Natural Medicine Of Bundelkhand
हीरा की अन्तर व्यथा – पिता श्री हीरा लाल जी के शब्दों में–
मेरी ज़िन्दगी भी उस हीरा की तरह संघर्षशील रही जो खदान से निकलने पर कई हाथों में बिकता, कटता-छंटता व तराशा जाता है। उसमें पारखी द्वारा जितने कट भले ही लोगों को ऐसा करने में आनन्द आता हो, मगर उस हीरा को जो काटने-छांटने व तराशने में आत्म पीड़ा होती है उसे तो वह स्वयं या अन्तर्यामी ही जानता है। अगर कोई हीरा को निगलता है तो वह ज़हर बन जाता है और ताज पर जड़ने पर, वह बहुमूल्य हीरा सदा चमकता है। “मैं भी उस हीरा का कण हूँ।
जन्म से पूर्व सूचना- जैसा कि हमारी बड़ी भौजी केशर बताया करती थीं कि हमारे बड़े भाई बाबू की मृत्यु, बरुआसागर में अस्थमा बीमारी से, सितम्बर 1951 में हुई थी। उस समय उनको सपने में उन्होंने कहा था कि रोओ मत, हम इसी घर में आज से 9 माह बाद जन्म लेंगे। उसके ठीक 9 माह बाद जुलाई 1952 में हमारा जन्म हुआ। वह इस बात को बहुत मानती थीं और वह अंत समय तक हमारे साथ रहीं।
बीमारी भरा वचपन- हमारे दस साल बड़े भाई नरेन्द्र जी बताते हैं कि हमारे गाँव सादमल में सन् 1952 से 55 के बीच वचपन में तीन लोग बहुत बीमार रहते थे।
1- सिंघई के भाग चन्द (भग्गी) जी,
2- झंडा वालों के वीरेन्द्र (वीरन) और
3- नायक जी के कैलाश (ढिल्लन)। मडावरा के वैद्य लक्ष्मण प्रसाद जी से मेरा तीन-चार साल तक बहुत इलाज चला। नरेन्द्र भाई साहब जूनियर हाई स्कूल मडावरा में पढ़ते थे, तब वह हमें अपनी पीठ पर बैठा कर दवा लेने व इंजेक्श्न लगवाने पैदल 4 किलोमीटर मडावरा ले जाते और लाते थे।
इयूटी के बाद खेत या सोसल वेलफेयर के कार्य में व्यस्त रहना यही दिन चर्या थी
बाल जागृति मंडल का गठन – बच्चों के सर्वागीङ विकास के लिये भेल में कोई संस्था नहीं थी तब हमने बाल जागृति मंडल का गठन किया जो बच्चों के लिये सांस्कृतिक कार्यक्रम, ग्रीष्म अवकाश में स्वास्थ्य शिविर, हॉबीज प्रदर्शिनी, विभिन्न प्रतियोगितायें वाद-विवाद, आर्ट कम्पटीशन और कविता पाठ आदि अपने पैसे से या कभी भेल जन कल्याण विभाग के सौजन्य से भेल टाऊनशिप में आयोजित कराता था। हमारी सेवा निवृत्ति के बाद बच्चों के वेल फेयर की सब गति विधियां भेल टाउन शिप में बन्द हो गयीं।
सेवानिवृत्ति के बाद व्यस्त रहने का प्लान – बी. एच. ई. एल. से सेवा निवृत्ति के बाद हमारे बड़े भाई साहब ने सलाह दी कि वीरेन्द्र आगे व्यस्त रहने का कोई प्लान ले लो। तब हमने विचार किया कि अब ऐसा स्वतंत्र कार्य करना चाहिये जिससे बुढ़ापे में हम स्वस्थ रहें और दूसरों को भी स्वस्थ रहने की सलाह दे सकें।
