Saira Pai Nritya सैरा पाई नृत्य

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Saira Pai Nritya सैरा पाई नृत्य
Saira Pai Nritya सैरा पाई नृत्य

बुन्देलखण्ड का Saira Pai Nritya पुरुषप्रधान सामूहिक नृत्य है, जो सावन-भादों में वर्षा की झड़ी के साथ शुरू होता है। इसमें 10-12 वर्ष से 40-45 वर्ष की आयु वाले 15-20 संख्या तक भाग लेते हैं। नर्तकों की वेशभूषा साधारण गाँव वालों की तरह होती है। घुटनों तक धोती, वक्ष को ढँकता कुर्ता और उसके ऊपर बण्डी, सिर पर साफा या पगड़ी, कटि में कमरपट्टा और पैरों में घुँघरू ही सभी को आकर्षित करते हैं।

सैरा पाई नृत्य के वादकों की मण्डली में ढोलक या मृदंग , नगड़िया, टिमकी, ढपला, बाँसुरी, लोटा और चटकोरा वाद्य रहते हैं। तीन-चार वादक मंजीरे बजाते हैं। मंजीरा, मृदंग, चटकोरा और डण्डों की ध्वनि मधुर संगीत पैदा करती है। वादकों के साथ गायकों का दल भी रहता है।

नर्तकों के दाहिने हाथों में खैर या शीशम के 2 से 2.5 फुट लम्बे, पतले और चिकने दो-दो डण्डे रहते हैं। गोलाकार घेरे में खड़ी होकर नर्तक-मण्डली अपने बीच में गायकों-वादकों द्वारा आरम्भ किये गये सैरागीत पर नृत्य प्रारम्भ कर देती है। ढोलक या मृदंग और गीत की लय पर नर्तक झुककर चाँचर खेलते हैं।

डण्डों की चट-चट की आवाज एक अलग-सी धुन पैदा करती है। गीत सम पर आता है, तो नर्तक स्वयं गाने लगते हैं। वे दो भागों में विभाजित होकर बारी-बारी से गीत की पंक्तियों का गायन करते हैं। गीत की गति बढ़ने के साथ नृत्य की गति भी बढ़ने लगती है। गीत जब सम पर होता है, तब तो नर्तक डण्डों से चंद्राकार बनाते हैं, लेकिन द्रुति पर पंजों के बल झुककर, बैठकर घूमकर और आगे-पीछे मेल बिठाकर नृत्य गतिवान रहता है। जैसे ही सैरा गीत समाप्त होने लगता है, ’पाई‘ गीत आरम्भ हो जाता है।

’पाई‘ गीत में 2 या 3 अंतरे होते हैं, जिससे नृत्य को अधिक गति मिल जाती है। इस गीत के अंत में होऽ हाऽ हेऽ ध्वनियों के साथ नृत्य द्रुति की चरम सीमा पर पहुँच जाता है और फिर गीत बंद हो जाता है और नृत्य वाद्यों के संगीत पर चलने लगता है। नृत्य की गति में इतनी तीव्रता आ जाती है कि नर्तकों के पैर और हाथों के डण्डे लक्षित नहीं होते हैं।

’सैरा‘ गीत वीरतापरक है, जबकि ’पाई‘ गीत श्रृंगारिक। दोनों का समन्वय वीर गाथाओं की तरह रसवान् हो जाता है। दोनों तरह के गीत प्रस्तुत हैः-

सैरा गीत-
सदा तुरैया रे अरे फूले नहीं, हो सदा ना साउन होय।
सदा न जोधा रन चढ़े रे, हो सदा न जीबै कोय।।

पाई गीत-
नादान बने रस लेते, गोरी तोरे नादान बने रस लेते……।
गोरी धना होतीऽऽ रे, बन की हिरनियाँ रेऽऽ,
बन की हिरनियाँऽऽ
सैयाँ सिकारी होतेऽऽ रे। गोरी तोरे.।
गोरी धना होतीऽऽ रे, जल की मछरियाऽऽ,

बुन्देली ढिमारयाई