Banda Me Babu Kunwar Singh बांदा में बाबू कंवर सिंह और बागी पल्टन

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दानापुर के बागी सिपाहियों की दो रेजीमेन्ट Banda Me Babu Kunwar Singh के नेतृत्व में आरा से बांदा के लिए चली थीं। उसमें चार हजार बागी सिपाही थे जिनके पास केवल बन्दूकें थीं न तो तोपें थीं न खजाना । ये बागी मिर्जापुर पहुँचे जहां रीवा राज्य के कमाण्डर हिन्डे सेना के साथ यमुना नदी के घाट पर आया ताकि बागी सिपाहियों  को रोका जा सके । मगर वह उन्हें न रोक सका।

दानापुर के बागी सिपाहियों को बुन्देलखण्ड में प्रवेश दिलाने का आरोप अंग्रेजों ने पन्ना राज्य पर थोपा था । उसका उल्लेख पोलिटिकल एजेन्ट रीवा ने अपने पत्र दि० 27  जून 1856  में किया था कि 1857  में पन्ना राजा ने दानापुर के बागियों को नागौद की ओर बढ़ने से नहीं रोका था। यहां तक को बागी पन्ना राज्य की सीमा में नागौद से बारह मील की दूरी पर अपना पड़ाव डाले रहे थे।

पन्ना राजा ने इस बावत नागौद के अधिकारियों को सूचना भी नहीं दी । जब इस आरोप की जांच की गई तो पन्ना राज्य के वकील ने यह बताकर मामला बराबर कर दिया कि वह बागी नहीं पन्ना राज के निवासी थे । अंग्रेज सरकार का कथन था कि पन्ना राज्य के प्रमुख विद्रोही मकून्द सिंह ने ही कानपुर के बागियों को पन्ना के इलाके में आने के लिये अमन्त्रित किया है।

नवाब के महल में, दो दस्तावेज मिले थे। एक तो दिल्ली सम्राट के नाम नवाब ने लिखा था और दूसरा पत्र बाँदा में आये बागी सिपाहियों ने सम्राट को लिखा था। जिससे स्पष्ट होता है कि विद्रोह के सम्बन्ध में दिल्ली सम्राट की योजना बुन्देलखण्ड में भी कामयाबी से चल रही थी। बागी अधिकारियों द्वारा लिखा गया पत्र इस प्रकार था।

सातवीं आठवी एवं चालीसवीं बंगाल देशी रेजीमेन्ट दानापुर के हम निम्न हस्ताक्षरकर्ता दानापुर से 25  जुलाई को रवाना हुए यह सुनकर कि आपकी विजय हुई है और आप गद्दी पर आसीन हो गये हैं। दानापुर से 12  कोस  दूर आरा नामक स्थान पर जब हम लोग पहँचे तो वहां पर लगभग 600  यूरोपियन से मुठभेड़ हो गयी जिसमें सभी यूरोपियन मारे गये और हमारे भी एक हजार जवान काम आये।

उस मुठभेड़ में हमारे पास 15 चक्र (राउंड) के लिये गोलियां थीं वे सभी समाप्त हो गयीं । जब हमारी सफलता को खवर जगदीशपुर में बाबू कुंवर सिंह जी को मिली तो उन्होंने हमें सहयोग देने की पेशकश की, परिणामतया चालीसवीं देशी  पल्टन के देशी अधिकारी तथा आठ सौ अन्य जवानों ने बाबू कुवर सिंह की सेवा में आना स्वीकार कर लिया।

इस प्रकार सातवीं आठवीं पल्टन के पूरे जवान तथा चालीसवीं पल्टन के दो सौ जवान एवं प्रान्तीय बटालियन के साठ सिपाही आरा  से बांदा के लिए रवाना हुए और बांदा आ पहुंचे। बांदा नवाब ने जगदीशपुर के बाबू कुंअर सिंह को लिखा कि वह नवाब को कानपुर पर आक्रमण करने में मदद करें। आमंत्रण पाकर बाबू कुंअर सिंह अपने साथ में चालीसवीं देशी  पल्टन के दो हजार बागी सिपाहियों को लेकर बाँदा आ पहुँचे । इस पल्टन में सूबेदार बाबूराम और जमादार नेपाल सिंह भी थे। बांदा में नवाब ने इन सब का स्वागत किया ।

