Banda Me Vidroh बांदा में विद्रोह 

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By admin

बांदा में अशान्ति का माहौल था। नवाब आली बहादुर अपने सलाहकारों, सरकारी अधिकारियों और अमले को बराबर आश्वासन दे रहे थे, कि उन्हें बदस्तूर स्थापित किया जायेगा और तहसीली खजाने में वागियों द्वारा छोड़े गये 3492/-रुपये प्राप्त हो जाने पर उन्हें वेतन आदि का भुगतान कर दिया जावेगा। और देखते ही देखते  Banda Me Vidroh शुरू हो गया ।

इस अमले में विशेषकर राजस्व तथा पुलिस के चपरासी बड़ी आशा लगाये बैठे थे और वे ही अधिक विद्रोह के स्वर में बोलते थे। इनको नवाब ने अपने अमले में अधिक वेतन पर पुनः नियुक्त कर लिया था । नवाब ने इसके अलावा उन लोगों को भी अपने पास नौकर रख लिया था।

1 -जिन्होंने उनके ही महल में कलेक्टर मैंने पर हमला बोला था।
2 -जिन्होंने तिराहा के ज्वाइन्ट मजिस्ट्रट काकरेल को महल के द्वार पर हो मार डाला था । तथा अन्य युरोपियों की भी हत्या की थी।

नवाब को विश्वास हो गया था कि अंग्रेजों का खातमा हो गया है। उसके सलाहकारों ने भी बताया कि जो भी अग्रेजों जैसे व्यक्ति गोरे रंग के दिख रहे हैं वे असली अग्रेज नहीं हैं । अब तक तो एक भी अंग्रेज नहीं बचा है । इन बातों का असर यह हुआ कि नवाब ने भी दंगाइयों का साथ देना स्वीकार कर लिया ।  जब अली बहादुर ने बाँदा पर आधिपत्य जमा लिया तो दिल्ली सम्राट ने उसके पास फरमान भेजा।

बागी सिपाहियों के बांदा आने पर बांदा में अफरातफरी का वातावरण फैल गया था अत: नवाब ने बांदा जनपद एव जिले का बन्दोबस्त करने के लिए एक कौंसिल बनाई थी उसमें निम्न पदाधिकारी रखे गये थे। 1- मिर्जा विलायत हुसंन 2 -मिर्जा इमदाद अली बेग 3 -मोर इन्शा उल्ला 4 – मो० सरदार खाँ; (डिप्टी कलेक्टर)  5 – मीर फरहत अली (तहसीलदार) 6 -सेठ उदयकरण (महाजन)।

कौंसिल नवाब के निजी सलाहकारों और अन्य अमले से अलग थी। विशिष्ट सलाहकारों में मिर्जा विलायत हुसैन, मिर्जा गुलाम हैदर खाँ और खाँ बन्ने साहब, और मीर इन्शाउल्ला थे जो नव युवक नवाब पर अपना अच्छा प्रभाव रखते थे । अम्बिका प्रसाद सरिश्तेदार ने भी नवाब की  नौकरी करली । नवाब द्वारा बांदा की व्यवस्था सम्भालने पर पेशवा ने राव साहब के द्वारा नजराने में अपहार भेजे थे इस उपहार में जवाहरात भी थे।

इसी समय दिल्ली सम्राट को ओर से नवाब को एक फरमान भी मिला । नवाब ने नाना पेशवा को लिखा, जब तक आप ऐसा नहीं करेंगे तब तक मैं रात दिन चिन्तातूर रहँगा, ऐसा न हो कि आदमी तथा धन के अभाव में [ईश्वर ऐसा न करे] बाँदा जिला जो प्राचीन समय से पेशवा परिवार का था। हमारे हाँथों से न चला जाय ।

विद्रोह के प्रारम्भिक दिनों में नवाब के पास फोर्स। घुड़सवार 350 , बागी नजीब 120 , पैदल 400 , सवार 475 , मददगार 300, देशी पल्टन के बागी 200, तोपें (14) 7 पुरानी 4 नई 3  टूटी हुई जो अजयगढ़ से छीनी थी। अन्य 200 अन्य भर्ती 3600 ।

