Kartik Isnan Vrat  कार्तिक स्नान व्रत कथा

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बुंदेलखंड में कार्तिक स्नान व्रत Kartik Isnan Vrat का बहुत अधिक महत्व है  एक गाँव में एक पंडित पंडिताइन रत्तें। पंडित जी तौ संमय नियम उर भजन-पूजन कौ पूरौ ख्याल राखत ते। चार बजे भुनसारें उठकै नहा धो के फुरसत हो जात ते। दो घण्टा नौ मन लगा कै पूजा पाठ करत ते नियम के पक्के हते । पंडित जी की असपेर भर में धाक हती । काऊकौ कौनऊ काम उनके पूछै बिना पूरो नई होत तो । उनके दोरै जजमानन की भीर जुरी रत ती।

गिरा बादरा, ब्याव काज सुदवावे के काजै मुलक जनै बैठई रत्ते । उनके दौरे गाँव में पंडित जी जौन खौर हुन कड़त ते दण्डौतन के ढेर लग जात ते। उनके सामे दान दच्छना की सौं कोनऊ कमी हती नई। उतै-चैत कातक में उनके जजमान खुदई खरैना लै लै कै पौच जात ते । अमावस पूनें उर ग्यारस खौं गांव भर के लोग सीधे लै लै कै अबढ़ायै पौंच जात है ।

काम सो उने इत्तौ जादा हतो कै दिन रात फुरसतई नई रत्ती । घर में नाज पानी सोनो- चाँदी उर पैसा टका की तौ कोनऊ कमी ह नई। एक पंडित उर दस गाँव में जजमानी। बखरी की का कनें कितेक लंबी चौरी बखरी हती उनकी। गैंया-भैसें मनमुक्तो दूद देत ती । खा पी कै पंडित उर पंडितानी खूबई मुटया गयें । पंडितानी पै तो निगतनई नई बनत तो डील डौल उर शरीर तो बिटा सो हो गओ तो ।

पंडितजी जित्ते उजरे उर साप सुथरे हते। पंडितानी उतनई अलाल उर घिंनऊ हती । कओ परी-परी भर दुपरै उठवै मौ हात धौके तुरतई खावे बैठ जावे कओ सपरवे की सुरतई नई रये । खात पियत रई में उर दो-दो दिना नौ सपरवे की सुरतई नई रैय। उनकी उसार उर टैल टाल के लाने तो नौकर उर चाकर लगे ते अब बताओ उने पूजा की काँ फुरसत रत्ती ।

खाने उर अजगर सौं डरो रनें। पंडिज्जी शरम के मारैं उनें क्याऊँ अपने संगै लुआइनई जात ते । पैला तौ उनकै कोनऊ बालई बच्चा नई भओ तो। सात आठ सालई ऐसई कड़ गई। फिर भगवान की कृपा से उनके एक बिटिया हो परी। कन लगत कै पूत के लक्ष्छन पालना में दिखान लगत, सो जा कानातऊ बिटिया पै सोरा आना सांसी हो गई। ऊकै होतनई घर में उजयारौ सौ फैल गओ ।

पंडितानी चेतन्न सी दिखान लगी । बिटिया खौ उन्ने अच्छे लाड़-प्यार सैं पालन-पोषण करो । पंडित जी को पूजा-पाठ में अब जादा मन लगन लगो । हरा-हरा वा बिटिया वारा वर्ष की हो गई । अपने बाप की पूजा पाठ में उनको खूबई मन लगत तो घन्टन नौ बैठी – बैठी पूजा पाठ देखत रत्ती । उर फिर वा पंडित जी के संगै चार बजे उठकै सपर खोर कै तैयार हो जात ती। उन पंडित जी की पूजा सेवा में पूरौ सहयोग करन लगी ।

इतेकई में कातक को मइना आ गओ । चारई तरपै कातक कै गीतन की आवाज गूँजन लगी । ऊ कड़ाके की ठंड में गाँव भर की बऊयै बिटिया अपने अपने घट उर पूजा कौ सामान लैकें कातक अनावै कड़ परी पंडितानी तो कभऊँ जाई नई सकत तीं । अकेले वा बिटिया रामकली ओई इंदयारै में लुगाइयँन कै संगै घट उर ढोलची लैके भगवान किसन के रंग के गीत गाऊत घर से वायरै कड़ गई।

