौकरों से कहा कि जाओ, इस जमादारिन के लिए थाली में सब खाना लगाकर ले आओ। नौकर खाना ले आये और जमादारिन को दे दिया। जमादारिन खुश होकर, जब भोजन लेकर अपने घर पहुँची तो उसने देखा कि घर में पानी नहीं है। अतः: वह भोजन की थाली रखकर पानी लेने चली गयी। इधर जमादार आया, उसने देखा खाना रखा हुआ है तो उसने थाली का सारा भोजन खा डाला और चला गया।

अब जब जमादारिन पानी लेकर आयी तो देखा खाना नहीं है तब उसने फिर कहा, इसीलिए तो कहते हैं कि निपुत्री राजा है, तभी तो मुझे खाना नसीब नहीं हुआ। जब वह फिर जब झाड़ू लगाने गयी तब फिर वहीं बात कहीं। जिसे सुनकर राजा को बड़ा दुख हुआ। उसने अपनी रानी से कहा, रानी लगता है मुझे यह देश छोड़ना पड़ेगा, मेरा यहाँ रहना ठीक नहीं है। क्योंकि जब एक जमादारिन मुझे निपुत्री कहकर अपमानित कर सकती है तो और सब लोग क्यों नहीं कह सकते।

रानी बोली मैं क्या कर सकती हूँ राजन, यह कोई ऐसी वस्तु तो है नहीं जिसे मैं अपनी तरफ से बना सकेूँ या बनाकर अपने पेट में डाल लूँ तो हो जाय। भगवान ने सब कुछ तो दिया है, पर एक बच्चा नहीं दिया है। सो एक दिन भगवान ने राजा को स्वप्न दिया कि देख। मैं तुम्हें एक बालक दूँगा, तुझे निपुत्री नही कहलाने दूँगा, लेकिन एक शर्त है, तू उसकी शादी नहीं करना। राजा ने शर्त स्वीकार कर ली, अब रानी गर्भवती से हुई तथा उसके एक बालक पैदा हुआ।

जब पुत्र पैदा हआ तो चारों तरफ खुशियां मनायी जाने लगी। सभी लोग कहने लगे, निपुत्री राजा के लड़का हुआ। मतलब अब भी राजा निपुत्री नाम से ही जाना जाता था, उसका नाम नहीं बदला था, उसका नाम ही निपुत्री राजा रख दिया गया। अब धीरे-धीरे लड़का बड़ा हुआ, वह दिन दूगना रात चौगुना रोज का रोज बढ़ने लगा।

जब लड़का बड़ा हुआ तो उसकी सगायी के लिए लोग आने लगे, जिन्हें कुछ दिन तो वापस करते रहे कि अभी शादी नहीं करेंगे, तमाम लोग लौटते रहे। थोड़े दिन बाद राजा-रानी ने सोचा कि सभी के लड़कों की तो बहुए आ गयीं, हमारे भी एक बहू आ जाए तो कितना अच्छा होगा।

एक दिन उन्होंने लड़के की सगाई तय कर ली और बारात लेकर गये। टीका-चढ़ाव सब हो गया, अब भावरों का समय आया तो  छ: भाँवर पड गयी और सातवीं भाँवर में लड़का मर गया। तो सभी को बहुत दुख  हुआ तब राजा को याद आया कि भगवान ने मुझसे कहा था, लड़के की शादी नहीं करना, नहीं तो लड़का मर जायेगा। परन्तु अब कर भी क्‍या सकते थे, लड़का तो मर चुका था।

एक पीपल के पेड़ के नीचे उस लड़के का दाह-संस्कार कर दिया गया और बारात वापस लेकर चले आये। लड़की को ऐसे ही रहने दिया गया, उसने प्रण किया कि मैं अब ऐसे ही जिन्दगी गुजार दूँगी। उसी गाँव में कई  व्यापारी रहते थे, वे रात-विरात घर आया करते थे। एक दिन उन्होंने लड़की को बताया कि बिटिया उसी तरह जामा पहने, उसी तरह हाँथ में कंकन बॉधे, उसी तरह सिर पर मौर रखे हुए लड़का उसी पीपल के नीचे रात को बारह बजे बरमदेव (ब्रह्मदेव) की प्रतिदिन पूजा किया करता है।

लड़की ने कहा, सच भईया आप लोग सही कह रहे हैं? उन सभी व्यापारियों ने कहा, हाँ बिटिया हम सच कह रहे हैं। हमने देखा है। लड़की ने कहा, भईया, मुझे भी ले चलोगे, मुझे भी दिखाओगे। व्यापारियों ने कहा, क्‍यों नहीं, चलो आज रात में तुम्हे दिखायगे।

अब वे सब लड़की को लेकर बारह बजे से पहले ही पहुँच गये और पेड़ से कुछ दूरी पर बैठ गये। उन लोगों ने लड़की से कहा बिटिया सोना नहीं, बारह बजे वह पूजा करने आता है। लड़की ने कहा, ठीक है, मैं नहीं साौऊँगी। अब सभी लोग पीपल के पड़ की तरफ नजर गड़ाये बैठे रहे और उधर लड़की सो गयी।

