Striyon ke Pair ke Abhushan स्त्रियों के पैर के आभूषण

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भारतीय संस्कृति के सोलह श्रंगारों मे Striyon ke Pair ke Abhushan बहुत महत्वपूर्ण है। इन्हीं सोलह श्रंगारों में बुन्देलखंड की स्त्रियों के पैर के आभूषण (Bundelkhand’s Women’s Foot jewelry) का एक विशेष योगदान है। गले के आभूषण सौंदर्य पर चार चांद लगा देते हैं।

बुंदेलखण्ड के आभूषणों का स्वरुप


बुंदेलखण्ड के आभूषणों, खास तौर से उन पुराने आभूषणों को, जो अब प्रचलन में नहीं हैं या लुप्त होने की कगार पर हैं, पहचानना और उनका नाम स्मरण रखना कठिन है । इसलिए उनके स्वरुप को समझना आवयक है । यहाँ संक्षेप में उनकी पहचान प्रस्तुत की जा रही है।

1 – पैर की अँगुलियों के आभूषण Foot finger jewelery /Toe jewelry आभूषणों के साथ लोकविश्वास जुड़े हैं और उनमें सबसे अधिक महत्त्व मिला है बिछिया को, जो सुहाग का प्रतीक है और पैर की अँगुलियों का प्रधान है । विवाहिता नारी ही उसका प्रयोग करती है।

अनौटा Anauta – यह पाँव के अँगूठा में पहना जाता है । इसकी बनावट छला की तरह होती है । ऊपर चाँदी की चौड़ी-सी पत्ती और नीचे चाँदी, पीतल या ताँबे की टूटदार पत्ती होती है । चौड़ी पत्ती पर रवा रखे जाते हैं । चुटकी Chutaki – चाँदी, गिलट, कसकुट के छला पर पट्टेदार, रवादार, पलियादार, ईंटदार, मछरियादार आदि कई तरह के बनावट की होती है। छला/टीला Chhala/Teela- चाँदी या गिलट के छला पर कलसियादार । ऊपर काँटे-सी अनी निकली हुई ।छला के भी कई प्रकार होते हैं।

गुच्छी Guchchhi – चाँदी या गिलट के छला पर गुच्छों के रुप में बोरा लगे रहते हैं, जो चलने में मधुर ध्वनि करते हैं।गेंदें Genden –चाँदी या गिलट के छला पर गेंद की बनक के कारण गेंदें कहे जाते हैं ।गुटियाँ-चाँदी या गिलट के छला पर गुट्टा की बनावट होती है।

गरगजी Gargaji – दुर्ग की गुर्ज की बनक के अँगूठा में पहने जाते हैं और मोतीचूर की लड़ों से दूसरे छल्लों से जुड़े होते हैं । जोडुंआ Jodua – अँगूठा में पहनने के चाँदी, गिलट या कसकुट के बने छला, जिनमें रवादार पट्टी या टूटदार पाँत बैंड़े-सी लगी रहती है । पाँतें Pante – अँगुठा के चाँदी के बने पाँतदार छला, जो छिंगरी के छला के साथ चाँदी की लड़ से जुड़े हुये रहते हैं ।

पाँवपोस Panvpos – पंजों पर पहनने का रजत आभूषण । बहुत कलात्मक, कई तरह की बनक-झिंझरियनदार, ककनियनदार आदि के होते हैं । पान-चिड़ी-फूलदार मध्ययुग की लोकप्रिय डिजाईन थीं । कटमा, गढ़ता और ढरमा, तीनों तरह के बनते हैं । नीचे की तरफ कुंदों में लगी साँकरें दो छल्लियों से जुड़ी रहती हैं, जो अँगुलियों में पहनी जाती हैं । कभी-कभी तीन या पाँच छल्ले लगे रहते हैं । ऊपर की तरफ दो कुंदों में पड़ी साँकर टखने के चारों ओर घेरे आभूषण को साधे रहती है ।

बाँकें Banke – अंगूठा के तरफ की अँगुली से छिंगुरी तक छल्लों पर पट्टा लगा होता है और पंजे की तरफ पान-फूलदार या दूसरी बनावट की कलाकारी होती है । चाँदी की टेढ़ी-मेढ़ी बनावट के कारण बाँकें कहलाती हैं । बिछिया Bichhiya – यह बहुत पुराना आभूषण है । आकृति में बिच्छू से कुछ मिलता-जुलता है । चाँदी, गिलट, कसकुट के छला पर दो गुटियों वाला कलसियादार, झिंझरियादार आदि बनावट का बिछिया नारी के सौभाग्य का प्रमुख चिन्ह है ।

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ये आभूषण एड़ी के ऊपर उभरी हड्डी की गाँठ (टखना) के सहारे मुरवा (ऊपरी भाग) में पहने जाते हैं । कुछ ऊपर ही कसे रहते हैं और कुछ नीचे झूलते रहते हैं । कुछ टखने के नीचे चिपके रहते हैं । पायल टखने के नीचे लटकती है, जबकि गूजरी ऊपर ही सुशोभित होती है । बहुधा एक आभूषण ऊपर और एक नीचे पहनने का रिवाज था, जिससे पाँव भरा-भरा लगे ।

