Lala Shiv Dayal लाला शिव दयाल-बुन्देली फाग साहित्यकार 

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लाला शिव दयाल  का जन्म  हमीरपुर में सम्वत् 1943  में हुआ था और मृत्यु संवत 2003 में हुई । Lala Shiv Dayal सरीला नरेश के दरबार में कामदार थे तथा अपने पिता के आश्रम में रहकर इन्होंने फाग रचनायें कीं।

इनकी फागें ‘फाग मनोहर’ नामक पुस्तक में संग्रहीत हैं। इनकी फागों में श्रंगार का पुट है। अपनी गहन अध्ययन क्षमता के कारण इन्होंने ईसुरी और गंगाधर की फागों का प्रभाव ग्रहण देखा जा सकता है।  श्रंगार भाव से परिपूर्ण उनकी फाग का नमूना

जाती भरन नीर जमुना के, देकें कजरा बांके ।

पैजनियां अरू पायजेब के, पारे जात छमाके ।

आगे जौन गली हा कड़ गई, तंहु खिच रहे सनाके ।

शिवदयाल मोहन राधा को, बैठो बाघे नाके ।

Lala Shiv Dayal की फागों में खड़ी बोली के शब्दों का आगम दिखाई देता है। बुंदेली मुहावरें और कहावतें उनकी फागों में प्रचुरता से प्रयुक्त हुई हैं। इस फाग में उनके भाषा प्रयोग को देखा जा सकता है-

आली हो गए निठुर कन्हाई ।

आली हो गए निठुर कन्हाई, मेरी सुध विसराई ।

जानत ते अपने ना हू हैं, पर पिय वेदन गाई।

जान बूझ के प्रीत करी हम, जग की सही हंसाई ।

कह शिवदयाल दूध की माछी, आंखिन देखत खाई।

लेद की फाग 

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