प्रशासन के सिलसिले में नवाब ने निर्देश दिये कि दो बातों ध्यान रखा जाय।

1 – नाना साहब के साथ विश्वास एवं मित्रता के सम्बन्ध बनाये जायें तथा बादशाह के प्रति पूरी तरह से विनम्रता एवं आज्ञा पालन किया जाय । एक योग्य एवं बुद्धिमान व्यक्ति को वकील नियुक्त करके कानपुर भेजा जाये  जिसके माध्यम से नाना साहेब के पास पत्रों का आदान प्रदान होता रहे । बिना उनको बताये कुछ भी काम न किया जाये  इस सरकार बांदा नवाबी को स्थिरता देने के निमित्त नाना साहेब से लिखित अथवा बादशाह से फरमान निकलवाया जाय जिससे कि बांदा को प्रशासन को अनुमति हासिल हो सके।
2 – बांदा के प्रशासन चलाने के लिये बिट्रि श सरकार द्वारा चलाई गई प्रक्रिया अपनाई जाये।
3 – कम खर्च और आमदनी अधिक ।
बांदा जिले में 13  जून 1857 से नवाब का शासन कायम हो गया है अत: यह घोषणा जमींदारों के नाम जारी की जाती है कि ।

‘इस घोषणा के प्राप्त होने के बाद कोई कत्ल ,  डाकेजनी, राहजनी, या अन्य प्रकार का नुकसान बाँदा जिले की सीमा में किया जाता है। तो आपके गाँवों के घरों को नष्ट कर दिया जायेगा, जला दिया जायेगा, तोपों से उड़ा दिया जा सकता है। यदि आप सरकार की मदद करेंगे। तो आपको सुरक्षा की जायेगी और पुरस्कृत किया जायेगा।
हस्ताक्षर                                                         मुहर
                                                 अदालत फौजदारी बुन्देलखण्ड

ईश्वर की कृपा से यह क्षेत्र देशी शासन के अन्तर्गत आ गया है। नवाब साहब शासन कर रहे हैं। अतः कोई भी व्यक्ति ब्रिटिश सरकार की किसी भी आज्ञा का पालन नहीं करे।

नोट-यह घोषणा उर्दू में थी उसका हिन्दी में अनुवाद बाद मे प्रसारित किया गया । इस पर मो० सरदार खां के उर्दू में हस्ताक्षर घोषणा पत्र के ऊपर थे । नवाब ने बांदा जिले का शासन प्रबन्ध संभालते ही इन्तजाम के निमित्त नियमावली तैयार की जो इस प्रकार है । हुज़ूर दरबार खास में प्रतिदिन, प्रातः 8  बजे से दोपहर 12 बजे तक रहेंगे और दरबार आम का समय बाद दोपहर 8  से 12  बजे रात तक रहेगा।

2 – दरबार खास में विशेषकर प्रशासन संबन्धी मामलों पर विचार किया जायेगा । राजस्व सम्बन्धी सनदें भी अधिकारी वर्ग को (नाजिम मन्तजिम) मन्सरिम सेनापतियों को दी जायेगी। इनमें उन अधिकारियों के कर्तव्य तथा अधिकारों को दर्शाया जावेगा । इन सनदों पर हुजूर की मुहर व हस्ताक्षर रहेंगे। कलेक्टर को जो अधिकार राजस्व एवं फौजदार के मामले में हैं, वे सभी नाजिम में निहित होंगे। मुन्तजिम और मन्सरिम नाजिम के अधीन रहेंगे। और उनके कर्तव्य और अधिकार वहीं होंगे जो डिप्टी कलेक्टर को हैं।

3 – फौजदारी जागीरदारी तथा कलेक्टर, सेना सम्बन्धी सभी मामले हुजूर के पास रहेंगे ।
4 – अपराधियों को सजा देने के लिए एक मुफती रखा जावेगा । अपराधियों को मुसलिम विधि की स्वीकृत से दण्ड दिया जायेगा। प्रशासन को चलाने के निमित्त नवाब ने तुरन्त मौदहा तहसील एक सौ आदमियों को भेजकर 16000  रुपये मंगाये और सियोढ़ा से कुछ रुपया मंगवाया। प्रशासन के संचालन के लिए एक परिषद का 7 जून को किया गया । जिनमें निम्न पदाधिकारी रखे गये।

मो० सरदार खां- डिप्टी कलेक्टर – नाजिम मीर इंशा अल्लाह- [कामदार] सिपहसालार मुन्ने खां – सेना अधीक्षक मिर्जा बिलायत हुसैन – नायक रियासत मीर फरहत अली – मुसरिम तथा नाजिम के सहा. मिर्जा इमदाद अली वेग- मुंतजिम खजाना उदय करण सेठ- बैंकर मो० आले बदरे – डिप्टी कलेक्टर बांदा एहसान अली- निजाम

