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Gangor Vrat Katha गनगौर व्रत कथा

बुन्देलखण्ड में ई त्योहार Gangor Vrat Katha भौतई अच्छी तरा सै मनाव जात । जौ त्योहार चैत की नौदूरगन में तीज खौं मनाव जात। ई मौका पै गौर उर गनेस की पूजा करी जात । ऐईसै तौ जौ नौरातरी कों त्योहार है। सो जादांतर गौरा पार्वती की पूजा करी जात । उर उनसे अपने अमर ऐबात को बरदान माँगो जात।

ऐबाती औरतें दिन भर उपासी रती, उर पूजा के लाने तरा तरा के पकवान बनाउतीं। पूजा कर उन पकवान को खुदई भोजन करतीं । ऐसी कानात कई जात कैं ऊमे से अपने पती खौं कछूनई दओ जात । एक ऐसौ त्योहार है कै ईमें औरत खौं मन मुक्तौ खाबे खौं मिल जात। बुन्देलखण्ड में ऐई ऐसी कानात कई जात कै…
गन गौर के गनगोरा। मुंस खौ नई दैय कौरा ।।

 एक दार ऐंसऊ भओ कैंई त्योहार के समय घरवारे खौं कछू खाबे नई मिलो। उर माई बिटिया उयै निरै-निरै कैं मन मुक्तौ खात् रई । घरवारे खौं खुन्सतौ खूबई उठत रई । अकेलै व्रत के नियम के डरके मारै भोंगों चालौ गुर्रानौ सौ बैठों रओ । अकेलै वौ अपनी गौ में दये रओं । कछू दिना में एक ऐसौ त्योहार आव अषाढ़ में । उर उयै अपने खेत सगुन कई जात। ऊने अपनी घरवारी खौं बुलाकै कई कै देखों आज हर बैल उर बीज लेंकें खेत में बोनी कौ सगुन साधवे चलने हैं।

पूजा के लाने अच्छे-अच्छे पकवान बनाओ । मताई बिटिया ने खूब रूच-रूच कै पकवान बनायै, बड़े प्रेम सैं पति के संगै हरायतौ लेवै गई। गुटटा सैं बीज बओ । उर दिन बूड़े जब लौट कै घरै आये सो पूरे पकवान अपने लिंगा धर कै बोले कै हर हरैनी सायनों मताई बिटिया को नई मिलने बायनों। बे कैई का सकतीं।

ई तरा सैं ऊ वारे नें अपनी घरवारी सैं बदलौं ले लओं तो । उर कितऊई त्योहार के मौका पै घर की बड़ी बूढ़ी एक कानिया कन लगती कै सब जनी हाथन में चावर खौं लैकै कथा सुनवे खौं बैठ जाती हैं। बै कन लगती हैं कै भौत दिना की बात हैं। कै एक गाँव में एक बामुन त तो । बौ भौतई गरीब हतो । दोरन – दोरन भीख माँग कै अपनै परिवार कौ पालन पोषण करत तो।

ऊकी तनक सी खेती किसानी हती । सो खाली समय में खेतई पै डरो रत तो । ऊकी घरवारी नियत की खराब हती, बा अच्छौ -अच्छौ खान पियन चाडत्ती । चाय घरवारों भली भूखों डरो रये । ऊ ईसें कछू नई लैने दैनें तो । ऊके लानें मन कौ खाबे मिलत जावै । जो कछू रूखौ कौ मिलै सो अपने घरवारे खौं पकरा दओं, उर अपन सो मनकौ बना-बना कै खात पियत रये ।

पुरा की लुगाई अपने आर्गै ऊके घैरा घूँसा करत रये, कै जा कैसी पापन औरत है। जो अपनौ मन कौ बना बनाकैखा रई उर घरवारे खौं वासी कूसी सूकी रोटी पकरा देत । वामुन तौ भौतई सूदौ सादौ हतो। जो मिलो सो खा लओं उर भौगो चालों काम खौं चलो गओं। दो-चार दार ऊसैं पुरा परोसियन ने कई के तुमाये संगें तुमाई घरवारी भौतई कपट कर रई । वा तुमें तौ जुनई की रूखीं रोटी पकरा देत उर अपुन सो अकेले में मन कौ माल मसकत।