सखी री, मैं तौ भईन बिरज की मोर श्याम के रंग में वा ऐसी रंगी कै मईना भर कातक कौ व्रत करो। खूब बाल किसन की पूजा करी । हल्की सी तौ वा हतिअई । खूबई नाची गाई। पंडित जी खौं देख-देख कै भौतई अच्छौ लग रओ तो अरे मताई की कमी बिटिया ने तौ पूरी कर दई । रामकली खौं ऐसौ लवकौ लगो कै हर-हर साल कातक अनाउन लगी ।

भगवान की भक्ति में पूरी तरा सै रंग गई ती वा। गोपाल जू की पूजा करे बिना वा कभऊँ अन्न पानी नई लेततीं । गोपाल जू की कृपा सैं ऊके हात में सिद्धि हो गई। वा स्कूल जाती बेरा अपनी जेब में जबा के दानें भर ले जात ती। उर आऊती जाती बेरा गैल में जबा के दानें डारत जात ती। गोपाल जू की कृपा से वे दाने सोने के होत जात ते।

जब मताई खौं ई बात कौ पतो चलो सो वा वे दाने बीन-बीन कै एक डबला में डारत जात ती। एैसई – एसई केंऊ दिना कड़ गये । उर उन सोने के जबन सें पूरो डबला भर गओ। एक दिना वा सूपा लेंके उन जबन खौं फटकन बैठ गई। सोने के जबा फटकतन में ऊकी मन्सा भई कै कजन सोने के सूपा में हुन हम इन सोने के जबन खौं फटकते तो कित्तो अच्छो लगतो ।

गोपाल जू की ऐसी कृपा भयी कै ऊके कतनई सूपा सोने कौ हो गओ । उर वा हँस-हँस के जबा फटकन लगी। जो चमत्कार देख के पंडित जी  की खुशी कौ ठिकानौ नई रओ । इतेकई में घुरवा पै चढ़े क्याऊँ सें ऊ राज के राजकुमार आ धमके। राज कुमार ने पंडित जी की रामकली खौं सोने के सूपा से सोने के जबन खौं फटकत देखो। रामकली को रूप रंग तो अच्छौ हतोई । राजकुमार उयै देखतनई मोहित गये।

राजकुमार घुरवा दौराउत सूदे अपनी मताई के लिंगा बैठ के बोले के हम एक गाँव में सोने के सूपा से सोने के जबन खौं फटकत एक बिटिया खौं देख आये। अब हम ओई बिटिया संगै व्याव कराएँ तबई हम रोटी खँय रानी वोली कै बैटा जा कोनऊँ बड़ी बात नइया। तुम आराम सैं खाओ पियो हम मराज सैं कैके तुमाव कालई ब्याव करा दै । तुम को ऊँ बात की फिकर नई करो ।

रानी ने तुरतई जा बात राजा खौं सुना दई । राजा ने अपने कर्ता काम दारन खौं हुकुम दओ । उर वै खोजत – खोजत पंडित जी  कै घरै पौंच गये । उर पंडित जी से कई कै राजा ने तुमें जरूरी काम से बुआव है। पंडित जी जान तो सब गये । उर मुस्क्यात सिपाईन के संगै सूदे राजमिहिल में पौंचे। देखो पंडिज्जी हमाये कुंवर साब तुमाई मोड़ी के संगै अपनौ ब्याव कराउन चाउत, बताव तुमाई का इच्छा है।

पंडित जी बोले मराज हम आपसें का कै सकत। अकेले काँ एक गरीब बामुन उर कितै तुम इत्ते बड़े राजा हमाव तुमाव का जोड़ मिल सकत। राजा बोले के जब हमाये  राजकुमार को मन है तो समझौ कै जोड़ई सो तो मिलो है। ई में जादा सोसवे समझवे की जरूरत नइया। तुमतौ खूबई धूम-धाम से ब्याव करो हम तुमाये इतै तैयारी करवे खौं नौकर चाकर उर सामान पौंचाये देत ।

