Shri Ram Bihari Soni श्री राम बिहारी सोनी “तुक्कड़ “

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बुन्देली व्यंगकार कवि Shri Ram Bihari Soni तुक्कड़ का जन्म ग्राम पूंछ जिला झांसी (उत्तर प्रदेश) के एक छोटे से गांव में 05 दिसम्बर 1958 को राज बैद्य श्री राम नाथ सोनी के यहाँ हआ था । इनके पिता जी सोने चांदी के आभूषणों का निर्माण करते हुये देशी चिकित्सा से लोगों का उपचार करते थे, चूंकि इनके परिवार की तीन पीढ़ी से देशी दवा खाना चला आ रहा है, तथा आज भी इनके बड़े भाई डा. सी. एल स्वर्णकार चिकित्सा क्षेत्र में अपना योगदान दे रहे हैं ।

श्री

राम बिहारी सोनी जी की प्रारंभिक शिक्षा जूनियर हाई स्कूल स्तर तक गाँव में ही हुई, उच्च शिक्षा इन्होंने बाहर की क्यों कि उस समय गांव मे केवल जूनियर हाई स्कूल तक ही विद्यालय था। इन्होंने एम.ए.(अर्थशास्त्र),बी.टी.सी. तक शिक्षा ग्रहण की, ये पढाई में औसत विद्यार्थी रहे लेकिन साहित्य के प्रति रुझान इनका बचपन से ही रहा। टूटी-फूटी भाषा मे ये लिख कर स्कूल मे होने बाली बाल सभा मे अपनी कविता सुनाया करते थे, इसलिए इन्होंने अपना उपनाम ‘तुक्कड़ ‘ रखा, इनकी साहित्यिक विधा बुन्देली हास्य व्यंग्य रही।

वर्ष 1977 मे इन्होने बी.टी.सी. पाठ्यक्रम मे प्रवेश लिया तथा वर्ष 1979मे बी.टी.सी. का कोर्स पूर्ण करके अपने गांव आ गये। उस समय प्राईमरी अध्यापक मे चयन नहीं हो रहा था,अतः इन्होंने भारतीय डाक विभाग मे क्लर्क की परीक्षा दी एवं सफल हुए। इनकी नियुक्ति 08 सितम्बर 1983 को क्लर्क के पद पर भारतीय डाक विभाग हुई, लगभग 34 वर्ष सेवा उपरांत 31 दिसम्बर 2018 को सेवा निवृत्ति हो गये।

साहित्य के क्षेत्र में श्री राम बिहारी सोनी जी  बराबर योगदान देते रहे तथा कवि सम्मेलनों मे अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे। वर्ष 2002 में इनका प्रथम काव्य संग्रह ‘ तुक्कड़ के तीर ‘ प्रकाशित हुआ, वर्ष 2010 में श्री मद् भगवद्गीता का काव्यानुवाद ‘श्री मद् भगवत गीता दोहा माला ‘ का प्रकाशित करायी, इसके बाद वर्ष 2022 में द्वितीय काव्य संग्रह ‘ तुक्कड़ के घाव ‘ प्रकाशित हुआ । झांसी जनपद की अधिकांश साहित्यिक संस्थाओं द्वारा इनका सम्मान किया गया, इनके द्वारा रचित बुन्देली व्यंग की सुप्रसिद्ध रचनाएँ।

श्री राम बिहारी सोनी की रचनाएं

ढडकोला
असुआ ढडका रव ढडकोला, सोचत खडो बिचारो।
माटी के गोदन से बाने,
घर की भिती उठा लइ।
डार बडैरो लगा मियारी,
और कुरइया छा लइ।।

खपरन से बाने छबबा दव, रै रव ले कुडआरो।
असुआ ढडका रव ढडकोला, सोचत खडो बिचारो।।

लग गव चौमासो ढडकोला,
परो पौर मे रो रव।
बरसों पानू बडे जोर से,
घर बाको सब चू रव।।

नेकउ नइया ठौर बैठबै, है आफत को मारो।
असुआ ढडका रव ढडकोला, सोचत खडो बिचारो ।।

मुखिया
घर अपनों पोलो कर डारो , कलुआ ने खा खा के ।

घरबारन ने घर को मुखिया,
कलुआ को चुन डारो।
बधो मुडी पे मौर जबइ से,
घर बाने चुन डारो।।

