हिन्दी साहित्य के प्रखर नक्षत्र, माँ भारती के वरद पुत्र डॉ मैथिलीशरण गुप्त Dr Maithili Sharan Gupta का जन्म ३ अगस्त सन 1886 ई. में पिता सेठ रामचरण कनकने और माता कौशिल्या बाई की तीसरी संतान के रूप में चिरगांव, झांसी में हुआ। माता और पिता दोनों ही परम वैष्णव थे। “कनकलताद्ध नाम से कविता करते थे।
विद्यालय में खेलकूद में अधिक ध्यान देने के कारण पढ़ाई अधूरी ही रह गयी। घर में ही हिन्दी, बंगला, संस्कृत साहित्य का अध्ययन किया। मुंशी अजमेरी जी ने उनका मार्गदर्शन किया। 12 वर्ष की आयु में ब्रजभाषा में कविता रचना आरम्भ किया। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के सम्पर्क में भी आये। उनकी कवितायें खड़ी बोली में मासिक “सरस्वती‘ में प्रकाशित होना प्रारम्भ हो गई।
डॉ मैथिलीशरण गुप्त का प्रथम काव्य संग्रह “रंग में भंग‘ तथा वाद में “जयद्रथ वध‘ प्रकाशित हुई। उन्होंने बंगाली के काव्य ग्रन्थ “मेघनाथ वध‘ “ब्रजांगना’ का अनुवाद भी किया। सन् 1914 ई. में राष्टीय भावनाओं से ओत-प्रोत “भारत भारती‘ का प्रकाशन किया। उनकी लोकप्रियता सर्वत्र फैल गई। संस्कृत में लिखित “स्वप्नवासवदत्त‘ का अनुवाद प्रकाशित कराया।
सन् 1916-17 ई. में महाकाव्य “साकेत‘ का लेखन प्रारम्भ किया। उर्मिला के प्रति उपेक्षा भाव इस ग्रन्थ में दूर किये। स्वतः प्रेस की स्थापना कर अपनी पुस्तकें छापना शुरु किया। साकेत तथा अन्य ग्रन्थ पंचवटी आदि सन् 1931 में पूर्ण किये। इसी समय वे राष्ट्रपिता गांधी जी के निकट सम्पर्क में आये। ‘यशोधरा‘ सन् 1932 ई. में लिखी।
गांधी जी ने उन्हें “राष्टकवि’ की संज्ञा प्रदान की। सन् 1941 ई. में व्यक्तिगत सत्याग्रह के अंतर्गत जेल गये। उनकी तीन पत्नियां तथा आठ संतान हुई। आगरा विश्वविद्यालय से उन्हें डी.लिट. से सम्मानित किया गया। 1952 -1964 तक राज्य सभा के सदस्य मनोनीत हुये। सन् 1953 ई. में भारत सरकार ने उन्हें “पद्म विभूषण‘ से सम्मानित किया गया।
तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने सन् 1962 ई. में अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट किया तथा हिन्दू विश्वविद्यालय के द्वारा डी.लिट. से सम्मानित किये गये। इसी वर्ष प्रयाग में सरस्वती की स्वर्ण जयन्ती समारोह का आयोजन हुआ जिसकी अध्यक्षता श्री गुप्त जी ने की।
सन् 1963 ई. में अनुज सियाराम शरण गुप्त के निधन ने अपूर्णनीय आघात पहुंचाया। 12 दिसम्बर 1964 ई. को दिल का दौरा पड़ा और साहित्य का जगमगाता तारा अस्त हो गया। 78 वर्ष की आयु में दो महाकाव्य, 19 खण्डकाव्य, काव्यगीत, नाटिकायें आदि लिखी। उनके काव्य में राष्ट्रीय चेतना, धार्मिक भावना और मानवीय उत्थान प्रतिबिम्बित है।
भारत भारती के तीन खण्ड में देश का अतीत, वर्तमान और भविष्य चित्रित है। वे मानववादी, नैतिक और सांस्कृतिक काव्यधारा के विशिष्ट कवि थे। डॉ नगेन्द्र के अनुसार वे राष्ट्रकवि थे, सच्चे राष्ट्रकवि। दिनकर जी के अनुसार उनके काव्य के भीतर भारत की प्राचीन संस्कृति एक बार फिर तरुणावस्था को प्राप्त हुई थी।