Sirsagadh Ki Dusari Ladai- Kathanak सिरसागढ़ की दूसरी लड़ाई -कथानक

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पृथ्वीराज चौहान ने Sirsagadh Ki Dusari Ladai- Kathanak मे षड्यंत्र करके धोखे से मलखान मारा पाया ।  महोबा पर आक्रमण करने से पहले माहिल की सलाह पर पृथ्वीराज चौहान ने सिरसागढ़ पर आक्रमण किया मलखान को पराजित करना मुमकिन नही था चुगली करके माहिल ने बताया की मलखान तभी मर सकता है जब उसके पैर में पदम फट  जाए ।

माहिल उरई का राजा था। राजा परिमाल की पत्नी रानी मल्हना उसकी सगी बहन थी। राजा परिमाल ने महोबे को जीतकर माहिल को उरई का राज दे दिया था। बनाफर आल्हा, ऊदल, मलखान, ढेवा आदि को मल्हना ने पुत्रवत् पाला था। इसीलिए माहिल को ये सब मामा के नाते सम्मान देता था। माहिल राजा परिमाल और बनाफरों से बदला लेने का कोई अवसर जाने नहीं देता था।

जहाँ कहीं विवाह हुआ या युद्ध हुआ, वहाँ के राजाओं को चुगली करके इन्हें मरवाने की योजना बनाता रहता था। बनाफर बंधुओं के कारण वह राजा परिमाल को कोई हानि नहीं पहुँचा पाता था, इसीलिए उसके बदले की भावना और भड़क जाती थी।

जब आल्हा-ऊदल महोबे से कन्नौज चले गए तो माहिल अपनी घोड़ी पर सवार होकर दिल्ली जा पहुँचे। राजा पृथ्वीराज भी बनाफर बंधुओं से हार खा चुका था। उन्हीं के शौर्य के कारण पृथ्वीराज की पुत्री बेला का विवाह परिमाल के पुत्र राजकुमार ब्रह्मानंद से हुआ था।

अतः माहिल आया तो पृथ्वीराज ने सम्मानपूर्वक आसन दिया तथा कुशलता पूछी। माहिल ने एहसान जताते हुए राजा को सलाह दी, “मेरी बात ध्यान से सुनो। सुनकर मानो, इसी में आपकी भलाई है। महोबे से आल्हा-ऊदल और ढेवा को परिमाल राजा ने निकाल दिया है।

मलखान तो पहले ही सिरसा में जा बसा था। इस प्रकार राजा परिमाल असहाय है। राजा परिमाल ने शस्त्र न उठाने का प्रण किया हुआ है, अतः महोबे पर आक्रमण करने का इससे उत्तम अवसर कभी नहीं आएगा। अवसर हाथ से निकल जाने पर पछतावे से केवल कष्ट ही होता है।

सिरसागढ़ में मलखान भी अकेला है। एक ही हल्ले में पहले सिरसा को जीतो, फिर महोबे पर चढ जाओ।” पृथ्वीराज भी मन-ही-मन बनाफरों से जलता तो था ही, फिर अपने शत्रु जयचंद के दरबार में उनकी उपस्थिति से ज्यादा चुभन सी महसूस हुई। उसने बिना किसी ना-नुकर किए माहिल की सलाह फटाफट मान ली। उसके सात बेटे थे। सब एक-से-एक बढ़कर वीर।

राजा ने सेना को तैयार होने का आदेश दिया। आदि भयंकर नाम के हाथी पर वह स्वयं सवार हो गए। इकदंता हाथी पर पंडित चौंडा राय सवार हो गए। इसी प्रकार धाँधू और पृथ्वीराज के सातों पुत्र अपने-अपने तय हाथियों पर चढ़ गए। अपनी भारी सेना साथ लेकर चल दिए।

पृथ्वीराज ने सोचा, यदि महोबे पर आक्रमण किया तो पीछे से मलखान आक्रमण कर सकता है। यदि हम पहले सिरसा पर ही आक्रमण कर दें तो महोबे से कोई सहायता के लिए नहीं आ सकता। अतः पहले सिरसा पर ही आक्रमण करने का निश्चय किया। फौज सिरसागढ़ की ओर बढ़ने लगी।

चौंडा राय के नेतृत्व में सिरसा घेर लिया गया। एक हरकारे ने मलखान को सूचित किया कि सिरसा पर आक्रमण करने सेना झुक आई है। पृथ्वीराज की ओर से पंडित चौंडा राय अगवानी कर रहा है। मलखान ने अपने अनुज सुलखान को सेना तैयार करने की आज्ञा दी। सिरसा की सेना भी शीघ्र तैयार हो गई।

