Jalaun Jile Ke Pramukh Dharmik Isthal जालौन जिले के प्रमुख धार्मिक स्थल

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By admin

बुंदेलखंड उत्तर प्रदेश जालौन जिले के धार्मिक स्थल और उनसे जुड़ी हुई धार्मिक आस्था , परंपराएं एवं ऐतिहासिक साक्ष्यों के साथ Jalaun Jile Ke Pramukh Dharmik Isthal इस प्रकार हैं । उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 220 किलोमीटर दूर है। जालौन जिले की कालपी तहसील बहुत पुरानी है। कालपी तहसील यमुना नदी के किनारे बसी हुई है।

ठड़ेश्वरी मंदिर
यह जालौन जिले का बहुत प्रसिद्ध मंदिर है। यह उरई शहर में जेल रोड के पास स्थित है। यहां हर बुढ़वा मंगल को मेला लगता है तथा हर मंगल और शनिवारको भक्तों की भीड़  उमड़ती है।

संकट मोचन मंदिर
यह उरई से 10 किलोमीटर दूर आटा कस्बे के पास स्थित है।  यह शहर के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यहां पर हनुमान जी सौम्य रूप में विराजमान है। यहां मान्यता है कि इस मंदिर में मन्नत मांगने से मन्नते पूरी होती हैं।

राधा कृष्ण मंदिर
यह मंदिर उरई शहर के सबसे सुंदर मंदिरों में से एक है। यह उरई में गल्ला मंडी के पास स्थित है तथा यहां पर हर साल नवरात्र में भागवत का आयोजन किया जाता है। जिसे सुनने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। भागवत के अंत में यहां पर विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है। यहां भागवत के दिन से मेला लगता है। जिसमें भक्तों की विशाल भीड़ होती है।

कामाख्या मंदिर
यह मंदिर मां दुर्गा के कामाख्या रूप को प्रदर्शित करता है। यह मंदिर जालौन जिले के पहाड़पुरखेरा गांव में स्थित है। यह भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। यहां पर सोमवार का विशेष महत्व है। इस दिन श्रद्धालु माता के चरणों में मत्था टेकते हैं और मन्नत मांगते हैं। नवरात्र में पंचमी से नवमी तक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। नवरात्र के दिनों में यह मंदिर बहुत सुंदर लगता है। मंदिर को तोरण पताकाओं से सजाया जाता है। यह मंदिर प्राचीन नक्काशी का बना हुआ है।

रक्तदंतिका मंदिर
यह जालौन जिले के मुख्य शक्तिपीठों में से एक पहाड़पुरखेड़ा गांव के कामाख्या मंदिर के पास में स्थित है। यह दोनों मंदिर अलग-अलग पहाड़ियों पर स्थित हैं। इस मंदिर का उल्लेख दुर्गा सप्तशती मैं भी मिलता है। कहा जाता है कि माता सती का यहां पर दांत  गिरा था। जिसके कारण इस मंदिर का नाम रक्तदन्तिका पड़ा। यहां पर दो शिलाखंड रखे हुए हैं। जिनको कहा जाता है कि यह माता सती के दांत हैं, मंदिर में पूजा इन्हीं शिलाखडो की होती है। यह हमेशा लाल रंग  के बने रहते हैं। इन्हें पानी से धो देने पर भी यह वापस लाल रंग के हो जाते हैं।

जालौनी माता मंदिर
यह जालौन जिले के बरीकेपुरवा नामक गांव में स्थित है। कहा जाता है कि पांडवों ने इसे अपने अज्ञातवास में बनवाया था। जिसका पुराना नाम जयंती देवी मंदिर था। जो बाद में बदलकर जलौनी माता के नाम से हो गया। यहां पर नवरात्र में बहुत दूर-दूर से श्रद्धालु माता के दर्शन करने आते हैं। यहां पर एक अखंड ज्योति जल रही है। जो पांडव काल से ही जलती हुई मानी जाती है। यह मंदिर बीहड़ में स्थित होने के कारण 1980 से 2000 के बीच दस्यु सरगनाओं का गढ़ रहा है। जिन्होंने इस मंदिर में पीतल के कई घंटे चढ़ाए हैं।

संकटा देवी मंदिर
यह मंदिर जालौन जिले के ओरई शहर के बीचोंबीच स्थित है।यहां पर माता दुर्गा मां संकटा के रूप में विराजमान है। भक्तों के सभी कष्टों को दूर करने के कारण इसे संकटा देवी कहा जाता है। कहा जाता है कि यह मंदिर बहुत प्राचीन है, किंतु इसका जीर्णोद्धार बाद में किया ।