प्राकृतिक चिकित्सक का प्रशिक्षण- आरोग्य मंदिर गोरखपुर में प्राकृतिक चिकित्सा का कोर्स पत्राचार के माध्य से कराते हैं। घर पर छ: माह उनके कोर्स की पुस्तकें मंगाकर पढ़ें और दो महिने व्यवहारिक ज्ञान (प्रेक्टीकल) हेतु उनके यहां आकर रहें व परीक्षा दें, तब पास होने पर वह एन.डी., वाई.डी. का सर्टिफिकेट प्रदान करते हैं। प्रशिक्षण सत्र- 1 जनवरी से 28 फरवरी तक सुबह- 5 बजे से रात्रि 10 बजे – सुबह 5 बजे घंटी बजे सोकर उठो, फ्रेश होकर पढ़ने बैठ जाओ। सुबह-6 बजे हर्बल टी या जवारे का रस आता था, जो भी आपको लेना हो। 7 बजे से 8 बजे तक योगा व षठकर्म क्लास होती।
9 बजे से 10-30 प्राकृतिक चिकित्सा के प्रेक्टीकल – सभी एक-एक सप्ताह (भाप स्नान, गीली चादर की लपेट, एनिमा, गीली मिट्टी की पट्टियां व सर्वांग लपेट, लेग गस्स, मालिश, टब बाथ, सूर्यकिरण चिकित्सा आदि)। 11 बजे से 1 बजे तक लंच – मैस में उबली सब्जियां, रूखी रोटी, चावल बिना नमक के। दोपहर 2 बजे से 4 बजे तक थ्योरी क्लासिस- प्राकृतिक चिकित्सा कोर्स, प्राकृतिक चिकित्सा के सिद्धान्त मिट्टी, पानी, धूप, हवा, निद्रा एनाटोमी, प्रेक्टीकल, यौगिक क्रियायें।
4 बजे गाजर का रस या हर्बल चाय। 4-30 से पैथोलोजी- खून की जांच व स्लाइड बनाना, ब्लड प्रेशर नापना, ह्यूमोग्लोबिन चैक करना आदि। 5 बजे से 6 बजे तक योग मेडीटेशन व प्राणायाम, ध्यान की मुद्रायें आदि। 7 बजे से 8 तक रात्रि भोज । 8 बजे से 10 बजे तक पढ़ना। प्रत्येक सोमवार को एक पेपर का टेस्ट। बहुत ही व्यस्त टाइम टेबिल था। 23 फरवरी से 28 फरवरी तक फाइनल परीक्षा लिखित व प्रेक्टीकल एवं मई में रिजल्ट आता है। तब हमने आरोग्य मंदिर गोरखपुर से डॉक्टर ऑफ नेचुरोपैथी और डॉक्टर ऑफ योगा (एन0 डी0, वाई0डी0) एवं चण्डीगढ से एक्यूप्रेशर का कोर्स किया। तब हमारी लड़कियां कहती थीं कि पापा आप इस उम्र में भी इतनी मेहनत करके पढ रहे हो, हम तो इस उम्र में भी सोच नहीं सकते।
यदि इच्छा प्रबल हो तो सपने भी पूरे होते हैं – हमने एम. बी. बी. एस. और ए. एफ. एम. सी. का भी टेस्ट दिया था, मगर बी.एस.सी. प्रथम वर्ष में फैल होने से हमारे डॉक्टर बनने के सपने अधूरे रह गये। और नियति ने सेवा निवृत्ति के पश्चात हमें प्राकृतिक चिकित्सक बना दिया। जिससे आज मरीजों के रोग को समझने व समझाने के साथ हम उनकी औषधि विहीन निःशुल्क सेवा कर रहे हैं।
प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति के अनुसार- बीमारी शरीर में आये विजातीय द्रव्य (विकार) का कारण है, उसके लक्षण व नाम कुछ भी हो सकते हैं। विजातीय द्रव्य (विकार) को शरीर से बाहर निकालने पर शरीर पुनः स्वस्थ हो जाता है। वह भूत-प्रेत व ऊपरी छाया और मिथ्यात्व नहीं मानता है। शरीर में आये विकार को दुनिया का कोई भी स्वयं इसे निकालने का प्रयास न करे। आप उसके इस कार्य में विश्राम, नींद व उपवास द्वारा पूर्ण सहयोग करें।
आस्रव- जहां से विकार शरीर में आ रहा है। मुंह से ठोस व द्रव्य, नाक से सांस आदि द्वारा। (नाव में छेद होना) बन्ध- विकार का शरीर में रुकना (बीमारी)। (नाव में पानी का रुकना) संवर- उस द्वार या छेद को बन्द करना। (नाव में पानी आने के छेद को बन्द करना) निर्जरा- शरीर से विकार का निकालना। (नाव में आये पानी को बाहर निकालना)
