जगदीश कुमार कुशवाहा Jagdish Kumar Kushwaha साहित्यिक तकुल्लफ् “प्रबोध”
पिता का नाम – श्री मन्नू लाल जी
माताजी का नाम– श्रीमती सहोद्रा बाई
पत्नि का नाम – श्रीमती पूर्णिमा जी
जगदीश कुमार कुशवाहा “प्रबोध” का जन्म दिनांक 4 -6-1959 शिक्षा – स्नात्कोतर् अर्थ शास्त्र एवम समाज शास्त्र । बी टी व विधि शिक्षा । वर्तमान में शासकीय माध्यमिक शाला प्रधानाध्यापक पद से सेवानिवृत हैं ।
प्रकाशित ग्रन्थ – प्रबोध् काव्य संग्रह भाग १ एवम भाग २ , प्रणामी दर्शन, बुंदेली महाभारत , प्रबोध बुन्देल खंड महाकाव्य, एवम प्रबोध दर्शन महाकाव्य इस प्रकार दो महाकाव्यो सहित ६ ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं दोनों महाकाव्य समय प्रकाशन नई दिल्ली से प्रकाशित हैं ।
साहित्यिक् संस्थाओ में पद- अध्यक्ष बुंदेली साहित्य संस्कृति भाषा विकास एवम संरक्षण समिति ज़िला पन्ना।
अध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम ज़िला पन्ना
निवास- आगरा मोहल्ला रानीबाग रोड कोठी नंबर 476 रॉयल गार्डन के सामने पन्ना ज़िला पन्ना मध्यप्रदेश।
बुन्देलखण्ड खंड का परिचय गीत
(बुंदेली छांरी )
मन सें गुनी बुंदेली माटी ,
गढ़ी गुनन गुन जानी ।
छापे छपी छबीली ईमे,
शानी झलकत पानी ।।
चम्बल टौंस से रेबा जमुना,
के पाटन् लौ फैली।
छ्त्रसाल बाहन बल दमकी,
कुनऊ खूट न मैली ।
खान पान निरालो पाहो ,
बोल सने गुरयानी ।
जग भावे बुंदेली छारीं,
नोनी घट घट जानी ।।
(बुंदेली आवास)
बखरी दौरन बड़े चौतरा ।
माटी बाली भितिया।
धुँआ काड़वे होबे तक्का,
नीर बहावे उरिया।।
नोन तेल खौ होबै अरवा,
बासन खौ भडवारी।
गघरी धरवे बनी घिनोची,
ठाठ समारे म्यारी ।।
नाज खो कुठला ,
परवे खटिया उखरन होय कुटानी। ।
जग भावे बुंदेली छारीं नौनी घट घट जानी ।।
(बुंदेली व्यंजन)
छरमा लपटा लपसी घेंघो,
गुडला बरी महेरो ।
डुघरी बिरचुन मुरका कूचो,
मिरचानी मनफेरो।।
सुरा सेव गुड़गुला ठढूला ,
चीला मीढा हलुआ।
दरभजिया पनपथू मलीदा,
बरा मगौरा सतुआ ।।
कढी पपरिया गुझिया खुरमा,
लाबे मो में पानी।
जग भावे बुंदेली छारीं,
नोनी घट घट जानी ।।
(समाजिक सांस्कृतिक विशेषताएं)
नात आबाई होय घरन में,
लए आखन में जावे ।
जो लौ आव भगत न् होवे,
टरन न आखन पावे ।।
मर्यादा मौ बोल निकासी चलत इते पुरखाती।
परदेशी सुन भेद न पाबे,
को जाती परजाती ।।
राग राई लमटेरा गारी,
ब्यावन बनरा सानी ।।
जग भावे बुंदेली छारीं,
नोनी घट घट जानी ।।
(वाद्य यन्त्र एवं बुंदेली खेल)
ढुलक मजीरा ढपली खजडी,
ढांक सारंगी रमतूले ।
सातउ सुर बरसाए बांसुरी,
बजत तमूरा मन फूले ।।
गिल्ली डंडा खिपडी गद्दा,
लगडी धप्पा चपेटा।
रहचकुआ मे घुमे चका से,
छुबा मे मारे सरपेटा ।।
दो पारी जब जौरा ताने,
दिखत तन इयन मरदानी ।
जग भावे बुंदेली छारीं ,
नोनी घटघट जानी ।।
(बुन्देल खंड धर्म विशेष स्थल)
ब्रिस्भान् लली संग पन्ना मैं,
कृपा के सागर गिर धारी।
राम राजा जी रहें औरछा,
झांसी में डमरू धारी।।
हनुमान खजाने बालन की,
बंडा मे लहर कहाई।
अमर करौ नर आल्हा जीने,
शारद मैहर माई ।।
हरदौल चौतरा गांव गांव,
बुंदेला सत्य निसानी ।
जग भावे बुंदेली छारीं,
नोनी घट घट जानी ।।
(बुन्देलखण्ड का प्रकृति चित्रण)
नदियन मे किलकिल राग बहे,
अभ्यरण्य बने भये कुंड मिलें ।मीन दहारन् में लोरत ,
मगरन के देखन झुण्ड मिलें ।सांप बसेरो वन बांमी,
गिरवर पेंडन से सो़हें।
घन देख मुरैला नांच करें,
कोयल कूका दे दे मोहें ,।।
निकरत चुर सें नाहर तेदुंआ ,
देखन आवें सैलानी ।
जग भावे बुंदेली छारीं ,
नौनी घट घट जानी ।।
(प्रबोध)