Madhur Parshuram Awasthi मधुर परशुराम अवस्‍थी

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कहते हैं कि जब तार पर चोट पड़ती है तो नग़्मा फुट पड़ता है। जेठ की तपती दोपहर की प्यास ही कलाकार को कला साधक बनाती है । कुछ ऐसा ही होता है हर कलाकार के साथ कि धूप की चादर बिछा कर शाम सिरहाने लगाकर अलमस्त हो,  डूब जाता है सुरों के सागर में । Madhur Parshuram Awasthi भी कुछ लंबी टेर के लमटेरा हैं जो गाँव से निकल पड़े हैं !!!

परशुराम अवस्‍थी का जन्‍म 17 मार्च 1995, दिन- शुक्रवार  छतरपुर जिले के पनागर ग्राम में एक किसान परिवार में हुआ था। परिवार में 8 भाई एवं 1 बहिन में सबसे छोटे होने के कारण परिवार के प्रत्‍येक सदस्‍य  के चहेते थे। आर्थिक तंगी होने के कारण बचपन सुख-सुविधाओं से वंचित रहा। लगभग छह-सात वर्ष की उम्र से ही पिता एवं भाइयों के साथ कृषि कार्य एवं बकरियाँ चराने जैसे गृह कार्यों में हाथ बटाने लगे।

परशुराम अवस्‍थी प्राथमिक एवं माध्‍यमिक शिक्षा के साथ-साथ बकरियाँ चराना एवं कृषि कार्य करना इनकी दिनचर्या में शामिल सा हो गया था। हाई-स्‍कूल की शिक्षा तक आते आते परिवार की आर्थिक स्थिति में कुछ-कुछ सुधार होने लगा था। हाई स्‍कूल की शिक्षा उत्‍तीर्ण करने के बाद बड़े भाई के सहयोग से अपने शहर में अध्‍य्यन के लिए विचार-विमर्श करने के बाद 4 जुलाई 2011 को शा.उ.मा.वि. क्र.2 छतरपुर में प्रवेश लिया।

11वीं एवं 12वीं की पढ़ाई जीव विज्ञान विषय से करने के उपरांत जानकी कुण्‍ड चित्रकूट में 2013 में दाखिला लिया। ऑप्‍थैल्मिक असिस्‍टेंट की पढ़ाई करने के लिए परंतु व्‍यक्तिगत करणों के कारण 8 से 10 दिन में वहाँ से पढ़ाई छोड़कर अपने शहर वापस आ गए और कम्‍प्‍यूटर की पढ़ाई करने के साथ-साथ प्राईवेट B.A.में एडमीशन ले लिया।

लेकिन कहते हैं ना कि ईश्‍वर की इच्‍छा के आगे किसी की नहीं चलती, B.A.में अनुत्‍तीर्ण होने के कारण जीवन निराशा से भर गया था। लेकिन बचपन से बकरियाँ  चराते समय से ही परशुराम को गाने का बहुत शौक था। वह शौक लगभग 10 साल बाद शिक्षा के रूप में बदल गया और 5 अगस्‍त 2014 को पूनम संगीत महाविद्यालय छतरपुर में प्रभाकर (संगीत पाठ्यक्रम) एवं महाराजा महाविद्यालय में नियमित रूप से B.A. संगीत में दाखिला लिया।

गाने में बचपन से ही अच्‍छे होने के कारण पहली बार जब अपने गुरू के सामने गया तब उन्‍होंने कहा तुम्‍हरा नाम परशुराम नहीं मधुर होना चाहिए था और तभी से इनका नाम मधुर परशुराम अवस्‍थी चलने लगा। संगीत की प्राथमिक शिक्षा श्रीमति उर्मिला पाण्‍डे जी से प्राप्‍तकर आगे की संगीत शिक्षा पं. श्री देवीप्रसाद शास्‍त्री (द्वि‍वेदी जी) से प्राप्‍त की एवं पं. पवन तिवारी जी भजन सम्राट का विशेष आशीर्वाद एवं सहयोग इनके ऊपर बना रहता है।

19 जुलाई 2017 में स्‍नातकोत्‍तर (संगीत गायन) में दाखिला लिया एवं 2019 में उत्‍तीर्ण किया। फिर मुड़ कर नहीं देखा और निकाल पड़े संगीत में समा जाने के लिए । 

कार्य क्षेत्र – 8 फरवरी 2017 में जीवन की पहली नौकरी 8000/- मासिक वेतनपर नीव अकेडमी में संगीत शिक्षक के रूप में शुरू की लगभग 1 साल 8 महीने नौकरी करने के बाद त्‍याग पत्र दे दिया। लगभग 3 वर्ष अपने बहनोई के साथ सहकारिता विभाग में एक कम्‍प्यूटर ऑपरेटर के रूप में कार्य किया। वर्तमान में 3 अगस्‍त 2022 से संगीत शिक्षक (प्राध्‍यापक) के रूप में श्री कृष्णा विश्‍वविद्यालय छतरपुर में कार्यरत हैं।

स्‍टेज परफार्मेन्‍स – 26 जनवरी 2006 को पहली बार मंच पर बुन्‍देली गीत गाया था जिसके बोल बूढ़े छोड़े न ज्वान चिकनगुनिया एक हास्य गीत के रूप में गाया था जिसको विद्यालय के शिक्षकों एवं ग्रामीण दर्शकों ने खूब सराहा एवं पुरूष्‍कृत किया और कहा कि तुम संगीत की दुनिया में बहुत नाम कमाओगे। विशेष तौर पर बुन्‍देली लोकगीतों में। संगीत की शिक्षा शुरू करने के बाद 11 सितंबर 2015 से लगातार मंचों पर बुन्‍देली लोकगीत, गीत, गजल, भजन सभी प्रकार के गीतों का प्रस्‍तुतिकरण करते आ रहे हैं।

विशेष सम्‍मान – लोगों का प्रेम और आशीर्वाद को ही यह सबसे बड़ा सम्‍मान मानते हैं।

पारिवारिक विवरण –   पिता- श्री दुलीचन्‍द अवस्‍थी
                            माता- श्री मति भवानी बाई अवस्‍थी
                            भाई- श्री हीरालाल, श्री गनेश, रवि, राममिलन, लक्ष्‍मी, जानकी, लखन
                           बहन- श्री मति तुलसा देवी

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