मोक्ष- शरीर से विकार निकलने पर वह पुनः स्वस्थ हो जायेगा और मोक्ष जैसा सुख आप अनुभव करेंगे। (नाव से पानी निकालने पर वह हल्की होकर पुनः पूर्ववत् तैरने लगेगी।) यही जैन कर्म सिद्धान्त है।
मेरे मनोचिकित्सा के कुछ विशेष अनुभवसबसे पहला मरीज – अतृप्त भटकती आत्मायें मैं तिलक नगर में अपने मकान पर शाम को काम कर रहा था। किसी ने कमलेश के पिताजी को मेरे पास भेज दिया उन्होंने अपना परिचय दिया बोले मैं भोंड़ी का रहने वाला जैन हूँ। मेरा लड़का यहां भेल में ट्रेनिंग कर रहा है। उसे कुछ हो गया है यहां के अस्पताल वालों ने उसे मेडीकल कालेज भेज दिया है। क्या आप जानते हैं? मैंने कहा नहीं मैं तो उसे नहीं जानता, न कभी मिला हूँ। उसे इतने बड़े मेडीकल कालेज में हम वहां कहां ढढेंगे? अभी शाम हो गयी है, आप रात में खाना भी नहीं खाते होगे, इसलिये पहले अंथऊ (शाम का खाना) कर लेते हैं, फिर किसी से पता करके चलते हैं। उन्हें अपने घर ले गया, खाना खिलाया फिर हम दोनों खैलार जीवन जैन के पास गये।
उसके बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि- कमलेश जैन गुढ़ा बी. एच.ई. एल. में ट्रेड अप्रेन्टिस में है। एक दिन लंच के बाद विभाग में कुछ एबनोर्मल एक्टिविटी कर रहा था तो उसके साथियों ने उसे अस्पताल भेज दिया, जहां वह बड़बड़ाने लगा कि यहां सेनर्स बाहर चली जायें और कुछ ऊल-जलूल हरकतें करने लगा। जिससे अस्पताल वालों ने उसे पागलों के डॉ0 के पास मेडीकल कालेज भेज दिया। मेडीकल कालेज के मानसिक चिकित्सक ने उसे नींद की दवा देकर वापस घर भेज दिया। अभी अपने कमरे पर है। शायद उसे कोई ऊपरी चक्कर है। उसके साथी कुछ गुनिया, झाड़-फूंक, तंत्र-मंत्र वालों को दिखाने लाये। उसने उनके ऊपर थूक कर भगा दिया उससे कहा कि तुम जैसे बहुत देखे हैं।
मैं उन्हें उसके कमरे पर ले गया तब शाम को साढ़े सात बजे होंगे। वह जमीन पर लेटा था दो लोग उसके पास बैठे हुए थे। उसके पिताजी को देख कर किसी ने उससे कहा कि तुम्हारे पिताजी आ गये हैं, इतना सुनते ही वह उठकर बैठ गया और जोर जोर से बड़बड़ाने लगा। कह दो यहां से चले जायें, हमारे पास न आयें, बार-बार कहे जा रहा। पास बैठे लोग एकदम सन्न रह गये कि अभी तक शांत लेटा था, अब एकदम से क्या हो गया? उस समय उसके सिर पर ऊपरी शक्तियां सवार हो कर बोलने लगीं।
मैं थोड़ा पीछे था, मुझे उसका चिल्लाना अच्छा नहीं लगा तो मैंने भी बहत जोर से बोला- तुम हमें नहीं जानते हम बहुत कठोर आदमी हैं, बोलो- कौन हो तुम? और कौन है तुम्हारे साथ। तब वह बोला- हमारे साथ तीन हैं (जिन्द + बब्बा + एक औरत)। हमने पूँछा तुम सब इसके पास कैसे आये हो? तब जिन्द बोला – इसने हमारे चबूतरा से पंजू (पाँच पैसे) उठा ली थी। तब हमने पिताजी से पूँछा क्या यह सही कह रहा है? तब वह बोले हाँ- लेकिन हमने अठवाई तो दे दी थीं। जब हमने यही बात बब्बा से पूछी तो वह बोले- ये मन्दिर के अहाते में आम के पेड़ के नीचे हमारा चबूतरा नहीं बनने दे रहे हैं।