अनोखा Anokha – चाँदी या गिलट के बने उमेंठे तारों के लच्छों के बीच-बीच समान अंतर से लगे कुंदों में घुँघरु (बोरा) गँसे रहते हैं, जो बजनिया (बजने वाले) और दिखनौसू (न बजने वाले), दो तरह के होते हैं । बजनिया मधुर झंकृति से आकर्षण फैला देते हैं । अनोखा लच्छों के साथ पहने जाते हैं ।

कड़ा Kada – वैदिक आभूषण है, जो बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध तक प्रचलित रहा है । चाँदी का ठोस बना लगभग आधा इंच मोटा गोलाकार कड़ा अपने दोनों सिरों में गुटियोंदार होता था । वह सादा और डिजाइनदार, दोनों तरह का रहता था ।

गूजरी और गुजरिया goojari/Gujariya – चाँदी, गिलट, कसकुट की बनी चार-से-छ: इंच चौड़ी ऊँची पट्टादार, बीच में टूटदार और दोनों छोरों पर कुंदों में सींक या कील रहती है, जिससे वह कसी रहती है । इसका वजन आधा सेर से लेकर डेढ़-दो सेर तक रहता था । हल्के वजन और कम चौड़ी पैजना की तरह गुजरिया होती है । दोनों में कंकड़ पड़े रहते थे, जिनसे मधुर झनकार उठती थी । उन्हें श्रमिक जातियाँ पहनती थीं ।

घुँघरिया, घूँघरु और नूपुर Ghunghru/Nupur – नूपुर’ नाम सबसे पुराना है । ताम्रयुग में ताँबे के नूपुर बनते थे । इसका आंचलिक नाम घुँघरु और घुँघरियाँ हो गया । चाँदी, गिलट, कसकुट, पीतल के पतले पत्ते की घुँघरियों में ककरा डले रहते हैं और हर घुँघरिया डोरा या तार से गुँथी रहती है ।

चुल्ला Chulla – चाँदी, गिलट, कसकुट, काँसे के गोलाकार बनते थे । काफी वजनी होते थे, आधा सेर से डेढ़ सेर तक । इन्हें गधेरे और आदिवासी स्रियाँ पहनती थीं । पैर में कसे होने से अकेला यह गहना पर्याप्त होता है । चूरा Chura- चाँदी, गिलट, कसकुट के सादा और कामदार बनते हैं । वे गोलाकार ठोस या पोले होते हैं । इनकी बनक कड़ा की तरह होती है ।

छड़ा Chhada – चाँदी, गिलट के इंच के दसवें भाग जितने मोटे और चौथाई इंच चौड़े पत्ते के बने आभूषण हैं, जो कड़ा के साथ पहने जाते हैं । उनमें कई तरह की कलाकारी की जाती है । छागल Chhagal- चाँदी या गिलट के पट्टेदार होते हैं । उनमें घुँघरु लगे रहते हैं । वे लच्छों के नीचे पहने जाते हैं ।

जेहर Jehar – यह पायजेब की तरह का आभूषण है । तीन लरों की तिकोनी अंत में पट्टे से जुड़ती है और पट्टों के कुन्दा में सींक डालकर रहनी जाती है । अधिकतर चाँदी या गिलट की बनती हैं । झाँझें jhanjhe – चाँदी या गिलट की गोलाकार अधिकतर पोली बनीं होती हैं । फूलदार, झिंझरियनदार आदि कई बनावट की कलात्मक रहती हैं और छोर पर गुट्टे होते हैं । झनकार के लिए कँकरे डाले जाते हैं और बिना कँकरों की भी प्रचलन में रही हैं।

टोड़र Todar – कोंदर स्री के अनुसार टोड़र चाँदी, गिलट के २ इंच मोटे, गोल, कसे, गुट्टा या कीलदार होते हैं । उनमें कँकरा नहीं डाले जाते, दो गुच्छा (बोरों के) लगे रहते हैं । वे एक किलो वजन के छीताफली या दूसरी बनावट के बनते हैं । गुट्टा गुठमा के होते हैं । आदिवासियों से ही इनका चलन आया है ।

तोड़ा Toda – गोंड़ आदिवासियों का आभूषण था, पर बाद में क्षत्रियों में चलन हो गया । राजा, कवि या सैनिक को तोड़ा प्रदान कर सम्मानित करता था। तोड़ा गुठमा के चाँदी के दो टुकड़ों से गुठा होता था । उसके सिरे पर गुट्टे बनाये जाते थे। क्षत्रियों के दूल्हा उन्हें अवश्य पहनते थे । तोड़ा तीन प्रकार के होते हैं….

