Karam Rekh करम-रेख -बुन्देलखण्ड की लोक कथा 

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By admin

मनुष्य जो कर्म करेगा वही फल पाएगा कर्म के हिसाब से करम रेख Karam Rekh बनती है वही जीवन का निर्धारण करती है । किसी नगर में एक सेठ और सेठानी रहते थे। उनके एक लड़का और एक लड़की थी। लड़के का ब्याह हो गया था। लड़की अभी कुँवारी थी। उनके यहाँ एक फकीर रोज आता था। जब लड़के की बहू उसे कुछ लाकर देती तो उससे कहता-पुत्रवती हो। लेकिन जब लड़की आती तो उसे और ही कुछ आशीष देता। कहता-धर्म बाढ़ै गंगा के स्नान।

सेठानी का ध्यान यों कभी फकीर की बातों पर न जाता था, लेकिन एक दिन जब लड़की ने उनके सामने ही थोड़ा सा आटा लाकर फकीर को दिया और आशीर्वाद के रूप में फकीर ने अपनी पुरानी बात दुहराई तो उनका ध्यान उधर गया। लड़की से वह बोली-‘यह फकीर तुझसे क्या कहता है?’

लड़की ने बता दिया। सेठानी उसका कुछ भी मतलब न समझीं। अगले दिन जब फकीर आया और लड़की के भिक्षा देने पर उसने वही बात कही तो सेठानी ने उससे पूछा-‘बाबा, मेरी लड़की से तुम इस तरह की बात क्यों कहते हो?

फकीर बोला-‘इससे तुम्हें क्या ? सेठानी ने हठपूर्वक कहा-‘नहीं बाबा, तुम्हें बताना ही होगा।’ फकीर ने देखा कि सेठानी नहीं मानेगी तो उसने कहा- यह जो तुम्हारी लड़की है, इस पर बड़ी मुसीबत आयेगी। इसकी शादी तुम करो चाहे न करो, इसे बारह बरस तक मुर्दे की सेवा करनी पड़ेगी। इसकी करम रेखा बड़ी बुरी है।

सेठानी इस बात से बहुत दुःखी हुई और सारा हाल सेठ से जाकर कहा। सेठ ने कहा-कोई बात नहीं। मैं इसका ब्याह ही न करूँगा और हमेशा इसे अपने साथ ही रखूँगा। उस दिन से सेठ लड़की को हर घड़ी अपने साथ रखने लगे। एक रोज की बात कि सेठ जंगल में शिकार खेलने गये। लड़की भी साथ गई। चलते-चलते वे दोनों एक घने जंगल में पहुँचे।

धूप जोर की पड़ रही थी, सो उन्हें प्यास लगने लगी। उसी जंगल में एक राजकुमार भी शिकार खेलने आया था। उसने जब उस लड़की को देखा तो उसके रूप पर मुग्ध हो गया। लड़की प्यासी है। इसका अनुमान कर उसने कुछ घड़े पानी से भरकर उस मकान में रख दिये, जो जंगल के बीच बना था और स्वयं एक चादर ओढ़कर सो गया। सेठ ने जब वह मकान देखा तो लड़की से कहा-‘बेटी, जरा जाकर देखना। इस मकान में शायद पानी मिल जाय।

लड़की गई दरवाजे से ही उसने देखा कि बहुत से घड़े पानी के भरे रखे हैं। वह भीतर गई। एक लोटा पानी लेकर उसने पिता को पिलाया और फिर खुद पीने गई। जब वह घड़े में से पानी ले रही थी तो राजकुमार ने चादर में से मुँह निकालकर उसकी तरफ देखा कि मकान के किवाड़ बन्द हो गए। बाहर जाने के लिये कोई रास्ता ही न रहा। लड़की ने देखा कि एक कमरे के भीतर कोई चादर ओढ़े सो रहा है। वह बेचारी बहुतेरी, चिल्लाई, लेकिन किवाड़ न खुले।

