Subhash Singhai Ki Bundeli Rachnaye सुभाष सिंघई की बुन्देली रचनाएं

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श्री सुभाष सिंघई बुन्देलखण्ड के ऐसे साहित्यकार है जिन्हे कलम का सिपाही भी कहते है । कलम का सिपाही यानि पत्रकारिता का प्रतिविम्ब जो बिना रुके- बिना झुके लिखता जाता है। आधुनिक काल मे Subhash Singhai Ki Bundeli Rachnaye  छंदवद्ध कविताओं  है । श्री सुभाष सिंघई  का  जन्म 12 जून 1955 जतारा , जिला टीकमगढ़ ( मध्य प्रदेश  ) मे हुआ था ।

 बुंदेली में  #चौकड़िया  (ईसुरी छंद ) नरेन्द्र छंद

बुंदेली है  बड़ी  गुरीरी ,  लगतइ  सबखौं  नीरी |

/> भुनसारे से दिनडूबें लौ ,बोलें  सखा -सखी री ||
हल हाँकें जब भरी दुपारी , खाकें सिकी पँजीरी |
कात सुभाषा बाँध मुडीछों , गातइ खूब फकीरी ||

हओ  कैतई  है हर बातन  , किस्सा सुनवें  रातन  |
घंटन लोरत   मुनसेरू   भी , मोड़ा मोड़ी  तालन ||
दाँती कौनउँ नहीं  पुसावें , बात न करतइ खातन |
डुकरा कोले   कहै  सुभाषा  डारें   सीकें  दातन  ||

ढुलक मजीरा देखो हातन   , देखों   हमने  गातन |
घुसौ कान में हल्ला गुल्ला , लोग  दिखे है  आतन |
मंदिर में जब बँटी  पँजीरी , ले रय‌   सबने हाथन ||
कात सुभाषा मुड़ी झुका कें ,सबखों देखों जातन ||

माते  डुरयायें  थे   मातन , संगे   ल़य  थे नातन |
पैरें   घूमें   खिचउँ   पनैया , अपनी दौनों लातन ||
लोंड़ी खिली कान की भैया , पान तमाकू पातन |
कात सुभाष जच रय माते ,कछु बने नहिं कातन ||

गड़िया घुल्ला  धरै  धुरइयाँ, पैरे   खिचऊँ पनइयाँ |
पौच गओ ससुरारे जल्दी  ,  थैला   टाँगे   कइयाँ ||
थैला  टाँगे  कइयाँ  सइयाँ , जौरू  मसकत बइयाँ |
साराजै सब देख  कहत है  , चैन  सुभाषा  नइयाँ ||

बुंदेली दोहे –
कैकइ   नैं  किलकिल  करी, राम  गये   वनबास |
दसरथ  खौं  प्रानन परी  , रइयत   भयी   उदास ||

जीकी आँखन में भरत , काम तकत ही ऊँग |
जानौं      ऐसौ  आदमी  , हौतइ    ठर्रा  मूँग ||

सास ससुर अरु नंद कौ , मिलै खूब जब प्यार |
गुइयन सै बिटियाँ कहै ,   सोने   सी   ससुरार ||

का कै दैं ई जीभ की , ठाँटौ  जब  बक जात |
भीतर  घुसतइ चल उठैं , मुंडा  घूँसा  लात ||

जसुदा कौ  लल्ला छिको , गोपीं  छेकैं  बीस |
नचा रयीं  हैं चुटकियन , नाच  रयै  जगदीश ||

जाँदा स्याँनों आदमी, चार  जगाँ ठग जात |
बार  मुड़त उल्टे छुरा, जैब  कटा  कै आत ||

पथरा खौं दे  रामधइ , तैरा  गऔ  लंकेश |
पर प्रभाव अपनौ  कहै , जाकै अपने देश |

बेपेंदा  की  हौ  गड़इ , ढुरक-मुरक  है   जात |
माल  मसालो जो  भरौ , इतै- उतै   विखरात ||

बुन्देली में ,#कुंडलिया
श्री कुंडेश्वर धाम की महिमा , कुंडलिया छंद में

शंकर  जी  किरपा  करत  , रत कुंडेश्वर धाम |
कूँड़े  से भयते   प्रकट, धरै   रूप  थे  श्याम ||

धरै रूप  थे   श्याम , धान   मूसर  से   कूटा |
धन्ती   बाइ खटीक, खून  खौं तकबै   छूटा ||

