Sadhak Kavi Ainsai साधक कवि ऐनसांई

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Sadhak Kavi Ainsai का जीवन संतों-फकीरों और साहित्यकारों के सम्पर्क में व्यतीत हुआ। वे साधक कवि और समर्थ फकीर थे। उनका नाम ऐनल्ला पर उन्हें ऐन, ऐनानंद, ऐंनसाई और ऐनुल्लाह नामों से भी स्मरण किया जाता है । उनका जन्म ग्वालियर में हुआ और बचपन वहीं व्यतीत हआ। उनके पिता बंगश पठान हिरात के थे जो रिसाला पल्टन मे नौकर थे।

डॉ० सियारामशरण शर्मा उनका जन्म संवत् 1849 वि० मानते हैं।  डॉ. गुलाबखान गौरी की स्थापना के अनुसार उनका जन्म संवत लगभग 1818 के लगभग मानते हैं और लगभग 80 वर्ष की आयु में संवत् 1902 वि० में देहावसान । जन्म तिथि के संबंध में 31 वर्ष का अंतर अनुसंधित्सुओं के लिए विचारणीय है ।

सूफी सम्प्रदाय के अंतर्गत् रसूलशाही फिरका के हजरत फिदादरी से 23 वर्ष की आयु में ऐंनसांई ने फकीरी कबूल की। सन् 1869 ई० में वे अजमेर होते हुए दिल्ली पहुँचे और 1872 में रसूलशाही फिरका के अतंर्गत दीक्षित हुये। लंम्बा पीला कुर्ता उसके नीचे कोपीन और चोटीदार ऊँची टोपी उनका पहनावा था ।

राजस्थान के अलवर, जयपुर और अजमेर तथा बुंदेलखंड के ग्वालियर दतिया आदि में उनकी शिष्य मंडली फैली थी। अपने शिष्यों के पास ऐनसाई यदा-कदा आते-जाते रहते थे। काशीनरेश चेतसिंह के बेटे राजा बलचन्द्रसिंह ग्वालियर में उनके प्रथम शिष्य थे दतिया के गोस्वामी किशुनदास की गिनती भी उनके परम भक्तों की जाती थींऐनसाई के शिष्यों में गोपाल उपनाम के एक कवि भी थे।

ऐनसांई की रचनाओं की अधिकतर पांडुलिपियाँ वाहिद काजमी साहब के सौजन्य से डॉ० सियारामशरण शर्मा ने बंदेलखंड विश्व विद्यालय में सुरक्षित करवाई हैं। कु० किरण पांडेय ने डॉ० शर्मा के मार्गदर्शन में बुंदेलखंड के मुसल हिन्दी कवि’ शोध-कार्य के अतंर्गत ऐनसांई के ग्रन्थों का सम्यक विश्लेषण किया गया है। श्री कामता प्रसाद सडैया, दतिया की सूचना के अनुसार लखेरे रामचंद्र के पास ऐनसाई के सिद्धांत सार की आकर्षक पांडुलिपि सुरक्षित है ।