1 – तोड़ा सादा, जो वजन में 150 ग्राम से लेकर 600 ग्राम तक रहता था।
2 – तोड़ा गुच्छादार, जो सादा तोड़ा जैसा होता है, पर प्रत्येक तोड़े पर अंगूर के गुच्छे जैसी डिजाइन के दो गुच्छे लगे रहते हैं।
3 – तोड़ा करीदार, जिसमें कड़ी जोड़ी जाती है । इनके अलावा पतले तोड़ा तोड़ियाँ कहलाते हैं, जिन्हें हल्के होने के कारण स्रियाँ पहनती हैं।

पाजेब Pajeb- चाँदी की साँकरों की बनी गोलाकार पायल की तरह होती है, पर वह पैरों में फिट और चौड़ी रहती है तथा उसमें घुँघुरुओं के गुच्छे गाँसे रहते हैं, जो चलने पर बजते हैं । छोरों पर पेंच लगाने के लिए कुंदा बनाये जाते हैं । दोनों का वजन दो सौ ग्राम से लेकर एक किलो तक होता है । इनका प्रचलन यहाँ चंदेल-काल से अब तक है ।

पायल Payal – चाँदी या गिलट की साँकरों से बनी गोलाकार कुछ ढीली-सी रहती हैं । कटमादार, मीनादार, पलियादार, चंदकदार, पान, चिड़ी, फूल कई तरह और कई बनक की होती हैं । आजकल इनका प्रचलन सर्वाधिक है । कुछ में बर्जानेया और कुछ में बिना बजनिया, बोरा (घुँघरु) लगे रहते हैं, लेकिन बिन बोरादार पायलें अधिक पहनी जा रही हैं । पहले पायल की रुनझुन का वर्णन कविता, कहानियों और उपन्यासों में खूब हुआ है । थोड़ी-सी लय बँधने और तेज होने पर झनक-झनक की झनकार सुनाई पड़ती है, जो दूर से ही आकर्षित कर लेती है ।

पैजना-पैजनियाँ Paijana/Paijaniya – चाँदी, गिलट और कसकुट के एक-से-दो इंच तक मोटे पैजना खोखले होते हैं, जिनके भीतर लोहे या पत्थर के कँकरा डले रहते हैं । वे कटमा, गढ़मा, ढरमा के चपटे और गोल तथा ऐंठी, कौंड़िया, मेड़ासिंगी, जालीदार, कँगूरेदार, छीताफली आदि कई बनक के होते हैं । नगरों के नाम पर छतरपुरी, पलेरासाई, टीकमगढ़ी, दतियासाई, सागरी आदि से पैजनों की विविधता दिखाई पड़ती है ।

पैजना के झनाके प्रसिद्ध रहे हैं । कसकुट और गिलट के पैजना तो और अधिक बजते हैं, जिससे गली-खोरें निनादित हो उठती हैं ।पैजना का प्रचलन इस अंचल में इतना अधिक रहा कि हम उसे बुंदेलखंड का जनपदीय आभूषण कह सकते हैं । पैजनियाँ पैजना का छोटा रुप है, जिन्हें किाोरियाँ अधिक पहनती हैं । इनका वजन सौ ग्राम से छ: सौ ग्राम तक होता है, जबकि पैजना दो किलो तक के रहते हैं । पैजनियों की ठनक तो और भी घातक है ।

पैंदना Paidana – पैजना पोले होते हैं, जबकि पैंदना चाँदी का ठोस आभूषण है । वह कड़े की तरह गोल होता है । इनका वजन पैजनों से अधिक रहता है । पैरियाँ Pairiyan – चाँदी, गिलट और कसकुट की पायजेब की तरह बनती हैं । बीच में खुलवाँ होती हैं । दोनों छोरों पर कुंदा बने रहते हैं, जिनमें कील डार कर पहनी जाती हैं । चन्दक और सादा दो बनक की होती हैं । आदिवासी स्रियाँ पहनती हैं ।

बाँकें Banke – चाँदी या गिलट की लच्छा जैसीं, पर टेढ़ी-मेढ़ी लहरियादार बनती हैं । लच्छों के साथ पहनी जाती हैं । महाउर Mahaur – चाँदी या गिलट की बाँकें जैसीं, पर उनसे अधिक चौड़ी होती हैं । रुल Rul – चाँदी या गिलट की तोड़ा की तरह, पर उससे पतली बनी रुलें टोड़र के साथ पहनी जाती थीं।

लच्छा Lachchha – चाँदी या गिलट के तारों को उमेंठ कर बनते हैं । स्रियाँ हर पैर में चार-छ: से दस-बारह तक झाँझों के साथ पहनती हैं । साकें Sanken – चाँदी या गिलट की गुजरियों से कम चौड़ी होती हैं । नीते बोरा लगे रहते हैं, जो बजनारे और बिन बजनारे-दोनों तरह के होते हैं ।

बुन्देली झलक ( बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य )

संदर्भ-
बुंदेली लोक साहित्य परंपरा और इतिहास – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुंदेली लोक संस्कृति और साहित्य – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुन्देलखंड की संस्कृति और साहित्य – श्री राम चरण हयारण “मित्र”
बुन्देलखंड दर्शन – मोतीलाल त्रिपाठी “अशांत”
बुंदेली लोक काव्य – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुंदेली काव्य परंपरा – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुन्देली का भाषाशास्त्रीय अध्ययन -रामेश्वर प्रसाद अग्रवाल

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