जब रात के बारह बजे तो लड़का प्रकट हुआ और उसने पूजा-पाठ किया। व्यापारियों ने सोचा कि लड़की भी देख रही होगी। जब पूजा समाप्त हो गयी तो उन्होंने लड़की से पूछा कि बिटिया तुमने देखा। तब वह लड़की नींद से जागकर बोली, अरे भईया मैं तो सो गयी थी, मैं नहीं देख पायी। व्यापारियों ने कहा कोई बात नहीं, एक रात और सही, कल देख लेना।

फिर दूसरी रात वैसे ही किया, इस बार व्यापारियों ने उस लड़की के बाएं हाथ की अंगुली काटकर उसमे मिर्च लगा दिया, जिससे लड़की सोये न। लड़की जलन के कारण सोई नहीं, जब बारह बजने को हुआ तो वह आकर पूजा करने लगा। व्यापारियों ने कहा, बिटिया देखो, तुम जाकर उसके पैर पकड़ लो।

लड़की दौड़कर गयी और उसके पैर पकड़ लिया। लड़के ने पूछा, तुम कौन हो? मेरे पैर क्‍यों पकड़ लिया? मेरे पैर छोड़ो। लड़की ने कहा नहीं, मैं नहीं छोड़ेँगी, मैं आपकी पत्नी हूँ। लड़के ने कहा, मेरे पैर छोड़ दो नहीं तो तुझे बरमदेव महाराज मारेंगे। लेकिन लड़की नहीं मानी, पैर पकड़े. ही रही और लड़के से जिद करने लगी।

तब लड़के ने कहा, अच्छा, तुम नहीं मानोगी, तुम मेरे कमरे की चाबी लो और वही जाकर रहो। लड़की ने कहा तुम कभी आओगे कि नहीं, तो लड़के ने कहा में बरमदेव महाराज से पूछकर ही आऊंगा, अगर वे कहेंगे तो आऊँगा, नहीं तो मैं नहीं आऊंगा। लड़की ने कहा ठीक है, मैं आपके घर जा रही हूँ। लड़के ने कहा जाओ।

तब लड़की वहाँ से चाबी लेकर चली आयी और जब व्यापारियों ने पूछा कि बिटिया क्या बात हुई! तो उसने कहा कुछ भी तो नहीं, वह उनसे कहती भी क्या । अब वह लड़की अपने घर चली आयी और आकर उसने अपने पिता से कहा, पिताजी, मेरी ससुराल में चिट्ठी डाल दीजिए कि मुझे लिवा ले जाय, मैं वही जाकर रहूँगी।

तब उसके मॉ-बाप उसे समझाने लगे कि बिटिया अब वहाँ जाकर क्या करोगी, वहाँ अब कौन है? लेकिन लड़की नहीं मानी उसने कहा, नहीं , मैं वहीं रहूँगी। परन्तु उसने चाबी वाली बात नहीं बतायी और न ही यह बताया कि मैं अपने पति से मिल चुकी हूँ। तब उसके पिता ने उसकी ससुराल को पत्र लिखा । पत्र पाकर लड़की के ससुर आये, वे बोले , बेटी तुम वहाँ कैसे रह सकोगी? लेकिन लड़की ने कहा, नहीं, मैं वही रहूँगी।

तब उसके ससुर उसे लिवा ले गये और वह अपने ससुराल चली गयी। वहाँ जाकर उसने उस बंद कमरे को खोला, जिसकी चाबी उसे लड़के ने दी थी और उस कमरे की सफाई करके रहने लगी। इधर लड़का बरमंदेव से अनुमति लेकर बारह बजे रात को लड़की से मिलने आने लगा, दोनों अपना रात-भर बातें करते रहते, सुबह लड़का चला जाता था।

इस प्रकार वह रात में  उससे बातें किया करती थी। अब उसे बाते करते हुए अगल-बगल की औरतों ने भी सुना तो वे सब आपस में खुसर-फुसर करने लगी कि अरे, राजा की बहू रात में किससे बात किया करती हैं। एक दिन वे रानी के पास पहुँचकर पूँछने लगी, रानी जी आपकी बहू रात में किससे बातें किया करती है, क्‍या आप उसके पास लेटती हैं?

रानी ने अचम्भित होकर कहा नहीं तो। तब उन औरतों ने कहा कि रानी जी आपकी बहू रात भर किसी से बातें किया करती है। रानी ने अपनी बहू के पास जाकर पूछा, बिटिया, तुम किससे रात भर बातें किया करती हो! मुहल्ले की सभी औरतें कहती हैं। लड़की ने कहा, माताजी, मैं तो अपने पति से बातें किया करती हूँ और किससे करूँगी?