इधर सेठ ने देखा कि काफी देर हो गई और लड़की नहीं लौटी तो उन्होंने मकान पर आकर आवाज दी। भीतर से लड़की चिल्लाती थी, बाहर से बाप। इस तरह चिल्लाते-चिल्लाते बहुत देर हो गई तो सेठ को फकीर की बात याद आई और मन मारकर वह घर चला आया। लड़की भी दो-तीन दिन तक खूब रोती रही, फिर चुप हो गई।

फकीर की बात एकाएक उसे भी याद आ गई। उसने सोचा कि हो न हो यह जो आदमी चादर ओढ़े सो रहा है, वह मुर्दा है और इसी की मुझे बारह बरस तक सेवा करनी पड़ेगी। यह सोचकर उसने उस आदमी के ऊपर से चादर उतारी। देखती क्या है कि उसकी सारी देह पर कीलें लगी हुई हैं। वह उन्हें निकालने लगी।

कीलें निकालते-निकालते बारह बरस होने को आए। दो दिन बाकी रह गये कि एक अहीरन उधर से निकली। मकान के बाहर से उसने आवाज दी-दूध दही ले लो। लड़की ने आवाज सुनी। उसने भीतर से चिल्लाकर कहा-‘दही लेना है, अन्दर लाओ। अहीरन ने दरवाजे पर धक्का लगाया, लेकिन किवाडें न खुलीं। उसने कहा-‘मैं आऊँ कैसे ? किवाड़ें तो बन्द हैं। तुम भीतर से खोलो।

लड़की ने कहा-‘ये किवाडें खुलती ही नहीं। अहीरन बोली-‘तो देखो, कोई चीज भीतर पड़ी हो तो फेंक दो। मैं उसे पकड़कर चढ़ आऊँगी। ढूँढने पर लड़की को एक रस्सी मिल गई। अहीरन उसे पकड़ कर मकान के अन्दर चली गई।

लड़की ने कहा-‘तुम बैठो, मैं अभी आती हूँ।’ इतना कहकर वह दूसरे कमरे में गई कि उसे छह मासी नींद आ गई और वह सो गई। अहीरन ने देखा कि लड़की लौटी नहीं तो वह उस कमरे में गई। देखती क्या है कि लड़की गहरी नींद में सो रही है। वह लौट कर मुर्दे के पास आई। उसकी सब कीलें लड़की ने निकाल दी थीं। दोनों आँखों में दो लगी रह गई थी। उन्हें अहीरन ने जैसे ही निकाला कि राजकुमार जीवित हो गया। उसने अहीरन से कहा-‘तुमने मेरी बड़ी सेवा की है। अब मैं तुम्हें अपनी रानी बनाऊँगा।’

उस दिन से वह अहीरन रानी बनकर राजकुमार के पास रहने लगी। छह महीने बाद सेठ की लड़की की आँख खुली तो वहाँ का हाल चाल देखकर उसे बढ़ा दुःख हुआ। वह उनकी दासी बनकर रहने लगी। राजकुमार रोज शहर जाता था। चलते समय रानी से पूछता कि तुम बाजार से क्या मंगाओगी? रानी ठहरी अहीरन। कभी खरी मंगाती तो कभी गुड़ और कभी बिनौले। राजकुमार लाकर दे देता। एक रोज उसने दासी से पूछा कि तू कुछ मंगाना चाहती है। उसने कहा-‘मुझे क्या मंगाना है सरकार।

उस दिन से राजकुमार जब-जब बाजार जाता अपनी दासी से जरूर पूछ जाता। अकले रहते-रहते सेठ की लड़की का मन जब बहुत ऊबने लगा तो उसने एक दिन राजकुमार से कहा कि मेरे लिये चार हँसते पुतरा-पुतरियाँ ले आना। राजकुमार ने बाजार भर में ढूँढे, लेकिन उसे हँसते पुतरा पुतरियाँ न मिले। ढूँढते-ढूँढते राजकुमार जब परेशान हो गया तो एक दुकानदार ने कहा कि यहाँ से दस कोस पूरब में हंसनापुर शहर है। वहाँ हँसते पुतरा-पुतरियाँ मिल जायेंगे। राजकुमार वहीं पहुँचा और चार पुतरा-पुतरियाँ लेकर घर लौटा।