माता ने कहा, “अपशकुन हो गया है। घोड़ी कबूतरी पर सवार होते ही सामने से छींक हुई है। अतः युद्ध में मत जाओ।” वीर मलखान शकुन-अपशुकन पर भरोसा नहीं करता था। उसने कहा, “माते! आप जल्दी से आशीर्वाद दीजिए, युद्ध शकुन विचार से नहीं लड़े जाते।” माता ने आशीर्वाद दिया। दोनों युद्ध के मैदान में पहुँच गए। चौंडा राय ने मलखान को देखते ही कहा, “पृथ्वीराज का आदेश है कि सिरसागढ़ का किला गिरा दिया जाए।” मलखान ने कहा, “किला मैंने अपने बल पर बनाया है। किसमें दम है, जो सिरसा का किला गिरवा दे।”

चौंडा राय ने तोपों में बत्ती लगवा दी। मलखान की ओर से भी तोपें चलने लगीं। फिर भाला व तलवारों से जबरदस्त लड़ाई हुई। आखिर चौंडा को बंदी बना लिया और उसे जनाना वेश पहना दिया। जनाना श्रृंगार करके पालकी में बिठाकर पृथ्वीराज के पास भेज दिया।

पृथ्वीराज चौंडा की हालत देखकर हैरान हुआ। तभी पारथ ने बीड़ा उठाया और युद्ध की कमान संभाली। पारस और मलखान की तलवार के बीच जोरदार लड़ाई हुई। सात दिन तक दोनों लड़ते रहे। फिर गजमोतिन (पत्नी) की सलाह पर संध्या समय लड़ाई जारी रखी। मलखान ने सांग चलाई और पारथ मारा गया। पृथ्वीराज सूचना पाकर दुःखी हुआ। पृथ्वीराज ने धीर सिंह को भेजा। वह चालाकी से मलखान को पृथ्वीराज के दरबार में उपस्थित करने की कोशिश करता रहा। उसे कुछ भी न बिगड़ने का भरोसा भी दे दिया, पर मलखान चलने को तैयार नहीं हुए।

धीर सिंह ने तभी सांग धरती पर जमा दी। सांग को उखाड़कर दिखाने की चुनौती दे दी। मलखान ने एक ठोकर मारी और सांग आसानी से निकालकर दे दी। धीर सिंह ने जाकर पथ्वीराज को उत्तर दिया कि मलखान को कोई नहीं जीत सकता, वह अनुपम वीर है। फिर पृथ्वीराज स्वयं अपने पुत्रों के साथ युद्ध के लिए चला।

धाँधू भी हथियारबंद होकर युद्ध में चला। वीर मलखान भी तैयार होकर पृथ्वीराज से भिड़ने आ गया। पृथ्वीराज ने मलखान से किला गिरवाने की बात कही। मलखान का वही जवाब था। बंजर पड़ी जमीन पर मैंने अपने दम पर किला बनाया है। मैं आपकी बहुत इज्जत करता हूँ, परंतु किला गिराने का हुक्म नहीं मानूँगा।

युद्ध होना तय था। पृथ्वीराज की सेना में उसके सातों पुत्र, धाँधू और वह स्वयं; जबकि मलखान के साथ सुलिखान। पृथ्वीराज के पुत्र चंदन ने सुलिखे पर सांग चलाई। सांग से बच गया तो तलवारों से भारी युद्ध हुआ। चंदन वीरगति को प्राप्त हुआ। तब ताहर आगे बढ़ा। ताहर के वार को रोकते समय उस सुलिखान की ढाल असफल हो गई और सुलिखान भी शहीद हो गया। फिर तो मलखान ने भयंकर मार मचाई। नैमिसार का राजा अंगद, सूरत का राजा हाड़ावाला, बाँदा का राजा इंद्रसेन, दिल्ली के तीन सरदार सब मलखान की तलवार के शिकार बन गए।

पृथ्वीराज की सेनाएँ भाग खड़ी हुई। सामने बेशक अन्य राजा लड़ रहे थे, परंतु दिमाग तो माहिल का लगा हुआ था। माहिल मामा सिरसागढ़ में ही जा पहुँचा। मल्हना की देवरानी ब्रह्मादे भी तो उसकी बहन जैसी ही थी। माहिल उसके पास जाकर मलखान की वीरता की प्रशंसा करने लगा, साथ ही सुलिखान के शहीद होने के लिए शोक प्रगट करने लगा।