शंकर द्विवेदी ने उनके 15 ग्रंथों का उल्लेख किया है, जिनमें
1 – गुरु उपदेश सार
2 –  सिद्धात सार
3 – इनायत हुजूर
4 – सुरारहस्य
5 – भक्ति-रहस्य
6 – अनुभव सार
7-बह्म विलास
8 – सुख विलास
9 – भिक्षुक सार
10 – स्याम हित सार
11 – हित उपदेश
12 – हरि प्रसाद
13 – ऐनविहार
14 – नर चरित्र का उल्लेख श्री कामता प्रसाद मदैया ने अपने विवरण में दिया है।
डॉ. किरन पांडेय ने अपने विश्लेषण में
1 -श्री भगवत् प्रसाद
2 – स्वंय प्रकाश
3 – हरि प्रसाद उरदेस हलास
4 – सिद्धांत सागर
5 – ऐनानंद सागर के नाम ग्रंथ सूची में अतिरिक्त सम्मिलित किये हैं।
डॉ० गुलाब खान गौरी ने ऐसाई के उपलब्ध ग्रंथों का विवरण इस प्रकार दिया है।
1 – ऐनुल्लाह कुंडली संग्रह – पृष्ठ 200 – आकार 7×9 रचना काल अज्ञात-ग्वालियर
2- स्वयं प्रकाश – पृष्ठ 575, आकार 7×9 रचनाकाल- 1902, जयपुर
3 –  उपदेश हुलास – पृष्ठ 67, आकार 7×9 कुंडलियाँ 200, गीता से संबंधित उपदेश
4- सिद्धांत सारिका – 100 कुंडलियाँ, सूफीमत के चारों मुकामों – शरियत, मारिफत, तरीकत और हकीकत का भारतीय आध्यात्म के साथ विवेचन
5 – भागवत प्रसाद – पृष्ठ 600, आकार 7×9 कुडंलियाँ 1000, सृष्टि रचना, योग, ज्ञान, वैराग्य, एकेश्वरवाद आदि का विश्लेषण।
6 -सिद्धांतसार – वियोग वर्णन
7-
ऐनानंद सागर – अपूर्ण, ईश्वर भक्ति विषयक

ऐनसांई को कुडंलियाँ छन्द प्रिय थी । उनकी अधिकतर रचनाओं में इसी छंद का व्यवहार है। ऐंनसाई जितने सरल थे, उतनी ही सादगी से कविता में अपने विचारों को रखने में सिद्धहस्त थे।
हिन्दी पढ़ा न फारसी कछू न अक्षर ज्ञान।
अनगिनती कुंडली कही, वेद के अर्थ पुरान।।
कागद स्याही ना लई, कलम गही नहिं हाथ।
बिना लिखे कुडंली चली गुरू किरपा के साथ।।

ऐनसाईं को गुरु की कृपा पर अपंरपार विश्वास था। उनकी दृष्टि में गुरुकृपा के बिना ज्ञान संभव नहीं है। दृश्य जगत को वे परमात्मा का रूप मानते हैं और चराचर में उसी का रूप व्याप्त है ।
ब्रह्म रूप यह सब जगत, जहाँ लौं जौ आकार
ब्रह्म उपजावत ब्रह्म कों, ब्रह्म ब्रह्म आधार।।


ऐनंसाईं की दृष्टि में जीव कठपुतली है और उस कठपुतली को नचाने वाला परमात्मा है ।
कठपुतली की तरह तन, तन मेरा है यार,
साँस जो मेरे बीच हैं, सोई बंधौ है तार
सोई बँधा है तार, हिलाय चलाय गुसाई।
चाहे जैसे नाच नचाय, बैठ घर पाई।।
पुतली वाले की तरहऐनआप करतार।
कठपुतली की तरह तन, तन मेरा है यार।।


ऐंनसाई दरिया दिल सफी संत थे। उन्होंने अध्यात्म के रहस्य को से अपनी कविता में समझाया है। उनके प्रतीक साधारण जन की समय तक उतर जाते हैं ऐंनसाई का हुजूर रोम-रोम में रमा है। ‘ऐन का हरफों से इश्क लिखा जाता है। ऐन-अकल बढ़ाता है, शीन-बेशर्म बनाता है काफ करार में निंरतर वृद्धि करता है। इस तरह ऐंनसाई का भावपक्ष जित गहराई तक प्रभाव डालता है, कलापक्ष उतना ही आंनद देता है।

ऐंनसाई और चारों दिशायें खुली हुई हैं। वे परमहंस की कोटि तक पहुँचे हुए फकीर थे। नर-नारायण का तत्व उन्होंने समझ लिया था। वे जिस तरह राजा और फकीर के भेद को बेमानी मानते थे उसी तरह हिन्दू और मुसलमान के बीच भी उन्हें भेद दिखलाई नहीं देता था। ऐनसाईं की रचनाओं में सूफियों का समन्वय वास्तविक धरातल तक पहुंचा है।

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

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