बसंत से तो हर साल रूबरू होते हैं पर Basant Agman ki Anuthi Katha पता ही नही ,भारतीय पंचाग ने वर्ष के अहोरात्र को बारह मासों में विभक्त किया है। चैत्र मास वर्ष का प्रथम मास है और फाल्गुन अंतिम । चैत्र , वैशाख , ज्येष्ठ , आषाढ़ , श्रावण , भाद्रपद , आश्विन , कार्तिक , आगहन , पौष , माघ और फाल्गुन इन बारह मासों में छैः ऋतुओं का समावेश है। इन छः ऋतुओं का द्विमासिक विभाजन भी इस प्रकार है – वसंत (चैत्र – वैशाख) ग्रीष्म (ज्येष्ठ – आषाढ़) वर्षा (श्रावण – भाद्रपद) शरद (आश्विन – कार्तिक) हेमंत (आगहण- पौष) शिशिर (माघ -फाल्गुन)।
ऋतुचक्र के अनुसार वसंत ऋतु का आगमन तो मधु – माधव (चैत्र – वैशाख) मास से होता है । किंतु वसंत ऋतुराज जो ठहरा , राजा है , सो वह बेरोकटोक माघ में ही आ धमकता है। आम्र की मादक मंजरियों , अशोक के रक्त किसलयों और पुष्पों के साथ सर्जनलोक की देवि माँ सरस्वती के महाअवतरण पर्व ” श्रीपंचमी ” के स्वागत – सत्कार में अपने संपूर्ण वैभव को न्योछावर करने आ जाता है।
माँ सरस्वती कृपा से से ही उसका अवतरण होता है। इसलिए श्रीपंचमी को ‘ वसंत पंचमी ‘ के नाम से जग – प्रसिद्धि मिली है । ऐसी कविमान्यता है या कविसिद्धि कि अशोक वृक्ष वसंत पंचमी के दिन सुंदर तरुणियों के आलता रचे ( आलक्तक ) – रंजित महावर – रंगे झुनझुनाते नूपरों वाले चरणों के प्रहार से पुष्पित हो उठता है। किंतु एक सत्य यह भी है कि ” कुमारसंभवम ” के अनुसार भगवान शिव का तप भंग करने के लिए कामदेव द्वारा असमय में उपस्थित किए गए वसंतकाल में तो अशोक अपने कोमल किसलयों के साथ विभिन्न ऋतु गंध लेकर उपस्थित हो गया था और नवयौवनाओं के चरणताड़न के बिना ही फूलने लगा था।
महाकवि कालिदास जी के सौंदर्यबोधी शब्दों में देखें –
असूतसद्यः कुसुमान्यशोकः स्कन्धात् प्रभृत्येव सपल्लवानि।
पादेन् नपैक्षत सुंदरीणां सम्पर्कमासिञ्जत – नूपरेण ।।
पौराणिक काल में वसंत का पर्व मदनोत्सव और कामोत्सव के नाम से सोल्लास मनाए जाने की परंपराएँ रहीं है। यह दिन काम के अशरीरी देवता कामदेव के पूजन का भी दिन है । अशरीरी होने के कारण कामदेव को अनंग भी कहा गया है। पौराणिक कथाओं में कामदेव के धनुष के विषय में कहा गया है कि …कामदेव का धनुष गन्ने का बना है जिस पर मधुमक्खियों के शहद की डोरी लगी है ।
वह निःशब्द मारक प्रहार करता है । जिन पञ्चसर अर्थात् पाँच बाणों से कामदेव ने शिवजी की समाधि भंग की थी उनके नाम हैं – अशोक पुष्प , आम्रमञ्जरी , अरविंद ( श्वेत कमल ) नवमालिका ( चमेली के पुष्प ) और नीलोत्पल। इन बाणों के दूसरे प्रतीकात्मक नाम भी विचित्र हैं – मारण , स्तंभन , जृम्भन , शोषण , मन्मथन ( उन्मादन )। कामदेव – वसंत – प्रेम त्रिगुणात्मक है और त्रिगुणातीत भी।