तुम सें और हमें कछू चानें नइया तुम तौ अपनी बिटिया खौं तैयार रखियौ । पंडिज्जी अब कै का सकत ते। मौगे चाले अपने घरें जाकै पंडितानी सै बोले कै देखो तो कै गोपाल जू की कृपा  से तो रामकली को भाग खुलगओ । भियांने राजकुमार के संगै अपनी रामकली की भांवरै पर जानें। सुनतनई पंडितानी सन्न होकै सोसन लगी कै जौ है बिटिया कै भाग को खेल।

पंडितजी बोले कै भाग को खेल है। गोपाल जू की कृपा कौ फल है। मौड़ी ने बड़े प्रेम से कातक अनाव उर गोपाल जू की सेवा पूजा करी सो उनकी कृपा सै रानी बनकै जा रई । फिर का हतो दूसरे दिन बाजे-गाजे सै राजा की बरात आयी । उर रामकली कौ साकै को ब्याव हो गओ ।

टटन की अटन पैं पौच गई। बिन्नू जौ है सांसे मन से कातक अनावे कौ उर गोपाल जू की पूजा करवे कौ प्रभाव। जो बैने बिटिया सांसे मन सैं व्रत करती हैं। भगवान उनकी मनसा जरूर पूरी करत। भगवान कौ व्रत कभऊँ निरफल नई होत । बाढ़ई ने बनाई टिकटी उर हमाई किसा निपटी ।

भावार्थ

एक गाँव में एक पंडित और पंडितानी निवास करते थे । पंडित जी को भगवान की भक्ति और भजन- भक्ति में विशेष रुचि थी । उनके आचार-विचार, संयम-नियम बड़े ही उत्तम और अनुकरणीय थे। चार बजे प्रात:काल उठकर नहा-धोकर पूजा पाठ करने के लिए बैठ जाते थे । दो घंटे तक पूजा पाठ और हवन-पूजन में व्यस्त रहा करते थे । वे अपने संयम-नियम के पक्के थे। सारे गाँव और आसपास के गाँवों में उनका पूर्ण मान-सम्मान था ।

गाँव का कोई भी मांगलिक कार्य उनकी सलाह के बिना संपन्न नही होता था । उनके द्वार पर यजमानों की भीड़ एकत्रित रहती थी। ग्रह-नक्षत्र शोधन और अन्य शुभ कार्यों की तिथियाँ निश्चित करने के लिए गाँव के लोग उनके द्वार पर बैठे ही रहते थे । गाँव में निकलते समय लोग उनके चरणों पर गिर पड़ते थे। उन्हें मनचाही दान-दक्षिणा प्राप्त होती रहती थी। घर में धन-धान्य की कोई कमी नहीं थी । गाँव भर के लोग अनाज-आटा, दाल-चावल और द्रव्य ले-लेकर स्वयं ही उनके घर पहुँच जाते थे।   

त्योहारों और विशेष पर्वों पर उनके घर मनचाहा अन्न और धन एकत्रित होता रहता था। पंडिताई के काम में व्यस्त रहते थे। सोचिये कि उनके घर में अब क्या कमी हो सकती है? एक पंडित और दस गाँव में पंडिताई। उन्हें अवकाश ही कहाँ था? उनकी लंबी-चौड़ी राजाओं के समान बखरी थी। गायें, भैंसें, बैल और जमीन सब कुछ था, उनके पास । मन चाहा खा-पीकर पंडित और पंडितानी खूब मोटे हो गए थे। पंडित जी का शरीर तो इतना स्थूल हो गया था कि उनसे चलते ही नहीं बनता था।