तब पिताजी ने बताया कि गुढ़ा जैन मन्दिर के पास एक बढ़ई था जिसके कोई संतान नहीं थी वह अपना मकान जैन मन्दिर व धर्मशाला के लिये दान में दे गया। अब यह उस जगह पर अपना चबूतरा बना कर रहना चाहता है। गुढ़ा जैन समाज नहीं चाहती कि वहां पर भूत-प्रेत का ऐसा कोई स्थान बने जो भविष्य में लोगों की परेशानियों का कारण बने, इसलिये मना कर रहे हैं। जब यही बात उस औरत से पूँछी तो वह बोली- हम इन्हें चाहते हैं इसलिये इनके साथ में हैं।
तब हमने परिस्थिति की गम्भीरता को भांपते हुए पिताजी से कहा तुम अपना णमोकार मंत्र जोरजोर से बोलते रहना, बन्द मत करना और हम इनसे बात करते रहेंगे। हमने सीधा प्रश्न किया- अब तुम लोग इसे छोड़ने का क्या चाहते हो? जिन्द बोला- हमें शराब की बोतल और मुर्गा चाहिये। तब मैंने कहा हम जैन हैं, हम यह काम नहीं करते। जो हम नहीं लेते, वह दूसरों को भी नहीं देते हैं। बब्बा बोले हम तो वहीं चबूतरा पर ही रहेंगे। औरत बोली हम तो इन्हें अपने साथ ले जायेंगे। मैंने कहा- हमें तुम्हारी कोई शर्त मंजूर नहीं है। तुम हमारे णमोकार मंत्र की शक्ति को नहीं जानते हो। तुम्हें तो अभी छोड़कर भागना पड़ेगा।
तब हमने लड़के से पूँछा- पिताजी कुछ कह रहे हैं, तुम्हें सुनाई दे रहा है, वह थोड़ी देर बाद बोला, ये णमोकार मंत्र बोल रहे हैं। मैंने कहा तुम भी इनके साथ जोर-जोर से बोलो। अब दोनों णमोकार मंत्र बोलने लगे, तब हम बीच-बीच में उनसे प्रश्न पूँछते रहे। हमने कहा तुमने दो दिन से कुछ खाया नहीं, तबवह बोला, ये हमें भूखा नहीं रखते, खिलाते रहते हैं। हमने पूँछा अब ये तीनों क्या कर रहे हैं? वह बोला ये तीनों बाहर हमें घेरकर बैठे हैं। तब हमने कहा तुम कंकड उठाओ और णमोकार मंत्र पढ़कर इनकी तरफ फेंको।
हमने पूँछा अब यह क्या कर रहे हैं? तब वह बोला यह हमसे दस फुट दूर बैठे हैं और हमें आँखें दिखा रहे हैं। मैंने कहा बोलो उनसे हम आँखें निकाल लेंगे, मंत्र बोलते हए इन्हें कंकड़ मारते रहो। पिताजी से कहा तुम एक वर्तन में साफ शुद्ध जल लेकर णमोकार मंत्र पढ़ते हुए अन्दर सभी जगह कोनों में छिड़ते हए इसके ऊपर से होकर बाहर तक छिड़को। जब लड़का णमोकार मंत्र बोलकर उनको कंकड़ मार रहा था तब उसने बताया कि अब वह उससे 15-20 फुट दूर बैठे हैं। जैसे ही पिताजी ने उसके ऊपर से लेकर बाहर जल छिड़का, लड़का बोला अरे वह तीनों तो भाग रहे हैं, देखो वे भागे जा रहे हैं। अरे अब तो गायब हो गये हैं।
लड़का उठकर खड़ा हो गया और पिताजी के पैर छुए और बोला आप कब आये और भाई साहब आप, वह ऐसे कह रहा है जैसे अभी सोकर उठा हो। पास में बैठे लोग उसका चेहरा देख रहे थे कि यह इतने जल्दी कैसे बदल गया, जो थोड़ी देर पहले कह रहा था कि अपने लड़के के पास न आयें, यहां से चले जायें और अब कह रहा है पिताजी आप कब आये। यह सब देखकर सब खुश हो गये। उसके साथ वाले बोले यह दो दिन से सोया नहीं है। हम लोग झाड़ने वाले जानकार को लाये थे।