पैला तौ वौ परोसियँन की बातन खौं सुनी अनसुनी करत रओ । जब कैऊ दार वा बात ऊके कानन में टकरात रई सो एक दिना ऊनें सोसई लई ऊकी कलई खोलबे की । वौ गौमें दैकै बैठ गओ कै मौका आवन देव, तब देखी जैय । गनगौर कौ त्योहार आ गओं । ऊने सोसी कै अब मौका है कसर काड़बे कौ वौ घरवारी सै बोलों कै हमें आज जल्दी जाने हैं। जो कछू धरे होव सो हमें खाबे दै देव ।

वा तौ जा चाऊतई हती कै जौ इतै सैरे उर हम मनकौ बनाबै । वा जल्दी भीतर गई उर एक छन्ना दो ठऊ सूकी रोटी उर एक अमिया की कली बांध कै गुआदई । ऊने हात में लओ उर मौगो चालौ कलेवा लै घर के बायर की गओं। ऊकी घरवारी खौं पकवान बनाबे की जल्दी परी ती । वा मताई बिटिया रोटी वारे घर में घुसकैं बढ़िया-बढ़िया पकवान बनाउन लगी ।

बामुन ने तौ आज बिचारई लई ती कै आज ई की चालबाजी कौ पतो लगावने हैं। वौ उयै दिखाबे तनक देर खौं वायरें की गओं उर जईसै वा भीतरै गई सोऊ वौ लौटकैंपौर के दोरे की कुठिया में घुसकुँ मौंगो चालौ चिमा कै बैठ गओं। उन दोई मताई बिटिया ने घन्टाक में अच्छे-अच्छे पकवान बनाकै धर लये, उर फिर अच्छी तरा सैं लीप पोत कै पौर में चौक पूर कै पटा पै गनगौर की मूरत धरकै पूजा विस्तारी ।

थारन में पकवान सजा कै धर लये सब पूजा रचा करी गई उर फिर हाँत जोर कै गनगौर से विन्लारी करी कै माई हमाओ ऐवात ऐसऊ अमर बनाये रइयौ । जा बात ऊनें कैऊ दार दुहराई सोऊ कुठिया में सै आवाज आई कै हओ। सुनतनई उयै अचम्भौ भओ कै अरे हमाई गनगौर तो बोलती हैं। ऐसौ ऊने दो-तीन बेर करों उर हर बेरऊ हओ सुना परी । ऊने बायरें कड़कै पुरा परोसियन से कई कै हमाई गनगौर तौ जबाब दैन लगी।

सुनतनई सबख अचम्भों भओ । उर वे सब जनी उतई जुरकै पौंच गई । ऊने सबरन सामै बेई बात फिर कऊ दुहराई उर फिर हओ सुना परी । सब जनी बोली कै बैन तुमाई पूजा तौ सिद्ध हो गई। जब गनगौर खुदई मौ बोलन लगीं। ईसै बड़ौ भाग और का हो सकत।

सब जनीं तौ इत्ती कै-कै चली गई। अकेलै ऊकी जीव तौ अच्छौ खाबे खौं लप लपाई रई ती। पूजा खौं जल्दी सैं समेट कै एक बगल करी, उर वा मताई बिटिया पकवानन खौं पर्स कै जल्दी-जल्दी खाबें खौं टिक परीं। जब वें अदपेंटा हो गई सोऊ वे कुठिया में सै निकर कै बोले कै अबै तुम गनगौर सैं ऐवात माँग रई ती। उर घरवारे खौं सूके कौरा उर अपन मन के पकवान मसकरई।

अब बतावकै तुमाओ ऐवात कन्नो फूले फरे । जब तुममें इत्तो कपट है ते गनगौर मइया तुमाई मनसा कैसे पूरी करें। देखतनई ऊकी घरवारी खौं काटें खून नई रओं दोई मताई बिटिया बैठी – बैठी रै गई सर मारैौ कौ कौर नई धंस रओ तो । अब वे का कयें ऊसैं अपनी करनी पै भौतई पसतानी उर बोली कै पती देवता हमाई गल्ती खौं माफ करो । अब हम कभऊँ ऐसी गल्ती नई करें, उर उदनई सैं उनकी घरवारी उनके खाबे पीबे कौ पूरौ पूरौ ध्यान रखन लगी । औरतन खौं ऐसौ कभऊँ नई करो चइये, काय कै पती तौ पनमेसुर के समान होत।