अक्षरा देवी मंदिर
जालौन जिले में वैसे तो कई सिद्ध स्थल हैं। परन्तु शक्तिसिद्ध पीठ के रूप ग्राम सैदनगर में बेत्रवती के तट पर स्थित अक्षरा पीठ का महत्व सर्वश्रेष्ठ है। इस स्थान की प्राचीनता का सही सही अनुमान लगाना तो संभव नहीं है किन्तु उपलब्ध शिलापट्ट के अनुसार इसके एक हजार वर्ष से भी अधिक पुराना होने का पता चलता है। अंग्रेजों के समय लिखे गए कई शोधग्रंथों के अनुसार यहां ईसा पूर्व चेदिवंश का शासन रहा। यह स्थान तंत्र मंत्र साधना के लिए बहुत प्रसिद्ध है। यहां पर श्रद्धालु अपने कष्टों को तंत्र साधना से दूर करने आते है। इस मंदिर में बलि देना वर्जित है।

हुल्की माता मंदिर
यह मंदिर उरई शहर के मच्छर चौराहे के पास स्थित है। इस मंदिर में सभी देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं और यहां पर प्रतिदिन दोनों समय गरीबों एवम भक्तों के लिए भंडारे का आयोजन किया जाता है। यह प्रथा यहां पर प्राचीन समय से ही चली आ रही है। इस मंदिर में साफ सफाई का विशेष ध्यान दिया जाता है।

नर्मदेश्वर मंदिर
यह उरई नगर के औरैया रोड पर स्थित है। यहां भक्तों की भीड़ हमेशा रहती है, परंतु सावन मास के सोमवार का यहां विशेष महत्व है। इस मंदिर का निर्माण नगर के सेठ लक्ष्मीनारायण ने करवाया था। 1953 में निर्मित इस मंदिर की स्थापना शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा की गई थी। जिसमें ज्योति पीठ और द्वारिका पीठ के शंकराचार्य भी शामिल हुए थे। वर्ष 2000 मे  इस मंदिर का जीर्णोद्धार कर विशेष भव्यता प्रदान की गई।

लक्ष्मी मंदिर
यह शहर के प्राचीन एवं प्रसिद्ध मंदिरों में से एक। इस मंदिर में माता लक्ष्मी भगवान् विष्णु के साथ विराजमान है। इस मंदिर में एक गौशाला भी है। इस मंदिर के प्रांगण में एक पीपल का वृक्ष है, जिसे बहुत पवित्र माना जाता है। कहा जाता है कि शनिवार को इस पीपल की पूजा करने से शनिदेव का प्रकोप कम होता है।

सैयद मीर तिमार्जी की दरगाह
यह दरगाह कालपी शहर मे स्थित है। सैयद मीर तिमार्जी प्रसिद्ध इमामों में से एक थे। कहा जाता है कि इनको वरदान था, वे कभी भी अजमेर शरीफ दर्शन करने तुरंत जा सकते हैं। 1593 ईस्वी में पैदा हुए यह संत रजिविया के तीसरे इमाम हैं। इस दरगाह में लोग अपनी मुरादें पूरी करने आते हैं। यहां पर मुख्य रूप से लोग संतान प्राप्ति के लिए
आते हैं।

बेरी वाले बाबा
यह उरई शहर कि बहुत प्रसिद्ध दरगाह है। यह उरई शहर के रेलवे स्टेशन से एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसे हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक माना जाता है। यह गाजी मंसूर अली शाह की दरगाह है, जिसे बेरी वाले बाबा के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर अपनी मन्नतें मांगने के लिए लोग बहुत दूर-दूर से आते हैं। इस मस्जिद के अंदर के चमत्कार लोगों के बीच हमेशा चर्चा का विषय बने रहते हैं।

हजरत पदम शाह दरगाह
यह दरगाह उरई शहर के अंबेडकर नगर चौराहे पर स्थित है। जिसे सांस्कृतिक तौर पर हिंदू-मुस्लिम एकता का मुख्य प्रतीक माना जाता है। इस दरगाह पर हिन्दू व मुस्लिम दोनों ही चादर चढ़ाने आया करते हैं।

 दरगाह सलार सोख्ता
यह दरगाह जिले के सबसे प्राचीन शहर कालपी के घसियारेपुर गांव में स्थित है। यह मस्जिद लंका मीनार के पास स्थित है। वास्तव में जनपद जालौन के यह मठ – मदिर ,  मजार तथा तीर्थ स्थल सामाजिक समरसता , हिन्दू मुस्लिम एकता और आपसी भाईचारे को बढ़ावा देने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। यही धर्मस्थल हमें जीवमूल्यों से जोड़ते हैं। संस्कारित करने के मार्ग सुझाकर राष्ट्रीय चेतना से जोड़े रखते हैं।
      
बागेश्वर धाम छतरपुर मध्य प्रदेश 

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