Kalyan Singh Ko Rachhro कल्याण सिंह कौ राछरौ

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Kalyan Singh Ko Rachhro में कल्याण सिंह  के मन में वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई के प्रति अटूट श्रद्धा थी, इस लिये स्वतंत्रता संग्राम में महारानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया था। बुन्देलखण्ड में कुछ ऐसे साहसी और वीर अवतरित हुए हैं, जिनके मन में देश प्रेम की अटूट भावना भरी हुई थी। कल्याण सिंह शत्रुओं से लड़ते-लड़ते प्राण त्याग दिये थे।

बुन्देलखण्ड की लोक-गाथा कल्याण सिंह कौ राछरौ

बुन्देलखण्ड मे एक अमर वीर बलिदानी थे कल्याण

सिंह कायस्थ। जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में महारानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया था। टीकमगढ़ दीवान नत्थे खाँ ने प्रतिशोध की भावना से प्रेरित होकर बुन्देलों की सेना सुसज्जित करके झाँसी पर धावा बोल दिया था। उस समय कल्याण सिंह ने लक्ष्मीबाई के पक्ष में नत्थे खाँ से सामना किया था।

कल्याण सिंह सुप्रसिद्ध धीर कुंडरा के वंशज थे, जो गढ़ कुण्डार के कायस्थ परिवार में उत्पन्न हुए थे और पेशे से कानूनगो थे। कल्याण सिंह के ईश्वरी प्रसाद और रंजीत नाम के दो पुत्र थे। उनके मन में वीरांगना लक्ष्मीबाई के प्रति अटूट श्रद्धा थी, उन्होंने दीवान नत्थे खाँ की सेना से घोर संग्राम किया था।

दिसा चारहू  से  हिंसा   कीनौ। दई दाग तौपैं करों कोट चीनौ।
उमंगै भरो जंग कौ अस्त्र लीनौ। चढ़े घाट चाहत है नग्र छीनौ।
इतै नग्र रानी जुबानी उचारी। सुनों सूर हौ पेज पालों हमारी।
लई सूर बर्छी कमानें कटारी। बंदूकै गहीं जौंन सौ जौम धारी।
गजैं सूर सामंत मानें न हारी।।

युद्ध का भयानक दृश्य देखने योग्य हैः-
भयौ सोर दुंह ओर ते सोर भारी। खड़ी कोट औहै लखें उग्र नारी।
भले ओड़छे के भले हैं सिपाई। मुबारक फतै तोप छारैं लगाई।
चले तीर  पै  तीर  तोपैं  तराई। फटें हैं किवारे परी है लराई।
घलै बान बर्छी घलै तेग न्यारी। सुगौलीन गोला कृपानें मलैती।
कटारी कमानें घलै बेग सैती।।

एक और यु़द्ध का वीभत्स दृश्य देखिये-
गुरज गुमानी गिरै गाज के समान।
तहाँ एके बिन मथ्थै एकैं ताके समरथ्थे।
एकै डोलें बिन हथ्थें रन माँचो घमसान।।
जहाँ एकै एक मारै एकै भुव में चिकारैं।
एकैं सुर पुर सिधारैं सूर छोड़ छोड़ प्रान।
तहाँ बाई नें संबाई अंगरेज सौं भजाई।
 तहाँ रानी मरदानी झुक-झारी किरवान।।

रानी की वीरता का इतना सुंदर चित्रण अन्यत्र देखने को प्राप्त नहीं होता है। उनकी मोर्चा बंदी आज के योद्धाओं के लिए अनुकरणीय है-
लगो मोरचा रात कैं, गनपत गिर के द्वार।
आयो पुन रनधीर जहँ, राव पलेरा बार।
तोप तुपक चटकन लगी, भई भोरई रार।
कोट ओट तजकैं कड़ौ, कुंवर कटीली बार।।

गनपत पलेरावारे, राव रनधीर और जवाहरसिंह कटीला वारे आदि ने रानी झाँसी के साथ युद्ध में अंग्रेजों के विरूद्ध संघर्ष किया था। कल्याण सिंह कुंडरा ने रानी के अदम्य साहस और शौर्य का वर्णन करते हुए स्वतंत्रता की अलख जगाई थी।

संदर्भ-
बुंदेलखंड दर्शन- मोतीलाल त्रिपाठी ‘अशांत’
बुंदेली लोक काव्य – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुंदेलखंड की संस्कृति और साहित्य- रामचरण हरण ‘मित्र’
बुंदेली लोक साहित्य परंपरा और इतिहास- नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुंदेली संस्कृति और साहित्य- नर्मदा प्रसाद गुप्त

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

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