बाबू कुंअर सिंह का असली मक्सद कालपी जाकर तात्या टोपे को सहयोग देना ।  बाबू कुंअर सिंह से अन्य बागी भी आ मिले इस प्रकार बाबू कुंअर सिंह के पास चार हजार सिपाही हो गये थे। उन्होंने बांदा नवाब की फौजी शक्ति को मजबूत बनाया था। बाबू कुंअर सिंह बांदा  में थोड़े दिन रुके क्योंकि उन्हें तो कालपी पहुँचना था। वह कालपी के लिए खाना हो गये। रास्ते में कपसा ग्राम के निकट कुछ जमीनदारों ने उन पर बचानक आक्रमण कर दिया। वह पराजित हुए मगर अपने मक्सद को नहीं भूले ।

बाबू कुंअर सिंह फतेहपुर होते हुये कालपी के लिए चल  दिये इसकी सूचना लल्ला ब्राम्हण ने फतेहतुर के कलेक्टर को दी । वहां का छोटा साहब एक सैनिक टुकड़ी लेकर फतेहपुर से कुंअर सिंह को रोकने बांदा की ओर बढ़ा । कुअर सिंह और फतेहपुर के  सैनिक टुकड़ी का सामना खजवहा गाँव के पास हो गया । कुअर सिंह युद्ध के लिए तैयार नहीं थे किन्तु सामना करना पड़ा । इस पराजय में उन्हे तीन तोपों से हाथ धोना पड़ा।

खजवहा के युद्ध में, दानापुर पल्टन का सूबेदार जिसने नागौद आकार बगावत को थी, पकड़ा गया, तथा उसे फतेहपुर ले जाकर अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया । पचासवीं पल्टन का सूबेदार शिवलाल इस में मारा गया। यह वह बागी था जिसने राजा चरखारी से लायडवग्रांट को मांगा था।

आठवीं पल्टन के सूबेदार मेजर भवानी सिंह, सूबेदार रणजीत सिंह, महताबअली जमादार, शिवचरण, छतर सिंह, बढ़ई सूबेदार तथा सातवीं पल्टन के जमादार हीरा सिंह ने दिल्ली सम्राट से बाँदा में ठहरने की अनुमति मांगी थी जिसे सम्राट ने पत्र दिनांक 11 सितम्बर 1857 द्वारा मन्जूर कर लिया था । जिस पर नवाब बाँदा ने अपना आदेश जारी करके उन्हें बांदा में रुकने को कहा था। नवाब दो तीन दिन के अन्तर से सूबेदार मेजर भवानी सिंह के डेरे पर सलाह मशवरा करने जाते रहते थे । महताब अली भी उस मंत्रणा में मौजूद रहता था।

दानापुर की बागी पल्टन के बाँदा आने के समाचार की जानकारी नागौद की पचास वी देशी पल्टन को मिली तो उन्होंने उसे नागौद आकर मदद करने के लिए बुलाया । सबेदार दानापूर पल्टन के सिपाहियों की तीन रेजीमेन्ट लेकर 12  सितम्बर 1857  को नागौद रवाना हुआ । नागौद की बगावत में उन्होंने अहम भूमिका निभाई । उनके सहयोग एव प्रोत्साहन की बदौलत नागौद से अग्रेजों को भागना पड़ा और नागौद पर बागियों का नियन्त्रण हो सका।