वह भी हार मान कर चले गये। पिताजी बोले अब आप ही कुछ करो या रास्ता बताओ इसे स्थाई ठीक करने का। तब मैंने कहा हम तो इन चक्करों में पड़ते नहीं हैं, आप इसे साढूमल में जिनेन्द्र जैन हैं वह इसके जानकार हैं, उनके पास ले जाओ, वही कुछ कर सकते हैं। वह बोले लेकिन यह वहां जायेगा कैसे? तब मैंने कहा कि इसके ऊपर मंत्र वाला जल छिड़क देना फिर वह आपके साथ जायेगा। वह रात्रि में बड़ी शांति से सोया और सुबह पिताजी के साथ चला गया। वह बिल्कुल ठीक हो गया और अब किसी स्कूल में अध्यापक है।
निष्कर्ष- जैन धर्म मानता है- कि राग-द्वेष के कारण कुछ अतृप्त आत्मायें भटकती हैं।इसलिये राग व द्वेष दोनों बन्ध का कारण हैं, जो भव-भव में भटकाते हैं।
जैन धर्म इन्हें कीलने व बाँधने में विश्वास नहीं करता। इनकी मुक्ति के लिये इन्हें धर्म के मार्ग पर लगाओ, ईश्वर का स्मरण कराओ, किसी क्षेत्र पर बैठाओ। जिससे इनका कल्याण हो और यह किसी को परेशान न कर सकें। इनसे उलझो नहीं, कोई झूठा वादा मत करो। स्पष्ट बोलो हमारा धर्म इसकी अनुमति नहीं देता है, अपने धर्म व अपने मंत्र पर दृढ़ विश्वास रखो, उसकी शक्ति प्रदर्शित करो और उसे मुक्ति का मार्ग बताओ वही सब का तारणहार है। फिर न किसी से डरो, न किसी को डराओ।
नींद में चलने की बीमारी या ऊपरी फेर- हमारे मिलने वाले इजीनियर साहब उनकी धर्म पत्नि कसम जैन एक बार रात्रि के लगभग बारह बजे नींद में किवाड़ खोलकर बाहर चली गयी। जब घर के लोग बीच में सोकर उठे तो लाईट व किवाड़ खुले देखे तब उन्हें मम्मी अपने कमरे में नजर नहीं आई तो उन्होंने अपनी पत्नी को जगाया और बाहर आस-पास टाऊनशिप में ढढ़ने लगे, गेट पर सिक्योरिटी गार्ड को जानकारी दी। एक घंटा बीतने पर सभी चिन्तित अब क्या किया जाये, आस-पास वाले भी जाग गये।
इतने में देखा किमम्मी गोल्फ ग्राउन्ड तरफ से अकेली एकदम शांत चली आ रहीं हैं। उस समय उनसे किसी ने कुछ नहीं कहा, सुबह जब वह सामान्य थी, तब उनसे इस बारे में पूछा कि रात्रि में क्या हुआ था, तो बोली हमें कुछ भी याद नहीं है। एक दिन हम उनसे मिलने गये तो इंजीनियर साहब ने यह घटना सुनाई और शंका व्यक्त कि शायद कोई ऊपरी फेर तो नहीं है, तब हम इन्हें किसी जानकार को दिखा लेते हैं। तब मैंने कहा हम मम्मी से इस बारे में बात करते हैं। हमने कुछ बातें Jछी सब संतोष जनक उत्तर मिले।
तब मैंने उनसे कहा आप पढ़े लिखे इंजीनियर होकर इन सब में विश्वास करते हैं, इनमें फंसोगे तो उसमें उलझ जाओगे, फिर भी यदि आपको शंका है तो हम इन्हें झाड़ देते हैं। मैंने कहा बुलाओ मम्मी को और थोड़ा शुद्ध जल लाओ। हमने णमोकार मंत्र पढ़ा और उनके ऊपर से जल के छींटे डालकर कहा तुम जो भी हो अब इन्हें परेशान मत करना और यहाँ से चले जाओ। उस दिन के बाद न वह नींद में चलीं और कुछ भी नहीं हुआ।