भावार्थ

बुन्देलखण्ड में इस त्योहार का विशेष महत्त्व है । यह पर्व यहाँ अच्छी तरह से मनाया जाता है। यह पर्व चैत्र की नवरात्रि में तृतीया को मनाया जाता है । पर्व के नाम से ही यह स्पष्ट है कि इस अवसर पर गणेश और गौरा (पार्वती) की पूजा की जाती है । यह नवरात्रि का एक प्रमुख पर्व है। महिलाएँ गणेश और गौरा से अपने अहिवात का वरदान माँगती हैं।

सुहागिन महिलाएँ उपवास करके उनकी पूजा के लिए विविध प्रकार के पकवान तैयार करती हैं। पूजा के पश्चात् उन पकवानों का उपयोग स्वयं ही करती है । उसमें से अपने पति को कुछ नहीं दिया जाता है। यह एक ऐसा त्योहार है कि इसमें महिलाओं को ही मनचाहा खाने को मिलता है। इसके संबंध में एक कहावत भी प्रचलित है…। 

गनगौस के गनगौरा। मुंस खौं नई देबूँ कौरा ।

एक बार ऐसा ही हुआ कि पति को खाने के लिए कुछ भी नहीं मिला और माँ-बेटी दिखा-दिखाकर खाती रहीं । ये सब देखकर पति को क्रोध तो बहुत आता रहा, किन्तु व्रत का नियम जानकर बैठा रहा । फिर भी माँ-बेटी से बदला लेने का विचार उसके मन में उत्पन्न हो गया।

कुछ दिन बाद आषाढ़ माह में कृषकों का प्रमुख पर्व हरायतों आ गया। इस अवसर पर कृषक अपने खेत में बोने का शकुन साधता है। उसने अपनी पत्नी को बुलाकर कहा कि आज अपने खेत पर हल बैल और बीज लेकर शकुन साधने के लिए चलना है । कृषि देवता की पूजा के लिए अच्छे-अच्छे पकवान बनाकर रख लीजिए।

उसकी पत्नी और बेटी ने रुचिपूर्वक पकवान तैयार करके रख लिए और शाम के समय वस्त्राभूषणों से सुसज्जित होकर पति के साथ खेत पर गई । पति ने खेत में हल चलाया और पत्नी ने बीज बोया, दोनों शाम को घर लौटकर आये । पति ने सारे पकवानों को मँगाकर रख लिया और कहा कि

हर हरेनी सायनों । मताई बिटिया खौं नई मिलनें बाँयनों ।।

यह सुनकर वे दोनों चुप रह गईं। अपने पति से वे अब कह ही क्या सकती थीं। इस प्रकार कृषक ने अपनी पत्नी और पुत्री से बदला ले लिया था। इस अवसर पर वयोवृद्ध महिलाएँ यह एक कथा सुनाने लगती हैं। परिवार की अन्य महिलाएँ हाथ में चावल लेकर ध्यानपूर्वक कथा सुनती हैं-

एक गाँव में एक ब्राह्मण रहता था । वह बहुत ही गरीब था । द्वार-द्वार पर भीख माँगकर उदरपोषण करता था। उसके पास थोड़ी सी जमीन थी । वह समय निकालकर खेत पर रहकर कठिन परिश्रम करता था, किंन्तु उसकी घरवाली की जीभ चटोरी थी। वह बढ़िया-बढ़िया बनाकर खाना चाहती थी । चाहे उसका घरवाला भूखा रहे, इससे उसको कोई प्रयोजन नहीं था। उसे तो बढ़िया-बढ़िया खाने को मिलना चाहिए। घर में जो कुछ रूखा-सूखा बचता था, उसे अपने पति के सामने रख देती थी और स्वयं मन का खाती – पीती रहती थी।

पड़ोस की औरतें उसके कार्य-कलापों को देखकर निन्दा करती थीं कि यह कैसी पापिन औरत है, जो अपने पति के साथ कपट कर रही है स्वयं तो बढ़िया माल खा रही है और पति को रूखा खिला रही है। उसका पति बड़े ही सरल स्वभाव का था, जो कुछ मिला सो खा लिया और चुपचाप चला गया ।