रानी बोली, बिटिया, कहाँ मेरा बेटा है जो तुम उससे बातें करोगी। लड़की बोली, नहीं माताजी, अगर आपको विश्वास न हो तो आप खुद देख लीजिए, आप रात को बारह बजे मेरे कमरे में अपने बेटे को देखियगा। रानी ने कहा, ठीक है और लड़की ने अपनी सास को पलंग के नीचे लिटाकर कहा कि रात को बारह बजे देखना, सोना नहीं। लेकिन बारह बजे के लगभग वह सो गयी, लड़का आया और लड़की से काफी देर तक बातें करता रहा।

लड़की ने मन में सोचा कि माताजी तो नीचे से सब देख-सुन ही रही होगी। जब लड़का चला गया तो लड़की ने पलंग के नीचे से माँ को पुकारा और पूछा माँ जी आपने देखा अपने बेटे को? रानी ने कहा, नहीं बिटिया, मैं तो सो गयी थी। लड़की ने कहा, ठीक है मैं कल दिखाऊँगी।

अब लड़की ने अपनी सास को दूसरे दिन भी पलंग के नीचे लिटा दिया। लेकिन आज उसने वही होशियारी की जो व्यापारियों ने उसके साथ किया था । उसने रानी के बाएं हाथ की अगुली को काटकर मिर्च लगा दिया। अब रात को बारह बजे लड़का आया, लड़की ने उसकी आरती उतारी पैर  छुए और उससे बातें करती रही। थोड़ी देर बाद लड़का चला गया, जब लड़का चला गया तो लड़की ने सास से पूछा कि माँ जी देखा आपने?

रानी ने कहा, हाँ बिटिया, मैंने देखा ये तो मेरा ही बेटा है। तब लड़की बोली, अब तो आपको विश्वास हो गया कि मैं किससे बातें किया करती हूँ। रानी ने कहा, हाँ। तब लड़की बोली, अब आप मान जाये तो मान जाये, नहीं तो कोई बात नहीं , बाहरी लोगो को कहने दो, मैं तो अपने पति से ही बातें करती हूँ। तब रानी बोली, नहीं बिटिया तुम बातें किया करो, यह संसार – सागर है, सब कोई कहते रहते हैं, उन्हे कहने दो यह कहकर रानी चली गयी।

कुछ दिनों बाद वह गर्भवती हुई तो मुहल्ले की औरतों ने फिर रानी से कहा, रानी जी, आपकी बहू ठीक नहीं है, पता नहीं किससे बातें किया करती है? रानी ने कहा, ठीक है, तुम लोग रहने दो, मेरी बहू ठीक है, तम्हें क्‍या पड़ी है?

अब कुछ दिन बात उसके बालक पैदा हुआ, वह बच्चा भी बिल्कुल राजा के लड़के के समान था। एक दिन भगवान आये, तब लड़की ने भगवान के पैर छुवे और भगवान से वचन लिया कि भगवान अब तुम मुझे मेरे पति को दे दो, मुझ पर सब लोग थूकते हैं। इतने दिन तो मैंने गुजार दिए, मगर अब नहीं गुजार पाऊँगी, अब आपको मेरे पति देव को वापस करना होगा, नहीं तो आप मुझे देते ही नहीं। आपने उनको मेरा पति क्यों बनाया था? अब मेरी जिन्दगी ऐसे नहीं कटेगी, आपको देना पड़ेगा।

भगवान ने कहा ठीक है दूँगा, लेकिन लड़की ने भगवान से त्रिवाचा हरवा लिया कि हा, हम तुम्हारा पति तुमको वापस करेंगे। अब भगवान ने लड़की से कहा कि जब वह आज रात को आए  और जाने के लिए कहने लगे तो तुम उसके पैर पकड़ लेना, नहीं तो वह कौन रूकेगा, फिर चला जायेगा। लड़की ने कहा ठीक है, मैं पकड़ लूँगी।

जब लड़का रात को आया और उससे काफी देर बातें करता रहा और जब जाने लगा तो लड़की ने तुरन्त उसके पैर पकड़ लिया। उसके कहा, तुमने मुझे आज क्‍यों पकड़ लिया? मुझे जाने दो, नहीं तो मुझे मेरे बरमदेव महाराज मरारेंगे। लड़की ने कहा, नहीं, मैंने आपको आज भगवान से मांग लिया है, अब आप नहीं जा सकते, अब आपको मेरे पास ही रहना होगा, मैं तुम्हें नहीं जाने दूँगी , मैने भगवान से त्रिवाचा हरवा ली है।

इस प्रकार समय निकल जाने पर सुबह हो जाने पर वह लड़का वहीं रुक गया और रहने लगा। परन्तु शर्म के कारण वह बाहर नहीं निकलता था कि गाव के सब लोग क्‍या सोचेगे कि यह तो मर गया था, जिंदा कैसे हो गया? इसी प्रकार शर्म के कारण वह अपने माता-पिता के पास नहीं जाता था। फिर धीरे-धीरे वह मॉ-बाप के पास जाने लगा और फिर घर से बाहर भी निकलने लगा और प्रेम से सब लोग रहने लगे। किस्सा थी सो हो गयी।

बुन्देली लोक कथा परिचय 

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Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
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