जुरै  उतै  सब  लोग , हटाऔ कचरा  कंकर |
कूँड़ों बन  गव  कुंड , प्रकट थे  भोले शंकर ||

लेखें   बाणासुर   सुता,     ऊषा  जीकौ   नाम |
वह कुंडेश्वर धाम में,     करतइ   रोज   प्रणाम ||

करतइ  रोज प्रणाम, अबै भी अतिशय खिलता |
भुंसारे   अभिषेक, किया  ही  सबको मिलता ||

गैराई     पाताल,   ऊँचाई       बढ़तइ     देखें |
चाँउर  बनतइ नाप  , साल   दर   सालों  लेखें ||

बुंदेली   है  हम  सबइ    राजा   जू   श्रीराम |
रजधानी है  ओरछा  ,    कैतइ सबरै   धाम ||

कैतइ  सबरै    धाम,   गणेशी    बाई   रानी |
गईं  अयोध्या  दौर , राम खौं ल्याकै   मानी ||

निगीं   पुष्प  नक्षत्र , किसायैं सब अलबेली |
ल्याये   थे  श्रीराम  , सबइ   जुरकै   बुंदेली ||

बिटियन  के हर व्याह  में , आतइ  है हरदौल |
भानेजन खौं भात दें, रखत  बहिन कौ  कौल ||

रखत  बहिन कौ कौल , देखतइ ठाठ दिमानी |
सुफल हौत सब काज , बात ये   पंचन जानी ||

बुंदेली   दै    न्यौत  , अशीषें  माँगें   पिटियन |
लाला जू  है आत , भात खौ बाँटन  बिटियन ||

लूअर मौ में दाब कै , नकुआ धुआँ निकार |
और करेजौ  बारबे ,  जुर गय ठलुआ चार ||

जुर गय ठलुआ चार, खाँस रय बैठे डुकरा |
धरै तमाकू  जीभ  , बनै   है  रौथत  बुकरा ||

जुरै  कहाँ से भाग , डुकइया   कैवें   दूभर |
कढ़ै  बतेसा थूक  , दबायैं  मौ   में  लूअर ||

टपरा में डुकरा परो , लाघों  प्यासो     आज |
चार  कुचइयाँ माँगने, लगा   रहा   आबाज ||

लगा रहा आबाज , बऊ   जब बन   गइ बैरी |
बिरचुन खौं तब पीस, डुकइयाँ   लाई  कैरी ||

सास ससुर खौं देख, बऊ जब.  ठूसे  चपरा  |
बिकते खपरा  गेह. बिखरते  थुमिया   टपरा ||

उखरी में मुड़िया धरें , खुद  कन्छेदीलाल |
मूसर जी से कह रहे ,रखियो मोरो  ख्याल ||

रखियो मोरो ख्याल , रगड़ कै उनखौ कुटने |
फुकली उड़ने दाल,   लगी ना मौं से छुटने ||

कहत सुभाषा यार , चिमाने   रइयो  बखरी |
नईं  काढ़ियों बात ,कभउँ तुम मौं से उखरी ||

बुंदेली दुमदार दोहे –
तन  डबला- सो  फूटतइ  , ईसुर  दे जब  मार |
फिर देतइ   क्यों  दौदरा , मानव  फैला    रार ||

चिरैया   सौ  उड‌ जाने |
सबइ अब   कैवें  राने  ||

एक बात सबसें सुनी, डबला  में गय थूक |
उनखौ   कौनउँ चौतरा , देतइ नहीं भभूक ||

फिरत वें   लयें    कटौरा |
जुरै   ना  उनखौ   कौरा ||

पुलिया  बन  गइ  रात में , भुन्सारें  की पार  |      
एक झला में  बह गई , का  कर दे सरकार ||        

बने   है  नेता    दूला |                               
बजाते  है     रमतूला ||

सूदो   सच्चो    आदमी , दुनिया   में  ठग  जात |
लबरा फाँकत बात खौं  , मसकउँ लडुआँ खात ||

पता ना उसका चलता |
चपेटे अपनो  खलता ||

पाथें  गुम्मा बाप  माँ , लरका   चटा बनाय |
आगी से बउ धन अबा ,गुम्मा खरा  पकाय ||

सुभाषा  घर है साजौ |
बजै सुखसाता  बाजौ ||

सुभाष सिंघाई का जीवन परिचय 

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