यह सब मानसिक बीमारियां है। सामने वाले के मन से वह फितूर भगाओ जो वह दिमाग में रखे है और यह विश्वास दिलाओ कि अब यह तुम्हारा कुछ भी बुरा नहीं करेगा। मंत्र, गंधोदक, चरणामृत, भभूत और झाड़ फूंक तभी काम करते हैं जब सामने वाले की श्रद्धा हो। जब उसके शरीर में ठण्डी कम्पन की लहर सी आई और वह कांपने लगी- 39 वर्ष की बेगम फरिजाद को 10 वर्ष से गठिया की बीमारी है। डिलेवरी के बाद उसके घर वालों ने उसे मांस व अण्डे आदि प्रोटीन के लिये अधिक खिलाये, जिससे शरीर के सभी जोड़ों में दर्द, जकड़न एवं सूजन आ गयी व उठने-बैठने में दिक्कत होने लगी। वह हाथ से कोई काम भी नहीं कर पाती थी। हमने उसके हाथ व पैरों के जोड़ों को गर्म-ठण्डी सेंक देने के बाद कुछ कसरतें करायी। दो दिन बाद उसके जोड़ ढीले हुए और मुड़ने लगे।
एक दिन हमने उसके पैर की अंगुली खींच कर देखी कि इसमें दर्द है क्या? तब उसके सारे शरीर में एकदम से ठण्डी कम्पन की लहर (सिहरन) सी दौड़ गई और वह ठण्ड से कांपने लगी, मैंने उसे तुरन्त कम्बल से ढक दिया। फिर पूँछा अब क्या हो रहा है। उसने बताया कि अब कम्पन दाहिनी हाथेली में है, मैंने तुरन्त हथेली रगड़ कर गरम कर दी, अब वह बायें हाथ में होने लगी मैंने उसे भी रगड़ दिया। अब वह सिहरन दायें, बायें पैर के तलवों में होने लगी हमने उन्हें भी रगड़ दिया। अब वह सिर में व पीठ में होने लगी, हमने हाथ से वहां भी रगड़ कर गरमाहट दी।
वह उठी और कम्बल एक तरफ रखकर कसरतें करने लगी। मैंने उसका चेहरा देखते हुए पूँछा अब कैसी हो फरिजाद, तब वह बोली अब ठीक हैं अंकल। मैंने पूंछा, क्या इससे पहले भी ऐसा कुछ हुआ है? हम तो एकदम से डर गये थे कि इसे एकदम से क्या हो गया है। तब उसने बताया कि एक दो बार ऐसा हुआ है। नर्वस सिस्टम में अनबैलेन्स करेन्ट बहने के कारण ऐसा होता है जब कोई नस किसी जोड़ पर दबी हो तो वहां अर्थ फाल्ट होता है। उस समय उसके हाथ व पैर की अंगुलियों को थोड़ा खींचने से और उस अंग को रगड़ने से वह शान्त हो जाती है। कुछ लोग इसे ऊपरी फेर आदि समझ कर उसके चक्कर में उलझे रहते हैं।
तेईस वर्ष की लड़की बेहोश हो जाती थी जिसे घर के लोग ऊपरी फेर समझ रहे थे- टेलीफोन विभाग बी एस एन एल के कर्मचारी की तेईस वर्ष की पुत्री जब कभी किसी समय बेहोश हो जाती थी। जिसे उसके माता-पिता इसे ऊपरी फेर मान रहे थे। हमने उसे अपने घर बुलाया और लड़की से बातचीत की व उसकी दिनचर्या जानी। वह मीट, अंडे व परांठे बहुत खाती थी। मैंने एक्यूप्रेशर देते हुए उसका हाथ का अँगूठा चारों तरफ से मसला और पूँछा कि इससे सिर में कुछ हरकत हो रही है। तब वह बोली हाँ बायें साइड सिर में थिरकन हो रही है।
