Mudra Nirman Kala भारतीय संस्कृति में मुद्रा निर्माण कला

Photo of author

By admin

भारतीय संस्कृति में Mudra Nirman Kala की शुरूआत उस समय हो चुकी थी जब सामान के बदले सामान का लेन -देन होता था । मुद्राओं के दूसरे नमूने हमें आहत मुद्राओं (पंचमार्क कॉइन्स)के रूप में मिलते हैं। भारत के सबसे प्राचीन सिक्के निशान लगाने के कारण ही पंचमार्क के नाम से पुकारे जाते थे। चाँदी की प्राचीन आहत मुद्राएं तक्षशिला से मैसूर तक मिली हैं। इन पर लगभग 500 चिन्ह बने हैं, जिन्हें रूप कहा जाता था।

Currency making art in Indian culture

कौटिल्य के अर्थशास्त्र में आहत मुद्राओं का वर्णन मिलता है। इनमें सूर्य, षडभुजी चिन्ह, चतुश्पद पंक्ति जिनमें हाथी, सिंह, वृषभ और कहीं-कहीं तुरग है, चोटी पर अर्धचन्द्र से युक्त मेरु पर्वत, चक्र, वेदिका से घिरा हुआ चैत्य वृक्ष, जिस पर पक्षियों के घोंसले हैं या नहीं भी हैं, मछलियों से भरा हुआ सरोवर, शशक, मोर , मेंढक, कछुआ, धनुष बाण, नन्दिपद, स्वस्तिक गर्भित चौकोरे, त्रिभुज, चौखटे में अंकित तीन मानवाकृति आदि।

चिन्हों में एक ओर वैदिक प्रतीक हैं, दूसरी ओर ज्यामितीय रेखाओं से बने हुए पशु-पक्षी और फूल-पत्तियों के अनेक अलंकरण हैं। ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में विदेशियों के अनुकरण पर लेख सिक्कों पर अंकित किए जाने लगे। कुषाण शासकों ने स्वयं सिक्कों को तैयार कराया और उपाधि सहित अपना नाम खुदवाया। कुषाण शासक विम कडफिस के सिक्कों पर केवल शिव और नन्दी बैल की मूर्ति थी।

कनिष्क ने ईरानी, यूनानी ,सनातन और बौद्ध धर्म के देवताओं को अपने सिक्कों में स्थान दिया। ’’ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी से सांचे में ढालकर सिक्के बनाने का पता चलता है। सांचे मिट्टी को पकाकर तैयार किए जाते थे। सांचे बनाने से पूर्व मिट्टी में अक्सर धान का छिलका मिलाया जाता था। टप्पे से भी सिक्के तैयार किए जाते थे। इस रीति से गरम धातु के टुकड़े पर टप्पे के दबाव से चिन्ह तथा लेख गहराई में अंकित हो जाते थे। एक ओर टप्पे के निशान से सिक्के तैयार करने की प्रथा ढालने के काम में लाई गई।

ईरानी सिक्कों के आधार पर दोनो तरफ टप्पा मारने का दोहरा प्रयोग किया गया। कुणिन्द, औदुम्बर, नाग तथा यौधेय गणों के गोलाकार सिक्के पाए जाते हैं। ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी से ही आहत (पंचमार्क) सिक्के तैयार करने की पुरानी रीति का टप्पा ने अंत कर दिया।

गुप्त कालीन सिक्कों में कला का सूक्ष्म प्रदर्शन किया गया। राजलक्ष्मी, शेर, घोड़े, कमल आदि को उनके प्राकृतिक रूप में दिखलाया गया है। समुद्रगुप्त को स्वाभाविक ढंग से वीणा बजाते हुए अंकित किया गया है। स्कन्दगुप्त के समय में हूण आक्रमण के कारण साम्राज्य के अवनति की ओर अग्रसर होने के कारण सिक्कों की कला में भी ह्रास दिखाई देता है।

अध्यात्म और सौन्दर्य मे समन्वय 

Leave a Comment

error: Content is protected !!