पंडित जी जितने साफ-स्वच्छ और चुस्त थे, उतनी ही उनकी पत्नी आलसी और गंदी थी। वह पड़ी-पड़ी दोपहर को उठती और बिना नहाये – धोये ही खाने को बैठ जाती थी । कभी- कभी तो वह दो-दो दिन तक स्नान नहीं करती थी । घर के काम-काज के लिए तीन-चार नौकर- चाकर लगे थे। उसे करना कुछ नहीं पड़ता था । केवल खाने में ही जुटी रहती थी । उसे पूजा करने का मौका ही कहाँ था? खा-पीकर अजगर सी पड़ी रहती थी । पंडित जी लाज के मारे उन्हें कहीं अपने साथ नहीं ले जाते थे ।

पहले तो सात – आठ साल तक उनके कोई संतान ही पैदा नहीं हुई । लोग कहा करते हैं कि पूत के लक्षण पालने में दिखाई देते हैं । ये कहावत पंडित जी की पुत्री पर सोलह आने सत्य सिद्ध हो गई थी । पुत्री के उत्पन्न होते ही पंडित जी के घर में प्रकाश सा फैल गया था। पंडितानी की स्थिति में भी परिवर्तन दिखाई देने लगा ।

वे भली चंगी और चैतन्य सी दिखाई देने लगीं। उन्होंने बड़े ही लाड़-प्यार से बेटी का पालन-पोषण किया। अब पंडित जी कामन पूजा-पाठ में अधिक लगने लगा । पुत्री बढ़ते-बढ़ते बारह वर्ष की हो गई और वह अपने पिता की पूजा-पाठ में हाथ बँटाने लगी। वह पिता जी के समीप बैठकर ध्यानपूर्वक घंटों पूजा-पाठ देखती रहती थी।

इसी बीच में कार्तिक माह लग गया। महिलाएँ कार्तिक स्नान करने लगीं और चारों ओर कार्तिक के गीतों का स्वर गूंजने लगा । उस कड़ाके की ठंड में ग्रामीण महिलाएँ अपने अपने घट और चीर लेकर स्नान करने के लिए जाने लगीं। पंडितानी तो कार्तिक स्नान करने के लिए जा ही नहीं सकती थी । किन्तु पंडित जी की पुत्री रामकली भगवान कृष्ण के रंग में रंगकर घट और डोलची लेकर औरतों के साथ कार्तिक स्नान करने के लिए जाने लगी।

वह भगवान के रंग में ऐसी रंग गई कि फिर एक माह तक संयम, नियम के साथ कार्तिक स्नान करती रही। खूब बालकृष्ण की लीलाओं का गायन करती रही । वह सखियों के साथ नाचती-गाती रही। अपनी पुत्री की भक्ति – भावना को देखकर पंडित जी को बहुत ही अच्छा लग रहा था। ऐसा लग रहा था कि जैसे माँ की कमी को बेटी ने पूरा कर दिया हो ।

रामकली को कार्तिक स्नान में इतना अधिक आनंद आया कि वह प्रतिवर्ष कार्तिक स्नान करने लगी । भगवान की भक्ति में पूरी तरह से डूब चुकी थी । वह गोपाल जी की पूजा किए बिना वह कभी अन्न जल ग्रहण नहीं करती थी गोपाल जी की कृपा से उसके हाथ में पूर्ण सिद्धि हो गई थी। बचपन जब वह विद्यालय में पढ़ने जाती थी। तब जेब में जवा के दाने भर ले जाती थी। आते-जाते समय वह मार्ग में जवा बोती जाती थी और वे जवा सोने के होते जाते थे ।

जब उसकी माँ को उसकी सिद्धि का पता चला। तो वह सोने के दानों को बीन बीनकर एक बर्तन में रखती जाती थी। इसी तरह से अनेक दिन व्यतीत हो गये और उन सोने के दानों से पूरा बर्तन भर गया । एक दिन उसकी माता उन सोने की दानों को सूपा में लेकर फटकने लगी। उसे लगा कि मैं जवों को सोने के सूपे में लेकर फटकती तो कितना अच्छा होता।

