Van Se Aavat Dhenu Charaye
वन से आवत धेनु चराये।। टेक।।
लीन्हें लाल ललित कर लकुटी, गौवन को गोहनाये।। 1।।
उड़ि उड़ि गोधुर परत बदन पर, सुन्दर परम सुहाये।
सुन्दर मुख पर रज लपटानी, कनक धूर छवि छाये।। 2।।
मोर मुकुट सिर कानन कुंडल, केशर खौर खेंचाये।
बैजंती उर माल विराजे, चन्दन अगर चढ़ाये।। 3।।
पीताम्बर फहरात बदन पर, सुन्दर परम सुहाये।
नाचत गावत मुरली बजावत, आनन्द उमंग बढ़ाये।
हलधर सहित ग्वाल सब संग लिये, हँसत खेल घर आये।। 5।।
कनक आरति साजि यशोमति, मोतिन थाल भराये।
दास ‘मुकुन्द’ जी को राज मिले हैं, ज्यों निर्धन धन पाये।। 6।।
श्रीकृष्ण वन से गायें चराकर लौट रहे हैं। हाथ में लाल रंग की सुन्दर, मनोहारी छड़ी लिए हुए हैं, जिससे गायों को हांकते हुए वे आ रहे हैं। गायों के चलने से धूल उड़ रही है। यह गौधूर श्याम सुन्दर के बदन पर पड़ रही है, जिससे वे और सुन्दर लग रहे हैं। श्री कृष्ण के सुन्दर मुखारबिंद पर लगी धूल, स्वर्ण रज के समान लग रही है।
उनके सिर पर मोर पंख वाला मुकुट, कानों में कुण्डल और माथे पर केशर का तिलक (खौह तिलक) शोभायमान है। बदन पर सुगन्धित चन्दनों का लेप किए हुए वे हृदय पर वैजन्ती की माला धारे हुए हैं। बदन पर लहराता हुआ पीले रंग का वस्त्र अत्यन्त शोभायमान है, वे कमर में सुन्दर लाल रंग का वस्त्र पहने हुए नृत्य मुद्रा बनाये हैं।
इस प्रकार नाचते, गाते और मुरली बजाते हुए श्री कृष्ण Van Se Aavat Dhenu Charaye आनंद एवं उमंग को नित्य बढ़ा रहे हैं। बड़े भाई हलधर और सब ग्वाल बालों को साथ लिए श्यामसुन्दर हँसते खेलते हुए घर आ गये हैं। सोने के थाल में आरती सजाकर उसे मोतियों से भरकर यशोदा मैया द्वार पर खड़ी हैं। स्वामी मुकुन्द दास कहते हैं कि इस छवि की चरण रस पाकर उन्हें, निर्धन को धन के समान सब कुछ मिल गया है।
रचनाकार – श्री मुकुंद स्वामी का जीवन परिचय