सीधी-सादी ब्रह्मा ने माहिल को भाई मानकर यह बता दिया, “मलखान पुष्य नक्षत्र में जन्मा है, बृहस्पति इसकी कुंडली में बारहवें घर में विराजमान है। यह हार तो सकता ही नहीं। भगवत् कृपा से इसके पाँव में पद्म है। जब तक वह पद्म सुरक्षित है, तब तक कोई मलखान को मार नहीं सकता।”

ब्रह्मा से माहिल को वह सत्य ज्ञात हो गया, जिसे जानने के लिए वह परेशान था। फिर तो माहिल सीधा दिल्ली पहुँचा और पृथ्वीराज को यह रहस्य बताया, साथ ही उपाय भी बताया कि युद्ध क्षेत्र में पहले पाँच कोस तक गड्ढे खुदवाओ।

उनमें बड़े-बड़े शूल-त्रिशूल खड़े कर दो, फिर पोली-पोली मिट्टी भर दो। तब करो आक्रमण जोर-शोर से। तोपें चलाओ, आगे मत बढ़ो। वह जब आगे आएगा तो किसी-न-किसी गड्ढे में गिरेगा। शूल के लगने से तलवे में बना पद्म फट जाएगा। फिर तो कोई भी उसे मार सकता है।

हारे हुए पृथ्वीराज में जोश की लहर दौड़ गई। वह इस उपाय पर अमल करने को तैयार हो गया। उसने सुरंग खोदनेवाले कुछ मजदूर सिरसा भेज दिए। सिरसा से पहले ही सीमा पर बताए हुए तरीके से गड्ढे खोदे गए, उनमें बरछी-भाले और त्रिशूल गाड़ दिए गए। फिर सिरसा पर आक्रमण कर दिया। अपने हाथी, घोड़े और तोपें सजाकर युद्ध करने जा पहुँचे।

सिरसा को घेर लिया। मलखान को सूचना मिली कि दिल्लीवाले फिर चढ़ आए हैं। मलखान अपनी सेना लेकर युद्ध के लिए निकल पड़ा। मलखे ने बाईस हाथियों के हौदे खाली कर दिए। दिल्ली के सिपाही भागने लगे। खून की नदियाँ बहने लगीं। पृथ्वीराज ने ताहर को लड़ने भेजा। ताहर का मुकाबला करने ज्यों ही मलखान ने कबूतरी घोड़ी को आगे बढ़ाया, घोड़ी गड्ढे में धंस गई। गड्ढे में खड़ा भाला पाँव में धंस गया। तलवे का पद्म फट गया।

मलखान जान गया कि उसके साथ धोखा किया गया है। अब मेरा काल आ गया। घोड़ी जोर लगाकर गड्ढे से बाहर तो आ गई, परंतु मलखान के प्राण-पखेरू उड़ चुके थे। धावन (हरकारे) ने सिरसा महलों में खबर पहुँचाई। मलखान की मृत्यु का समाचार पाकर ब्रह्मा माता भारी विलाप करने लगी। तब उन्हें याद आया और माहिल ने यह धोखा किया और स्वयं को कोसने लगी।

रानी गजमोतिन को खबर मिली तो उसने सती होने का निश्चय किया। डोला मँगवाया और वीर मलखान की लाश की ओर चली। माता ब्रह्मा को भी साथ ले लिया। पृथ्वीराज चौहान भी मलखान की लाश के पास पहुंचा था। रानी गजमोतिन ने उसे ललकारकर कहा, “हे चौहान! सिरसा में प्रवेश करने की मत सोचना। मलखान नहीं रहे तो भी मैं दिल्ली तक तुम्हारा सामना कर सकती हूँ। अपना भला चाहते हो तो दिल्ली तुरंत लौट जाओ। नहीं तो मैं शाप देकर भस्म भी कर सकती हूँ। तुमने वीर के साथ धोखा किया है।

मैं शाप देती हूँ कि तीन महीने, तेरह दिन के अंदर ऐसा युद्ध होगा कि महोबे से दिल्ली तक खून की नदी बहेगी। सब वीरों की सुहागिनें विधवा हो जाएँगी।” शाप से भयभीत पृथ्वीराज ने सेनाओं को मोड़कर दिल्ली कूच कर दिया। माता ब्रह्मा ने भी थोड़ी ही देर में प्राण त्याग दिए।

रानी ने सिरसा का खजाना दान में बाँट दिया। सबने रोकने और समझाने का प्रयास किया, परंतु गजमोतिन वीर मलखान के शव के साथ चिता में बैठ गई। चिता में आग धधक उठी। चिता पर बैठकर रानी ने माता मल्हना, जिठानी दिवला और आल्हा-ऊदल को सुमिरन किया। पति-पत्नी दोनों साथ-साथ स्वर्ग सिधार गए।

कवि पद्माकर का जीवन परिचय 

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