समीक्षा-21वीं सदी में बुंदेली

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Samiksha-Ikkisaveen Sadi Men Bundeli

21वीं सदी में बुंदेली : एक मूल्यांकन  लघु शोध है। इस शोध को गिरजाशंकर कुशवाहा ‘कुशराज’ ने अपने कठिन परिश्रम से पूरा किया है। इस शोध में कुशराज ने 21वीं सदी की बुंदेली के विकास एवं उसकी विभिन्न क्षेत्रों में स्थिति का सम्यक विवेचन किया है। इसके लिए विभिन्न ग्रंथों एवं बुंदेली से जुड़े विद्वानों के साक्षात्कार किए हैं।

इस सदी से जुड़े लोग वे चाहे साहित्यकार हों, भाषाविद हों या सिनेमा से संबंधित हों उनके योगदान को रेखांकित करने का प्रयास किया गया है। बुंदेली साहित्य और उसके उन्नयन पर केंद्रित यह लघुशोध एक आशा जगाता है कि जिसके लिए लोगों में एक टीस है। बुंदेली भी अन्य भाषाओं की तरह समादृत हो। इसे भी आठवीं अनुसूची में रखा जाए, बहुत से लोग ऐसा चाहते हैं। पर ऐसा संभव नजर नहीं आता है। शोधार्थी में इसके प्रति कुछ छटपटाहट ज्यादा ही दिखती है।

इस ग्रंथ में कुशराज ने बहुत कुछ समेटने का प्रयास किया है किन्तु सभी को समेटा नहीं जा सका है। इसमें शोधार्थी का मैं दोष नहीं मानता हूँ। लघु शोध की अपनी एक सीमा होती है। इतना कह सकता हूँ कि इस लघु शोध को आगे चलकर शोधार्थी इतिहास ग्रंथ में बदल सकता है। मैं इसे इसलिए कह रहा हैं कि कुशराज में बहुत कुछ करने की उतावली दिखती है। शोधार्थी ने यह शोध केवल परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए इधर-उधर की सामग्री लेकर इतिश्री नहीं की है वरन् इस पर ढंग से काम किया है।

अपनी बात को सिद्ध करने के लिए उपयुक्त संदर्भ ग्रंथों का हवाला दिया है। भाषा उसकी अपनी है, इसी कारण यह शोध मौलिक प्रतीत होता है। है भी, इसमें कोई संदेह नहीं है। शोधार्थी के बारे में अभी से भविष्यवाणी करना उचित तो नहीं होगा पर मैं आशान्वित हूँ कि शोधार्थी भविष्य में बुंदेली के उन्नयन के लिए काम करेगा। शोधार्थी के इस कार्य के लिए मैं बधाई देता हूँ।

समीक्षक 
डॉ० लखनलाल पाल
(कथाकार, आलोचक)
उरई- जालौन

आचार्य पं. दुर्गाचरण शुक्ल