जिस समय बाँदा नगर में विद्रोहात्मक गतिविधियाँ चल रही थी आसपास का इलाका भी अछूता नहीं रहा देशपत, मुकुन्द सिंह, फरजंद अली के नेतृत्व में विद्रोहियों के दल, वातावरण को अशान्त बना रहे थे । जालौन के पण्डितों ने खण्डेह का परगना हथिया लिया। पन्ना, चरखारी, बरौधा, राज्यों ने भी बांदा के बदौसा तथा सियोढ़ा परगनों पर ब्रिटिश सरकार की ओर से कब्जा कर लिया । बांदा जिले की जनता भी सशस्त्र होकर आसपास लूट मार करने लगी ।

जून 1857  में विद्रोह व्यापक हो जाने पर उन्होंने अपना पहला निशाना कालिन्जर को बनाया। नवाब की सैन्य शक्ति बढ़ रही थी और वह ब्रिटिश फोर्स  का बहादुरी के साथ मुकाबला कर रहा था ऐसे ही एक मुकाबले का वर्णन मोहम्मद नसीर खां के पत्र से मालुम होता है। मोहम्मद नसीर खा नवाब का मुसाहेब था, उसने यह पत्र अपने भाई को, जो फरुखाबाद में रहता था उसे लिखा है।

एक दिन यहाँ घमसान युद्ध हुआ सबेरे से ही  हर प्रकार के अस्त्रशस्त्र इस युद्ध में प्रयोग किये गये नवाव ने जब देखा कि उसकी सेना लौट रही है और तोपें उखाड़ी जा रही हैं तो वह बहुत ही गुस्सा हुआ तब फिर मैं (मोहम्मद नसीर खां), अपने सिपाहियों के साथ आगे बढ़ा, तोपों से ओलों की तरह गोले वरसाये फिर तो नवाब ने हिम्मत बाधी और स्वय भी युद्ध में कूद पड़ा । दुश्मन भागे और फतेह हुई।

यहाँ अपना  फौजी अड्डा बनाने के लिए अंग्रेजी  सरकार बहत उत्सुक है। क्यों कि  बाँदा को स्थिति ऐसी है कि यह इलाहाबाद, कानपुर तथा आगरा के मध्य है। इस इलाके में बहुत से किले, ऊंचे नीचे मैदान तथा अनेक घाटियाँ हैं । स्थान युद्ध की सामग्री संकलन के लिए अधिक उपयोगी है । यदि एक बार भी अंग्रेजी सेना बांदा में जमा हो जावे तो उसे हटाना बड़ा कठिन होगा।

नवाब बांदा का इसी तरह का एक पत्र 21  मोहर्रम 1274  हिजरी का है जो उसने सैय्यद मुजफ्फर, सैय्यद रफीउद्दीन हैदर खां बहादुर को लिखा था जिसमें नवाब ने उनके राज्य की तरक्की की कामना की। इस मौके पर सभी ने बधाईयाँ दी और सभी इस बात पर खुश थे कि संसार के सभी अवगुण अब अंग्रेजों पर आ चुके हैं और सभी का मंशा पूरी हो चुकी है।

नवाब बांदा आगे कहते हैं  कि मेरी मंशा है कि आपकी शाही देहरी घुमू लेकिन क्या करूं आने से मजबूर हूँ क्योकि यहां पर गर वफादार लोगों द्वारा काफी उपद्रव हो रहा है, ऐसे लोगों में विशेषकर बुन्देलखण्ड के राजे महाराजे ही हैं जो कि सदैव से ही अंग्रेजों के साथी है जबकि ये बात भूल गये हैं कि सम्राट का तो कितना वैभव और डर है, मैं अपनी चिन्ताओं तथा  परेशानियों से आकुल हूँ।

नवाब ने आगे यह भी आशा व्यक्त की कि यदि सम्राट की सेना इधर आती है तो यह बुन्देलखण्ड क्षेत्र सम्राट के आधीन आ जायेगा मैंने आपकी उदारता और सहयोग के बावत सैयद मोहम्मद नसीर खां के जरिये बहुत कुछ सूना है।  नसीर खां यह सब कुछ बतायेँगे।

इससे यह स्पष्ट होता है कि बुन्देलखण्ड के बहुत से राजा और महराजे अंग्रेजों के साथी थे, दूसरे, नवाब बांदा चाहता था कि अंग्रेजों से बांदा मुक्त कराकर दिल्ली सम्राट के आधीन बांदा की नवाबी कायम रहे।

