Vishnu Patairiya विष्णु पटेरिया

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By admin

लोक से उत्पन्न लोककलायें जब लोक से निकलकर चारो दिशाओं में झंकृत होती हैं तब Shri Vishnu Patairiya जैसे लोक गायक, लोक रचनाकार लोकगीतों को लोकरंजक बना कर लोक हृदय मे अपना स्थान बना लेते हैं।

श्री विष्णु पटेरिया का  जन्म 13/ 10/ 1940 मे मिर्तला खुरई जिला सागर मध्य प्रदेश मे हुआ, इनके पिता श्री जमना प्रसाद पटेरिया है। आपने संस्कृत से MA किया। बचपन से ही गाने का शौक रहा है जो कि विद्यार्थी जीवन में स्कूल के अनेक कार्यक्रमों में गीतों की प्रस्तुति करते रहे और वहां मिले प्रोत्साहन से संगीत सीखने की दिशा तय हो गई। धीरे-धीरे लोगों के गाए हुए लोकगीत को सुनकर गाना शुरू कर दिया।

गायकी की प्रेरणा गांव में होने वाली गम्मत कार्यक्रम से मिली, गांव में होने वाले लोक संगीत को धीरे-धीरे सीखा। कहीं से किसी प्रकार की संगीत की शिक्षा नहीं ली उन्हें किसी परंपरागत तरीके से संगीत सीखा बस सुनकर और उसका अभ्यास करके गाना शुरू कर दिया है पहले भजन, पैरोडी, गजल, कव्वाली और लोकगीत गाते रहे।

1967 से 1969 तक जबलपुर में 2 साल शिक्षक प्रशिक्षण किया और इसी दौरान जबलपुर में कई कार्यक्रमो में लोकगीत गाए। यही वो समय था जब अपनी प्रतिभा को निखारने का मौका मिला और यहीं से एक शिक्षक के साथ-साथ एक लोक कलाकार के रूप मे लोकगीतों की लोकयात्रा शुरू हुई।

सन् 1976 में छतरपुर में आकाशवाणी केंद्र शुरू हुआ तो श्री विष्णु पटेरिया जी ने ऑडिशन दिया उस में पास हो गये।  आपकी मंडली मे सात सदस्य थे ढोलक नगडिया, झांज, झींका और विशेष बाद्य बैंजो था। श्री विष्णु पटेरिया जी पहले गायक थे जिन्होने लोकगीतों में बैंजो बाद्य का प्रयोग किया।

श्री विष्णु पटेरिया जी ने  बुंदेली संस्कृति के सभी प्रकार के लोकगीत गये। उदाहरण स्वरूप राई, फाग,  सैरा, दिवारी, धिमरयाई, गारी, बिलवारी, राछरो,  सावनी, मगतें, अकती, कार्तिक गीत आदि विधाओं का गायन किया। श्री विष्णु पटेरिया जी ने आजादी के बाद बुंदेली लोकगीतों को एक नई दिशा देने का काम किया।  खुद गीतों को लिखना, खुद संगीत बद्ध करना और फिर गाना यह सिलसिला सालों साल चलता रहा।

श्री विष्णु पटेरिया जी ने पहली रिकॉर्डिंग 1978 में हुई जिसमें 6 लोकगीत गाये। ख्याल से आपकी एक पहचान बनी है और  अनेकों लोकगीत बहुत प्रसिद्ध हुए,  राइ टप्पा नामक राग का स्वरुप बनाया जो जबरदस्त प्रसिद्ध हुआ जिसकी मांग आज भी लोग  रखते हैं।  आपके  प्रसिद्ध लोकगीत गोरी नैना ना मार भर के दुनाली चाहे मार दे इस ख्याल विशेष की बात यह है कि सोन चिरैया फिल्म प्रयोग हुई ।

राइ टप्पा
बूंदा ले गई मछरिया हिलोर पानी।
तुमई तनक नोनी थुमिया की ओट में ।
बंसी में फंस गई बाम बरौनी घर चलो।
मोरो काबू में नईयां  जिया कल्लू की बाई बिना।
जइयो जइयो रे भैया ससुराल बने रईयो परसो नों कैसे के कटे जडकारो।
जोर करे बैरन दुफरिया ।
गोरी घुंघटा ना डार हम तो चुनरिया से चीन गए।
रस ना रये कुरस हो गई बेला।
हरदौल चरित्ररित्र- नजरियों के सामने हरदौल लाला रईयो।
सावनी- सावन के महीना में आइओ लोआवे  चाय रहिए तू एक ही घड़ी के वीरन। बसदेवा गीत-  उठो लक्ष्मी देदो दान।
कहावतें कहानी गाई, बुंदेलखंड परिचय- जो है बुंदेलखंड भैया ऐसे  अनेक गीत है जो चर्चित रहे।  इनमें स्वरचित गीत है बूंदा ले गई मछरिया,  तुम्हें तनक नोनी, गोरी नैना ना मार,  बुंदेलखंड परिचय, मोरो काबू में नईयं जिआ,  हमें तिरछी नजरिया ना मारो गोरी।

श्री विष्णु पटेरिया जी ने अनेक बड़े शहरों,गांवों एवं महोत्सव में अपनी मंचीय कार्यक्रम  की प्रस्तुतियां कीं, मुंबई टी सीरीज, कन्हैया कैसेट, श्री हरि कैसेट कम्पनी से अनेक लोक गीत के कसेट निकले,   संस्कृति विभाग भोपाल द्वारा आयोजित अनेक कार्यक्रम में प्रस्तुति दी।

विशेष उपलब्धि
सागर में बुंदेली मेला में मुझे कला मार्तण्ड की उपाधि से समान्नित किया गया संस्कृति विभाग के कार्यक्रम में प्रस्तुति दी।
भोजपुर महोत्सव।
वेतवा महोत्सव।
एरण महोत्सव।
महामाई सिंरोज महोत्सव।
दमोह बुंदेली महोत्सव।
विदिशा महोत्सव जो कि हर साल होली की पंचमी पर होता है में लगातार 11 साल कार्यक्रम दिया जिसमें मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने मुझे समान्नित किया तब वो विदिशा सांसद थे और कई सम्मान दिए गये।

बीना नगर और विधायक जी ने  मेरे 50 साल से गा रहे लोकगीत पर नागरिक सम्मान किया ये अभी भी बुंदेलखंड की शोभा बढ़ा रहे है ।

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

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