दो-चार पड़ौसियों ने उसे बताया कि तुम्हारी पत्नी तुम्हारे साथ कपट व्यवहार कर रही है, किन्तु उसने लोगों की बात को सुनी – अनसुनी कर दी । जब बार- बार लोगों ने उसे टोकना शुरू कर दिया, तो उसने एक दिन पत्नी के भेद खोलने का निर्णय ले ही लिया । वह बदला लेने की बात सोचकर बैठ गया । इसी तरह एक दिन ‘ गनगौर’ का पर्व आ गया।

उसने अपनी पत्नी से कहा कि आज मुझे जरूरी काम से बाहर जाना है। घर में जो कुछ रखा है सो रूखा-सूखा मुझे खाने को दे दो। मुझे जल्दी जाना । पत्नी तो ये चाहती थी कि ये यहाँ से टले और मैं मन का माल खाऊँ। उसने जल्दी से भीतर जाकर एक कपड़े में दो सूखी रोटियाँ और थोड़ा सा आम का अचार बाँधकर दे दिया। पति ने उसको हाथ में लिया और चुपचाप बाहर निकल गया ।

उसकी पत्नी जल्दी से एकांत में मनचाहे पकवान बनाना चाह रही थी । वह भीतर जाकर व्यंजन बनाने में व्यस्त हो गई । ब्राह्मण आज उसकी चालबाजी का भेद खोलना चाह रहा था । वह थोड़ी देर के लिए पत्नी को दिखाने के लिए बाहर निकल गया। फिर चुपचाप लौटकर आँगन की एक कुटिया में छिपकर बैठ गया।

उधर माँ-बेटी को पकवान बनाने की जल्दी थी । वे दोनों घर में घुसकर बढ़िया-बढ़िया पकवान तैयार करने लगीं। दोनों माँ-बेटी ने एक घंटे में पकवान बनाकर रख लिए और फिर अच्छी तरह से आँगन को लीप-पोतकर, चौक पूरकर, चौकी पर गनगौर मइया की मूर्ति रखकर पूजा विस्तार ली, फिर हाथ जोड़कर ‘गनगौर ‘ माता से निवेदन किया कि माता जी हमारा सुहाग इसी तरह बनाये रखना ।

ये बात उसने अनेक बार दुहराई और हर बार कुटिया में से हटो की आवाज सुनाई दी । हटो की आवाज सुनते ही उसे बड़ा अचंभा हुआ। वह सोचने लगी कि मैं हर वर्ष गनगौर की पूजा करती हूँ किन्तु वे कभी बोली नहीं हैं। लगता है कि हमें पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो गई है। उसने पड़ोस में जाकर औरतों को बताया कि हमारी गनगौर माता तो बोलने लगी हैं। सुनकर सबको अचंभा हुआ। पुरा भर की औरतें आँगन में एकत्रित हो गईं उसने सबके सामने फिर वही बात दुहराई और फिर सबको हटो की आवाज सुनाई देने लगी ।

सभी औरतें सुनकर चकित हो गईं। सब औरतों ने कहा कि बहिन तुम तो भाग्यशाली हो, लगता है कि तुम्हारी पूजा पूर्ण सिद्ध हो गई । इतना कहकर सभी औरतें अपने-अपने घर चली गईं। उन दोनों माँ-बेटी को पकवान खाने की जल्दी थी। उन्होंने जल्दी से पूजा समेट कर खाना शुरू कर दिया ।

जब उन दोनों ने आधा भोजन कर लिया, तब उसका पति कुटिया से निकलकर उनके सामने खड़े होकर बोला कि अभी तुम गनगौर माता से अचल अहिवात का वरदान माँग रही थीं और पति को रूखा-सूखा खिलाकर बढ़िया भोजन कर रही हो । तुम्हारे मन में पति के प्रति इतना अधिक कपट भाव है तो फिर तुम्हारा भला कैसे हो सकता है? देखते ही दोनों माँ-बेटी बहुत लज्जित हुईं और अपनी भूल पर पछताने लगीं। उसी दिन से पत्नी कपट और दुर्भाव छोड़कर पति की सेवा में मन लगाने लगी।

टेसू – बुन्देलखण्ड का लोक पर्व 

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