एक अन्य पत्र 26  मोहर्रम 1274  हिजरी में नवाब ने सैयद जुलफिकार उद्दीन हैदर खां बहादुर [नाजिम जंग] को लिखा कि मैं अपने विश्वसनीय सैयद मोहम्मद नासिर खाँ को आपके पास भेज रहा है जो यहां की जानकारी देंगे, जिस दिन से सम्राट का शासन शुरू हुआ तभी से मैं बहुत खुश हूँ- यदि सम्राट से हमको कुछ भी मदद मिल जाती है तो मैं इस क्षेत्र से अंग्रेजों को निकाल दूंगा।

नवाब ने एक और पत्र खान साहब नजीरी और मिर्जा अली उद्दौला खान वहादुर नाजिम जंग को लिखा कि बुन्देलखण्ड के राजाओं ने जनता की सम्पत्ति को नष्ट करना शुरू कर दिया है, एक राजा ने, जिसे अपने भावी जीवन का भी भय नहीं है, एक सेना इकट्ठी की है और वह बांदा से थोड़ी ही दूर आया और मुझसे लड़ाई लड़ना चाहा, और अब गत दो माह से उसी के साथ लड़ाई चल रही है।  यह राजा कोई और नहीं, अजयगढ़ का राजा रणधीर सिंह हो सकता है।

नवाब बाँदा अपनी सैनिक शक्ति बढ़ाने के लिये निरन्तर प्रयासरत थे  इसी तारतम्य में उन्होंने अनेक विशिष्ट जनों से पत्र व्यवहार किया यमुना पार फतेहपुर से उन्हे  बहुत उम्मीद रही । वहां से नसरुद्दीन हैदर बहादुर के माध्यम से अपनी बात संभवतया दिल्ली, या अवध के प्रमुखों के पास भेजा करते थे ।

नवाब बांदा ने अपने पत्र दिनांक 26  मोहर्रम 1274  हिजरी में सैयद मोहम्मद नसीर खां से भो पत्र व्यवहार किया। चरखारी राजा की नौकरी में नवाब ने मोहम्मद वजीर खां को सपरिवार बाँदा बुलाया नवाब ने अपने पत्र दिनांक 3  सफर 1274  हिजरी में मोहम्मद बजीर खाँ को यह भी लिखा कि आपके साले खान साहब का परिवार फतेहपुर से बांदा आ गया है। और यह एक अच्छा अवसर है आपको यहाँ आने का । यदि राजा चरखारी आपको छुट्टी न दे तो आप त्याग पत्र दे देना कि बांदा जाना जरूरी है, जंहा कि मित्रों तथा रिश्तेदारों से मुलाकात करना जरूरी है ।

बाँदा के सम्बन्धों को तो वैसा ही मानिये जैसा कि आपका ही घर हो, जो कुछ मैं खाऊगा वह आप भी खायेंगे। आगे नवाब ने कटारा को भी बांदा तुरन्त भेजने हेतु लिखा । आप विश्वसनीय हैं इसलिये ऐसा आपको लिख रहा हूँ अन्यथा किसी भी व्यक्ति को ऐसा नहीं लिखता इस पत्र के लिखने का तथा आपके बुलाने का असली मकसद मेरा तिरोहां की यात्रा करना है जहा भारी रकम लाना है । जिससे कि फौज का खर्चा चल सके। दानापुर  के बागी सिपाहियों की जो तीन रेजीमेन्ट नागौद गई थी, वे सफलता  की पताका सहित बांदा लौट रहे हैं वे भी हमारी (नवाब की ) मुलाजमत में रहेंगे। मैं उन्हीं के साथ तिरोहा जाऊंगा और मैं अपनी बाकी बांदा की फौज भी रखूगा । इस मौके पर आप शामिल हो जाय तो बहुत ही अच्छा है अन्यथा कटारा को ही भेजिये ।

मैं यह भी बता दूँ  कि अंग्रेजी सरकार से कालिन्जर का किला भी छीन लिया है और मेरे आधिपत्य में है जो फौज नागौद गई थी उसी ने लौटते समय कालिन्जर को फतेह किया हैं। बाँदा के नवाब अली बहादुार भी नाना पेशवा का बहुत हिमायती थे  शाहगढ़ के राजा को उसने अपने एक पत्र में लिखा कि “ईश्वर की कृपा से सम्राट (बहादुर शाह) का शासन स्थापित हो गया है।

