Rangat Ki Fagen रंगत की फागें

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Rangat Ki Fagen रंगत की फागें
Rangat Ki Fagen रंगत की फागें

बुन्देलखण्ड के फागकारों ने एक वस्तु विषयक फागें फड़बाजी में कहीं हैं। इन फाग कवियों ने नख-शिख, सोलह श्रंगार तथा बारह आभूषणों का वर्णन रीतिकालीन कवियों की भांति सफलता पूर्वक किया है। इस कारण इन्हे Rangat Ki Fagen रंगत की फागें कहा गया । वेणी, काजल, गुदना, महावर, मेंहदी आदि का वर्णन चमत्कार पूर्ण ढंग से किया है। नेत्र विषयक रंगत की एक फाग प्रस्तुत हैं –

दोऊ नैनन की तरवारें, प्यारी फिरै उबारे ।

अलेमान गुजरात सिरोही, सुलेमान झक मारे ।

ऐंची बाड म्यान घूँघट की, दै काजर की धारे।

ईसुरी श्याम बरकते रइयौ, अदियारे उजियारे।

इसी रंगत की गंगाधर जी की एक फाग इस प्रकार हैं-

दोऊ नैनन की तरवारे जात बेदरदिन मारें ।

लम्बी खोर दूर लौ डारे, ठाढौ हती उबारे ।

दुबरी दशा देह की हो गई, हिलत चली गई धारें।

गंगाधर बस होत सुधर पै बेरहमन में हारै ।

Rangat Ki Fagen

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