Guljari Lal Gupt ‘Lal’ गुलजारी लाल गुप्त ‘लाल’

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कवि Guljari Lal Gupt ‘Lal’ का जन्म भिण्ड जिले के आलमपुर में 3 मार्च सन् 1930 को हुआ। इनके पिता का नाम श्री भगवान दास गुप्त था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा आलमपुर में ही हुई। आपने हिन्दी साहित्य सम्मेलन से प्रथमा की परीक्षा उत्तीर्ण की है। इनका स्वभाव बचपन से ही धार्मिक है। ये काव्य में बाल्यावस्था से रुचि रखते रहे हैं।

कवि श्री गुलजारी लाल गुप्तलाल’

श्री गुलजारी लाल गुप्त ‘लाल’ ने निम्न कृतियों का प्रणयन किया जो सभी अप्रकाशित हैं -1 – गोरी हारै जावे, 2 –  बुन्देली बूँदें, 3 –  नये स्वर, 4 –  दोहा दरबार, 5 –  रामजन्म। गुलजारी

लाल गुप्तलाल’ की रचनायें विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं, साथ ही आकाशवाणी भोपाल व ग्वालियर से प्रसारित होती रही हैं। आपको विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं ने सम्मानित भी किया है।

जात समाज में लाज प्रभो वृजराज हरो मम संकट भारी।
दीनदयाल दरो दुख दीरघ दुष्ट दुशासन खैंचत सारी।।
अम्बर के अम्बार लगे पर सारी घटी न घटी गुलजारी।।

द्रोपदी विनय करते हुए कहती है कि हे प्रभु! ब्रजराज कृष्ण समाज में मेरी लज्जा का सम्मान छिना जा रहा है, आप इस संकट का हरण कीजिए। दीनों पर दया करने वाले, दुशासन मेरी साड़ी को खींच रहा है, आप इस महान् दुखद क्षण का दलन कीजिए। कानों में पुकार के स्वर पहुँचते ही मुरारी कृष्ण ने बिना विलम्ब किए साड़ी का वस्त्र बढ़ा दिया जिससे खींची गई साड़ी के वस्त्र का ढेर लग गया लेकिन साड़ी नहीं समाप्त हुई।

दीनबंधु दीनानाथ लखन समेत सिय,
बिरहत विपिन आये अत्रि जू के अँगना।

आश्रम पधारे राम अत्रि ब्रम्हानंद लयौ,
दंड जिमि पौढ़े पग मोहि लाचौ अँगना।।

कहैं मुनि हाथ जोर विनती मैं काह करौं,
नाथ के चरित्र कह सकत भुजंग ना।

पतिव्रत धर्म के महान भेद-भाव मर्म,
सीता कों सुनावैं धन्य अत्रि जू के अँगना।।

दीनों के बंधु व स्वामी श्री राम लक्ष्मण व सीता सहित वन भ्रमण करते हुए मुनि अत्रि के आश्रम में पधारे। राम के आश्रम में पधारने पर अत्रि ने ब्रह्मानंद पाकर उनका स्वागत किया। मुनि अत्रि ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की कि मैं स्वामी के चरित्र का क्या वर्णन करूँ ? यह वर्णन तो शेषनाग भी सहस्त्र मुखों से नहीं कर सकते। मुनि अत्रि की पत्नी अनुसुइया सीता जी को पतिव्रत धर्म के महत्व को बता रही हैं।

कारे छवि बारे घुँघरारे गभुआरे केश,
आनन लुनाई लख मार हार मानी है।

दुई-दो रद सोहैं मन मोहैं मुनीषन के,
भौंहैं विशाल जनु कमान काम तानी है।।

अंग पै अनंग कोटि वारी हजार बार,
को कवि छवि कहै शारदा हू लजानी है।

मोहनी अनुपम विलोकी छवि राघव की,
लाल’ गुलजारी मम अखियाँ सिरानी हैं।।

कृष्ण की छवि का वर्णन करते हुए कवि कहते हैं कि श्यामवर्ण के शिशु रूप में छोटे-छोटे घुँघराले बालों वाले मुख की लावण्यता देखकर सौन्दर्यदेव काम भी पराजित हैं। मुख में दो-दो दाँत हैं, धनुष के समान विशाल भौंहैं ऐसी हैं जैसी कामदेव ने स्वयं धनुष उठाया हो, ऐसे सौन्दर्य को देखकर मुनियों के मन में प्रसन्नता हो रही है। प्रत्येक अंग में हजारों गुना सौन्दर्य परिलक्षित है। इस सौन्दर्य का वर्णन तो ज्ञानदेवी शारदा भी नहीं कर सकतीं। ऐसी मनमोहक अनुपम छवि को राम में देखकर कवि गुलजारी की आँखों को शांति मिलती है।

सोहत हाथ में रंग भरी पिचकारी औ काँधै अबीर की झोरी।
मोहन ग्वालन संग इतै उत राधिका हीय उमंग न थोरी।।

डारें गुलाल सुता वृषभानु की होरी के रंग रची शुचि जोरी।
आज मची वृज-बीथिन में वृषभानु लली बृजराज की होरी।।

हाथ में रंग की पिचकारी ले तथा कंधे पर अबीर की झोली

डालकर कृष्ण ग्वालों के साथ तथा राधा अपनी सखियों के साथ हृदय में उल्लास से परिपूरित होली खेल रही है। वृषभानु की पुत्री राधिका गुलाल डाल होली के रंग में रंगी है। आज ब्रज की गलियों में वृषभानु सुता राधा व ब्रजराज कृष्ण की होली हो रही है।

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

शोध एवं आलेख – डॉ.बहादुर सिंह परमार
महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय छतरपुर (म.प्र.)

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