हम समझ गये कि यह गरिष्ठ खाने से गैस सिर में चढ़ जाती है, जिससे पिट्यूटरी गिलैन्ड आउट ऑफ कन्ट्रोल हो जाती है और यह बेहोश हो जाती है। तब मैंने उसके खाने में मीट, मछली, अंडे व गरिष्ठ चीजें छोड़ने को कहा और कुछ कसरतें बतायीं, पेट साफ करने को कहा। उसे तीन दिन एक्यूप्रेशर दिया, पेट पर मिट्टी की पट्टी रखी व कसरतें करायीं, जिससे वह पूर्णतः ठीक हो गयी। हमने उसके माता-पिता से कहा कि देखो जो तुम ऊपरी फेर सोच रहे थे वह नहीं है। यदि तुम इनके चक्कर में पड़ जाते तो उसी में उलझे रहते। खाना-पीना सादा व शाकाहारी लो, शरीर में कोई वेग रोको मत, कब्ज सब रोगों की नानी है। कसरतें व योगासन करो, स्वस्थ व सुखी रहोगे।
हमारे साथी एस. पी. साहू को आधे शरीर में लकवा मार गया- सेवानिवृत्ति के बाद हमारे साथी साहू जी को शरीर के दाहिने हिस्से में लकवा मार गया। वह दिल्ली एमस में दिखा आये वहां रीढ़ की हड्डी का ऑपरेशन बताया तो वह डर कर घर वापस गये। एक बार साहू जी हमें एक पार्टी में मिले, तब देखा उनकी बीबी उन्हें अपने हाथ से खाना खिला रही है। तब हमने उनका हाल चाल पूँछा तो पत्नी ने बताया कि इनका हाथ आगे पीछे व ऊपर नहीं जाता है, यह अपने हाथ से शर्ट का बटन भी नहीं लगा पाते है, जूते का लैस नहीं बाँध पाते हैं व खाना नहीं खा पाते है और चलने में भी लड़खड़ाते हैं। तब हमने उनसे कहा कि तुम कल से हमारे घर आओ, हम तुमें बिना दवाइयों के औषधिविहीन चिकित्सा से ठीक करेंगे।
हमने उनकी जांच की तब उनको नर्वस सिस्टम लुम्बर 14-15 व सर्वाइकल C6-C7 में दिक्कत थी जो उनकी जांच की रिपोर्ट भी बता रही थीं। इस समय हमने उनके पूरे शरीर की मालिश की व थोड़ी-थोड़ी कसरत व व्यायाम कराया, जिससे उनके शरीर में अन्दर से गरमाहट आने लगी और खून का संचार ठीक से होने लगा। बीच-बीच में मैंने उन्हें भाप स्नान, पानी की गरम-ठण्डी सेंक दी। हमने उनसे सुबह, शाम घिरों पर हाथ से एक गुम्मा से 8 गुम्मा का वजन खिंचवाया एवं योगासन के साथ प्राणायाम भी कराने लगे।
धीरेधीरे हमने योगासन की संख्या बढ़ा दी, जिससे वह सभी आसन अच्छे से करने लगे। छः माह में उनको बहुत सुधार हुआ और एक से डेढ़ साल में वह पूर्ण स्वस्थ हो कर अपनी दैनिक क्रिया करने लगे। डायबिटीज का उपचार- एक दिन साहू जी बोले आज मुझे डायबिटीज की दवा लेने अस्पताल जाना है। मैंने कहा तुमने मुझे अभी तक नहीं बताया कि तुम डायबिटीज की दवा भी लेते हो। तब हमने उनके खाने में सुधार कराया। खाना के पहले एक पाव पका टमाटर बिना नमक के लो, खाना धीमे-धीमे खाओ, खाने में सलाद की मात्रा बढ़ी दो, अनाज व चावल की मात्रा कम करो, खाना के बाद रोज एक कटोरी दही बिनानमक मशाले के लो और खूब घूमो। हमने उन्हें मन्डूकासन, भुजंगासन, सर्वांगासन व सूर्य नमस्कार एवं प्राणायाम कराया। दवा बन्द करने के पांच दिन बाद हमने उनकी सुगर चैक करायी जो एकदम नार्मल आयी। उस दिन के बाद से उनकी डायबिटीज की दवा सदा के लिये छूट गयी।