नागौद में बगावत करके वापस होते समय नागौद की पचासवीं देशी पल्टन के सिपाही, दो तोपें और बहुत से यूरोपीय सामान लेते आये । साथ ही 27  सितम्बर 1857 को कालिंजर आकर उसे भी लूटा । उनके जाने के बाद पन्ना राजा के सिपाहियों ने पुनः कालिंजर पर कब्जा कर लिया था । नागौद से वापस आये सभी सवारों को नवाब ने अपनी नौकरी में ले लिया, उनमें 40  कलेक्ट्रेट के सवार तथा 15  हरकारे भी थे।

पन्ना से सम्बन्धित पोलिटिकल असिस्टेन्ट अपने पत्र दि० 23  जुलाई 1857  में राजा को श्रेय देता हैं कि पन्ना राजा को उसने ब्रिटिश के  प्रति प्रबल इच्छा तथा बफादारी पाई है । वह आगे लिखता है। कि कालिंजर में उसके दो सौ बन्दूकची हैं तथा यूरोपियन अधिकारियों के आधीन वह और सिपाही देने को तैयार है, तथा रीवा की सेना भी इस काम में सहयोग देंगी।

दानापुर के बागी सिपाहियों की ओर से सूबेदार भवानी सिंह नवाब से मिलने के लिये उसके महल पर गए  सूबेदार के साथ सिपाहियों की ५ कम्पनियां एक कम्पनी नाजीबों की नागौद के 12  बागी तथा अन्य 50 सवार थे ।

जब यह महल के द्वार पर पहँचे तो नवाब को उन्होंने तलवार भेंट की जिस पर नवाब ने अपना हाथ रख कर उसे स्वीकार किया और उनका स्वागत किया। बांदा में बागी सिपाहियों से एक दफादार और 12  सवार और मिल गये । विलायत हुसैन कामदार नवाब बांदा वहाँ मौजूद थे ।

उसने बागी सिपाहियों से पूछा “आप अग्रेजी सरकार से असंतुष्ट क्यों हैं और आप लोग कहाँ जायेंगे ?  सूबेदार ने उत्तर दिया धर्म को बचाने के लिए अंग्रेजों से असन्तुष्ट हैं, और हम लोग देहली जाएंगे । तत्पश्चात नवाब से गुप्त सलाह मशविरा करने के लिए कुछ व्यक्ति नवाब के पास रह गये।

दानापुर पल्टन का एक सेनाधिकारी, विलायत हुसैन, महबूब अली मो० मीरन साहब मकसूदअली काजी, तथा बाकी व्यक्ति बैटक कक्ष से अलग हो गये । गुप्त बातों में दो घण्टे लगे।  बांदा में अंग्रेजों के कई गुप्तचर भी थे। कुछ अंग्रेज भक्तों ने जगत गिरि गोसाई से कहा कि वह दानापुर के बागियों के बांदा आने तथा नवाब से हुई उनकी मुलाकात के बारे में नागौद के पोलोटिकल असिस्टेन्ट के पास सूचना दे आयें । जगत गिरि गोसाई ने टाल दिया । तब वहीं कौसल गिरि तथा देवी दयाल गिरि ने सूचना नागौद पहुँचाई । उन्हें कोई पत्र नहीं दिया गया क्यों कि मार्ग में पत्र पकडे जाने का भय था और उनको जान का खतरा भी इसलिए चारो ओर की जनता अग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर रही थी।

दानापुर के बागी सिपाहियों की दो रेजीमेन्ट और रिसाला २० अक्टूबर 1857 को सबेरे कालपी कूच कर गया। तथा अन्य सिपाही जो बांदा मे रह गए थे  वह भी 20 अक्टूबर को चले गये । 15  अक्टूबर को एक और रेजीमेंट भागलपुर से बाँदा आ गई थी। जिसमें लगभग 500  सवार थे। बांदा आते ही उन्होंने नवाब को अपनी सुरक्षा में ले लिया ।  23 अक्टूबर को एक रेजीमेंट केन नदी के सिंधन घाट से तथा दो रेजीमेंट  पिपरोदर घाट से गुजरती हुई चली गई।