घर के बर्तन भाड़े बाने बैचे उड़ा उठा के।
घर अपनों पोलो कर डारो कलुआ ने खा खा के ।।

पाँच रूपइया मे पान,
पीबै को मटका आ रव।
लेकिन खर्चा मे बो पूरो,
सौ को नोट दिखा रव।।

ठाढी फसल खेत की बाने, खा लइ दुका दुका के।
घर अपनों पोलो कर डारो कलुआ ने खा खा के ।।

ढोरन की बखरी मे बाने,
हेन्ड पम्प लगबा दव।
पन्द्रा फुट को गडा खुदा के,
दो सौ फुटा बता दव।।

पानू एक बूद न निकरी,हड़ गय चला चला के।
घर अपनों पोलो कर डारो कलुआ ने खा खा के ।।

कानी को टेट
अपनों टेट छोड के कानी, पर पर फुली निहारे।
एक दूसरे की धोती को,
ताने ताने फिर रय।
चौराहे पे ठाढे होके,
जबरन नंगो कर रय।।

धुतिया भीतर सब नंगे है, काये करत उघारे।
अपनों टेट छोड के कानी ,पर पर फुली निहारे।।

का हो गव कलमाडी ने,
बल्ला से छक्का घाले।
का हो गव अपने नेतन ने,
कर लय तनक घुटाले ।।

चुप्पा बैठ तमाशो देखो, काये दौथर पारे। अपनों टेट छोड

देश चनन की भाजी हो गइ।
देश चनन की भाजी हो गई,खोट खोट खा डारो।
जी को पोल दिखाई दे रइ,
बो पूरो घुस जा रव।
डुबकी तरे लगाई जाने,
बोइ मलाई खा रव।।

जितनो मौका मिले खोट लो, पेड़ो नहीं उखारो ।
देश चनन की भाजी हो गई खोट खोट खा डारो।।

कछू कछू ने नोटन की,
पल्ली गद्दा भरवा लय।
कछू जनन ने अपने अपने,
ऊँचे अटा उठा लय।।

ज्यादा अन्डन के चक्कर मे,मुर्गी को जिन मारो।
देश चनन की भाजी हो गइ,खोट खोट खा डारो।।

रमुआ
अपय देश मे अपनों रमुआ, फिर रव मारो मारो।
रमुआ अपनी दशा देख के,
बैठ करम को रो रव।
और फटी किस्मत को अपनी,
बैठो बैठो सी रव।।

बीच भंवर में डरो अकेलो, नइया कितउ किनारों ।
अपय देश मे अपनों रमुआ, फिर रव मारो मारो।।

सारे दिना मजूरी करके,
पेट नहीं भर पा रव।

तासे मोड़न से घूरिन की
पन्नी बो बिनबा रव।।

लाके चून मुठी मे अपनी, कर रव रोज गुजारो।
अपय देश मे अपनों रमुआ, फिर रव मारो मारो।।

गठबंधन
सत्यानाश देश को हो गव, गठबंधन के मारे।
जनता ने जी को कुर्सी से,
लात मार धकया दव।
गठबंधन ने बाको फिर से,
कुर्सी पे बैठा दव।।

अच्छो गठबंधन है भइया, जाके मारे हारे।
सत्यानाश देश को हो गव, गठबंधन के मारे।।

एक दूसरे को चुनाव मे,
खुल के जे गरया रय।
अपने मो से आपस मे,
जे डाकू चोर बता रय।।

वाय सकोरे ताल ठोक के,पुरखन तक की टारे।
सत्यानाश देश को हो गव, गठबंधन के मारे।।

जन प्रतिनिधि
चुनके हमने जिनको भेजो, उनने सब चुन डारो।
जब से जीतो बो चुनाव मे,
लम्पा सो इठया रव।
इमली के पत्ता पर बैठो,
खूब गुलाटे खा रव ।।

संगे चोर उचक्का लैके , कर रव करिया कारो।
चुनके हमने जिनको भेजो, उनने सब चुन डारो।।

मीठी मीठी बातें कै के,
लोगन कों भरमा रव।
पकर उगरिया अपय हाथ से,
कौचा पकरन चा रव।।

जनता ठाढी करम ठोक रइ ,असुवा बने पनारो।
चुनके हमने जिनको भेजो, उनने सब चुन डारो।।

पद्मश्री अवध किशोर जड़िया का जीवन परिचय 

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