इधर जब चार-पाँच दिन बीत गये और राजकुमार न लौटा तो रानी अपनी दासी पर बिगड़ने लगी कि तूने ऐसी चीज क्यों मंगाई कि राजकुमार को लौटने में इतने दिन लग गये। इतने में राजकुमार आ गया। उसने पुतरे-पुतरियाँ दासी को दे दिये।

उस दिन से सेठ की लड़की दिन भर तो काम करती। रात को चारों पुतरे-पुतरियों को लेकर अपनी कोठरी में जाती और भीतर से किवाड़ बन्द करके उनसे कहती- सुनो पुतरा, सुनो पुतरियां, तुम देखों मेरो दुःख। बाहर बरस सेवा कीनी, तबऊ न पायौ सुख।।

पुतरे-पुतरियाँ इतना सुनकर खूब नाचने लगते। इसी प्रकार कई दिन बीत गये। एक दिन अहीरन किसी काम से रात को उठी तो उसे सेठ की लड़की की कोठरी में किसी के नाचने की आवाज सुनाई दी। उसने राजकुमार से सारा हाल कहा। बोली-‘इसके यहाँ रात को कोई आता है। तुम इसे मरवा दो।

राजकुमार ने कहा-पहले मैं अपनी आँखों से देख लूँ। अगले दिन रात को सब काम खत्म करके जब सेठ की लड़की अपनी कोठरी में आई और किवाड़े बन्द कर लिए तो राजकुमार चुपचाप दरवाजे के सहारे खड़ा हो गया। सेठ की बेटी ने और दिन की तरह चारों पुतरे-पुतरियाँ निकाले। बोली- सुनो पुतरा, सुनो पुतरियां, तुम देखो मेरो दुःख। बारह बरस सेवा कीनी, तबऊ न पायौ सुख।।

इतना सुनकर वे नाचने लगे। राजकुमार किवाड़ के एक सुराख में से सारा हाल देखता रहा। जब पुतरे-पुतरियों ने नाच समाप्त किया तो उसने दरवाजा खटखटाया। सेठ की लड़की ने पूछा-‘कौन है? मैं हूँ राजकुमार। किवाड़ें खोल। वह बोली-‘आप मुझे क्यों सताते हैं? रानी जी नाराज होती है।’ राजकुमार ने कहा-‘ज्यादा बातें न कर। किवाड़े खोल।’ सेठ की लड़की ने किवाड़ खोल दीं। राजकुमार ने भीतर जाकर देखा कि चारों पुतरे-पुतरियाँ खड़े हैं। उसने पूछा-‘तेरी कोठरी में कौन था?

लड़की ने कहा- कोई नहीं। ये पुतरे-पुतरियाँ हैं, इनसे ही मैं बातें कर रही थीं। राजकुमार ने फिर पूछा-‘तू इनसे कह क्या रही थी ? लड़की ने कहा-‘कुछ नहीं, कुछ नहीं। नहीं, तुझे बताना ही होगा। राजकुमार के आग्रह करने पर सेठ की लड़की ने सारा हाल कह सुनाया। सुनकर राजकुमार को बड़ा गुस्सा आया। उसने कहा-‘तू मेरी रानी नहीं, अहीरन हैं? और बारह बरस तक सेवा तुमने की ?

लड़की ने कहा- जी हाँ ! इस पर राजकुमार ने उस अहीरन को एक गड्ढे में गढ़वा दिया और सेठ की लड़की को अपनी रानी बनाया। उस दिन से वे दोनों आराम के साथ रहने लगे।

बुन्देली लोक कथा परंपरा 

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