दानापुर से  आई तीन पल्टनें बाँदा से सोमवार दिनांक 24  अक्टूबर को कालपी को रवाना हो सकी । 25  अक्टूबर को सातवीं तथा आठवीं पल्टन के सिपाही तथा अन्य बिद्रोही भी कालपी को ओर बढ़ गए  थे । वह यमुना नदी पर चिल्लातारा घाट पर आये जिनके साथ नवाब के 1200  आदमी थे।  अब बांदा नगर में महताब अली सूबेदार के अधीन केवल एक ही रेजीमेन्ट रह गई थी जिसमें 475  सिपाही तथा 255  सवार थे नवाब ने उन्हें अपनी नौकरी में रख लिया था।

कालपी की ओर जा रहे बागी सिपाहियों पर ३ नम्बर को रास्ते में ब्रिगोडियर केम्पवेल ने अचानक धावा बोल दिया । जिससे बागो तितर-बितर हो गये । इस लड़ाई के छठे या साताबें दिन वर्दवान को पल्टन यमुना नदी के चिल्लातारा घाट की ओर चलदी थी। यहां उनको पचासवीं देशी पल्टन के सिपाही मिले थे।

कालपी  को कूच के पूर्व बांदा जिला तो बागी सिपाहियों से भरा पड़ा था । गोरा पल्टन तालाब (वर्तमान कम्पनी बाग तालाब) पर 600  सवार डेरा डाले हुये थे। करोब 375  तिलंगे “पीछे तालाब” छाबी तालाब पर जमा थे  । यह तालाब काफी बड़ा था और यहां ठहरने एव पानी की अच्छी सुविधा थी। इन्हीं दिनों अजयगढ़ के कान्तिकारी फरजन्द अली भी बांदा में नवाब की मदद के लिए अपने साथियों के  साथ डेरा डाले हुये थे । पहरी के किनारे कुछ तिलंगे  डरा जमाये थे।