आधार –
1 – हिस्ट्री आफ फ्रीडम मूवमेन्ट इन इण्डिया-विन्धय प्रदेश कमेटी [हस्तलिखित] नेरेशन आफ रणजोर सिंह ।
2 – र ष्ट्रीय अभिलेखागार-पोलोटिक ल प्रासीडिंग्ज ३१ १२-१८५८ अनुक्रमांक ३६२४ बांदा के मजिस्ट्रट की ओर से कमिश्नर चतुर्थ सम्भाग के नाम पत्रा संख्या १६३ दिनाँक ४-८-१८५८ नवाब बाँदा की ओर से नाना साहेब बहादुर के नाम पत्र।
3 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-कन्सलटेन्स । [१] २०५ दिनांक २६-१-१८५८ दुर्गा प्रसाद का बयान । [२] २४८ २५६ दिनांक १४-१८५६ पोलोटि कल, मिस्टर मैंन की रिपोर्ट का अंश -कमिश्नर चतुर्थ सम्भाग को भेजो गई रिपोर्ट संख्या ४०६ दिनाक १०-११-१८५८ ।
4 – राष्ट्रीय अभिलेखागार – कन्सलटेन्स [८] ८३२ के डब्लू दिनांक २६-७-१८५७ पोलिटिकल, पत्र सख्या ३२८ दिनांक ३०-६-१८५६ ।
5 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-२ के अनुसार ।
6 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-३ [१] के अनुसार।
7 – राष्ट्रीय अभिलेखागार सिक्रट प्रासीडिंग्ज २५-६ १८५७, अनुक्रमांक ३६२८ मजिस्टेट बाँदा की ओर से कमिश्नर चतुर्थ सम्भाग के नाम पत्र संख्या १६३ दिनॉक ४-८ १८५८, नवाब का शाहगढ़ राजा के नाम पत्र।
8 – राष्ट्रीय अभिलेखागार [१] पाोलीटि कल प्रासीडिंग्ज १८-१२-१८५७ प्रथम भाग अनुक्रमांक १८४-१८५ पोलिटिकल असिस्टेन्ट बुन्देलखण्ड की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र संख्या ४८ दिनांक २-१२-१८५७ नवाब बांदा की घोषणा दिनांक १३-६-१८५७ ।
[२] कन्सलटेशन २६५ दिनांक २६-१-१८५८ दुर्गा प्रसाद का बयान ।
9 – [१] राष्ट्रीय अभिलेखागार- ७ के अनुसार ।
[२] राष्ट्रीय अभिलेखागार- सिक्रेट डिसपेच गवर्नर जनरल १८५७ अनुक्रमांक १८२ दिनांक २-७-१८५७ पोलिटिकल असिस्टेन्ट की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र । [३] कान्सलटेशन ३३२-३५ दिनांक २५-६ १८५७ सिक्रेट बालादास घोष का बयान दिनांक २५ ८-१८५७ ।
10 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-कन्सलटेशन ३८२ ८३ दनांक २५-६-१८५७, सिक्रट पोलिटिकल असिस्टेन्ट बुन्देलखण्ड का पत्र संख्या ३२८ दिनांक १६-६-१८५७ ।

11 – राष्ट्रीय अभिनेवाग र पोनोटिकल प्रसोडिंग्ज ३१-१२-१८५८ ग्यारहवां भाग, अनुक्रमांक २१६४ कमिश्नर चतुर्थ संम्भाग की ओर से पश्चित्तर प्रान्त सरकार के नाम पत्र संख्या १५७४ दिनांक २६ ७-१८५८ मोहम्मद नसीर खां का पत्र ।
12 – राष्ट्रीय अभिलेखागार- ११ के अनुसार नवाब बांदा का पत्र २६ मोहर्रम १२७४ हिजरी सैयद मुजफ्फरउदौला, सैयद सफीउद्दीन के नाम ।
13 – राष्ट्रीय अभिलेखागार- ११ के अनुसार नवाब बांदा का पत्र २६ मोहर्रम १२७४ हिजरी सैयद जुलफिकारुद्दीन, हैदर खा बहदुर के नाम ।
14 – राष्ट्रीय अभिलेखागार- ११ के अनुसार नवाब बांदा का पत्र खान साहब नसीरी और मिर्जा वसीउद्दौला खान बहादुर के नाम ।
15 – राष्ट्रीय आभिलेखागार- ११ के अनुपार ।
16 – डा० ताराचन्द- फ्रीडम मूवमेन्ट इन इण्डिया पृष्ठ ६६ ।

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

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