इस बीच सोने का सूपा आ गया, तब पंडितानी हँस-हँस कर जवा फटकने लगी । यह देख-देखकर पंडित जी को बहुत प्रसन्नता हुई ।इसी बीच में घोड़े पर चढ़कर वहाँ के राजा के राजकुमार आ धमके और उन्होंने पंडितानी सोने के सूपे में सोने के जवा फटकते हुए देखा । रामकली भी माँ के साथ जवा फटकने लगी थी। उसका रूप रंग बहुत ही आकर्षक और मोहक था । राजकुमार उसे देखते ही मोहित हो गया।

वह घोड़ा दौड़ाता हुआ सीधा अपनी माँ के पास जाकर बोला कि माता जी मैंने एक अत्यंत सुंदर लड़की को सोने के सूपे सोने के जवा फटकते हुए देखा है। माता जी मैं तो उसी के साथ अपना विवाह करना चाहता हूँ। मैं तब तक अन्न जल ग्रहण नहीं करूँगा, जब तक मेरा विवाह उस लड़की के साथ नहीं हो जाता। महारानी ने कहा कि- अरे ! ये तो बहुत ही साधारण सी बात है। तुम मजे से खाओ पियो-तुम्हारा विवाह उसके साथ हो जायेगा।

महारानी ने ये बात महाराज को सुना दी। राजा ने अपने अनुचरों को आज्ञा दी कि आप लोग उस लड़की का पता लगाइये। वे लोग खोजते-खोजते पंडित जी के घर पहुँच गये और उन्होंने पंडित जी से कहा कि आपको राजा ने किसी जरूरी काम से बुलाया है। पंडित जी समझते सब थे और वे मुस्कराते हुए सिपाहियों के साथ राजमहल में पहुँच गये ।

उन्हें देखते ही राजा ने कहा कि पंडित जी आपकी लड़की के साथ हमारा राजकुमार शादी करना चाहता । बताइये अब आपकी क्या इच्छा हैं? पंड़ित जी बोले कि महाराज मैं आपसे क्या कह सकता हूँ? आप तो इतने बड़े राजा हैं और मैं एक गरीब ब्राह्मण हूँ। हमारा और आपका कैसे जोड़ मिल सकता है?

राजा ने कहा कि जब हमारे राजकुमार की इच्छा है, तो समझो कि जोड़ मिल ही गया है। इसमें ज्यादा सोचने विचारने की कोई जरूरत नहीं है। आप तो मन लगाकर खूब धूम-धाम से विवाह कीजियेगा । हम आपकी तैयारी करने के लिए सामग्री और नौकर-चाकर भेज रहे हैं। मुझे आपसे और कुछ नहीं चाहिए। आप तो अपनी लड़की को तैयार रखना । इससे ज्यादा और आपसे क्या कह सकता हूँ? अब पंडित जी कह ही क्या सकते थे?

चुपचाप अपने घर जाकर अपनी पंडितानी से बोले कि देखो तो गोपाल जी की कृपा से रामकली का भाग्य खुल गया है। कल राजकुमार के साथ अपनी रामकली का विवाह हो जायेगा। सुनते ही पंडितानी चकित होकर रह गई और सोचने लगी कि ये सब पुत्री के भाग्य का चमत्कार है।

पंडित जी ने भी कहा कि ये सब बच्ची के भाग्य का खेल है और उसे गोपाल जी की कृपा का ही सुफल प्राप्त हुआ है। बच्ची ने बड़े प्रेम से कार्तिक स्नान किया और मन लगाकर भगवान कृष्ण की पूजा-अर्चना की। ये उसी का सुपरिणाम है कि हमारी बेटी आज रानी बनकर जा रही है।

अंत में रामकली की बड़ी ही धूम-धाम से शादी हुई । एक साधारण से पंडित की पुत्री रानी बनकर राजमहल में पहुँच गई। ये सब कार्तिक स्नान और मन से गोपाल जी की पूजा करने का ही प्रभाव है। जो लड़कियाँ और महिलाएँ सच्चे मन से कार्तिक स्नान करके व्रत और उपवास करती है। भगवान उन्हें मनोवांछित फल प्रदान करता है। व्रत कभी निष्फल नहीं होता । उसका फल व्रतकर्ता को अवश्य ही प्राप्त होता है ।

बुन्देली लोक गीत परंपरा 

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