आधार –

1 [क] राष्ट्रीय अभिलेखागार कन्सलटेशन
[१] २६६ दिनांक २५-६-१८५७ सिक्रेट, पोलीटिकल असिस्टेन्ट बन्देल खण्ड की ओर से भारत सरकार के नाम सविस मेसेज संख्या १४७ दिनांक ११-६-१८५७ । [२] २०४ दिनांक २६-१-१८५८ मुसाहब जान का बयान । “
[ख] सिन्हा एस०एन०-रिवाल्ट आफ १८५७ इन बुन्देलखण्ड पृष्ठ २७ ।
2 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-कन्सलटेशन ८६-६२२ के. डब्लू० दिनांक १५-७-१८५६, पोलिटिकल एजेन्ट रीवा की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र संख्या १०८६ दिनांक २७-६-१८५६ ।
3 – रास्ट्रीय अभिलेखागार-पोलीटिकल प्रासीडिंग्ज दिनांक २५-६-१८५८ अनुक्रमांक ६६ गवर्नर जनरल के एजेन्ट की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र संख्या २१४ दिनांक २६-५-१८५८ ।
4 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-रिवाल्ट इन सेन्ट्रल इण्डिया पृष्ठ २७ । [२] सिन्हा एस० सन० रिवाल्ट आफ १८५७ इन बुन्देलखण्ड पृ०६६ ।
5 –  राष्ट्रीय अभिलेखागार-कन्सलटेशन २०५ दिनांक २६-१-१८५८ दुर्गा प्रसाद का बयान । ६- राष्ट्रीय अभिलेखागार-डिसबैच टू सिक्रट कमेटी अनुक्रमांक ६४
6 – पोलिटिकल असिस्टेन्ट बुन्देलखण्ड का सन्देश दिनांक ६-११-१८५७ ।
7 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-कन्सलटेशन २३३-३४ दिनांक २८-५-१८५८, सिकट गवर्नर जनरल के एजेन्ट की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र संख्या ३१७ दिनांक २६-५-१८५८ ।
7 – राष्ट्रीय अभिलेखागार कन्सलटेशन १८८ दिनांक १८-१२-१८५७,
8 – सिक्रट पोलिटिकल असिस्टेन्ट बुन्देलखण्ड की ओर से भारत सरकार के नाम सर्विस मेसेज दिनांक २७-११-१८५७ । ६- राष्ट्रीय अभिलेखागार-कन्सलटेशन २०५ दिनांक २६-१-१८५८, दुर्गा प्रसाद का बयान ।
9 – राष्ट्रीय अभिलेखागार [१] पोलिटिकल प्रासीडिंग्ज ३०-१२-१८५८ ग्यारहवां भाग अनुक्रमांक २१६४, कमिश्नर चतुर्थ सम्भाग की ओर से पश्चिमोत्तर प्रान्त सरकार के नाम पत्र संख्या १५७४ दिनाँक २६-७-१८५८ नवाब बादा का मो० वजीर खां के नाम पत्र । [२] कन्सलटेशन २१
10 – राष्ट्रीय अभिलेखागार कन्सलटेशन २३३-३४ दिनांक २८-५-१८५८ सिक्रेट गवर्नर के एजेन्ट की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र संख्या ३१७ दिनांक २०-५-१८५८ । पीय अभिलेखागार-कन्सटेशन २०२ दिनांक ३०.१०-१८५७
11 – पोलिटिकल असिस्टेन्ट बुन्देलखण्ड की ओर से भारत सरकार नाम टेली प्राफिक संदेश दिनांक २७-६-१८५७ । । का राष्ट्रीय अभिलेखागार कन्सलटेशन २०५ दिनांक २६-१-१८५८, दुर्गा प्रसाद का बयान।
12 – अभिलेखागार-डिसपेट टू सिक्रेट कमेटी १८५७, पोलिटिकल असिस्टेन्ट बुन्देलखण्ड का सदेश दिनांक २८ ७-१८५७ । राष्ट्रीय अभिलेखागार-कन्सलटेशन २०४ दिनांक २६-१-५८,
13 – मुसाहब जान का बयान ।
14 – राष्ट्रीय अभिलेखागार
(१) कन्सलटेशन २०४ दिनांक २६-१-१८५८ मूसाहब जान का बयान ।
(२) कन्सलटेशन २२३३-३४ दिनांक २८-५-१८५८ सिक्रेट गवर्नर जनरल ने एजेन्ट की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र संख्या ३१७ दिनांक २६-५-१८५८ ।
(३) सिक्रट प्रासीडिंग्ज ३० दिसम्बर १८५७ अनुक्रमांक २०४ पोलिटिकल असिस्टेन्ट बुन्देलखण्ड की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र संख्या २८५ दिनाक १३-१०-१८५७ ।
15 – राष्ट्रीय अभिलेखागार १४ (१) के अनुसार । १६- राष्ट्रीय अभिलेखागार
(१) कन्सलटेशन १४२ दिनांक २७.११-१८५७ सिक्रेट पोलिटिकल, असिस्टेन्ट बुन्देलखण्ड की ओर से भारत सरकार के नाम सर्विस मेसेज दिनांक २३-१०-१८५७ ।  
(२) डिसपेच टू सिक्रट कमेटो १८५७, अनुक्रमांक ६६ पोलीटिकल असिस्टेन्ट बुन्देलखण्ड का टेलीग्राम दिनांक २३-१०-१८५७।।
(३) पोलिटिल प्रासोडिंग्ज दि०३०-१२-१८५६ द्वितीय भाग अनुक्रमांक 49, नवाब अली बहादुर का बयान । १७- सिन्हा एस० एन० रिवाल्ट आफ १८५७ इन बुन्देलखण्ड,
१६  – राष्ट्रीय अभिलेखागार-सिक्रट प्रासोडिंग्ज २७-११-१८५७ अनुक्रमाक 146, पोलोटि कल असिस्टेन्ट बुन्देलखण्ड की ओर से भारत के नाम सविस मेसेज दिनांक १८-११-१८५७ ।

 

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

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